स्वतंत्रतान्दोलन में बिहार की पत्रकारिता और साहित्य का योगदान अविस्मरणीय : अच्युतानंद मिश्र

मोतिहारी: संस्कार भारती, बिहार प्रदेश द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में “स्वतंत्रता संग्राम में बिहार की पत्रकारिता और साहित्य” विषयक ऑनलाइन परिचर्चा का अयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व कुलपति एवं देश के ख्यातिलब्ध वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानंद मिश्र ने की.

ई–परिचर्चा में मुख्य वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की प्रोफेसर एवं हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय की निदेशक प्रो. कुमुद शर्मा थी. विषय प्रवर्तन प्रो. अरुण कुमार भगत, सदस्य लोक सेवा आयोग, बिहार ने किया. सानिध्य एवं संयोजन संस्कार भारती, बिहार के संगठन मंत्री वेद प्रकाश जी का प्राप्त हुआ. ई-परिचर्चा का संचालन कार्यक्रम संयोजक डॉ. परमात्मा कुमार मिश्र ने की.

अध्यक्षीय उद्बोधन में संस्कार भारती, बिहार के प्रति आभार व्यक्त करते हुए श्री अच्युतानंद मिश्र कहा कि ” स्वाधीनता आंदोलन के समय बिहार के पत्रकार सिर्फ बिहार के ही नही बल्कि पूरे देश के पत्रकार थें. स्वाधीनता की पत्रकारिता और साहित्य में बिहार की महत्वपूर्ण भूमिका रही. बिहार की पत्रकारिता और साहित्य ने स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा देने का कार्य किया.

अच्युतानंद मिश्र ने महात्मा गांधी का बिहार आना और चंपारण सत्याग्रह एवं गांधीवादी पत्रकारिता पर भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि बिहार के पत्रकारों ने गांधीवादी पत्रकारिता को भी आदर्श माना और बिना विज्ञापन के समाचार पत्रों का प्रकाशन भी उनकी प्रेरणा से हुई. श्री मिश्र ने कहा कि 1907 से 1920 तक लगभग सभी पत्रकार लोकमान्य तिलक की पत्रकारिता से प्रेरित होकर तिलकवादी पत्रकार बन गए थे. उस समय के साहित्यकारों ने भी स्वतंत्रता के आंदोलन में अपनी रचनाओं से जन जागरण का काम किया. स्वाधीनता की पत्रकारिता जिस रूप में हुई उसी रूप पर आज के युवा पीढ़ी के सामने लाई जानी चाहिए, उस पर चर्चा होनी चाहिए। बिहार के पत्रकारों में ऊर्जा है. बिहार देशभर के पत्रकारों की उर्वरा भूमि है. वर्तमान में पत्रकारिता के बदले स्वरूप पर उन्होंने कहा कि आज की पत्रकारिता में विश्वसनीयता समाप्त हो गई है. पत्रकारिता व्यापार आधारित हो गई है.

मुख्य वक्ता प्रो. कुमुद शर्मा ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार प्रांत की भूमिका प्रशंसनीय रही है. स्वाधीनता आंदोलन के दौरान साहित्य और पत्रकारिता के बीच कोई विभाजन रेखा थी ही नहीं.जो साहित्यकार थे वही पत्रकारिता में आते थे. साहित्य और पत्रकारिता के बीच सामंजस्य था. स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के साहित्यकारों की भी महती भूमिका रही. प्रोफेसर कुमुद शर्मा ने 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन की पत्रकारिता पर ईसाई पादरी जेम्स लोंग के बातों पर चर्चा करते हुए कहती है कि जेम्स लोंग भारत के समाचार पत्रों के स्वरूप के बारे में कहते हैं कि ” भारत का समाचार पत्र देखने में बहुत साधारण होता है पर वीर काव्य की तरह अपना असर दिखाते हैं. भारतीयों को जगाने में इन देशी समाचार पत्रों की बड़ी भूमिका होती है. इनका प्रसार कम है परंतु प्रभाव ज्यादा है. भारतीय समाचार पत्रों में प्रकट मत खतरों की चेतावनी देता है. ” प्रो कुमुद शर्मा ने साहित्यकारों पर चर्चा करते हुए कहती है कि बिहार की धरती ने कई साहित्यकारों को पैदा किया जिसने अपने व्यक्तिगत सुखों को तिलांजलि देकर स्वतंत्रता आंदोलन में महती भूमिका निभाया. उन्होंने बिहार के साहित्यकार राजा राधिका रमन सिंह, रामवृक्ष बेनीपुरी, रामधारी सिंह दिनकर, शिवपूजन सहाय, मोहनलाल मेहता जैसे देशभक्त साहित्यकार और उनकी रचनाओं पर भी चर्चा की.

