श्रीहरिकोटा, 02 सितंबर (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने देश के पहले सूर्य मिशन के तहत ‘आदित्य-एल1’ यान को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से शनिवार को प्रक्षेपित कर दिया। इसरो ने कहा है कि प्रक्षेपण सफल रहा।

‘आदित्य-एल1’ सूर्य परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल1’ (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा का वास्तविक अवलोकन करेगा। ‘आदित्य एल1’ सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष यान है।

इसे पूर्वाह्न 11 बजकर 50 मिनट पर इसरो के सबसे भरोसेमंद पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) के जरिये श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया। ‘आदित्य-एल1’ के 125 दिन में लगभग 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय कर लैग्रेंजियन बिंदु ‘एल1’ के आसपास हेलो कक्षा में स्थापित होने की उम्मीद है। इस कक्षा को सूर्य के सबसे करीब माना जाता है।

इस मिशन का मुख्य उद्देश्य सौर वातावरण में गतिशीलता, सूर्य के परिमंडल की गर्मी, सूर्य की सतह पर सौर भूकंप या कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई), सूर्य के धधकने संबंधी गतिविधियों और उनकी विशेषताओं के अलावा पृथ्वी के करीब अंतरिक्ष में मौसम संबंधी समस्याओं को समझना है।

‘आदित्य-एल1’ के साथ सात पेलोड हैं। इनमें से चार सूर्य के प्रकाश का निरीक्षण करेंगे। इसरो ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग में मिली कामयाबी के बाद इस मिशन का आगाज किया है।

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नई दिल्ली, 30 अगस्त (हि.स.)। बुधवार को आसमान में अद्भुत खगोलीय घटना देखने को मिल रही है। खास बात यह है कि इस बार फुल मून, सुपरमून और ब्लू मून तीनों एक साथ दिखाई दे रहे हैं। चंद्रमा पृथ्वी के बेहद नजदीक है। इसलिए सुपर ब्लू मून वाले दिन चंद्रमा सामान्य पूर्णिमा से करीब 14 प्रतिशत ज्यादा बड़ा दिखाई देता है।

खगोलशास्त्री के मुताबिक चंद्रमा की कलाओं का चक्र लगभग एक महीने तक चलता है। आम तौर पर हर साल 12 पूर्णिमा दिखते हैं। चंद्रमा के चरणों को पूरा होने में वास्तव में 29.5 दिन लगते हैं, जिसका अर्थ है कि 12 चंद्र चक्रों को पूरा करने में केवल 354 दिन लगते हैं। इसलिए हर 2.5 साल में एक कैलेंडर वर्ष के भीतर 13वीं पूर्णिमा देखी जाती है। यह 13वीं पूर्णिमा को ही ब्लू मून कहा जा रहा है। इस बार अगस्त के महीने में दो बार सुपर मून देखने को मिला है। इसके साथ शनि ग्रह भी चांद के ठीक दाहिनी ओर ऊपर देखा जा सकता है।

नासा के अनुसार, ब्लू मून या सुपर मून को हर साल देखना आम है, जबकि सुपर ब्लू मून, जहां दोनों घटनाएं मेल खाती हैं, एक दशक में लगभग एक बार ही घटित होती है। इसलिए अगस्त 2023 की दूसरी पूर्णिमा है, जिसे ब्लू मून के रूप में भी जाना जाता है। अगले सुपर ब्लू मून की जनवरी 2037 तक उम्मीद नहीं है, जो इस आगामी घटना के महत्व को रेखांकित करता है।

