बद्रीनाथ/जोशीमठ: बद्रीनाथ धाम में एकबार फिर मौसम ने करवट बदली है। जोरदार हिमपात के बाद कड़ाके की ठंड बढ़ गई है।

बद्रीनाथ धाम सहित ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बीती रात्रि से मौसम ने करवट बदलना शुरू कर दिया, सुबह होते बद्रीनाथ धाम सहित नीती- माणा घाटियों में भी हिमपात शुरू हो गया।

बद्रीनाथ धाम में हिमपात के साथ कड़ाके की ठंड तो हुई लेकिन बद्रीनाथ पहुंचे तीर्थ यात्रियों ने बर्फबारी को नजदीक से देख सुखद अनुभव भी किया।

बद्रीनाथ पहुंची उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने भी बर्फबारी व कड़ाके की ठंड के बीच भगवान बद्रीविशाल के दर्शन व पूजन किए।

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देहरादून: बदरीनाथ धाम में अब तक 16 लाख 89 हजार 563 तीर्थ यात्री दर्शन कर चुके हैं। चारधाम में कुल 43 लाख 63 हजार से अधिक यात्री पहुंचे हैं। बदरी धाम के कपाट शीतकाल के लिए 19 नवम्बर को बंद हो जाएंगे, जबकि केदारनाथ, गंगोत्री,यमुनोत्री के कपाट अक्टूबर माह में ही बंद हो गए।

बदरी-केदार मंदिर समिति के मुताबिक 02 नवम्बर रात्रि तक कुल 2069 तीर्थ यात्री धाम में पहुंचे। इस साल के यात्रा में बदरीनाथ धाम कपाट खुलने की तिथि 8 मई से 2 नवंबर तक 16 लाख 89 हजार 563 लोगों ने दर्शन किए। बदरीनाथ धाम में सर्दी बढ़ी है। फिलहाल मौसम सामान्य। बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग सुचारू है। 02 नवंबर तक उत्तराखंड चारधाम पहुंचे तीर्थयात्रियों की संख्या 43 लाख 63 हजार 45 पहुंच गई है।

केदारनाथ धाम कपाट खुलने की तिथि 6 मई से 27 अक्टूबर कपाट बंद होने तक 15 लाख 63 हजार 278 लोग पहुंचे हैं। कपाट बंद होने तक इनमें से हेलीकॉप्टर से आने 15 लाख 1 हजार 795 तीर्थयात्री शामिल हैं। नवंबर तक बदरीनाथ-केदारनाथ कुल 32 लाख 52 हजार 841यात्री पहुंचे हैं।

यमुनोत्री धाम कपाट खुलने की तिथि 3 मई से 27 अक्टूबर कपाट बंद होने तक तक 4 लाख 85 हजार 688 लोग और गंगोत्री धाम कपाट खुलने की तिथि 3 मई से 26 अक्टूबर कपाट बंद होने तक 6 लाख 24 हजार 516 लोग धाम में तीर्थ यात्री दर्शन को पहुंचे। गंगोत्री-यमुनोत्री दोनों धामों में कुल पहुंचे यात्रियों की संख्या 11 लाख 10 हजार 204 है।

हेमकुंट साहिब-लोकपाल तीर्थ पहुंचे तीर्थयात्रियों की संख्या कपाट खुलने की तिथि 22 मई से 10 अक्टूबर कपाट बंद की तिथि तक 2 लाख 47 हजार है। चारधाम और हेमकुंट साहिब लोकपाल तीर्थ को मिलाकर कुल तीर्थयात्रियों की संख्या 46 लाख 33 हजार 45 है।

कपाट बंद होने की तिथियां:- बदरीनाथ धाम के कपाट शनिवार 19 नवंबर को बंद होंगे। केदारनाथ धाम 27 अक्टूबर, यमुनोत्री धाम 27 अक्टूबर और गंगोत्री धाम के कपाट 26 अक्टूबर को शीतकालीन बंद हो गए।

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पटना: छठ महापर्व के तीसरे दिन रविवार को अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी पूजा होगी। इसके बाद सोमवार सुबह उदयीमान सूर्य नारायण को अर्घ्य देने के बाद चार दिनों के अनुष्ठान के इस महापर्व का समापन हो जाएगा। गुप्त काल से ही छठ महापर्व का त्योहार मनाया जा रहा है।