परिचर्चा में कार्यक्रम के मार्गदर्शक बिहार लोक सेवा आयोग, पटना के माननीय सदस्य प्रोफेसर अरुण कुमार भगत ने अपने उद्बोधन में कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में भाषाई पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका रही. 1857 की क्रांति के पूर्व पराधीन भारत के पत्रकारों ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. स्वाधीनता संग्राम का कालखंड लगभग 121 वर्षों का है. 1826 में भाषाई पत्रकारिता की शुरुआत और 1947 में देश कि स्वतंत्रता तक की पत्रकारिता राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर स्थापित हुई. प्रो अरुण कुमार भगत ने इस 121 वर्षों की पत्रकारिता के कालखंड को चार भागों में विभाजित करते हुए कहा कि 1826 से 1857 तक प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के पूर्व की पत्रकारिता रही, फिर 1900 तक भारतेंदु युगीन पत्रकारिता का प्रभाव रहा, 1920 तक तिलक की पत्रकारिता का प्रभाव दिखाई देती है और फिर 1920 से 1947 तक गांधी युगीन पत्रकारिता का प्रभाव रहा. उन्होंने कहा कि भाषाई पत्रकारिता के माध्यम से ही स्वाधीनता की पूरी लड़ाई लड़ी गई. उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में बिहार के पांच प्रमुख अखबार बिहार बंधु, पाटलिपुत्र, सर्च लाइट, बिहार टाइम्स एवं आर्यावर्त जैसे समाचार पत्रों के विकास एवं भूमिका पर भी चर्चा किया.

कार्यक्रम का संयोजन भोजपुरी सांस्कृतिक समूह, संस्कार भारती, बिहार के सह संयोजक डॉ. परमात्मा कुमार मिश्र ने किया.तकनीकी संयोजन उत्तर बिहार के प्रांत महामंत्री सुरभित दत्त ने की.
मीडिया को जानकारी देते हुए कार्यक्रम संयोजक डॉ. परमात्मा कुमार मिश्र ने बताया कि इस परिचर्चा में “स्वतंत्रता संग्राम में बिहार की पत्रकारिता और साहित्य” के विविध आयामों पर सविस्तार से चर्चा की गई. इस परिचर्चा को संस्कार भारती, बिहार के फेसबुक पेज से लाइव प्रसारित किया गया, जिसमें बिहार सहित देशभर से लगभग सैकड़ों लोग सक्रिय रुप से जुड़े रहे.

परिचर्चा के अंत में कार्यक्रम संयोजक डॉ. परमात्मा कुमार मिश्र ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन किया एवं संस्कार भारती, बिहार के सदस्यों के प्रति आभार प्रकट किए.

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देश नहीं भूल सकता यह दिनः यह राष्ट्रपिता महात्मा गॉधी की व्याप्ति का ही असर है कि उनके जन्म के 146वें वर्ष और हत्या के 67वें साल 2014 में उनके व्यक्तित्व के एक पक्ष को पूरा देश अपना लेता है। अगले साल 2015 में दक्षिण अफ्रीका से गॉधीजी की वापसी के 100 साल होने को याद करते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने श्रद्धांजलि-स्वरूप गांधीजी को प्रिय, सफाई के लिए लोगों का आह्वान किया और देखते-देखते स्वच्छता एक अभियान बन गया। उसके पहले से ही भारतीय आजादी के महानायकों में प्रमुख, सत्याग्रही और अहिंसा के उद्घोषक गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका सहित दुनिया के कई देशों में आदर्श की तरह अपनाया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका सहित आज 80 से अधिक देशों में मोहनदास करमचंद गांधी की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

वॉशिंगटन में एम्बेसी रो पर भारतीय दूतावास के सामने गांधीजी की एक प्रतिमा का अनावरण सन् 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। ऐसे राष्ट्रनायक और अहिंसा के पुजारी गांधी हिंसा के ही शिकार हो गये। वर्ष 1948 में आज ही दिन, यानी 30 जनवरी को दिल्ली में प्रार्थना के लिए जाते महात्मा गांधी पर नाथूराम गोडसे ने गोलियां चलाईं, जिनसे उनकी मृत्यु हो गयी। 

अन्य महत्वपूर्ण घटनाएं
1530: मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह का निधन।
1903: कलकत्ता के मटकॉफ हॉल में इंपीरियल लाइब्रेरी का उद्घाटन। यही 1948 से नैशनल लाइब्रेरी के रूप में पहचाना जाता है।
1941: सोवियत संघ की एक पनडुब्बी ने जर्मनी का एक पोत डुबा दिया, जिससे करीब नौ हजार लोगों की मौत हो गई।
1949: रात्रि एयरमेल सेवा की शुरुआत।
1971: इंडियन एयरलाइंस के फोक्कर मैत्री विमान को लाहौर से अपहरण के बाद नष्ट कर दिया गया।
1985: लोकसभा में दल बदल विरोधी कानून पारित। इससे दलबदलुओं के सदन की सदस्यता से अयोग्य होने का रास्ता साफ हुआ।
2007: भारत की दिग्गज कंपनी टाटा ने एंग्लो डच स्टील निर्माता कंपनी कोरस ग्रुप को 12 अरब डॉलर में ख़रीदा।
2009: कोका कोला कंपनी ने अमेरिका में अपने प्रमुख उत्पाद कोका कोला क्लासिक का नाम बदलकर कोका कोला किया

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जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा: समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस को याद करते दिमागी कैनवास पर कई छवियां उभरती हैं- फायरब्रांड यूनियन नेता, बड़ौदा डायनामाइड केस में गिरफ्तार अभियुक्त, बेड़ियों में जकड़े जॉर्ज की तस्वीर वाला चुनावी पोस्टर।

जनता सरकार में कोकाकोला के खिलाफ अड़ जाने वाला उद्योग मंत्री, मोरारजी देसाई की सरकार में फूट के लिए जिम्मेदार नेताओं में शामिल, पोखरण परमाणु परीक्षण और कारगिल युद्ध के समय देश के रक्षामंत्री।