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नई दिल्ली, 30 अगस्त (हि.स.)। चंद्रमा की सतह पर भ्रमण कर रहे प्रज्ञान रोवर ने नई जानकारी दी है। रोवर के भेजे गए सैंपल्स की जांच में सल्फर के मौजूदगी की पुष्टि हुई है। सल्फर, जीवन के लिए एक जरूरी तत्व है। प्रज्ञान रोवर को कई अन्य जरूरी एलिमेंट्स भी मिले हैं। हालांकि, हाइड्रोजन की खोज जारी है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की तरफ से एक्स पर साझा की गई जानकारी के मुताबिक चंद्रमा पर सल्फर मिला है। चंद्रयान-3 मिशन प्रज्ञान रोवर पर लेजर बेस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (एलआईबीएस) उपकरण लगा है। इस उपकरण ने दक्षिण ध्रुव के पास चंद्रमा की सतह पर सल्फर (एस) की उपस्थिति की स्पष्ट रूप से पुष्टि की है। इसके साथ चंद्रमा पर एल्युमिनियम, कैल्शियम, आयरन, क्रोमियम, टाइटेनियम, मैग्नीशियम, सिलिकॉन और ऑक्सीजन का भी पता चला है। हालांकि, चंद्रमा पर हाइड्रोजन की खोज अभी की जा रही है।

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नई दिल्ली, 30 अगस्त (हि.स.)। चंद्रयान-3 मिशन को लेकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ताजा अपडेट जारी किया है। इसरो ने बुधवार की सुबह प्रज्ञान रोवर द्वारा ली गई विक्रम लैंडर की एक तस्वीर साझा की है। ‘मिशन की छवि’ रोवर पर लगे नेविगेशन कैमरे द्वारा ली गई थी। चंद्रयान-3 मिशन के लिए नवकैम (नेवीगेशन कैमरा ऑनबोर्ड द रोवर) इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स सिस्टम प्रयोगशाला द्वारा विकसित किए गए हैं। यानि यह पूरी तरह से स्वदेशी कैमरा है।

इसरो द्वारा साझा की गई तस्वीरों में विक्रम लैंडर को दिखाया गया है, जिसमें उसमें लगे पेलोड चस्ते और इलसा और दिखाया गया है। प्रज्ञान रोवर के पास दो पेलोड है जबकि विक्रम लैंडर के पास तीन पेलोड हैं जो चंद्रमा की सतह पर विभिन्न प्रकार के शोध करेंगे।

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (हि.स.)। चंद्र अभियान की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) सूरज का अध्ययन करने के लिए दो सितंबर को ‘आदित्य-एल1’ सूर्य मिशन को लॉन्च करेगा। इसरो ने एक्स पर जानकारी साझा करते हुए बताया कि आदित्य एल-1 दो सितंबर को 11 बजकर 50 मिनट पर श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया जाएगा। आदित्य एल वन सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष-आधारित भारतीय वेधशाला है।

आदित्य एल वन की लॉन्चिंग आम नागरिक भी देख सकेंगे। इसरो ने श्रीहरिकोटा में लॉन्च व्यू गैलरी से लॉन्चिंग देखने के लिए लोगों को आमंत्रित भी किया है। इसके लिए लोग lvg.shar.gov.in/VSCREGISTRATIO…पर पंजीकरण कर सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि ‘आदित्य-एल 1’ सूर्य के अवलोकन के लिए पहला समर्पित भारतीय अंतरिक्ष मिशन होगा, जिससे अंतरिक्ष एजेंसी इसरो द्वारा प्रक्षेपित किया जाएगा। आदित्य-एल1 मिशन का उद्देश्य एल1 (सूर्य-पृथ्वी लाग्रेंज बिंदु) के चारों ओर की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है। यह अंतरिक्ष यान सात पेलोड लेकर जाएगा। अंतरिक्ष यान को सौर कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी परतों) के दूरस्थ अवलोकन और एल1 (सूर्य-पृथ्वी लाग्रेंज बिंदु) पर सौर हवा के यथास्थिति अवलोकन के लिए बनाया गया है। एल1 पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर है।

