Pitra Paksha 2025: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का समय बहुत ही पवित्र और महत्व पूर्ण माना जाता है। यह लगभग 15-16 दिनों का पर्व होता है, जिसमें हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्ध और तर्पण जैसे धार्मिक संस्कार करते हैं। इस दौरान लोग अपने पितरों को याद करते हैं, उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और यह मानते हैं कि इस समय पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और अपने वंशजों की समस्याओं को कम करने में मदद करती हैं। पितृ पक्ष का महत्व सिर्फ रीतियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें अपने पूर्वजों का सम्मान करना और उनके योगदान को याद रखना भी सिखाता है।

पितृ पक्ष 2025 की तिथि

इस साल पितृ पक्ष का आरंभ भाद्रपद पूर्णिमा से होगा, यानी 7 सितंबर 2025, रविवार, रात 1:41 बजे से। यह अवधि सर्वपितृ अमावस्या तक चलेगी, जो 21 सितंबर 2025 को समाप्त होगी। इस दौरान श्रद्धालु दैनिक रूप से तर्पण और श्राद्ध के अनुष्ठान करते हैं।

श्राद्ध और पिंडदान का अंतर

श्राद्ध शब्द व्यापक है और इसमें पूर्वजों के लिए किए जाने वाले पूरे धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं। इसमें ब्राह्मणों को भोजन कराना, दान देना, प्रार्थना और पिंडदान करना शामिल है।

पिंडदान: श्राद्ध का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें चावल के पिंड का त्याग करके पूर्वजों के सूक्ष्म शरीर को पोषण दिया जाता है। अगर आप प्रयागराज में पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करते हैं, तो आप पूरी श्राद्ध क्रिया कर रहे हैं, और पिंडदान इसका मुख्य कर्म है।

श्राद्ध और तर्पण की प्रमुख नियमावली

सही तिथि: श्राद्ध हमेशा पूर्वज के मृत्यु वार्षिक तिथि पर किया जाता है। अगर सही तिथि याद न हो, तो सर्वपितृ अमावस्या को श्राद्ध करना चाहिए।

ब्राह्मण भोज और दान: श्राद्ध का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान ब्राह्मणों को भोजन कराना और उन्हें दान देना है। भोजन हमेशा सात्विक होना चाहिए। मान्यता है कि जब आप ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, तो भगवान विष्णु आपके पूर्वजों को शांति और मोक्ष प्रदान करते हैं। इससे पूर्वज खुश होते हैं और अपने वंशजों को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

तर्पण: पितृ पक्ष में प्रतिदिन जल, तिल और कुशा घास से तर्पण किया जाता है। इस दौरान सही विधि और मंत्रों का पालन करना आवश्यक है।

दान (चैरिटी): पितृ पक्ष के दौरान जरूरतमंदों को अनाज, कपड़े और अन्य आवश्यक वस्तुएं दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह न सिर्फ पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए लाभकारी है, बल्कि समाज सेवा का भी उत्तम तरीका है।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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पटना, 06 सितम्बर (हि.स.)। मोक्ष की भूमि बिहार के गयाजी में पितरों के मुक्ति का 17 दिनों तक चलने वाले मेले का शनिवार को प्रभारी मंत्री सुनील कुमार सहित अन्य मंत्रियों ने उद्धाटन किया। गयाजी में छह (06) से इक्कीस (21) सितंबर तक इस मेले का आयोजन होगा।

बिहार के गयाजी में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला-2025 का शुभारंभ आज वैदिक मंत्रोच्चारण और दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। बिहार सरकार के प्रभारी मंत्री ने मेला का उद्घाटन किया। मेला उद्घाटन के अवसर पर प्रभारी मंत्री सुनील कुमार, सहकारिता मंत्री डॉ. प्रेम कुमार, राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री संजय सरावगी, पर्यटन मंत्री राजू कुमार सिंह, गया के विधायक मंजू अग्रवाल, मेयर गणेश पासवान, जिला परिषद अध्यक्ष नैना कुमारी सहित प्रशासनिक अधिकारी एवं गणमान्य मौजूद रहे।