पटना स्थित महावीर न्यास के आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि गहन अध्ययन के बाद यह पता चलता है कि गुप्तकालीन जो सिक्के मिले हैं, उनमें षष्ठीदत्त नाम का सिक्का भी मिलता है। पाणिनी ने जो नामकरण की प्रक्रिया बताई है, उसके अनुसार देवदत्त, ब्रह्मदत्त और षष्ठीदत्त इन शब्दों का अर्थ इस प्रकार लगाया जाता है: देवदत्त का मतलब देवता के आशीर्वाद से जन्म होना, ब्रह्मदत्त का मतलब ब्रह्मा के आशीर्वाद से और षष्ठी देवी के आशीर्वाद से जन्मे हुए पुत्र षष्ठीदत हुए।गुप्त काल में षष्ठीदत नाम का प्रचलन था। इससे प्रमाणित होता है कि छठी मैया की पूजा उस समय भी होती थी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध इतिहास को वासुदेव शरण अग्रवाल ने अपनी पुस्तक पाणिनिकालीन भारतवर्ष में बताया है।A valid URL was not provided.

मिथिला के प्रसिद्ध निबंधकार चंडेश्वर ने 1300 ईस्वी में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक कृत्य रत्नाकर में महापर्व छठ का उल्लेख किया है। उसके बाद मिथिला के दूसरे बड़े निबंधकार रूद्रधर ने 15वीं शताब्दी में कृत्य ग्रंथ में चार दिवसीय छठ पर्व का विधान विस्तृत रूप से दिया है। यह वर्णन ऐसा ही है जैसा आज हम लोग छठ पर्व मनाते हैं। इस प्रकार पिछले 700 वर्षों से यह विवरण मिलता है, जिसके अनुसार आज का छठ व्रत मनाया जाता है।1300 ईसवी के पहले चंदेश्वर ने छठ व्रत के ऊपर प्रकाश डाला। 1285 ईसवी में हेमाद्री ने चतुवर्ग चिंतामणि ग्रंथ में और 1130 ईसवी के आसपास लक्ष्मीधर ने कृत्य कल्पतरू में सूर्योपासना एवं षष्ठी व्रत का विधान बताया है। लक्ष्मीधर गहड़वाल वंश के प्रसिद्ध शासक गोविंद चंद्र के प्रमुख मंत्री और सेनापति थे।

उल्लेखनीय है कि छठ व्रत सनातन धर्मावलंबियों का अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। इस महापर्व पर भगवान भास्कर और छठी मैया की पूजा-अर्चना होती है। सूर्य की उपासना का यह सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। प्रत्येक मास की सप्तमी तिथि विशेषकर शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि सूर्य भगवान की तिथि मानी जाती है और इस दिन इनकी उपासना का विधान है। इसके साथ ही कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि सबसे पावन तिथि मानी जाती है। इसी कारण सूर्य भगवान की पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष में सप्तमी के दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा की जाती है।

चार दिनों का यह व्रत नहाए खाए, खरना, अस्तगामी सूरज और उदीयमान सूरज को अर्घ्य देकर उनकी पूजा की जाती है। महावीर मंदिर न्यास के आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि यह तथ्य तो सभी लोगों को पता है, लेकिन छठी मैया की जो पूजा होती है, उसमें छठी मैया कौन देवी हैं, इसका ज्ञान बहुत से लोगों को नहीं है। इसमें मैंने बहुत अनुसंधान किया तो पाया कि छठी मैया वास्तव में स्कंदमाता (पार्वती जी) हैं।

सूर्य भगवान की पूजा वैदिक काल से ही देश में प्रचलित है। सूर्य भगवान के मंदिर इस देश के बाहर भी बहुत सारे स्थानों पर बने हुए थे। जिसमें मुल्तान (पाकिस्तान) का भव्य सूर्य मंदिर भी है, जिसका वर्णन अलबरूनी ने किया है। इस मंदिर को मोहम्मद गजनवी ने तोड़ा था।इसी प्रकार काबुल के पास खैर कन्हेर में सूर्य भगवान का प्रसिद्ध मंदिर था, जिसे मोहम्मद गजनवी ने तोड़ा था। किंतु 1936 में खुदाई हुई तो इसमें बहुत सारे देवताओं की मूर्तियां साबूत पाई गई हैं। इसमें सूर्य भगवान की भव्य मूर्ति है, जो अभी काबुल के म्यूजियम में सुरक्षित है।

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Chhapra/ Garkha: आस्था के महापर्व छठ पर जिले के दो सूर्य मंदिरों में भक्तों की भीड़ जुटती है. जिले के गरखा प्रखण्ड के मिठेपुर स्थित इस सूर्य मंदिर में लोगों द्वारा मांगी मन्नत पूरी होती है. घोड़ों पर सवार भगवान सूर्य की आलौकिक विशालकाय प्रतिमा भक्तों को अपने आप अपनी ओर आकर्षित करता है.