केंद्रीय मंत्री रहते जिनके घर का दरवाजा लोगों के लिए कभी बंद नहीं हुआ, ऐसा राजनेता जो अपने हाथों से खुद के कपड़े धोता था और जिन्होंने रक्षामंत्री रहते 18 बार 6600 मीटर ऊंचे सियाचिन ग्लेशियर का दौरा कर पहली बार कहा कि हमारा असली दुश्मन चीन है।

आखिर में अपने ही खड़ा किए गए दल से टिकट न मिलने से हताश जॉर्ज का बिहार की मुजफ्फरपुर सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपने ही अखाड़े में चित हो जाना, दरअसल एक अनथक योद्धा के राजनीतिक सफर का त्रासद अंत था।

हालांकि बाद में उनके दल ने राज्यसभा में उनके प्रवेश का रास्ता तैयार किया, लेकिन तब तक जॉर्ज बेनूर हो चुके थे। जीवन में 9 बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले जॉर्ज सिर्फ एकबार राज्यसभा के सदस्य तभी बने जब दूसरा रास्ता नहीं था। 29 जनवरी 2019 को सियासत के इस शाश्वत विद्रोही का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।

03 जून 1930 को जन्मे पूर्व केंद्रीय मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म कर्नाटक के मंगलुरू में हुआ। पिता ने उन्हें 16 साल की उम्र में पादरी बनने के लिए क्रिश्चियन मिशनरी में भेजा था लेकिन उनका मन नहीं लगा तो रोजगार की तलाश करते बंबई पहुंच गए। तब उनकी उम्र थी 19 साल। हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली और कोंकणी भाषाओं के जानकार जॉर्ज का जीवन क्षेत्र व्यापक रहा है। राष्ट्रीय राजनीति में आने से पहले जॉर्ज के जीवन से जुड़ी वो घटनाएं, जिसने उन्हें राष्ट्रीय राजनेता के रूप में गढ़ा।

जब थम गयी थी मुंबई- बात 1973 की है जब जॉर्ज ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) के अध्यक्ष बने और उनके नेतृत्व में संगठन ने फैसला लिया कि रेलकर्मियों की वेतन बढ़ोतरी की मांग को लेकर हड़ताल की जाए। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोऑर्डिनेशन कमेटी बनायी गयी और 8 मई 1974 को हड़ताल शुरू हो गयी। इस हड़ताल में 15 लाख लोगों ने हिस्सा लिया।

कई दूसरी यूनियन इसमें शामिल हो गयी और कई ने समर्थन दिया। टैक्सी ड्राइवर, इलेक्ट्रिसिटी यूनियन, ट्रांसपोर्ट यूनियन इनमें प्रमुख थीं। मद्रास की कोच फैक्ट्री के करीब 10 हजार मजदूर हड़ताल के समर्थन में सड़कों पर उतर गए। बिहार के गया में रेलकर्मियों के परिवार ट्रैक पर उतर आए। मुंबई की तो जैसे रफ्तार ही थम गयी।

हड़ताल के अखिल भारतीय असर को देखते हुए सरकार को सेना बुलानी पड़ी। इंदिरा गांधी सरकार ने आंदोलनकारियों से सख्ती से निबटने का फैसला किया और लगभग 30 हजार से ज्यादा नेताओं को गिरफ्तार किया गया। तीन सप्ताह बाद 27 मई को कॉऑर्डिनेशन कमेटी ने बिना कारण बताते हुए हड़ताल वापस लेने की घोषणा कर दी।

जॉर्ज के समर्थन में उतरीं सुषमा- आपातकाल के दौरान लंबे समय तक भूमिगत रहे जॉर्ज फर्नांडिस, बड़ौदा डायनामाइट केस में गिरफ्तार कर लिये गए। जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में चल रहे आंदोलन में सक्रिय थीं सुषमा स्वराज। उनके पति स्वराज कौशल बड़ौदा डायनामाइड केस में जॉर्ज के वकील थे।

1976 में गिरफ्तार जॉर्ज को बिहार की मुजफ्फरपुर जेल में रखा गया था। 1977 में जब चुनाव की घोषणा हुई तो जॉर्ज में जेल में रहते चुनाव लड़ने का फैसला किया। उनकी मदद के लिए मुजफ्फरपुर में प्रचार का जिम्मा थामा सुषमा स्वराज ने। उन्होंने बेड़ियों में जकड़े जॉर्ज की तस्वीर के साथ प्रचार की शुरुआत की और नारा दिया- जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा। इस चुनाव में जॉर्ज भारी मतों से जीते।

अन्य अहम घटनाएंः

1528ः चंदेरी के किले पर बाबर का कब्जा।
1597ः महाराणा प्रताप का निधन।
1780ः देश के पहले समाचार पत्र बंगाल गजट का कोलकाता से प्रकाशन।
1896ः भारत सेवा आश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणबानंद महाराज का जन्म।
1953ः संगीत नाटक अकादमी की स्थापना।
1983ः स्वतंत्र पार्टी के नेता पीलू मोदी का निधन।

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विज्ञान और संगीत का बेजोड़ फ्यूजनः ऐसा वैज्ञानिक जो नाभिकीय विस्फोट का माहिर था लेकिन उसका मन क्लासिकल पियानो की सुरमयी लहरों में रमता था। विज्ञान और संगीत, दोनों ही राजा रामन्ना के दिल के बेहद करीब थे।