विश्वप्रसिद्ध पितृपक्ष मेला के लिए गयाजी में 324 सेक्टर अधिकारियों की तैनाती की गयी है। विदेशों से भी आने वाले श्रद्धालुओं पर प्रशासन की नजर रहेगी। पिंडदानियों की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के लिए विष्षुपद मंदिर के पास पुलिस कंट्रोल रूम भी खोल दिया गया है। सुबह तीन बजे से रात 11 बजे तक गयाजी शहर के किसी भी रूट पर ट्रक और बस जैसे बड़े वाहनों के प्रवेश पर रोक लगा दी गयी है।

दरअसल, मोक्ष का यह महापर्व 17 दिनों तक चलेगा। इस दौरान देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु गयाजी आएंगे। भगवान विष्णु की पावन नगरी गयाजी में आश्विन महीने में प्राचीन काल से ही यह मेला लगता आया है।

पौराणिक मान्यता है कि यहां पिंडदान, श्राद्धकर्म और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष मिल जाता है। वर्तमान में यहां 54 वेदी स्थल हैं। जहां लाखों की संख्या में आए श्रद्धालु अपने पितरों के उद्धार के लिए अनुष्ठान करते हैं।

गयाजी में पितृपक्ष मेला के लिए जिला प्रशासन ने 64 सरकारी जगहों पर श्रद्धालुओं के ठहरने की व्यवस्था की है। गांधी मैदान में 2500 लोगों के लिए टेंट सिटी बनायी गयी है। इसके अलावा 132 होटल, गेस्ट हाउस और 527 पंडा के निजी भवनों को तैयार किया गया है। यहां शुल्क देकर श्रद्धालु ठहर सकते हैं। 76 हजार से अधिक श्रद्धालुओं के ठहरने का इंतजाम प्रशासन ने किया है।

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जम्मू, 05 सितंबर (हि.स.)। जम्मू और कश्मीर के रियासी ज़िले में स्थित माता वैष्णो देवी गुफा मंदिर की तीर्थयात्रा शुक्रवार को लगातार 11वें दिन स्थगित रही। हालांकि, दस दिनों की भारी बारिश अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के बाद धूप खिलने से मौसम में काफी सुधार हुआ है, लेकिन अधिकारियों ने अभी तक यात्रा फिर से शुरू करने पर कोई फैसला नहीं लिया है।

माता वैष्णो देवी गुफा मंदिर के रास्ते में अर्धकुंवारी में 26 अगस्त को हुए भूस्खलन में 34 तीर्थयात्री मारे गए और 20 अन्य घायल हो गए। यात्रा उसी दिन अगले आदेश तक स्थगित कर दी गई थी। श्राइन बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा कि तीर्थयात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए निर्णय के कारण यात्रा अभी भी स्थगित है।

यात्रा को फिर से शुरू करने का निर्णय सभी पहलुओं का आकलन करने के बाद उचित समय पर लिया जाएगा।माता वैष्णो देवी मंदिर के आधार शिविर, जम्मू और कटरा के बीच स्थानीय लोगों और फंसे हुए यात्रियों की आवाजाही को सुगम बनाने के लिए शुरू की गई लोकल ट्रेन सेवाएं भी स्थगित रहीं। पिछले कई दिनों से हो रही भारी बारिश के कारण त्रिकुटा पहाड़ियों में भूस्खलन और सड़कें अवरुद्ध हो गई हैं, जिससे तीर्थयात्रियों के लिए तीर्थयात्रा मार्ग असुरक्षित हो गया है।​

प्रशासन ने तीर्थयात्रियों को अगली सूचना तक अपनी यात्रा स्थगित करने की सलाह दी है, क्योंकि मरम्मत कार्य और सुरक्षा निरीक्षण अभी भी जारी हैं। यात्रा स्थगित होने के कारण कटरा आधार शिविर भी वीरान सा दिख रहा है और दुकानों और होटलों में भी लोगों की आवाजाही बहुत कम हो रही है।

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Dehradun, 1 सितंबर (हि.स.)। उत्तराखंड में लगातार बारिश को देखते हुए राज्य सरकार ने चारधाम यात्रा सहित हेमकुंड साहिब यात्रा भी 5 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी है।

