Lockdown के दौरान मानसिक बीमारी से भी बचना जरुरी

Lockdown के दौरान मानसिक बीमारी से भी बचना जरुरी

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि घर में बंद होने पर ऐसी खबरों से बचें जो आपको परेशान कर सकती हैं और इनमें कोरोना से जुड़ी खबरें भी शामिल हैं.

कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते दुनिया लगभग बंद सी हो गई है. स्कूल, दफ्तर, मॉल और सिनेमाघर बंद पड़ें है और लोग घरों में सिमटे हुए हैं. ऐसे में बोरियत होना स्वाभाविक है. लेकिन लंबे समय तक घर पर बंद होने का असर बोरियत से आगे बढ़कर मानसिक परेशानियों में भी बदलने लगा है. दुनिया भर में, एक बड़ी संख्या में लोग एंग्जायटी (घबराहट) और बाकी मानसिक तकलीफों की शिकायत करने लगे हैं.

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तनाव से बचने का एक तरीका स्थितियों को स्वीकार कर लेना भी है. हो सकता है कि कोरोना वायरस से पैदा हुई इस आपात स्थिति में कुछ लोग मानसिक या शारीरिक परेशानियों के साथ-साथ आर्थिक नुकसान भी उठा रहे हों. ऐसे में केवल यह याद रखे जाने की जरूरत है कि जान है तो जहान है. हो सकता है, कुछ लोगों को यह समाधान स्थितियों का अति-सरलीकरण लगे लेकिन फिलहाल कोई और विकल्प मौजूद नहीं है. अगर आर्थिक नुकसान नहीं है और केवल डर या बेचैनी है तो यह मान लेने में कोई बुराई नहीं कि आपको डर लग रहा है. मनोविज्ञान कहता है कि ऐसा करते ही दिमाग डर की बजाय डर के कारण और उससे निपटने के तरीकों पर केंद्रित हो जाता है. एक बार तनाव के कारणों को पहचान लेने के बाद इससे बाहर आने के लिए, प्रोग्रेसिव मसल्स रिलेक्सेशन और ध्यान जैसे तरीके ऑनलाइन सीखे जा सकते हैं.

इस मामले में उन लोगों को खास तौर पर ध्यान देने की ज़रूरत है जिनके घरों में बच्चे हैं. माता-पिता के लगातार परेशान होने का असर बच्चों पर बहुत जल्दी और बुरा पड़ता है. ऐसी परिस्थिति में बच्चों के साथ भी कोरोना वायरस के बारे में बात किए जाने की ज़रूरत है ताकि उन्हें पता चल सके कि घर और बाहर का माहौल क्यों बदला हुआ है. साथ ही, उन्हें यह बताना भी ज़रूरी है कि बहुत सी बातें आपके यानी माता-पिता के नियंत्रण में भी नहीं होता है़.

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अच्छी नींद, पोषक भोजन, साफ वातावरण, व्यायाम और लोगों से मेल-जोल इंसान की मूलभूत ज़रूरतें हैं, इसलिए इसके विकल्प तलाशे जाने की ज़रूरत है. उदारहरण के लिए अपने घर वालों या दोस्तों से लगातार फोन पर संपर्क रखना या वीडियो चैट करना, दोनों तरफ के लोगों को सामान्य बने रहने में मदद करेगा. इसके अलावा भूले-बिसरे दोस्तों या कभी न मिलने वाले रिश्तेदारों को फोन कर उनके हाल-चाल जाने जा सकते हैं. कुछ जानकार खाना खुद बनाने से लेकर घर की सफाई करने या बाकी घरेलू काम निपटाने के विकल्प का भी इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं. चूंकि ये काम सातों दिन चलते हैं इसलिए इनके साथ खुद को रोज व्यस्त रखना आसान है. इसके अलावा, वे लोग जो हमेशा समय की कमी के चलते स्वास्थ्य पर ध्यान न दे पाने की बात कहते हैं, कम से कम इन दिनों में एक्सरसाइज, योग, प्राणायाम आदि को अपना सकते हैं. यह स्वस्थ रखने के साथ-साथ तनाव कम करने में भी सहायक होगा।

यह लेखक के निजी विचार है

लेखक डॉ जीतेन्द्र कुमार सिंह एच आर कॉलेज, अमनौर, सारण में मनोविज्ञान के सहायक प्रोफेसर है. 

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