वाराणसी, 20 अगस्त (हि.स.)। धार्मिक नगरी काशी में एक सफेद उल्लू का श्री काशी विश्वनाथ दरबार के प्रति अगाध प्रेम सोशल मीडिया में सुर्खियों में है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी और बाबा के अन्य भक्तों ने बाबा के स्वर्ण शिखर पर बैठे सफेद उल्लू का फोटो सोशल मीडिया में शेयर किया है।

बाबा के दरबार में नियमित हाजिरी लगाने वाले श्रद्धालु अधिवक्ता रविन्द्र तिवारी बताते हैं कि पिछले कुछ सालों से यह सफेद उल्लू बाबा के सप्तऋषि आरती के साथ स्वर्ण शिखर के उपरी हिस्से पर आकर बैठता है और आरती के समापन के बाद उड़ जाता है। जानकार यहां तक दावा करते है कि उल्लू प्रतिदिन आरती के समय आता है। बाबा के स्वर्ण शिखर पर बैठता है। चूंकि सनातन धर्म में उल्लू महालक्ष्मी का वाहन माना जाता है ऐसे में उसका मंदिर में आना बेहद शुभ माना जा रहा है।

मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने उल्लू का फोटो साझा कर लिखा है कि शयन आरती के बाद बाबा ​के शिखर पर श्वेत उल्लू का दिखना, शुभ का प्रतीक माना गया है। शिवभक्त भी मानते है कि उल्लू का रंग सफेद हो, तो उसे अत्यंत शुभ माना जाता है। दरबार में आरती के समय उल्लू की इस उपस्थिति को भक्तों ने शुभ संकेत के रूप में लिया है।

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में रोजाना संध्याकाल में 07 बजे से लेकर शाम 08 बजकर 15 मिनट तक सप्तर्षि आरती की जाती है। काशी विश्वनाथ मंदिर में नियमित संध्याकाल 07 बजे सात ऋषि देवों के देव महादेव की आरती करने आते हैं। इस मान्यता के आधार पर रोजाना सप्तर्षि आरती की जाती है। इस आरती में सात अलग-अलग गोत्र के आचार्य एक साथ आरती करते हैं।

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Chhapra: पारंपरिक पालकी, जिसपर विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकले नन्द गोपाल। जिसे देख कर सभी भाव विभोर हो गए। अवसर था श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाले मटका फोड़ कार्यक्रम का।

नन्द गोपाल की पालकी यात्रा की शुरुआत शहर के स्टेशन रोड स्थित हनुमान मंदिर से हुई और शहर के विभिन्न मुख्य मार्ग से गुजरते हुए नगर पालिका चौक पर पहुंची जहां मटकी फोड़ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। पारंपरिक पालकी का चलन अब लगभग समाप्त हो गया है, लेकिन समिति के द्वारा पालकी को यात्रा में शामिल करना परंपरा और इससे जुड़े कलाकारों के संरक्षण और संवर्धन के प्रति व्यापक सोच को प्रदर्शित करता है।

कार्यक्रम में समाज के सभी वर्गों के लोग बढचढ़ कर लेते हैं भाग

कार्यक्रम का उद्घाटन श्रीकृष्ण के बाल रूप में सजे छोटे बच्चों ने किया। इसके बाद सांस्कृतिक और मटकी फोड़ कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम के संयोजक राहुल मेहता ने बताया कि श्रीकृष्ण जन्मोत्सव समारोह का आयोजन विगत आठ वर्षों से हो रहा है। यह आयोजन समाज में समरसता का बड़ा उदाहरण स्थापित करता है, कार्यक्रम में समाज के सभी वर्गों के लोग बढचढ़ कर भाग लेते हैं और सहयोग करते हैं।

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रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन के प्यार का त्योहार नहीं है, बल्कि ये एक ऐसा दिन भी है, जब आप अपने जीवन से जुड़ी कई समस्याओं को दूर करने के लिए खास उपाय कर सकते हैं। हम सभी जानते हैं कि आज के दौर में ज्यादातर लोग पैसों की कमी, नौकरी की परेशानी या बिजनेस में घाटे जैसी मुश्किलों से जूझ रहे हैं। ऐसे में अगर आप चाहते हैं कि आपके जीवन में बरकत बनी रहे, धन की कमी दूर हो और करियर में भी तरक्की मिले, तो रक्षाबंधन यानी 9 अगस्त 2025 के दिन ये खास और आसान उपाय जरूर करें। माना जाता है कि इन उपायों से मां लक्ष्मी खुद आपके घर की ओर दौड़ी चली आती हैं।