चारधाम यात्रा को 5 सितंबर तक स्थगित करने का निर्णय लिया गया 

गढ़वाल कमिश्नर विनय शंकर पांडेय ने सोमवार को बताया कि भारी बारिश से प्रदेश में कई जगह भूस्खलन या मलबा आने से मार्ग बाधित हो रहे हैं। जिन्हें सरकार प्राथमिकता पर खोलने के प्रयास कर रही है, लेकिन यात्रियों की सुरक्षा ओर सुविधा को देखते हुए, फिलहाल चारधाम एवं हेमकुंड साहिब यात्रा को 5 सितंबर 2025 तक स्थगित करने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने यात्रियों से अपील की है कि वे प्रतिकूल मौसम की स्थिति को देखते हुए फिलहाल यात्रा मार्गों पर प्रस्थान न करें तथा प्रशासन के परामर्शों का पालन करें। मौसम सामान्य होने एवं मार्ग पूरी तरह सुरक्षित पाए जाने के उपरांत यात्राओं को पुनः प्रारम्भ किया जाएगा।

प्रशासन सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रही है

कमिश्नर पांडेय ने बताया कि प्रदेश सरकार एवं स्थानीय प्रशासन सड़क मार्गों की निगरानी, सफाई तथा यात्रियों की सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रही है। यात्रियों से अनुरोध है कि धैर्य एवं संयम बनाए रखें व यात्रा संबंधी अद्यतन जानकारी के लिए प्रशासनिक नियंत्रण कक्ष से सम्पर्क करते रहें।

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Ganesh Chaturthi 2025: गणेश चतुर्थी हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र समेत देश के कई राज्यों में इसे बड़े धूमधाम से गणेशोत्सव के नाम से मनाया जाता है। भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी होती है। इस साल यह पर्व 27 अगस्त, बुधवार को पड़ रहा है और 6 सितम्बर को विसर्जन किया जाएगा। इस दौरान भक्त अपने घरों या सामूहिक पंडालों में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करके पूजा-अर्चना करते हैं। गणेश चतुर्थी केवल उत्सव का दिन नहीं है, बल्कि इसे सकारात्मक ऊर्जा, खुशहाली और बाधाओं के निवारण के लिए भी माना जाता है। अगर आप चाहते हैं कि आपके जीवन के संकट कम हों और परिवार में सुख-शांति बनी रहे, तो इस दिन कुछ विशेष उपाय करना बेहद फायदेमंद होता है।

गणेश चतुर्थी पर करें ये आसान उपाय

दीपक जलाएं
उत्तर-पूर्व दिशा में दीपक जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। इससे परिवार पर मां लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है और धन लाभ भी होता है।

मोदक का भोग
गणेश जी को मोदक का भोग अर्पित करना बेहद शुभ माना जाता है। इससे जीवन की समस्याएं कम होती हैं और घर में सुख-शांति आती है।

दूर्वा चढ़ाएं
गणेश जी को दूर्वा बहुत प्रिय है। उनके मस्तक पर दूर्वा चढ़ाने से बप्पा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

गणेश स्तोत्र का पाठ
सच्चे मन से गणेश स्तोत्र का पाठ करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और धन लाभ का योग बनता है।

लौंग-कपूर आहुति
परिवार पर किसी की नजर न लगे, इसके लिए संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के सामने गोबर के उपले पर 2 कपूर और 6 लौंग की आहुति दें। आहुति की लौ परिवार के सभी सदस्य अपने माथे से स्पर्श करें।

गणेश चतुर्थी पर ये उपाय करने से न केवल घर में सुख-शांति आती है, बल्कि जीवन की बाधाएं भी कम होती हैं। इसे सही तरीके से करने से आप व्यक्तिगत और पारिवारिक दोनों क्षेत्रों में खुशहाली का अनुभव कर सकते हैं।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष, वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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Hartalika Teej 2025: हिंदू धर्म में हरतालिका तीज एक बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है. यह त्योहार भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है. खासतौर पर महिलाएं इसे बड़े उत्साह के साथ मनाती हैं. हर साल भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है. इस दिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा करती हैं और पूरे नियम-पूर्वक व्रत का पालन करती हैं. शादीशुदा महिलाएं इस व्रत को अपने पति की लंबी उम्र, वैवाहिक जीवन में सौहार्द और खुशहाली के लिए रखती हैं. वहीं, अविवाहित लड़कियां इसे अपनी मनचाही जीवनसाथी की प्राप्ति की कामना के लिए करती हैं.लेकिन बिहार में तीज व्रत सिर्फ महिलाएं विवाह के बाद ही करती है और कन्या सिर्फ भगवान शंकर का पूजा करती है.