आस्था के महापर्व छठ पर यहाँ भक्तो की भाड़ी भीड़ जुटती है. सूर्य उपासना के इस महापर्व पर श्रद्धालु यहाँ रहकर चार दिवसीय अनुष्ठान को पूरा करते है. ऐसी मान्यता है कि इस स्थान से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है.

भगवान सूर्य का यह मंदिर गरखा प्रखंड के मिठेपुर मुख्य मार्ग पर स्थित है.

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छपरा के बाजारों में मिल रहा है ड्रैगन फ्रूट, करनी है खरीददारी तो पहुंच जाइए यहां…

Chhapra: महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है रविवार को वर्तियो द्वारा पहले दिन का अर्घ्य भगवान सूर्य को दिया जाएगा. इसके लिए तैयारियां जोरो पर है. बाजारों में रौनक है और छोटे बड़े सभी दुकानों पर खरीददारों की भीड़ है.

महापर्व छठ में सभी वस्तुओं के उपयोग की प्राथमिकता रहती है. जिसमे मुख्य रूप से फलों की जरूरत होती है. अर्घ्य के कालसुप में फलों का समूह रहता है. छपरा के बाजारों में इसबार अन्य फलों के साथ ड्रैगन फ्रूट भी उपलब्ध है. शहर के नगरपालिका चौक पर लगे फल दुकानों में यह नया फल लोगों के लिए उपलब्ध है.

फल का नाम सिर्फ ड्रैगन फ्रूट है, बाकी यह देशी फल है जिसकी अब सारण जिले में भी खेती हो रही है. फल ज्यादा ही पौष्टिक एवं लाभदायक होता है.

महापर्व छठ में इस बार ड्रैगन फ्रूट भी लोगों के अर्घ्य में शामिल होगा. अगर आप भी इस फल के बारे में जानते है, अगर आपको भी इस फल को आवश्यकता हो तो आप इसे नगरपालिका चौक से खरीद सकते है.

ड्रैगन फ्रूट की कीमत आम फलों के अनुपात में दुगनी है. जिससे सभी इस फ्रूट को खरीदने में संकोच कर रहे है.

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Chhapra: लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के चार दिवसीय अनुष्ठान का आज दूसरा दिन है. आज व्रती खरना करेंगी. इसके साथ ही 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाएगा.

महापर्व छठ को लेकर पूरा वातावरण छठ में हो गया है. बाजारों में जबरदस्त रौनक देखने को मिल रही है. छठ पूजा से जुड़े सामानों की दुकान जगह-जगह सज गए हैं. स्थाई दुकानों के साथ-साथ कुछ अस्थाई दुकान भी सजे हुए हैं. जहां लगातार पहुंचकर लोग छठ पूजा के लिए जरूरी सामानों की खरीदारी कर रहे हैं.

छपरा शहर समेत ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के अपने घर आना जारी है. रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर काफी भीड़ देखने को मिल रही है. दूर प्रदेश और विदेश में रहने वाले लोग अपने घर लौट रहे हैं. छठ पूजा को लेकर सभी में उत्साह देखने को मिल रहा है.

दूसरी ओर घाटों के निर्माण में जुटी समितियां अब उसे अंतिम रूप देने के लिए लगी है. वहीं जिला प्रशासन सुरक्षा के तमाम उपायों के मद्देनजर कार्य कर रहा है. पुलिस प्रशासन भी सतर्क है और दंडाधिकारी समेत पुलिस पदाधिकारियों की प्रतिनियुक्ति भी जगह-जगह की गई है.

कुल मिलाकर छठ मय वातावरण से सभी उत्साहित हैं. महापर्व छठ बिहार का सबसे बड़ा त्यौहार है. जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं. छठ पूजा को लेकर साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाता है. इसे लेकर भी स्थानीय लोगों और सरकारी एजेंसियों के द्वारा कार्य किया जा रहा है. अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को रविवार को अर्घ्य दिया जाएगा. जिसके बाद सोमवार को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य के साथ अनुष्ठान संपन्न हो जायेगा.