राजा रामन्ना भारत के पहले परमाणु परीक्षण के सूत्रधार थे। पहला नाभिकीय विस्फोट का परीक्षण 18 मई 1974 में राजस्थान के पोखरण में किया गया। इसका श्रेय राजा रामन्ना और उनके सहयोगियों को दिया जाता है। कमाल की बात यह कि इससे पहले 1956 में राजा रामन्ना पाकिस्तान के ‘नेशनल एकेडमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स’ के बुलावे पर न केवल वहां गए बल्कि क्लासिकल पियानो पर उन्होंने अपना ज्ञानपूर्ण वक्तव्य देकर श्रोताओं के समक्ष पियानो में अपनी महारत की बानगी भी पेश की।

पद्म भूषण से सम्मानित भारतीय परमाणु वैज्ञानिक राजा रामन्ना 28 जनवरी 1924 को कर्नाटक के टुम्कुर में पैदा हुए। उन्होंने शुरुआती पढ़ाई मैसूर और बंगलुरु से की थी। मद्रास क्रिश्चयन कॉलेज से बीएससी (ऑनर्स) करने के बाद वे इंग्लैंड चले गए जहां उन्होंने लंदन के किंग्स कॉलेज से न्यूक्लियर फिजिक्स में टाटा स्कॉलर के तौर पर डॉक्टरेट किया। इसी दौरान 1947 में डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा लंदन में थे और राजा रामन्ना उनसे बेहद प्रभावित भी। लिहाजा, रामन्ना ने उनसे मिले और भाभा ने उन्हें टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) में नौकरी की पेशकश की।

1948 में रामन्ना ने पीएचडी पूरी करने के बाद टीआईआफआर ज्वाइन किया। यहीं से उनके जीवन को नया विस्तार मिला। विदेशों में शानदार नौकरी के अवसर होते हुए भी उन्होंने अद्भुत देशप्रेम दिखाया। भारत में साइंस एवं टेक्नोलॉजी की ऐसी मजबूत बुनियाद रखने वालों में शामिल हो गए जिनके योगदान को कभी भुलाया न जा सकेगा। उन्होंने न्यूट्रॉन, न्यूक्लियर और रिएक्टर फिजिक्स में प्रमुख योगदान दिया।

राजा रामन्ना से जुड़ा एक किस्सा यह भी है कि 1978 में वे इराक की यात्रा पर गए, जहां उनकी मुलाकात तानाशाह सद्दाम हुसैन से हुई। इस मुलाकात में सद्दाम हुसैन ने रामन्ना के समक्ष इराक के न्यूक्लियर प्रोग्राम की कमान संभालने की पेशकश कर दी। सद्दाम हुसैन इसकी कोई भी कीमत देने को तैयार था। हैरान रामन्ना ने सद्दाम हुसैन की इस पेशकश को सिरे से नकार दिया।

राजा रामन्ना को उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए पद्म विभूषण सम्मान सहित, शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, आरडी मेमोरियल अवॉर्ड सहित कई विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी गयी। 24 सितंबर 2004 को दिल का दौरा पड़ने से मुंबई में इस महान वैज्ञानिक का निधन हो गया।

अन्य अहम घटनाएं:
1865ः महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय का जन्म।
1899ः फील्ड मार्शन केएम करिअप्पा का जन्म।
1926ः संस्कृत के प्रकांड विद्वान, भाषाविद्, संपादक विद्यानिवास मिश्र का जन्म।
1930ः मेवाती घराने से ताल्लुक रखने वाले सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित जसराज का जन्म।
1984ः हिंदी फिल्मों के जाने-माने फिल्म अभिनेता, निर्माता और निर्देशक सोहराब मोदी का निधन।
2007ः जाने-माने फिल्म संगीतकार ओपी नैयर का निधन।

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सुर और सुरक्षा को हुआ भारी नुकसान

“मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा” यह धुन दिलो-दिमाग को एक भारत-सशक्त भारत का अहसास करा जाता है। साथ ही इसे आवाज देने वालों में प्रमुख गायकों के साथ सबसे पहले पंडित भीमसेन जोशी का ख्याल आता है। सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर, भूपेन हजारिका और बाल मुरलीकृष्ण जैसे गायकों के साथ सागर सी गहरी और झील सी ठहरी आवाज के धनी पंडित जी ने इस गीत को गरिमा प्रदान की। साहित्य, संगीत, कला और खेल की महान हस्तियों के साथ इसकी प्रस्तुति की गयी। वर्ष 1988 में रची और गायी गई इस रचना ने हिन्दुस्तानी दिल्लों में राष्ट्र-संगीत भर दिया था। अब आजादी के अमृत महोत्सव के लिए भारतीय रेल ने इस गीत को नई छवि दी है, जिसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले वर्ष 12 मार्च को किया था। दरअसल, भीमसेन जोशी ने किराना घराने की गायकी को अपने सुर से अमर बना दिया। अपने एकल गायन से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को नया आयाम देने वाले जोशी जी ने लगभग सात दशकों तक देश-दुनिया के रोम-रोम को झंकृत किया। खयाल गायकी के साथ ठुमरी और भजन गायक पंडित जी ने कलाश्री और ललित भटियार जैसे नए रागों की रचना भी की। संगीत की ऐसी महान विभूति का 24 जनवरी, 2011 को निधन हो गया था।