सुबह उठते ही करें शिव पूजन
राखी के दिन सूरज निकलने से पहले उठ जाएं। स्नान के बाद भगवान शिव को जल चढ़ाएं। शिवलिंग पर जल के साथ बेलपत्र, फूल और रोली भी अर्पित करें। ऐसा करने से सेहत में सुधार होता है और किस्मत भी मजबूत होती है। पैसों से जुड़ी परेशानियां धीरे-धीरे खत्म होने लगती हैं।

हनुमान जी की आराधना से संकट होंगे दूर
अगर नौकरी में परेशानी है या बिजनेस में नुकसान हो रहा है, तो रक्षाबंधन से ही हनुमान जी की पूजा शुरू करें। हर शाम दीपक जलाएं, धूप दिखाएं और फूल चढ़ाएं। रोज ऐसा करने से जीवन की रुकावटें दूर होंगी और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहेगी।

घर के मंदिर में जलाएं घी का दीपक
सुबह और शाम घर के मंदिर में घी का दीपक जरूर जलाएं। ये एक छोटा-सा उपाय आपके घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनाए रखता है। खासकर रक्षाबंधन पर मां लक्ष्मी के नाम का दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है। इससे पैसों की दिक्कत दूर होती है और धन की बरकत बनी रहती है।

मां लक्ष्मी और विष्णु जी को चढ़ाएं खीर
अगर आप आर्थिक तंगी से परेशान हैं, तो रक्षाबंधन पर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु को खीर का भोग लगाएं। ऐसा करने से धन से जुड़ी हर समस्या धीरे-धीरे खत्म हो जाती है और घर में लक्ष्मी जी का वास होने लगता है।

अपने इष्ट देव की पूजा जरूर करें
हर व्यक्ति को अपने इष्ट देवता यानी कुलदेवता और कुलदेवी की पूजा रोज़ करनी चाहिए। लेकिन रक्षाबंधन जैसे पवित्र दिन पर इनकी पूजा विशेष फल देती है। इससे भाग्य खुलता है, सुख-शांति बढ़ती है और जीवन की सारी उलझनें दूर होने लगती हैं।

रक्षाबंधन सिर्फ रक्षा सूत्र बांधने का ही नहीं, बल्कि अपने जीवन की परेशानियों से छुटकारा पाने का भी दिन है। ऊपर बताए गए उपाय न सिर्फ आपके घर में सुख-शांति लाएंगे, बल्कि आर्थिक स्थिति भी मजबूत करेंगे। मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे इसके लिए श्रद्धा और विश्वास के साथ इन उपायों को अपनाएं।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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उज्जैन, 9 अगस्त (हि.स.)। देशभर में आज (शनिवार) रक्षाबंधन का त्यौहार धूमधाम से मनाया जा रहा है। परम्परा के मुताबिक, देश में सबसे पहले मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर मंदिर में रक्षाबंधन मनाया गया। यहां शनिवार तड़के भस्म आरती के पश्चात पुजारी परिवार की महिलाओं ने बाबा महाकाल को पहली राखी अर्पित की गई। इस दौरान पुजारी परिवार द्वारा भगवान माकाल को बेसन के सवा लाख लड्डुओं का भोग लगाया गया।

गौरतलब है कि देश में सभी त्यौहारों सबसे पहले महाकालेश्वर मंदिर में मनाए जाने की परम्परा है। रक्षाबंधन पर शनिवार को तड़के तीन बजे भस्म आरती के लिए मंदिर के पट खुलने के बाद सबसे पहले भगवान महाकाल का पंचामृत से अभिषेक किया गया। इसके बाद भगवान का विशेष श्रृंगार किया गया। भस्म आरती के दौरान अमर पुजारी के परिवार की महिलाओं द्वारा तैयार की गई राखी भगवान महाकाल अर्पित की गई। इसके साथ देशभर में रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत हो गई है। भगवान महाकाल को राखी बांधने के बाद भस्मआरती के दौरान ही सवा लाख लड्डुओं का महाभोग लगाया गया। इस महाभोग की तैयारी पिछले चार दिनों से चल रही थी।