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नई दिल्ली, 28 अगस्त (हि.स.)। चंद्रयान-3 मिशन को लेकर एक अपडेट सामने आया है। सोमवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक्स पर जानकारी साझा की है कि 27 अगस्त को रोवर को अपने स्थान से 3 मीटर आगे स्थित 4 मीटर व्यास वाला गड्ढा मिला। रोवर को पथ पर वापस जाने का आदेश दिया गया। यह अब सुरक्षित रूप से एक नए रास्ते पर आगे बढ़ रहा है।

इससे पहले रविवार को विक्रम लैंडर में लगे पेलोड ने चंद्रमा की सतह पर तापमान की जानकारी दी थी। चांद के दक्षिणी ध्रुव में अब प्रज्ञान ने खुदाई शुरू कर दी है। इस दौरान तापमान में बाहर और सतह के नीचे काफी अंतर देखने को मिला है, जिससे वैज्ञानिक हैरान हैं। चंद्रमा का तापमान 70 डिग्री सेल्सियस है लेकिन सतह से 10 सेंटीमीटर के अंदर यह 50 डिग्री सेल्सियस है।

 

 

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बेंगलुरु, 26 अगस्त (हि.स.)। चंद्रयान-3 की सफलता के बाद वैज्ञानिकों का उत्साहवर्धन करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शनिवार को बेंगलुरु पहुंचे। वह चंद्रयान-3 मिशन में शामिल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों से बातचीत करेंगे। इस दौरान उन्होंने ‘जय विज्ञान-जय अनुसंधान’ का नारा भी दिया। प्रधानमंत्री मोदी दक्षिण अफ्रीका और ग्रीस की यात्रा से लौटने के तुरंत बाद सुबह करीब 7ः15 बजे इसरो के टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) के मिशन संचालन परिसर पहुंचे।

प्रधानमंत्री वैज्ञानिकों का उत्साहवर्धन करेंगे। बेंगलुरु में एचएएल हवाई अड्डे के बाहर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा-‘मैं खुद को रोक नहीं सका, क्योंकि मैं देश में नहीं था, लेकिन मैंने भारत दौरे के तुरंत बाद सबसे पहले बेंगलुरु जाने और अपने वैज्ञानिकों से मिलने का फैसला किया।’ प्रधानमंत्री ने हवाईअड्डे के बाहर एकत्र लोगों का अभिवादन भी किया।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर लिखा है- ‘मैं उन असाधारण इसरो वैज्ञानिकों से बातचीत करने के लिए उत्सुक हूं, जिन्होंने चंद्रयान-3 की सफलता से भारत को गौरवान्वित किया है। उनका समर्पण और जुनून वास्तव में अंतरिक्ष क्षेत्र में हमारे देश की उपलब्धियों के पीछे प्रेरक शक्ति है।’

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एचएएल हवाईअड्डे के बाहर एकत्र लोगों से जय जवान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान के नारे भी लगवाए। उन्होंने कहा जो दृश्य आज मुझे यहां दिखाई दे रहा है वह मुझे ग्रीस और जोहानिसबर्ग में भी दिखाई दिया। दुनिया के हर कोने में न सिर्फ भारतीय बल्कि विज्ञान में विश्वास करने वाले, भविष्य को देखने वाले, मानवता को समर्पित सब लोग इतने ही उमंग और उत्साह से भरे हुए हैं।

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नई दिल्ली, 25 अगस्त (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शुक्रवार को बताया कि चंद्रयान 3 मिशन के रोवर ‘प्रज्ञान’ ने चांद की सतह पर 8 मीटर की दूरी तय की है और उसके सारे पे लोड सही तरीके से काम कर रहे हैं। चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर बुधवार को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सुरक्षित रूप से उतरा था।

इसरो ने ‘एक्स’ पर कहा कि सभी नियोजित रोवर गतिविधियों को सत्यापित कर लिया गया है। रोवर ने लगभग आठ मीटर की दूरी सफलतापूर्वक तय कर ली है। रोवर के दो पेलोड (उपकरण) एलआईबीएस और एपीएक्सएस सुचारू रूप से काम कर रहे हैं। प्रोपल्शन मॉड्यूल, लैंडर और रोवर पर सभी उपकरण सामान्य ढंग से काम कर रहे हैं।