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गोवर्धन की पूजा कर महिलाओं ने मनाया भैयादूज का त्यौहार

Chhapra: भगवान गोवर्धन और भैयादूज का त्यौहार धूम धाम से मनाया गया. शहर से लेकर गांव तक महिलाओं और युवतियों ने अपने अपने गली मुहल्लों तथा दरवाजे पर गोबर से भगवान गोवर्धन की आकृति बनाकर पूजा पाठ की गई.

महिलाओं द्वारा पूजा पाठ के साथ छठ का पारंपरिक गीत गाया गया. वही पूजा के उपरांत गोधन कुटाई की गई. इस अवसर पर महिलाओं और युवतियों द्वारा अपने भाई को बजरी खिलाकर भैया दूज का त्यौहार मनाया गया.

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Chhapra: श्री हनुमज्जयंती समारोह का 55 वां वार्षिक अधिवेशन श्री रामार्चा पूजन के साथ शुरू हो गया. ग्यारह दिवसीय वार्षिक अधिवेशन मारूति मानस मंदिर परिसर में प्रारंभ हुआ.

अयोध्या के गोविंद जी महाराज रामर्चा पूजन करायें. अयोध्या के छोटी छावनी के संत कमल नयन दास जी महाराज प्रवचन माला का उद्घाटन किया. संतों एवं उपदेशकों की मधुर एवं ओजस्वी वाणी से ओतप्रोत कथा रूपी अमृत का पान कर अपने जीवन को धन्य बनाने के शुभ अवसर से भक्तों को नहीं चूकने का अनुरोध समारोह से जुड़े अनिरूद्ध सिंह ने लोगों से किया है.

आयोजन समिति से जुड़े लोगों ने भक्तों से तन-मन एवं धन  से जयंती समारोह को सफल बनाने में सहभागिता सुनिश्चित होने पर जोर दिया है।

श्री हनुमज्जयन्ती समारोह समिति के प्रधान सचिव प्रो रणंजय सिंह व सचिव सत्यनारायण शर्मा ने बताया कि 11 दिनों तक यह समारोह आयोजित होता है, जिसका समापन दीपावली के दिन होता है। छपरा में अंजनी पुत्र महावीर हनुमान का ननिहाल होने से भी इस कार्यक्रम को लोग उत्साह पूर्वक मनाने के लिए उत्सुक रहते है।

समारोह के लिए विशाल पंडाल का निर्माण किया गया है. जहाँ श्रद्धालु संतों की अमृतवाणी का रसपान करेंगे.

जिनमे देवरिया से श्री जगदगुरु श्री रामानुजाचार्य स्वामी श्री राजनारायणाचार्य  जी महाराज, अयोध्या से संत कमल नयन दास जी, श्री जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य स्वामी रत्नेश जी महाराज, हरदोई की सुश्री प्रज्ञा भारती गिरी उर्फ सन्यासिनी पंछी देवी,  खलीलाबाद से श्री वैराग्यनंद जी परमहंस, मध्यप्रदेश से श्री गोपाल शर्मा, छपरा से विद्या भूषण जी व मां अंबिका स्थान के श्री शिववचन जी शामिल हैं।

कार्यक्रम
प्रतिदिन सुबह नौ बजे श्री रामर्चा पूजन व कथा और संध्या में सात बजे से रात्रि 10 बजे तक संगीतमय भजनोत्सव,
14 अक्टूबर को सुबह 5:30 बजे से श्री अखंड हरिनाम संकीर्तन एवं अपराहन 4:00 बजे से भंडारा का आयोजन होगा.
प्रतिदिन 15 से 23 अक्टूबर तक श्री हनुमान जी का व अभिषेक गोदुग्धसे होगा.
रामचरितमानस का सामूहिक नवाह पारायण भी होगा. पुरुष सूक्त एवं श्री सूक्त से हवन भी होगा. दोपहर 2:00 बजे से संध्या 5:30 बजे व सायं 7:00 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक उपदेश एवं प्रवचनमाला का कार्यक्रम है.

23 अक्टूबर को श्री हनुमान जी का जलाभिषेक दोपहर में होगा. 5:30 बजे शाम में श्री हनुमान जी का सहस्त्रनाम पूजन एवं संध्या 6:30 बजे से दीपमाला जन्मोत्सव व बधैया का कार्यक्रम होगा. 24 अक्टूबर को श्री हनुमान जी की शोभायात्रा सुबह 9:30 बजे से निकाली जाएगी. 