इस बार जो राखी भगवान महाकाल को अर्पित की गई, उसमें मखमल का कपड़ा, रेशमी धागा और मोती का उपयोग किया गया है। राखी पर भगवान गणेश को विराजित किया है। यह एक वैदिक राखी है, जोकि शास्त्रों में बड़ा महत्व रखती है। इसमें लौंग, इलायची, तुलसी के पत्ते और बिल्ब पत्र जड़े रहते हैं। इसे अभिमंत्रित किया जाता है। यह राखी बांधकर पुजारी परिवार द्वारा देश और विश्व के कल्याण की मनोकामना की गई।

मंदिर प्रबंधन के मुताबिक, महाकाल मंदिर के पुजारी परिवार द्वारा हर वर्ष भगवान के लिए राखी अपने हाथों से तैयार की जाती है। इस बार राखी में मखमल का कपड़ा, मोतियों की लड़ों और रेशमी धागे का उपयोग करके आकर्षक- परंपरागत राखी का निर्माण किया गया है। राखी के केंद्र में भगवान गणेश विराजीत हैं। इस बार पं. अमर पुजारी के परिवार द्वारा भगवान के चरणों में बेसन, शुद्ध घी और सूखे मेवे से निर्मित सवा लाख लड्डुओं का भोग लगाया गया।

महाकाल मंदिर के पुजारी महेश शर्मा ने बताया कि महाकाल को राखी बांधने की यह परंपरा सदियों पुरानी है। जिन बहनों के भाई नहीं होते, वे महाकाल को अपना भाई मानकर राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं, इसलिए इस दिन मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ता है। यहां देशभर से आने वाले श्रद्धालु भगवान महाकाल के चरणों में राखी अर्पित करते हैं।

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Sawan Purnima 2025: सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति से भरा होता है और इसका अंतिम दिन यानी सावन पूर्णिमा एक खास आध्यात्मिक महत्व रखता है। इस दिन रक्षाबंधन जैसा पवित्र त्योहार मनाया जाता है, जिसमें बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। भाई भी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं। साथ ही, इस दिन स्नान (पवित्र नदी में स्नान) और दान (जरूरतमंदों को दान) करना भी बहुत शुभ माना जाता है।

कब है सावन पूर्णिमा 2025?
पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 8 अगस्त को दोपहर 2:12 बजे से हो रही है और यह 9 अगस्त को दोपहर 1:24 बजे तक रहेगी। चूंकि 9 अगस्त की सुबह पूर्णिमा तिथि में होगी, इसलिए सावन पूर्णिमा का दिन 9 अगस्त को माना जाएगा।

व्रत किस दिन रखा जाएगा?
जो श्रद्धालु सावन पूर्णिमा का व्रत रखते हैं, वे 8 अगस्त को उपवास करेंगे। क्योंकि पूर्णिमा तिथि उसी दिन शुरू हो रही है और उसी शाम चंद्रमा भी दिखाई देगा।
चंद्र दर्शन का समय: 8 अगस्त को शाम 6:42 बजे। इसी समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा करने का विधान है।

स्नान और दान कब करना है?
स्नान और दान का शुभ समय 9 अगस्त की सुबह होगा।
इस दिन सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में स्नान और दान करना सबसे फलदायी माना जाता है।
शुभ समय: सुबह 4:22 से 5:04 बजे तक।

9 अगस्त के अन्य शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:00 से 12:53 बजे तक

विजया मुहूर्त: दोपहर 2:40 से 3:33 बजे तक

गोधूलि मुहूर्त: शाम 7:06 से 7:27 बजे तक

सर्वार्थ सिद्धि योग: सुबह 5:47 से दोपहर 2:23 बजे तक

क्या है सावन पूर्णिमा का महत्व?
इस दिन पवित्र नदी या तीर्थ स्थान में स्नान करने से जीवन के पापों का नाश होता है।

अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

दक्षिण भारत में इस दिन जनेऊ बदलने की परंपरा भी निभाई जाती है, जो जीवन की तीन जिम्मेदारियों की याद दिलाती है, माता-पिता, समाज और ज्ञान के प्रति कर्तव्य।