परमाणु भौतिक विज्ञान का चमकते सितारे होमी जहांगीर भाभा को भी हमने 1966 में इसी दिन खो दिया था। मुट्ठी भर साधन और चंद वैज्ञानिकों की मदद से उन्होंने भारतीय सैन्य और असैन्य परमाणु ताकत को स्थापित किया। जर्मनी में कॉस्मिक किरणों के अध्ययन में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद उन्होंने अपनी मातृभूमि की सेवा को ही ध्येय बना लिया। बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से जुड़े भाभा ने देश को आजादी मिलने के बाद एक से बढ़कर एक उपलब्धियां हासिल कराई। उनकी पहल पर परमाणु ऊर्जा आयोग का गठन हुआ। साल 1955 में संयुक्त राष्ट्र के शांतिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग विषयक सम्मेलन के सभापति रहे इस सुप्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक ने बदलती दुनिया में भारत की सुरक्षा जरूरतों को भी समझा। वर्ष 1957 में बंबई (अब मुंबई) के नजदीक ट्रांबे में पहला परमाणु अनुसंधान केंद्र स्थापित किया गया। अब इसका नाम डॉ. भाभा की स्मृति को ताजा करता है। पंडित नेहरू के शांतिपूर्ण परमाणु उपयोग के सिद्धांत को 1965 के युद्ध के बाद शास्त्री जी ने देश को परमाणु हथियार नहीं बनाने की प्रतिबद्धता से मुक्त कर दिया। डॉ. भाभा ने इस दिशा में भी तेजी से काम शुरू किया था, पर अगले ही साल पहले शास्त्री जी और फिर भारत का यह चमकता परमाणु सितारा विलुप्त हो गया।

अन्य महत्वपूर्ण घटनाएं ः

1556: चीन के शानसी प्रांत में आए भूकंप ने आठ लाख से अधिक लोगों की जान ले ली।
1826: पहले भारतीय बैरिस्टर ज्ञानेन्द्र मोहन टैगोर का जन्म।
1857: कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।
1914: ‘आजाद हिन्द फौज’ से जुड़े सुप्रसिद्ध सेनानी शाहनवाज खान का जन्म।
1945: हिन्दी फिल्मों के निर्माता-निर्देशक सुभाष घई का जन्म ।
1952: बंबई (अब मुंबई) में पहले अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का आयोजन।
1965: प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने मैसूर (अब कर्नाटक) के जोग में शरावती पन बिजली परियोजना राष्ट्र को समर्पित की।
1966: एयर इंडिया के विमान बोइंग 707 की दुर्घटना में 117 यात्रियों की मौत।
2008: राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत।

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Chhapra: स्थानीय थाना चौक पर सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर रोट्रैक्ट क्लब ऑफ़ सारण सिटी की ओर से आम लोगों के बीच मास्क का वितरण किया गया.रविवार की दोपहर थाना चौक के पास क्लब के सदस्यों ने मास्क उपलब्ध कराया.मौके पर क्लब के अध्यक्ष निशांत पांडेय ने कहा कि युवाओं के प्रेरणा स्रोत नेताजी सुभास चंद्र बोस की जयंती पर प्रोजेक्ट कर आमलोगों के बीच सतर्कता एवं बचाव का संदेश देने का प्रयास किया गया है. वर्तमान में काफी लोग अभी भी लापरवाही बरत रहे हैं.वे ना तो मास्क पहन रहे हैं,और ना ही सैनिटाइजर का उपयोग कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अभी कोरोना का खतरा काफी ज्यादा बढ़ा है. शहर में भी सैकड़ों लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं. उन्होंने बताया कि हर व्यक्ति जब भी वह घर से बाहर निकले, वह मास्क जरूर लगाए. तभी कोरोना की बीमारी से बच सकते हैं. मौके पर सचिव महताब आलम,कोषाध्यक्ष निर्वाचित सैनिक कुमार उपस्थित थे.
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मूर्तिदेवी सम्मान पाने वाली पहली महिला लेखिकाः प्रतिभा राय ओड़िया भाषा की सुप्रतिष्ठित लेखिका हैं, जिनका आधुनिक ओड़िया साहित्य में व्यापक योगदान है। उनके कुछ उपन्यासों को हिंदी के पाठकों ने भी हाथोंहाथ लिया, जिन उपन्यासों का हिंदी अनुवाद उपलब्ध है। इनमें मुख्य रूप से दो उपन्यास ‘शिलापद्म’ का हिंदी अनुवाद ‘कोणार्क’ और बहु प्रशंसित ‘याज्ञसेनी’ का हिंदी अनुवाद ‘द्रौपदी’ काफी पढ़े जाने वाले उपन्यासों में शामिल है।

21 जनवरी 1943 को ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले के अल्बोल गांव में पैदा हुईं प्रतिभा राय के अबतक 20 उपन्यास, 24 लघुकथा संग्रह, 10 यात्रा वृत्तांत, दो कविता संग्रह और कई निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने अपनी मातृभाषा ओड़िया में तमाम रचनाएं लिखीं हैं। इन सामग्रियों का हिंदी, अंग्रेजी सहित कई दूसरी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

ज्ञानपीठ पुरस्कार (वर्ष 2011) से सम्मानित प्रतिभा राय मूर्तिदेवी पुरस्कार (वर्ष 1991) पाने वाली वे पहली महिला लेखिका हैं।उनका पहला उपन्यास ‘बरसा बसंता बैशाखा’ था। उनके दूसरे प्रमुख उपन्यासों में ‘निषिद्ध पृथिबी’, ‘परिचय’, ‘अपरिचिता’, ‘मेघमेदुर’, ‘पुण्यतोया’, ‘आशाबरी’, ‘अयमारम्भ’ हैं।