प्रज्ञान रोवर के दो उपकरण ‘अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर’ (एपीएक्सएस) का लक्ष्य चंद्र सतह की रासायनिक संरचना और खनिज संरचना का अध्ययन करना है। वहीं, ‘लेजर-इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप’ (एलआईबीएस) चंद्रमा पर लैंडिंग स्थल के आसपास की मिट्टी और चट्टानों की मौलिक संरचना की पड़ताल के लिए है।

उधर, विक्रम लैंडर के तीन पे लोड ने भी काम करना शुरू कर दिया है। गुरुवार को इसरो ने बताया कि आईएलएसए, रंभा, और चस्ते सुचारू रूप से काम कर रहे हैं।

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नई दिल्ली, 23 अगस्त (हि.स.)। चांद की धरती पर उतरकर भारत ने बुधवार को इतिहास रच दिया। चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर तय समय पर 6 बजकर 4 मिनट पर चांद के उस हिस्से पर उतरा, जहां आज तक कोई भी नहीं पहुंचा था। इस ऐतिहासिक पल का सीधा प्रसारण होने से पूरा देश चंद्रयान-3 के चंद्रमा पर कदम रखने की ऐतिहासिक घटना का गवाह बना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने गए साउथ अफ्रीका से इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने।

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बना भारत

अमेरिका, रूस और चीन भारत से पहले चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कर चुके हैं, इसलिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के मून मिशन पर नासा सहित पूरी दुनिया की निगाहें टिकी थीं, क्योंकि इसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि आज भारत का चंद्रयान-3 उस जगह पर उतरा है, जहां पर आज तक कोई देश नहीं पहुंच सका था। बेंगलुरु के इसरो कमांड सेंटर में वैज्ञानिकों की पूरी टीम के लिए यह बेहद अहम और तनाव भरा समय रहा, लेकिन भारत के चांद के दक्षिणी ध्रुव पर जाने वाला दुनिया का पहला देश बनते ही सारे वैज्ञानिक ख़ुशी से झूम उठे और एक दूसरे को बधाई दी। चांद का दक्षिणी ध्रुव बेहद खास और रोचक इसलिए है, क्योंकि यहां हमेशा अंधेरा रहता है। साथ ही उत्तरी ध्रुव की तुलना में यह काफी बड़ा भी है। हमेशा अंधेरे में होने के कारण यहां पानी होने की संभावना भी जताई जा रही है। इसरो ने चांद के इस हिस्से में मौजूद क्रेटर्स में सोलर सिस्टम के जीवाश्म होने की संभावना भी जताई है। चंद्रयान-3 से भेजा गया प्रज्ञान रोवर चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर घूम कर इन सब बातों का पता लगाएगा।

अब क्या-क्या शोध करेगा प्रज्ञान रोवर

भारत का चंद्रयान-3 मिशन अब तक के मिशनों से अलग है। इस मिशन से व्यापक भौगौलिक, मौसम सम्बन्धी अध्ययन और चंद्रयान-1 द्वारा खोजे गए खनिजों का विश्लेषण करके चंद्रमा के अस्तित्त्व में आने और उसके क्रमिक विकास की और ज़्यादा जानकारी मिल पाएगी। चंद्रमा पर रहने के दौरान कई और परीक्षण भी किये जाएंगे, जिनमें चांद पर पानी होने की पुष्टि और वहां अनूठी रासायनिक संरचना वाली नई किस्म की चट्टानों का विश्लेषण शामिल हैं। चंद्रयान-3 से चांद की भौगोलिक संरचना, भूकम्पीय स्थिति, खनिजों की मौजूदगी और उनके वितरण का पता लगाने, सतह की रासायनिक संरचना, ऊपर मिट्टी की ताप भौतिकी विशेषताओं का अध्ययन करके चन्द्रमा के अस्तित्व में आने तथा उसके क्रमिक विकास के बारे में नई जानकारियां मिल सकेंगी।