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के अनुसार, यह तीन परतों वाला जनेऊ हमें बीते, वर्तमान और आने वाले समय के प्रति हमारी जिम्मेदारी का स्मरण कराता है।

सावन पूर्णिमा सिर्फ रक्षाबंधन का त्योहार नहीं है, बल्कि ये दिन हमें रिश्तों, कर्तव्यों और आध्यात्मिकता की ओर लौटने का अवसर भी देता है। इस दिन पूजा, उपवास, चंद्र दर्शन, स्नान और दान जैसे साधन हमें ईश्वर की कृपा और जीवन में संतुलन की ओर ले जाते हैं।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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Raksha Bandhan 2025: हर साल सावन की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रक्षाबंधन सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि भाई-बहन के प्यार, सुरक्षा और भरोसे का त्योहार है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उसकी लंबी उम्र, सफलता और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। वहीं भाई, अपनी बहन को जीवन भर उसकी रक्षा का वादा करता है। राखी का यह पवित्र बंधन न सिर्फ खून के रिश्तों में बंधे भाई-बहनों तक सीमित है, बल्कि यह उन सभी लोगों को जोड़ता है जो दिल से एक-दूसरे को परिवार मानते हैं, चाहे वह चचेरे-ममेरे भाई-बहन हों, दोस्त हों या कोई ऐसा जो भाई जैसा लगता हो।

रक्षाबंधन का महत्व: केवल राखी नहीं, भावना का प्रतीक
‘रक्षा’ का मतलब होता है सुरक्षा और ‘बंधन’ यानी एक बंधन। इस त्योहार में दोनों ही भावनाएं गहराई से जुड़ी होती हैं। राखी बांधने का अर्थ सिर्फ एक धागा बांधना नहीं है, बल्कि यह उस विश्वास को बांधना है जो दो दिलों के बीच होता है। बहन जब भाई की कलाई पर राखी बांधती है, तो वह उसके लिए दुआ करती है, उसकी सफलता, खुशी, स्वास्थ्य और जीवन की हर मुश्किल से उसकी रक्षा के लिए। बदले में भाई यह वचन देता है कि वह हर परिस्थिति में अपनी बहन की ढाल बनेगा। आज के समय में भी यह त्योहार बेहद प्रासंगिक है, क्योंकि यह हर उस रिश्ते को मजबूत करता है जो स्नेह, सम्मान और विश्वास पर टिका है।

रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक कथाएं
राखी से जुड़ी कई कहानियां हैं जो हिंदू धर्मग्रंथों और लोककथाओं में दर्ज हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी की है। एक बार श्रीकृष्ण को हाथ में चोट लग गई थी, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर उनके हाथ पर बांध दिया था। इसी भाव से भावुक होकर श्रीकृष्ण ने वचन दिया था कि वे हर हाल में द्रौपदी की रक्षा करेंगे और यह वचन उन्होंने चीरहरण के समय निभाया भी।

यमराज और यमुनाजी की कथा
एक और प्रसिद्ध कथा यमराज और यमुनाजी की है। कहते हैं कि एक बार यमुनाजी ने यमराज को राखी बांधी थी और उनकी लंबी उम्र की कामना की थी। इससे प्रभावित होकर यमराज ने उन्हें अमरत्व का वरदान दे दिया। इन कहानियों से पता चलता है कि राखी एक साधारण धागा नहीं, बल्कि आशीर्वाद और रक्षा का एक पवित्र सूत्र है।

2025 में कब है रक्षाबंधन का त्योहार? राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
रक्षाबंधन 2025 में शनिवार, 9 अगस्त को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 8 अगस्त को दोपहर 2:12 बजे से होगी और इसका समापन 9 अगस्त को दोपहर 1:24 बजे पर होगा। ऐसे में राखी बांधने का शुभ समय 9 अगस्त को सुबह से दोपहर 1:24 बजे तक माना गया है। पंचांग के अनुसार, राखी बांधने का सबसे उत्तम समय सुबह 5:47 बजे से लेकर दोपहर 1:24 बजे तक है। खासकर हिंदू मान्यता में “अपराह्न काल” यानी दिन का तीसरा हिस्सा राखी बांधने के लिए सबसे शुभ होता है।