एक शिक्षिका के तौर पर लंबे समय तक काम करने वाली लेखिका प्रतिभा राय, हर तरह के सामाजिक भेदभाव के खिलाफ और महिला पक्षधरता को लेकर मुखर रही हैं। सामाजिक समानता के लिए काम करने वाली प्रतिभा राय को उनके आलोचकों ने नारीवादी के रूप में रेखांकित किया। लेकिन उन्होंने कहा कि ‘मैं एक मानवतावादी हूं। समाज के स्वस्थ कामकाज के लिए पुरुषों और महिलाओं को अलग तरह से बनाया गया है। महिलाओं को जिन विशेषताओं से बनाया गया है उसका सम्मान किया जाना चाहिए। हालांकि एक इंसान के रूप में महिला, पुरुषों के बराबर है।’

अन्य अहम घटनाएंः

1924ः सोवियत संघ के पहले प्रमुख व्लादिमीर लेनिन का निधन।

1950ः अंग्रेजी के चर्चित लेखक जॉर्ज ऑरवेल का निधन।

1963ः जाने-माने हिंदी साहित्यकार, कहानीकार और संपादक शिवपूजन सहाय का निधन।

1972ः मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा राज्य की स्थापना।

1986ः फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का जन्म।

2016ः पद्म भूषण से सम्मानित शास्त्रीय नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई का निधन।

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…बस यही गठरी तो बची है, इसे भी दे दूंः देश का विभाजन हुए करीब 22 साल गुजर चुके थे। 1969 में भारत सरकार के आग्रह पर खान अब्दुल गफ्फार खान, इलाज के लिए पाकिस्तान से भारत आए।

भव्य व्यक्तित्व के मालिक रहे खान अब्दुल गफ्फार खान इस बार बिल्कुल टूटे, मायूस और हताश जान पड़ते थे। उनकी आगवानी के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण स्वयं हवाई अड्डे पर मौजूद थे।

हवाई जहाज से बाहर निकले खान अब्दुल गफ्फार खान के हाथों में सामान के नाम पर उनके जरूरत के कपड़ों की एक गठरी भर थी। इंदिरा गांधी ने उनकी गठरी की तरफ हाथ बढ़ाकर कहा कि ‘इसे हमें दे दीजिये, हम लेकर चलते हैं।’ खान साहब ने मायूसी भरे अंदाज में जवाब दिया- ‘यही तो बचा है, इसे भी ले लोगी।’ जेपी और इंदिरा, दोनों ने नजरें झुका लीं। जेपी खुद को संभाल नहीं पाए और उनकी आंखों से बेसाख्ता आंसू निकल पड़े।

सीमांत गांधी/ बाचा खान/ बादशाह खान/ फ्रंटियर गांधी जैसे नामों से लोकप्रिय गांधीवादी नेता खान अब्दुल गफ्फार खान, भारत के बंटवारे के खिलाफ थे। बंटवारे के बाद जब बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा बना तो उन्हें पाकिस्तान में रहना पड़ा। जहां उन्होंने आजीवन अलग पख्तूनिस्तान मूवमेंट चलाया। अंग्रेजी शासनकाल में पश्तून मूवमेंट से चर्चाओं में आए खान अब्दुल गफ्फार खान महात्मा गांधी से प्रभावित होकर आजीवन अहिंसक आंदोलनों के जरिये अपने लक्ष्य की प्राप्ति को रास्ता बनाया।

भारत की आजादी के आंदोलन से लेकर पेशावर में नजरबंदी में 20 जनवरी 1988 को दुनिया को अलविदा कहने तक 98 वर्षीय खान अब्दुल गफ्फार खान ने 35 साल जेल में बिताए थे। पहले वे अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेते रहे और देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तानी हुक्मरानों से।

6 फरवरी 1890 को बलूचिस्तान में पैदा होने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान एक महान नेता थे। 1987 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

भारत के बंटवारे से हरगिज सहमत नहीं होने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान ने अपने भारत दौरे में शिकायत भरे लहजे में कहा था, ‘भारत ने उन्हें भेड़ियों के सामने डाल दिया है। भारत से जो आकांक्षा थी, वह पूरी नहीं हुई। भारत को इस बात पर बार-बार विचार करना चाहिये।’

अन्य अहम घटनाएंः

1817ः कलकत्ता में हिंदू कॉलेज की स्थापना।
1927ः जानी-मानी लेखिका कुर्रतुल एन हैदर का जन्म।
1945ः भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का जन्म।
1951ः जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी और गांधीवादी नेता ठक्कर बापा का निधन।
1993ः परमवीर चक्र से सम्मानित प्रथम जीवित भारतीय सैनिक लांसनायक करम सिंह का निधन।
2005ः भारतीय अभिनेत्री परवीन बॉबी का निधन।

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संभावनाओं से भरी यात्रा का दुखांतः ‘न कभी जन्मे, न कभी मरे। वे धरती पर 11 दिसंबर 1931 से 19 जनवरी 1990 के बीच आए थे।’- पुणे स्थित ओशो की समाधि पर अंकित शब्द। अपने दौर को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले आध्यात्मिक गुरु आचार्य रजनीश उर्फ ओशो, सर्वाधिक विवादास्पद शख्सियत भी रहे। जीवन को लेकर अन्य महान धर्मगुरुओं से ओशो की दृष्टि अलग थी- जीवन में कोई रहस्य है ही नहीं। या तुम कह सकते हो कि जीवन खुला रहस्य है। सबकुछ उपलब्ध है, कुछ भी छिपा नहीं है। तुम्हारे पास देखने की आंखें भर होनी चाहिये।