क्या है रोवर प्रज्ञान

चंद्रयान-3 का रोवर प्रज्ञान 6-पहिए वाला एक रोबोट वाहन है, जो संस्कृत में ‘ज्ञान’ शब्द से लिया गया है। रोवर प्रज्ञान 500 मीटर (½ आधा किलोमीटर) तक यात्रा कर सकता है और सौर ऊर्जा की मदद से काम करता है। यह सिर्फ लैंडर के साथ संवाद कर सकता है। चांद की सतह पर लैंडिंग के करीब 2 घंटे के बाद विक्रम लैंडर का रैंप खुलेगा। इसी के जरिए 6 पहियों वाला प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर उतरेगा। इसी के जरिए चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र के अब तक के अछूते भाग के बारे में जानकारी मिलेगी। इसका वजन 27 किलोग्राम और विद्युत उत्पादन क्षमता 50 वॉट है। यह चांद की सतह पर मौजूद पानी या बाकी तत्वों का बारीकी से परीक्षण करेगा।

क्या होती है सॉफ्ट लैंडिंग

भारत ने पहली बार किसी उपग्रह पर अपने किसी यान की सॉफ्ट लैंडिंग कराई है। इस मिशन के सफल होने पर भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है, जिसके पास सॉफ्ट लैंडिंग की स्वदेशी तकनीक है। सॉफ्ट लैंडिंग में खतरे भी बहुत होते हैं और तमाम सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं। हवाई जहाज से कूदने पर थोड़ी ऊंचाई के बाद पैराशूट खोलकर जमीन पर उतरने को भी ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कहा जाता है। अगर हवाई जहाज से कूदने वाला व्यक्ति पैराशूट न खोले, तो वह गुरुत्वाकर्षण शक्ति के प्रभाव और अपने वजन की वजह से तेजी से जमीन पर टकराएगा, जिससे उसे भारी नुकसान हो सकता है या उसकी मौत भी हो सकती है, लेकिन पैराशूट की वजह से वह सॉफ्ट लैंडिंग करता है। इसी तरह एयरपोर्ट पर लैंडिंग के वक्त विमान का पायलट पहले पिछले पहिए को रनवे पर लैंड कराता है, फिर अगले पहिए को। इससे प्लेन का वजन गति की दिशा में सही तरीके से नीचे आता है और लैंडिंग सेफ होती है। इसे भी सॉफ्ट लैंडिंग कहते हैं।

विक्रम लैंडर ने खुद तलाशी लैंडिंग की जगह

इसरो के मुताबिक चांद पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति धरती की अपेक्षा 1/6 कम है। यानी वहां गिरने की गति ज्यादा तेज है, क्योंकि वहां वायुमंडल नहीं है, इसलिए घर्षण से गति कम करने की कवायद भी नहीं की जा सकती थी। इसलिए जब विक्रम लैंडर ने 25 किमी. की ऊंचाई से चांद की सतह पर उतरना शुरू किया, तो उसके नीचे लगे चारों इंजनों को ऑन कर दिया गया। इस तरह जो इंजन अभी तक विक्रम लैंडर को आगे बढ़ाने का काम कर रहे थे, वही इंजन विपरीत दिशा में दबाव बनाकर विक्रम की गति को कम करके 2 मीटर प्रति सेकंड पर ले आये और लैंडिंग से कुछ सेकंड पहले गति जीरो कर दी गई। यह सारा काम विक्रम लैंडर में मौजूद ऑनबोर्ड कंप्यूटर ने किया। उसमें लगे सेंसर्स ने सही और गलत जगह की तलाश की और फिर विक्रम लैंडर अपने चारों पैरों के सहारे आराम से चांद की सतह पर उतर गया।