भद्रा काल में राखी बांधने से बचें
राखी बांधने से जुड़ी एक जरूरी बात यह भी है कि इसे भद्रा काल में नहीं बांधना चाहिए। भद्रा को अशुभ समय माना गया है और इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। इसलिए यह ध्यान रखना जरूरी है कि राखी भद्रा समाप्त होने के बाद ही बांधी जाए।

रक्षाबंधन का त्योहार सिर्फ एक धागे का नहीं, बल्कि भावनाओं का, सुरक्षा के वादे का और एक गहरे रिश्ते की पहचान का त्योहार है। यह दिन न सिर्फ भाई-बहन को करीब लाता है, बल्कि समाज में भी रिश्तों की मिठास और भरोसे को मजबूत करता है। राखी के इस पर्व पर आप भी अपने किसी खास को यह पवित्र सूत्र बांधकर अपने रिश्ते को और मजबूत बना सकते हैं।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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Chhapra: छपरा नगरपालिका (अब नगर निगम) के भूतपूर्व चेयरमैन स्व० ब्रजेन्द्र बहादुर के दौलतगंज स्थित निवास पर श्रीकृष्ण झूलनोत्सव का आयोजन हर्ष और उल्लास के साथ किया जाएगा।

इस आशय की जानकारी देते हुए उनके पौत्र पूर्व आईएएस अधिकारी व सचिव जय-ब्रज फाउण्डेशन प्रवीर कृष्ण ने बताया कि दिनांक 9 अगस्त 2025 को संध्या 7 बजे से दौलतगंज स्थित निवास पर श्रीकृष्ण झूलनोत्सव का आयोजन हर्ष और उल्लास के साथ किया जाएगा।

कार्यक्रम में बाल गोपाल की झांकी के समक्ष एक संगीतमय कार्यक्रम का भी आयोजन है।

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Chhapra: रक्षाबंधन का पावन त्योहार नजदीक है और इसको लेकर बाजारों में जबरदस्त रौनक देखने को मिल रही है। शहर के प्रमुख बाजारों जैसे गुदरी, हथुआ मार्केट, मुनिसफल चौक आदि में राखियों की दुकानें सज चुकी हैं। हर तरफ रंग-बिरंगी और आकर्षक राखियां ग्राहकों को अपनी ओर खींच रही हैं।

तनिष्क छपरा- डाकबंगला रोड,
फोन-7644849600 , 8235892335

 

बच्चों की पसंद बनी कार्टून राखियां

दुकानदारों का कहना है कि शुरुआत में ग्राहक केवल देखने आ रहे थे, लेकिन अब धीरे-धीरे खरीदार भी आने लगे हैं। एक दुकानदार ने बताया कि इस बार खासतौर पर बच्चों वाली राखियों की काफी मांग है। छोटा भीम, डोरेमॉन, मोटू-पतलू, स्पाइडरमैन जैसी कार्टून कैरेक्टर्स वाली राखियां छोटे बच्चों को खूब लुभा रही हैं।

दुकानदार बताते हैं कि बच्चे खुद आकर अपनी पसंद की राखी चुन रहे हैं। बच्चों की राखियों में रंग-बिरंगे डिजाइन, लाइट्स और म्यूजिक वाले वेरिएंट भी आ गए हैं, जो उन्हें और भी खास बना रहे हैं।

इस बार रक्षाबंधन 9 अगस्त को मनाया जाएगा

वहीं, बड़ों के लिए पारंपरिक राखियां, कुंदन, मोती और ज़री के काम वाली राखियां भी बाजार में उपलब्ध हैं। रक्षाबंधन भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक है और यह त्योहार हर साल नए उत्साह के साथ मनाया जाता है।

इस बार भी लोग पूरी तैयारी में हैं। इस बार रक्षाबंधन 9 अगस्त को मनाया जाएगा।

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Patna, 7 अगस्त (हि.स.)। अयोध्या के भव्य राममंदिर की तर्ज पर बिहार के पुनौराधाम में माता जानकी मंदिर का शिलान्यास 8 अगस्त यानी शुक्रवार काे हाेना है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मंदिर परिसर की आधारशिला रखेंगे। इस समाराेह काे लेकर भव्य तैयारियां की जा रही हैं।