हरतालिका तीज का नाम और कथा

हरतालिका शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है ‘हरत’और ‘आलिका’जिसका अर्थ है अपहरण और महिला मित्र कथा के अनुसार, माता पार्वती की सहेलियों ने उन्हें जंगल में ले जाकर छुपा दिया ताकि उनके पिता, पार्वती की मर्जी के बिना भगवान विष्णु से उनका विवाह न करा पाएं.

हरतालिका तीज व्रत की पूजा विधि

हरतालिका तीज का व्रत काफी कठिन माना जाता है क्योंकि महिलाएं इसे निर्जला (बिना पानी और भोजन के) 24 घंटे तक रखती हैं. व्रत की शुरुआत ब्रह्म मुहूर्त में होती है.महिलाएं स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनती हैं और मिट्टी से भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियां बनाकर पूजा करती हैं. दिनभर महिलाएं व्रत रखकर संध्या में कथा सुनती हैं, भजन-कीर्तन करती हैं और रातभर जागरण करती हैं. सुबह भगवान शिव तथा पार्वती के प्रतिमा को नदी या तलाब में विसर्जन कर घर आकर अपने कूल देवता का पूजन कर ब्राह्मण को भोजन कराकर या कुछ अन्य दान कर भोजन करती है .

हरतालिका तीज 2025 की तिथि

– इस साल हरतालिका तीज 26 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी.

– तृतीया तिथि प्रारंभ: 25 अगस्त 2025, दोपहर 11:31 .

– तृतीया तिथि समाप्त: 26 अगस्त 2025, दोपहर 12:39 बजे.
-हस्त नक्षत्र का आरम्भ 26 अगस्त 2025 सुबह 04:04 बजे.
-हस्त नक्षत्र का समाप्ति 27 अगस्त 2025 सुबह 06:00 बजे.

– इस हिसाब से व्रत 26 अगस्त को रखा जाएगा.

हरतालिका तीज का पूजन संध्या काल में करे.

हरतालिका तीज का पूजन सामग्री 

तालाब का मिट्टी या शुद्ध स्थान का मिट्टी, छोटी चौकी, पिला या लाल कपडा, 1 मीटर, जनेऊ 1, आटा का चूरन, अगरबती, माचिस, पिला चंदन, सिंदूर, चावल, दही, ऋतुफल, रक्षा सुत, गंगाजल, श्रृगार की सामान, पान के पता, सुपारी, भगवान पर चढाने के लिए, फुल माला, कपूर प्रसाद के लिए मिठाई।

हरतालिका तीज का महत्व

इस व्रत को करने वाली महिलाएं इसे भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य मिलन का प्रतीक मानती हैं.इसके ख़ुशी में महिलाये सुबह से अलग अलग पकवान बनाती है. महिलाएं 24 घंटे बिना पानी और भोजन के व्रत करती हैं. रात में वे शिव-पार्वती की कथा सुनती हैं और पूरी भक्ति के साथ पूजा करती हैं. शादीशुदा महिलाएं माता पार्वती को‘सोलह श्रृंगार’ अर्पित करती हैं और भगवान शिव को वस्त्र व अन्य पूजा सामग्री समर्पित करती हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से माता पार्वती प्रसन्न होती हैं और वैवाहिक जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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वाराणसी, 20 अगस्त (हि.स.)। धार्मिक नगरी काशी में एक सफेद उल्लू का श्री काशी विश्वनाथ दरबार के प्रति अगाध प्रेम सोशल मीडिया में सुर्खियों में है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी और बाबा के अन्य भक्तों ने बाबा के स्वर्ण शिखर पर बैठे सफेद उल्लू का फोटो सोशल मीडिया में शेयर किया है।

बाबा के दरबार में नियमित हाजिरी लगाने वाले श्रद्धालु अधिवक्ता रविन्द्र तिवारी बताते हैं कि पिछले कुछ सालों से यह सफेद उल्लू बाबा के सप्तऋषि आरती के साथ स्वर्ण शिखर के उपरी हिस्से पर आकर बैठता है और आरती के समापन के बाद उड़ जाता है। जानकार यहां तक दावा करते है कि उल्लू प्रतिदिन आरती के समय आता है। बाबा के स्वर्ण शिखर पर बैठता है। चूंकि सनातन धर्म में उल्लू महालक्ष्मी का वाहन माना जाता है ऐसे में उसका मंदिर में आना बेहद शुभ माना जा रहा है।

मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने उल्लू का फोटो साझा कर लिखा है कि शयन आरती के बाद बाबा ​के शिखर पर श्वेत उल्लू का दिखना, शुभ का प्रतीक माना गया है। शिवभक्त भी मानते है कि उल्लू का रंग सफेद हो, तो उसे अत्यंत शुभ माना जाता है। दरबार में आरती के समय उल्लू की इस उपस्थिति को भक्तों ने शुभ संकेत के रूप में लिया है।

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में रोजाना संध्याकाल में 07 बजे से लेकर शाम 08 बजकर 15 मिनट तक सप्तर्षि आरती की जाती है। काशी विश्वनाथ मंदिर में नियमित संध्याकाल 07 बजे सात ऋषि देवों के देव महादेव की आरती करने आते हैं। इस मान्यता के आधार पर रोजाना सप्तर्षि आरती की जाती है। इस आरती में सात अलग-अलग गोत्र के आचार्य एक साथ आरती करते हैं।

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Chhapra: पारंपरिक पालकी, जिसपर विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकले नन्द गोपाल। जिसे देख कर सभी भाव विभोर हो गए। अवसर था श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाले मटका फोड़ कार्यक्रम का।

नन्द गोपाल की पालकी यात्रा की शुरुआत शहर के स्टेशन रोड स्थित हनुमान मंदिर से हुई और शहर के विभिन्न मुख्य मार्ग से गुजरते हुए नगर पालिका चौक पर पहुंची जहां मटकी फोड़ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। पारंपरिक पालकी का चलन अब लगभग समाप्त हो गया है, लेकिन समिति के द्वारा पालकी को यात्रा में शामिल करना परंपरा और इससे जुड़े कलाकारों के संरक्षण और संवर्धन के प्रति व्यापक सोच को प्रदर्शित करता है।

कार्यक्रम में समाज के सभी वर्गों के लोग बढचढ़ कर लेते हैं भाग

कार्यक्रम का उद्घाटन श्रीकृष्ण के बाल रूप में सजे छोटे बच्चों ने किया। इसके बाद सांस्कृतिक और मटकी फोड़ कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम के संयोजक राहुल मेहता ने बताया कि श्रीकृष्ण जन्मोत्सव समारोह का आयोजन विगत आठ वर्षों से हो रहा है। यह आयोजन समाज में समरसता का बड़ा उदाहरण स्थापित करता है, कार्यक्रम में समाज के सभी वर्गों के लोग बढचढ़ कर भाग लेते हैं और सहयोग करते हैं।

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रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन के प्यार का त्योहार नहीं है, बल्कि ये एक ऐसा दिन भी है, जब आप अपने जीवन से जुड़ी कई समस्याओं को दूर करने के लिए खास उपाय कर सकते हैं। हम सभी जानते हैं कि आज के दौर में ज्यादातर लोग पैसों की कमी, नौकरी की परेशानी या बिजनेस में घाटे जैसी मुश्किलों से जूझ रहे हैं। ऐसे में अगर आप चाहते हैं कि आपके जीवन में बरकत बनी रहे, धन की कमी दूर हो और करियर में भी तरक्की मिले, तो रक्षाबंधन यानी 9 अगस्त 2025 के दिन ये खास और आसान उपाय जरूर करें। माना जाता है कि इन उपायों से मां लक्ष्मी खुद आपके घर की ओर दौड़ी चली आती हैं।

सुबह उठते ही करें शिव पूजन
राखी के दिन सूरज निकलने से पहले उठ जाएं। स्नान के बाद भगवान शिव को जल चढ़ाएं। शिवलिंग पर जल के साथ बेलपत्र, फूल और रोली भी अर्पित करें। ऐसा करने से सेहत में सुधार होता है और किस्मत भी मजबूत होती है। पैसों से जुड़ी परेशानियां धीरे-धीरे खत्म होने लगती हैं।