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नई दिल्ली, 22 अगस्त (हि.स.)। चंद्रयान-3 द्वारा भेजी गई चंद्रमा की कुछ और तस्वीरें इसरो ने साझा की हैं। इसरो ने मंगलवार को तस्वीरें ट्वीट कर बताया कि देश का महत्वपूर्ण चंद्रमा मिशन एकदम तय समय पर है। सभी सिस्टम की अच्छे से जांच परख की जा रही है। लैंडर विक्रम अपने लक्ष्य की तरफ तेजी से बढ़ रहा है।

इसरो ने 19 अगस्त को लगभग 70 किमी की ऊंचाई से लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा (एलपीडीसी) द्वारा ली गई चंद्रमा की तस्वीरें मंगलवार को ट्वीट कीं। एलपीडीसी छवियां लैंडर मॉड्यूल को एक साथ मिलान करके उसकी स्थिति (अक्षांश और देशांतर) निर्धारित करने में सहायता करती हैं।

इसरो ने ट्वीट किया, “मिशन तय समय पर है। सिस्टम की नियमित जांच हो रही है। सुचारू रूप से आगे बढ़ना जारी है। मिशन ऑपरेशंस कॉम्प्लेक्स (मोक्स) ऊर्जा और उत्साह से भरा हुआ है। मोक्स पर लैंडिंग ऑपरेशन का सीधा प्रसारण शाम पांच बजे से शुरू होगा।”

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-विज्ञान पत्रकारिता से जुड़े विजय कुमार शर्मा बता रहे हैं लूना-25 के क्रैश होने के बाद चंद्रयान क्यों है पूरी दुनिया के लिए खास और क्या होती है सॉफ्ट लैंडिंग

कोलकाता, 21 अगस्त (हि.स.)। रूस के चंद्र मिशन लूना-25 के क्रैश होने के बाद अब भारत के चंद्रयान-3 पर पूरी दुनिया की निगाहें टिक गई हैं। महज चंद घंटों बाद चंद्रयान-3 चंदा मामा की दुर्गम सतह के “सॉफ्ट आलिंगन” के उस वादे को पूरा करने के लिए तैयार है जो आज से तीन साल पहले (2019) 125 करोड़ देशवासियों ने चंद्रयान-2 के गुमशुदा हो जाने के बाद चांद से किया था।

आज (सोमवार) लूना-25 को भी चांद के सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी लेकिन रविवार को ही उसका रूसी अंतरिक्ष एजेंसी से संपर्क टूट गया और दावा किया जा रहा है कि चांद की सतह से टकराकर हार्डवेयर डैमेज की वजह से मिशन को अंजाम देने में फेल हो गया है। इसके साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने घोषणा कर दी है कि 23 अगस्त (बुधवार) शाम करीब 6:00 बजे चंद्रयान-3 चांद के उस दक्षिणी हिस्से पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा जहां अरबों साल से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है।

आखिर क्या होती है सॉफ्ट लैंडिंग और चंद्रयान-3 से पूरी दुनिया को क्या उम्मीदें हैं। इसे मशहूर विज्ञान लेखक विजय कुमार शर्मा ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से बातचीत में सरल भाषा में समझाने की कोशिश की है।

उन्होंने कहा, “स्पेस मिशन लॉन्च करना कोई मुश्किल नहीं है। स्पेसशिप का गंतव्य तक पहुंच जाना भी मुश्किल नहीं है। उसका सबसे खतरनाक, चुनौतीपूर्ण और असाध्य हिस्सा सफलतापूर्वक लैंडिंग होता है। कोई चाहे कितना भी एक्सपर्ट हो, यही एक ऐसी चीज है जिसमें विफलता की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। सॉफ्ट लैंडिंग ही एकमात्र उपाय है जो दुनिया भर के स्पेस मिशन के विभिन्न खगोलीय पिंडों पर सुरक्षित लैंडिंग का रास्ता सुनिश्चित करेगा।”