मंदिर शिलान्यास के लिए 31 पवित्र नदियों का जल लाया जाएगा

मंदिर शिलान्यास के लिए जयपुर से विशेष चांदी के कलश, भारत के 21 प्रमुख तीर्थों की मिट्टी और 31 पवित्र नदियों का जल लाया जाएगा। दक्षिण भारत के बालाजी मंदिर तिरुपति के समान यहां 50 हजार पैकेट लड्डू बनाए जा रहे हैं। लड्डू बनाने के लिए दक्षिण भारत के विशेषज्ञ कारीगर खासतौर पर आए हैं। इन लड्डुओं का संकल्प स्नान गंगा सहित 11 पवित्र नदियों के जल से किया जाएगा, जो कार्यक्रम की दिव्यता को और बढ़ाएगा।

मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के लिए हाेंगे आधुनिक सुविधाएं मंदिर का निर्माण 67 एकड़ में होगा, जिसमें 151 फीट ऊंचा भव्य मंदिर तैयार किया जाएगा, जिसकी योजना वर्ष 2028 तक पूरा होने की है। मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के लिए कई सुविधाएं शामिल होंगी। इसमें यज्ञ मंडप, संग्रहालय, ऑडिटोरियम, कैफेटेरिया, बच्चों के लिए खेल क्षेत्र, धर्मशाला, सीता वाटिका, लवकुश वाटिका, भजन संध्या स्थल, यात्री डॉरमेट्री भवन, यात्री अतिथि गृह, ई-कार्ट स्टेशन, मिथिला हाट, पार्किंग, मार्ग प्रदर्शनी समेत अन्य सुविधाएं शामिल हैं।

मंदिर निर्माण परियोजना पर लगभग 882 करोड़ 87 लाख रुपये का खर्च अनुमानित है

मंदिर परिसर में माता सीता से जुड़े ऐतिहासिक साक्ष्यों, तथ्यों और कहानियों को प्रदर्शित किया जाएगा, जिससे यहां आने वाले श्रद्धालुओं को धार्मिक एवं सांस्कृतिक ज्ञान भी प्राप्त होगा। इसके अलावा, माता जानकी कुंड का सौंदर्यीकरण भी किया जाएगा। इस भव्य आयोजन में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा कई केंद्रीय और राज्यमंत्री भाग लेंगे। साथ ही राज्य और देश भर से बड़ी संख्या में साधु-संत तथा हजारों श्रद्धालु इस ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने के लिए उपस्थित होंगे।

मंदिर निर्माण परियोजना पर लगभग 882 करोड़ 87 लाख रुपये का खर्च अनुमानित है। जो न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र बनेगा, बल्कि क्षेत्र का पर्यटन एवं सांस्कृतिक विकास भी करेगा। यह परियोजना मिथिला क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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Chhapra: सावन माह की चौथी और अंतिम सोमवारी को शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए शिव भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है। जिले के विभिन्न मंदिरों, देवालयों में स्थापित शिवलिंग समेत शिवालयों में सुबह से ही शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।

विभिन्न मंदिरों और शिवालयों में शिव धुन और भक्तों की ओर से लगने वाले जयकारे हर हर महादेव, जय शिव शंभू, बाबा भोलेनाथ की जय के नारों से वातावरण पूरा शिवमय हो गया है।

केसरिया रंग के परिधान में शिव भक्त मंदिर पहुंचकर पूजा अर्चना करने के साथ शिवलिंग पर जलाभिषेक कर रहे हैं। मंदिरों, देवालयों और जिले के प्रतिष्ठित शिवालयों में विधि व्यवस्था संधारण और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जिला प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।

जिले के सोनपुर प्रखंड स्थित बाबा हरिहारनाथ धाम मंदिर, छपरा स्थित बाबा धर्मनाथ धनी मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए पहुंच रहे हैं। मंदिरों में श्रद्धालु पंक्तिबद्ध होकर गर्भ गृह में पहुंच कर शिवलिंग पर जलाभिषेक कर रहे हैं।

श्रद्धालुओं को पंक्तिबद्ध करने के लिए मंदिर प्रबंधन कमिटी के सदस्य भी सहयोग कर रहे हैं।

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देवघर, 29 जुलाई (हि.स.)। सावन माह में देवघर के विश्व प्रसिद्ध बाबा बैद्यनाथ धाम में लगातार श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ रहा है। मंगलवार को नागपंचमी पर तड़के 04:06 बजे से मंदिर का पट खुलते ही जलार्पण शुरू हो गया।

बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर में शिवभक्तों की गूंज से पूरा रूट लाइन गुंजायमान रहा। सभी कांवरिया कतारबद्ध होकर बाबा का जयघोष करते हुए जलार्पण कर रहे थे। कांवरिया सुल्तानगंज से जल लेकर 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम पहुंचकर जलार्पण करते हैं।

तनिष्क छपरा- डाकबंगला रोड,
फोन-7644849600 , 8235892335

जिला प्रशासन के अनुसार सावन मेला में अबतक कुल 38 लाख 74 हजार 899 श्रद्धालुओं ने बाबा बैद्यनाथ पर जर्लापण किया है। जलार्पण शुरू होते ही पूरा मंदिर परिसर बोल-बम के नारों से रात तक गुंजयमान रहा। देश के हर कोने और विदेश से भी भक्त भोलेनाथ को जलार्पण करने आ रहे हैं।

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Nag Panchami: हमारी संस्कृति परम्पराओं और विविधताओं से भरी पड़ी है। जहां शास्त्र और लोक मिलकर एक समृद्ध और जीवंत संस्कृति की बुनावट करते हैं। एक ओर जहां शास्त्र अपने वैदिक मंत्रों और विधियों का समावेश करते हैं, वहीं दूसरी ओर लोक की अपनी मान्यताएं और परंपराएं हैं। ऐसी ही एक अद्भुत परंपरा है नाग पंचमी, जो श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व नागों की पूजा का पर्व है। इस पर्व में हमें प्रकृति, जीवन और आध्यात्मिक चेतना के गहरे संबंध की पराकाष्ठा देखने को मिलती है।

शास्त्रीय आधार

शास्त्रों में नागों को अत्यंत शक्तिशाली, दिव्य और रहस्यमयी जीव माना गया है। महाभारत, रामायण, पुराणों आदि ग्रंथों में शेषनाग, वासुकी, तक्षक, कालिया जैसे नागों का उल्लेख मिलता है। विष्णु भगवान स्वयं शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा में लीन रहते हैं। नागों को पृथ्वी के नीचे पाताल लोक का संरक्षक माना गया है, जो भूतल की उर्वरता और स्थिरता को नियंत्रित करते हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण से नाग पंचमी पर नागों की पूजा करने से शत्रु बाधा, भय और विष का नाश होता है तथा संतान सुख की प्राप्ति होती है। विशेषकर महिलाएँ इस दिन व्रत रखती हैं, दीवारों पर नाग की आकृति बनाकर दूध, मिठाई इत्यादि से पूजन करती हैं। यह न केवल धार्मिक कर्म है, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने का भी प्रतीक है।

लोक परंपरा

जहाँ शास्त्रों में नागों को दिव्यता का प्रतीक माना गया है, वहीं लोक परंपरा में वे साक्षात नाग देव हैं। विशेषकर पूर्वांचल में इस दिन महिलाएँ गोबर, पियराही सरसों और बालू को मिलाकर घर की दीवारों को चौगेंठती हैं और साथ ही नाग देव से परिवार की सुख-शांति की कामना करती हैं।

सदियों से चली आ रही एक परंपरा यह भी है कि इस सरसों और बालू के मिश्रण को गाँव के बुजुर्ग जिन्होंने सर्पों का मंत्र सिद्ध किया होता है, मंत्रोच्चारण के साथ सुध बनाते हैं। उसके बाद महिलाएँ इस सुध सरसों और बालू के मिश्रण को गोबर में मिलाकर दीवारों पर साँप और चौका की आकृति बनाती हैं।

साथ ही कई जगहों पर नाग देव को सुबह या शाम के समय दूध और जौ का लावा मिट्टी के पात्र में घर के चारदीवारी के बाहर चढ़ाया जाता है और लोग अपने घरों में भी जौ का लावा छिटते हैं। लोगों का मानना है कि नाग देव स्वयं आते हैं और दूध- लावा का सेवन करते हैं और आशीर्वाद देते हैं। लोगों का यह भी विश्वास है कि इससे अकाल मृत्यु और सर्पदंश दोष टल जाते हैं। यह लोक और लोक के लोगों की वह मान्यता है, जो न जाने कितनी शताब्दियों से चली आ रही है।

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