हनुमान जी की आराधना से संकट होंगे दूर
अगर नौकरी में परेशानी है या बिजनेस में नुकसान हो रहा है, तो रक्षाबंधन से ही हनुमान जी की पूजा शुरू करें। हर शाम दीपक जलाएं, धूप दिखाएं और फूल चढ़ाएं। रोज ऐसा करने से जीवन की रुकावटें दूर होंगी और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहेगी।

घर के मंदिर में जलाएं घी का दीपक
सुबह और शाम घर के मंदिर में घी का दीपक जरूर जलाएं। ये एक छोटा-सा उपाय आपके घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनाए रखता है। खासकर रक्षाबंधन पर मां लक्ष्मी के नाम का दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है। इससे पैसों की दिक्कत दूर होती है और धन की बरकत बनी रहती है।

मां लक्ष्मी और विष्णु जी को चढ़ाएं खीर
अगर आप आर्थिक तंगी से परेशान हैं, तो रक्षाबंधन पर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु को खीर का भोग लगाएं। ऐसा करने से धन से जुड़ी हर समस्या धीरे-धीरे खत्म हो जाती है और घर में लक्ष्मी जी का वास होने लगता है।

अपने इष्ट देव की पूजा जरूर करें
हर व्यक्ति को अपने इष्ट देवता यानी कुलदेवता और कुलदेवी की पूजा रोज़ करनी चाहिए। लेकिन रक्षाबंधन जैसे पवित्र दिन पर इनकी पूजा विशेष फल देती है। इससे भाग्य खुलता है, सुख-शांति बढ़ती है और जीवन की सारी उलझनें दूर होने लगती हैं।

रक्षाबंधन सिर्फ रक्षा सूत्र बांधने का ही नहीं, बल्कि अपने जीवन की परेशानियों से छुटकारा पाने का भी दिन है। ऊपर बताए गए उपाय न सिर्फ आपके घर में सुख-शांति लाएंगे, बल्कि आर्थिक स्थिति भी मजबूत करेंगे। मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे इसके लिए श्रद्धा और विश्वास के साथ इन उपायों को अपनाएं।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
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उज्जैन, 9 अगस्त (हि.स.)। देशभर में आज (शनिवार) रक्षाबंधन का त्यौहार धूमधाम से मनाया जा रहा है। परम्परा के मुताबिक, देश में सबसे पहले मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर मंदिर में रक्षाबंधन मनाया गया। यहां शनिवार तड़के भस्म आरती के पश्चात पुजारी परिवार की महिलाओं ने बाबा महाकाल को पहली राखी अर्पित की गई। इस दौरान पुजारी परिवार द्वारा भगवान माकाल को बेसन के सवा लाख लड्डुओं का भोग लगाया गया।

गौरतलब है कि देश में सभी त्यौहारों सबसे पहले महाकालेश्वर मंदिर में मनाए जाने की परम्परा है। रक्षाबंधन पर शनिवार को तड़के तीन बजे भस्म आरती के लिए मंदिर के पट खुलने के बाद सबसे पहले भगवान महाकाल का पंचामृत से अभिषेक किया गया। इसके बाद भगवान का विशेष श्रृंगार किया गया। भस्म आरती के दौरान अमर पुजारी के परिवार की महिलाओं द्वारा तैयार की गई राखी भगवान महाकाल अर्पित की गई। इसके साथ देशभर में रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत हो गई है। भगवान महाकाल को राखी बांधने के बाद भस्मआरती के दौरान ही सवा लाख लड्डुओं का महाभोग लगाया गया। इस महाभोग की तैयारी पिछले चार दिनों से चल रही थी।

इस बार जो राखी भगवान महाकाल को अर्पित की गई, उसमें मखमल का कपड़ा, रेशमी धागा और मोती का उपयोग किया गया है। राखी पर भगवान गणेश को विराजित किया है। यह एक वैदिक राखी है, जोकि शास्त्रों में बड़ा महत्व रखती है। इसमें लौंग, इलायची, तुलसी के पत्ते और बिल्ब पत्र जड़े रहते हैं। इसे अभिमंत्रित किया जाता है। यह राखी बांधकर पुजारी परिवार द्वारा देश और विश्व के कल्याण की मनोकामना की गई।