सॉफ्ट लैंडिंग मैकेनिज्म के तकनीकी पहलू को सरल शब्दों में स्पष्ट करते हुए विजय बताते हैं कि स्पेस शिप उतारने के दौरान नीचे की दिशा में रॉकेट फायर किए जाते हैं ताकि न्यूटन के क्रिया के बराबर प्रतिक्रिया के नियम अनुसार ऊपर की दिशा में धक्का लगे और स्पेसशिप की रफ्तार धीमी हो। रफ्तार धीमी करनी इसलिए जरूरी है कि चांद अपने गुरुत्वाकर्षण की वजह से स्पेसशिप को अपनी सतह की ओर तेज रफ्तार में खींच रहा होता है और अगर रफ्तार धीमी नहीं हुई तो स्पेसक्राफ्ट सतह से टकराकर नष्ट हो जाता है। इससे पूरा मिशन फेल हो जाता है। चंद्रयान-3 में रॉकेट बूस्टर लगे हैं जिनको नीचे की और फायरिंग किया जाएगा। इससे उसकी रफ्तार धीमी होगी और चांद की सतह तक पहुंचने तक ऑन बोर्ड कंप्यूटर से इस तरह से कमांड सेट किए गए हैं कि चांद के ग्रेविटी को कैंसिल करते हुए बिल्कुल शून्य रफ्तार कर इसके सतह को छुएगा। उसके बाद विक्रम चंद्रयान-3 से निकलकर वन लूनर डे यानी चांद के एक दिन जो धरती के 14 दिनों के बराबर है, सतह पर मिट्टी के सैंपल लेकर रिसर्च करेगा।”

चांद की सतह पर उतर रहे चंद्रयान-3 की गति धीमी करने के लिए सतह के करीब पैराशूट का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा सकता है? इस सवाल पर वह कहते हैं कि चांद की धरती पर हवा नहीं है। इसीलिए वहां पैराशूट काम नहीं करेगा। एकमात्र उपाय नीचे की ओर रॉकेट की फायरिंग है ताकि ऊपर की ओर लगे उसके धक्के से चंद्रयान की गति कम हो। विजय इस बात की उम्मीद जताते हैं ति इस बार चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग की उम्मीद पूरी दुनिया को है, क्योंकि चंद्रयान-2 की विफलता से भारत ने सबक सीखा है और इस मिशन में कई बदलाव किए हैं।

चंद्रयान-3 की खूबियों का जिक्र करते हुए विजय ने कहा कि 2019 में भारत ने जब चंद्रयान-2 लॉन्च किया था तब कुछ ही दिनों के अंतराल पर इजरायल ने बेरेशीट, जापान ने हकूटो आर और एक दिन पहले ही रूस ने लूना-25 गंवाया है। इन सभी मिशनों को विफलता हाथ लगी। खास बात यह है कि चांद पर उतरने की कोशिश करने वाले विफलतम देशों में एकमात्र भारत ही है जो महज तीन सालों के अंतराल पर दूसरा प्रयास कर फिर चांद की वायुमंडल में दस्तक दे चुका है। इसीलिए चंद्रयान-3 का सफलतापूर्वक चांद के उस हिस्से में उतरना बेहद अहम है जहां आज तक रोशनी नहीं पहुंची।