19 जनवरी 1990 को सर्द भरी सुबह में ओशो का निधन हो गया। मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में पैदा हुए ओशो का शुरुआती नाम चंद्रमोहन जैन था, जिन्हें बचपन से ही दर्शन शास्त्र में रुचि थी।उन्होंने जबलपुर में पढ़ाई पूरी करने के बाद जबलपुर विश्वविद्यालय में ही प्राध्यापक के तौर पर काम किया।इसी दौरान वे आचार्य रजनीश के रूप में अलग-अलग धर्मों व विचारधाराओं पर अपने विचारों की श्रृंखला शुरू की जो खासा विवादास्पद होने के साथ तर्कपूर्ण भी थी-

‘मनुष्यों के कृत्यों को देखें, तीन हजार वर्षों में पांच हजार युद्ध आदमी ने लड़े हैं। उसकी पूरी कहानी हत्याओं की कहानी है, लोगों को जिंदा जला देने की कहानी है- एक को नहीं हजारों को। और यह कहानी खत्म नहीं हो गयी। दूसरे विश्वयुद्ध में अकेले हिटलर ने साठ लाख लोगों की हत्या की- अकेले आदमी ने। इसको तुम विकास कहोगे। दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने को था, जर्मनी ने हथियार डाल दिये, अमेरिका के राष्ट्रपति ने जापान के ऊपर, हिरोशिमा-नागासाकी में एटम बम गिरवाए। दस मिनट के भीतर दो लाख व्यक्ति राख हो गए। सच तो ये है कि आदमी विकसित नहीं हुआ केवल वृक्षों से नीचे गिर गया है। अब तुम बंदर से भी मुकाबला नहीं कर सकते।’

आगे चलकर उन्होंने नौकरी छोड़ कर नवसंन्यास आंदोलन की शुरूआत की और स्वयं को नया नाम दिया-ओशो। 1981 से 1985 के बीच वे अमेरिका चले गए और वहां ओरेगॉन में 65 हजार एकड़ में आश्रम की स्थापना की। कीमती टोपी, महंगी गाड़ियां, रोल्स रॉयस कारें और डिजाइनर पोशाकों के बीच ओशो के विचारों ने अमेरिकी सरकार को असहज कर दिया।

1985 में अमेरिकी सरकार ने ओशो पर अप्रवास नियमों के उल्लंघन के तहत 35 आरोप लगाए और उन्हें हिरासत में लिया। जिसके बाद 4 लाख अमेरिकी डॉलर का जुर्माना देने और अमेरिका छोड़ने व पांच साल तक वापस न आने की सजा हुई। आरोप तो यहां तक लगाए गए कि अमेरिकी जेल में उन्हें धीमा जहर दिया।

इन्ही परिस्थितियों में ओशो भारत लौट आए और 1986 में उन्होंने जब विश्व भ्रमण की शुरुआत की तो अमेरिकी दबाव के कारण 21 देशों ने या तो उन्हें देश से निष्कासित किया या देश में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी। 19 जनवरी 1990 को पुणे स्थित आश्रम में उनका निधन हो गया।

अन्य अहम घटनाएं:

1898: ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित मराठी साहित्यकार विष्णु सखाराम खांडेकर का जन्म।

1905: दार्शनिक व धर्म सुधारक देवेंद्रनाथ ठाकुर का निधन।

1935: बांग्ला फिल्मों के सुप्रसिद्ध अभिनेता सौमित्र चटर्जी का जन्म।

1996: जाने-माने साहित्यकार उपेंद्रनाथ अश्क का निधन।

2015ः दिग्गज राजनीति विज्ञानी व लेखक रजनी कोठारी का निधन।

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बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाएः हिंदी फिल्म उद्योग के पहले सुपरस्टार अभिनेता और गायक कुंदनलाल सहगल का महज 43 साल की उम्र में 18 जनवरी 1947 को जालंधर में निधन हो गया।

अपने दो दशक के सिने करियर में उन्होंने 36 फिल्मों में अभिनय किया जिसमें करीब 185 गीत गाए। बहुमुखी प्रतिभा के धनी सहगल ने हिंदी, उर्दू, बांग्ला, पंजाबी, तमिल और पर्शियन भाषाओं में गीत गाए। उनके गाए कई गीत अमर हो गए जिसमें फिल्म ‘शाहजहां’ का गाना- ‘जब दिल ही टूट गया/ हम जी के क्या करेंगे’ या फिल्म ‘स्ट्रीट सिंगर’ का गीत- ‘बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए/चार कहार मिल, मोरी डोलिया सजावें/ मोरा अपना बेगाना छूटो जाय।’

11 अप्रैल 1904 को जम्मू के नवांशहर में पैदा हुए केएल सहगल संगीत के कुंदन बनकर चमके। अपने दौर में उनकी आवाज का जादू न केवल श्रोताओं पर चला बल्कि उस दौर में आने वाले मुकेश, किशोर कुमार जैसे नवोदित गायक सहगल की आवाज से ऐसे प्रभावित हुए कि सहगल को आदर्श मानते हुए उनकी शैली में ही गाना शुरू किया।

सहगल की आवाज लोगों की जिंदगी में इस जरूरी चीज की तरह शामिल हो गयी, जैसे हवा और पानी। सहगल की लोकप्रियता का आलम यह था कि श्रीलंका, ईरान, इराक, इंडोनेशिया, अफगानिस्तान और फिजी तक उनके गाने सुने जाते थे। वे पहले गायक थे जिन्होंने गानों की रॉयल्टी शुरू की।