मंदिर प्रबंधन के मुताबिक, महाकाल मंदिर के पुजारी परिवार द्वारा हर वर्ष भगवान के लिए राखी अपने हाथों से तैयार की जाती है। इस बार राखी में मखमल का कपड़ा, मोतियों की लड़ों और रेशमी धागे का उपयोग करके आकर्षक- परंपरागत राखी का निर्माण किया गया है। राखी के केंद्र में भगवान गणेश विराजीत हैं। इस बार पं. अमर पुजारी के परिवार द्वारा भगवान के चरणों में बेसन, शुद्ध घी और सूखे मेवे से निर्मित सवा लाख लड्डुओं का भोग लगाया गया।

महाकाल मंदिर के पुजारी महेश शर्मा ने बताया कि महाकाल को राखी बांधने की यह परंपरा सदियों पुरानी है। जिन बहनों के भाई नहीं होते, वे महाकाल को अपना भाई मानकर राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं, इसलिए इस दिन मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ता है। यहां देशभर से आने वाले श्रद्धालु भगवान महाकाल के चरणों में राखी अर्पित करते हैं।

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Sawan Purnima 2025: सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति से भरा होता है और इसका अंतिम दिन यानी सावन पूर्णिमा एक खास आध्यात्मिक महत्व रखता है। इस दिन रक्षाबंधन जैसा पवित्र त्योहार मनाया जाता है, जिसमें बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। भाई भी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं। साथ ही, इस दिन स्नान (पवित्र नदी में स्नान) और दान (जरूरतमंदों को दान) करना भी बहुत शुभ माना जाता है।

कब है सावन पूर्णिमा 2025?
पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 8 अगस्त को दोपहर 2:12 बजे से हो रही है और यह 9 अगस्त को दोपहर 1:24 बजे तक रहेगी। चूंकि 9 अगस्त की सुबह पूर्णिमा तिथि में होगी, इसलिए सावन पूर्णिमा का दिन 9 अगस्त को माना जाएगा।

व्रत किस दिन रखा जाएगा?
जो श्रद्धालु सावन पूर्णिमा का व्रत रखते हैं, वे 8 अगस्त को उपवास करेंगे। क्योंकि पूर्णिमा तिथि उसी दिन शुरू हो रही है और उसी शाम चंद्रमा भी दिखाई देगा।
चंद्र दर्शन का समय: 8 अगस्त को शाम 6:42 बजे। इसी समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा करने का विधान है।

स्नान और दान कब करना है?
स्नान और दान का शुभ समय 9 अगस्त की सुबह होगा।
इस दिन सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में स्नान और दान करना सबसे फलदायी माना जाता है।
शुभ समय: सुबह 4:22 से 5:04 बजे तक।

9 अगस्त के अन्य शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:00 से 12:53 बजे तक

विजया मुहूर्त: दोपहर 2:40 से 3:33 बजे तक

गोधूलि मुहूर्त: शाम 7:06 से 7:27 बजे तक

सर्वार्थ सिद्धि योग: सुबह 5:47 से दोपहर 2:23 बजे तक

क्या है सावन पूर्णिमा का महत्व?
इस दिन पवित्र नदी या तीर्थ स्थान में स्नान करने से जीवन के पापों का नाश होता है।

अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

दक्षिण भारत में इस दिन जनेऊ बदलने की परंपरा भी निभाई जाती है, जो जीवन की तीन जिम्मेदारियों की याद दिलाती है, माता-पिता, समाज और ज्ञान के प्रति कर्तव्य।

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के अनुसार, यह तीन परतों वाला जनेऊ हमें बीते, वर्तमान और आने वाले समय के प्रति हमारी जिम्मेदारी का स्मरण कराता है।

सावन पूर्णिमा सिर्फ रक्षाबंधन का त्योहार नहीं है, बल्कि ये दिन हमें रिश्तों, कर्तव्यों और आध्यात्मिकता की ओर लौटने का अवसर भी देता है। इस दिन पूजा, उपवास, चंद्र दर्शन, स्नान और दान जैसे साधन हमें ईश्वर की कृपा और जीवन में संतुलन की ओर ले जाते हैं।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
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Raksha Bandhan 2025: हर साल सावन की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रक्षाबंधन सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि भाई-बहन के प्यार, सुरक्षा और भरोसे का त्योहार है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उसकी लंबी उम्र, सफलता और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। वहीं भाई, अपनी बहन को जीवन भर उसकी रक्षा का वादा करता है। राखी का यह पवित्र बंधन न सिर्फ खून के रिश्तों में बंधे भाई-बहनों तक सीमित है, बल्कि यह उन सभी लोगों को जोड़ता है जो दिल से एक-दूसरे को परिवार मानते हैं, चाहे वह चचेरे-ममेरे भाई-बहन हों, दोस्त हों या कोई ऐसा जो भाई जैसा लगता हो।