वो कहते हैं कि यहां अगर सफल लैंडिंग होती है तो इस हिस्से में सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश भारत होगा। विजय कहते हैं-” आज से 50 वर्ष के भीतर हम इंसानों के भेजे अंतरिक्षयान मिल्की-वे गैलेक्सी के विभिन्न हिस्सों में अपनी आमद दर्ज करा रहे होंगे। उन सुदूर मौजूद ग्रहों तक प्रकाश की गति से भेजे हमारे सिग्नल्स को भी स्पेसशिप तक पहुंचने में घंटों, हफ्तों, महीनों अथवा वर्षों का समय लगेगा। तब एकमात्र यही तरीका बचता है कि हम “सेफ लैंडिंग” की प्रक्रिया पूर्वनियोजित रूप से इंस्टॉल करके स्पेसशिप्स को दूसरे संसारों के सफर पर रवाना करें। जब तक हम अपने बगल में मौजूद चांद पर सेफ लैंडिंग में दक्षता हासिल नहीं कर लेते, तब तक अंतरिक्ष विस्तार की मानवीय महत्वकांक्षाओं पर सवालिया निशान बने रहेंगे। इसलिए चांद पर अगर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग होती है तो यह भविष्य के अंतरिक्ष मिशन को सबसे सफल दिशा देने वाला होगा।”

साल 2019 में भारत के महत्वकांक्षी चंद्रयान-2 मिशन की विफलता के बावजूद उससे हुए वैज्ञानिक लाभ का जिक्र करते हुए विजय कहते हैं, “महानतम अभियानों के शुरुआती दौर अक्सर मायूसी भरे होते हैं। 2019 में चंद्रयान-2 से संपर्क टूट जाने के बाद इसरो प्रमुख के शिवन को पड़े थे। पूरे देश में उदासी थी। मायूसी के उस दौर में भी दो दिनों तक सवा सौ करोड़ निगाहें रात के आसमान में टकटकी लगा कर चांद को निहार रही थीं, मानों किसी खो गए अपने को खोज रही हों। इस विफलता से एक संकल्प का जन्म हुआ था। वह था, आज नहीं तो कल, देर-सबेर… हम फिर आएंगे और चांद के सीने पर तिरंगा फहराएंगे। यह 125 करोड़ लोगों का चांद से किया गया वादा था, जिसे निभाने के लिए चंद्रयान-3 बिल्कुल करीब पहुंचकर दस्तक दे चुका है।

विजय शर्मा विज्ञान पत्रकारिता का प्रमुख नाम हैं। ब्रह्मांड के अनंत रहस्यों और विज्ञान के रोमांचकारी प्रयोगों को लेकर सबसे पहले “बेचैन बंदर” और उसके बाद “महामानव” दो किताबें लिखी हैं। इनमें से बेचैन बंदर को 2019 में भारत सरकार का राजभाषा मंत्रालय पुरस्कृत कर चुका है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उन्हें इसके लिए सम्मानित कर चुके हैं।

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नई दिल्ली, 21 अगस्त (हि.स.)। चंद्रयान-3 इतिहास रचने के महज कुछ ही घंटों की दूरी पर है। चांद पर लैंडिंग की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। 23 अगस्त शाम 5.45 मिनट पर चंद्रयान-3 चांद पर कदम रखेगा। इस बीच सोमवार को चंद्रयान-2 ने चंद्रयान -3 का औपचारिक स्वागत किया। दोनों के बीच दोतरफा संचार स्थापित हो गया है। इससे पहले इसरो ने यान द्वारा ली गई चंद्रमा की कुछ तस्वीरें भी साझा की।

सोमवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ट्वीट करके कहा कि चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल का स्वागत किया। दोनों के बीच द्विपक्षीय संपर्क स्थापित किया गया है। उल्लेखनीय है कि साल 2019 में भारत ने अपना मिशन चंद्रयान-2 लॉन्च किया था लेकिन सॉफ्ट लैंडिंग में गड़बड़ी हो गई थी। चंद्रयान-2 क्रैश हुआ लेकिन इसने अपना काम किया था।

चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर पिछले 4 साल से चांद के इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहा है और अपना काम कर रहा है। अब चार साल के बाद जब विक्रम लैंडर फिर से चांद के पास पहुंचा है तब चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर एक्टिव हुआ है।

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