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जुलूस-ए-मोहम्मदी में झूम कर निकले नबी के दीवाने, आपसी सद्भाव के साथ देश प्रेम का जज्बा देखने को मिला

Chhapra: पैगम्बरे इस्लाम हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहुअलैहवसल्लम के यौम-ए-पैदाइश के मौके पर रविवार को जिला भर में जुलूस-ए-मोहम्मदी धूमधाम से निकाला गया.

इस दौरान मुस्लिम समुदाय में एक अलग ही रौनक दिखाई दे रही थी. मानो जुलूस में शामिल होने के लिए पूरा जनसैलाब उमड़ पड़ा हो. सिर पर हरा साफा बांध लकदक कपड़ों में सजे लोग एक हाथ में मजहबी परचम तो दूसरे हाथ में तिरंगा थाम इसे लहराते हुए जुलूस में शामिल हुए.

जुलूस में शामिल ऊंट, घोड़े और तरह-तरह की झांकियां आकर्षण का केंद्र रहीं तो हर तरफ नबी की आमद मरहबा, सरकार की आमद मरहबा, हुजूर की आमद मरहबा, आका की आमद मरहबा की सदाएं बुलंद होती रहीं.

ओलेमा जहां दरूद व सलाम पेश कर रहे थे वहीं शायर व नातख्वां तरन्नुम में मनकबत, हम्द और नात पेश कर माहौल को नूरानी बना रहे थे. जुलूस में युवा और बुजुर्गों के अलावा बच्चों का उत्साह भी देखते ही बन रहा था.

बग्घी, दुपहिया और चार पहिया वाहनों पर सवार होकर लोग जुलूस में शामिल हुए. रास्ते भर जुलूस में शामिल लोगों के लिए मुस्लिम व हिन्दू भाइयों की ओर से चाय व खाने पीने की चीजों का वितरण भी होता रहा.

नबी के दिवानों पर कई जगह लोगों ने फूल भी बरसाए. ईद मिलादुन्नबी की पूर्व संध्या पर शहर के खनुआ से जुलूस-ए-मोहम्मदी निकाला गया.

जिसकी कयादत जिलानी मुबीन, अब्दुल कैयूम अंसारी, डॉ मंसूर अंसारी आदि कर रहे थे. दारूल उलूम नईमिया, जामा मस्जिद में रात भर जलसा चला जिसमें देश भर के मशहूर ओलेमा ने नबी के सीरत और तालीम पर रोशनी डाली. शायरों ने भी समां बांधा.

सुबह की नमाज के बाद जुलूस निकला जो साहेबगंज, हथुआ मार्केट, थाना चौक, मजहरुल हक पथ, डाकबंगला रोड, मालखाना चौक, सदर अस्पताल, दरोगा राय चौक होते हुए जुमनी मस्जिद तक गया. वहीं दारूल उलूम रजविया के तत्वावधान में मौलाना रज्जबुल कादरी की कयादत में निकला जुलूस बड़ा तेलपा, चांदनी चौक, बिचला तेलपा, कोरार, न्यू कालोनी, छोटा तेलपा, कटहरी बाग, करीमचक, सरकारी बाजार, खनुआ होते हुए पुनः वापस गया.

ब्रह्मपुर से हाजी आफताब आलम की कयादत में जुलूस ने पूर्वी छोर से पश्चिम तक पूरे शहर का दौरा किया. इसके अलावा मिर्चईया टोला, गडही तीर, दहियावां आदि शहरी इलाकों समेत ग्रामीण क्षेत्र के बनियापुर, कोपा, मशरक, दिघवारा, एकमा, दाऊदपुर, लहलादपुर, तरैया, नगरा, मकेर, अमनौर, सोनपुर, दरियापुर, मिर्जापुर, तुजारपुर आदि जगहों पर भी मजहबी जोश, आपसी सद्भाव व देश प्रेम के अद्भुत जज्बा के साथ जुलूसे मुहम्मदी का आयोजन किया गया.