रक्षाबंधन का महत्व: केवल राखी नहीं, भावना का प्रतीक
‘रक्षा’ का मतलब होता है सुरक्षा और ‘बंधन’ यानी एक बंधन। इस त्योहार में दोनों ही भावनाएं गहराई से जुड़ी होती हैं। राखी बांधने का अर्थ सिर्फ एक धागा बांधना नहीं है, बल्कि यह उस विश्वास को बांधना है जो दो दिलों के बीच होता है। बहन जब भाई की कलाई पर राखी बांधती है, तो वह उसके लिए दुआ करती है, उसकी सफलता, खुशी, स्वास्थ्य और जीवन की हर मुश्किल से उसकी रक्षा के लिए। बदले में भाई यह वचन देता है कि वह हर परिस्थिति में अपनी बहन की ढाल बनेगा। आज के समय में भी यह त्योहार बेहद प्रासंगिक है, क्योंकि यह हर उस रिश्ते को मजबूत करता है जो स्नेह, सम्मान और विश्वास पर टिका है।

रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक कथाएं
राखी से जुड़ी कई कहानियां हैं जो हिंदू धर्मग्रंथों और लोककथाओं में दर्ज हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी की है। एक बार श्रीकृष्ण को हाथ में चोट लग गई थी, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर उनके हाथ पर बांध दिया था। इसी भाव से भावुक होकर श्रीकृष्ण ने वचन दिया था कि वे हर हाल में द्रौपदी की रक्षा करेंगे और यह वचन उन्होंने चीरहरण के समय निभाया भी।

यमराज और यमुनाजी की कथा
एक और प्रसिद्ध कथा यमराज और यमुनाजी की है। कहते हैं कि एक बार यमुनाजी ने यमराज को राखी बांधी थी और उनकी लंबी उम्र की कामना की थी। इससे प्रभावित होकर यमराज ने उन्हें अमरत्व का वरदान दे दिया। इन कहानियों से पता चलता है कि राखी एक साधारण धागा नहीं, बल्कि आशीर्वाद और रक्षा का एक पवित्र सूत्र है।

2025 में कब है रक्षाबंधन का त्योहार? राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
रक्षाबंधन 2025 में शनिवार, 9 अगस्त को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 8 अगस्त को दोपहर 2:12 बजे से होगी और इसका समापन 9 अगस्त को दोपहर 1:24 बजे पर होगा। ऐसे में राखी बांधने का शुभ समय 9 अगस्त को सुबह से दोपहर 1:24 बजे तक माना गया है। पंचांग के अनुसार, राखी बांधने का सबसे उत्तम समय सुबह 5:47 बजे से लेकर दोपहर 1:24 बजे तक है। खासकर हिंदू मान्यता में “अपराह्न काल” यानी दिन का तीसरा हिस्सा राखी बांधने के लिए सबसे शुभ होता है।

भद्रा काल में राखी बांधने से बचें
राखी बांधने से जुड़ी एक जरूरी बात यह भी है कि इसे भद्रा काल में नहीं बांधना चाहिए। भद्रा को अशुभ समय माना गया है और इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। इसलिए यह ध्यान रखना जरूरी है कि राखी भद्रा समाप्त होने के बाद ही बांधी जाए।

रक्षाबंधन का त्योहार सिर्फ एक धागे का नहीं, बल्कि भावनाओं का, सुरक्षा के वादे का और एक गहरे रिश्ते की पहचान का त्योहार है। यह दिन न सिर्फ भाई-बहन को करीब लाता है, बल्कि समाज में भी रिश्तों की मिठास और भरोसे को मजबूत करता है। राखी के इस पर्व पर आप भी अपने किसी खास को यह पवित्र सूत्र बांधकर अपने रिश्ते को और मजबूत बना सकते हैं।

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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