गायन के साथ अभिनय में गहरी छाप छोड़ने वाले सहगल ने 36 फिल्मों में काम किया जिसमें 28 हिंदी, 7 बांग्ला और 1 तमिल फिल्म थी।

अन्य अहम घटनाएंः

1842ः महाराष्ट्र के महान विद्वान महादेव गोविंद रानाडे का जन्म।
1896ः एक्सरे मशीन का पहली बार प्रदर्शन।
1951ः केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का जन्म।
1955ः मशहूर अफसाना निगार सआदत हसन मंटो का निधन।
1963ः ओडिशा के सुप्रसिद्ध कवि, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री डॉ. लक्ष्मीनारायण साहू का निधन।
1996ः दक्षिण भारतीय सिनेमा और राजनीति के अहम शख्सियत एनटी रामाराव का निधन।
2003ः सुप्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन का निधन।

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Chhapra: मशरक थाना क्षेत्र में एक युवक की प्रेम प्रसंग में पड़ोसी के द्वारा ही हत्या किए जाने का मामला प्रकाश में आया है. इस मामले में पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त खंती को पड़ोसी के घर से बरामद किया है. जिले के मशरक थाना क्षेत्र के अरना पंचायत के बलवा घाट बलुआ टोला गांव का है. हालांकि शव अब तक बरामद नहीं हो सका है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार मृतक मेघा शाह का 22 वर्षीय पुत्र मुन्ना शाह बताया जाता है. परिजनों ने बताया कि युवक बलुआ टोला गांव में मंदिर पर बीती रात में आर्केस्ट्रा देखने गया था. जब देर रात तक घर नहीं लौटा तो परिजनों ने खोजबीन की पर पता नहीं चला. सुबह में युवक की एक घर से सामने ग्रामीण सड़क पर खून के छींटे देख खोजबीन शुरू की गई. तो बगल में टुनटुन साह के बंद मकान में चौकी पर खून गिरा हुआ पाया गया. आंगन में लोहे की खंती भी खून से सनी थी.

लोगों को जानकारी होते ही गांव वालों की भीड़ उमड़ पड़ी. वहीं घटना की सूचना मिलते ही थाना के दरोगा राजेश कुमार रंजन दल बल के साथ पहुंचे. आधा दर्जन लोगों को हिरासत में ले लिया है.जांच जारी है.

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दुनिया में शांति की संरक्षक संस्थाः युद्ध की विभीषिका से उपजे संकट के बीच इंसानी पीढ़ियों को बचाने के लिए एक विश्वव्यापी अधिकार संपन्न संस्था की जरूरत हुई। इसी वैश्विक चिंता ने संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था को जन्म दिया।

इस संगठन की सबसे प्रमुख इकाई सुरक्षा परिषद् की पहली बैठक 17 जनवरी 1946 को लंदन में हुई, जिसमें कार्यवाही के नियम अपनाए गए। दुनिया में शांति व सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा परिषद् के पास जरूरी कदम उठाने और दंडित करने का अधिकार है। सुरक्षा परिषद् के पास ही संयुक्त राष्ट्र के नये सदस्य बनाने का भी अधिकार है।

24 जनवरी 1946 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपना पहला प्रस्ताव पारित किया, जिसका मुख्य लक्ष्य परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल पर जोर देना और महाविनाश के हथियारों के उन्मूलन के लिए प्रयास करना था। 1 फरवरी 1946 को नॉर्वे के ट्रिग्वे ली संयुक्त राष्ट्र के पहले महासचिव बने और 1948 में फिलिस्तीन में पहला संयुक्त राष्ट्र निगरानी मिशन स्थापित किया गया। अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में इसका मुख्यालय स्थापित किया गया।

इससे जुड़ी यूनेस्को, यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, आईएलओ, एफएओ जैसी संस्थाओं ने दुनिया की बेहतरी की दिशा में अपनी छाप छोड़ी है लेकिन स्थापना के दशकों बाद संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था में सुरक्षा परिषद् सहित ढांचागत और कार्यशैली के स्तर पर व्यापक सुधार की जरूरत महसूस की जा रही है।

अन्य अहम घटनाएंः

1905ः भारत के प्रमुख गणितज्ञ दत्तात्रेय रामचंद्र कारपेकर का जन्म।
1917ः दक्षिण भारतीय सिनेमा के मशहूर अभिनेता से प्रमुख राजनीतिज्ञ बने एमजी रामचंद्रन का जन्म।
1918ः जाने-माने हिंदी फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही का जन्म।
1923ः हिंदी से प्रमुख साहित्यकार रांगेय राघव का जन्म।
1941ः अंग्रेजों को चकमा देकर नेताजी सुभाषचंद्र बोस कलकत्ता से जर्मनी के लिए रवाना।
1945ः हिंदी फिल्मों के मशहूर गीतकार व पटकथा लेखक जावेद अख्तर का जन्म।
1987ः टाटा फुटबॉल अकादमी की शुरुआत।
1989ः कर्नल जेके बजाज उत्तरी ध्रुव पर पहुंचने वाले पहले भारतीय बने।
2010ः बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु का निधन।
2014ः हिंदी व बांग्ला फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री सुचित्रा सेन का निधन।
2020ः भारतीय क्रिकेट टीम के बाएं हाथ के महान स्पिन गेंदबाज बापू नादकर्णी का निधन।

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