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बेगूसराय: बिहार का आध्यात्म एवं मोक्षधाम तथा मिथिला के दक्षिणी प्रवेश द्वार सिमरिया में पावन गंगा नदी के तट पर लगने वाले एशिया के सबसे बड़े कल्पवास मेला की तैयारी शुरू हो गई है। बेगूसराय जिला के सिमरिया गंगा तट पर नौ अक्टूबर से 17 नवम्बर तक चलने वाले राजकीय कल्पवास मेला का विधिवत उद्घाटन नौ अक्टूबर को किया जाएगा।

दो वर्ष की बंदी के बाद इस साल कल्पवास करने के लिए पिछले पांच दिनों से देश के विभिन्न हिस्सों से साधु-संतों का आना शुरू है। नौ अक्टूबर शरद पूर्णिमा के दिन से यहां धर्म और अध्यात्म की गंगोत्री प्रवाहित होने लगेगी। इसके लिए खालसा और महंतों का तंबू लगना शुरू हो गया है। वहीं, मिथिला के विभिन्न जिलों से आए कल्पवासियों का पर्णकुटी भी बनने लगा है। कल्पवास के दौरान महात्म्य और कथा के साथ सिद्धाश्रम के संस्थापक स्वामी चिदात्मन जी के नेतृत्व में मेला परिक्षेत्र की पहली परिक्रमा रंभा एकादशी के दिन, दूसरी परिक्रमा अक्षय नवमी के दिन एवं तीसरी अंतिम परिक्रमा बैकुंठ चतुर्दशी के दिन होगा।

इसके साथ ही दो से छह नवम्बर तक ”अमृत उत्सव का महत्व” विषय पर पांच दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जाएगा। जबकि कुंभ सेवा समिति द्वारा 11 अक्टूबर से आठ नवम्बर तक गंगा घाट पर भव्य महाआरती का आयोजन किया जाएगा। सात प्लेटफार्म पर काशी से आए विद्वान आचार्य के नेतृत्व में टोली गंगा मैया की महाआरती करेगी, इसकी तैयारी की जा रही है।

उल्लेखनीय है कि मिथिला एवं मगध के संगम स्थली गंगा तट सिमरिया में सदियों से कार्तिक मास में कल्पवास करने की परंपरा रही है। यहांं सिर्फ मिथिलांचल ही नहीं, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और नेपाल के हजारों-हजार लोग पर्णकुटी बनाकर कल्पवास करते हैं। इसके साथ ही 50 से अधिक खालसा भी लगाया जाता है। सुबह में गंगा आरती और सूर्य नमस्कार से शुरू होने वाली इनकी दिनचर्या रात्रि में गंगा आरती के साथ समाप्त होती है।

इस दौरान इन लोगों का भोजन भी पूरी तरह से सात्विक होता है तथा अधिकतर लोग गंगाजल में पकाया अरवा-अरवाइन भोजन ही करते हैं। 36 दिन सेेेे अधिक समय तक श्रद्धालु गंगा स्नान के साथ-साथ श्रीमदभागवत कथा, कार्तिक मास महात्म्य, रामायण पाठ और मिथिला महात्म्य आदि का श्रवण कर आध्यात्मिक भक्ति की धारा में लीन रहते हैं। कहा जाता है कि सिमरिया गंगा तट पर आदिकाल से कल्पवास की परंपरा रही है। हिंदू धर्म शास्त्र में उत्तरवाहिनी गंगा का काफी महत्व है तथा सिमरिया में गंगा उत्तरवाहिनी है। राजा परीक्षित को भी श्राप से उद्धार के लिए सिमरिया गंगा तट पर कल्पवास करना पड़ा था।

जनक नंदिनी सीता जब विवाह के बाद अपने ससुराल अयोध्या जा रही थी तो उनके पांव पखारने के लिए राजा जनक ने मिथिला की सीमा सिमरिया में ही डोली रखने को कहा था। तब राजा जनक ने सिमरिया पहुंचकर गंगा के किनारे यज्ञ और कार्तिक मास में कल्पवास किया था, तभी से यहां कल्पवास की परंपरा चल रही है। इस जगह के प्रसिद्धि का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद देश में गंगा नदी पर सबसे पहला रेल-सह-सड़क पुल यहीं बनाया गया।

स्वामी चिदात्मन जी ने कहते हैं कि देश भर में तीन जगह अनादि काल से ही कल्पवास की परंपरा चली आ रही है। इसमें हरिद्वार में बैशाख माह में, प्रयागराज में माघ माह तथा आदि कुंभस्थली सिमरिया धाम में कार्तिक माह में कल्पवास के आयोजन की परंपरा है। देश, काल और समय की परिस्थिति का ख्याल रखना हमारी परंपरा रही है, परंपराओं का पालन करते हुए कल्पवास के पौराणिक तथा आध्यात्मिक परंपरा का पालन करना चाहिए।

डीएम रोशन कुशवाहा ने बताया कि कल्पवासियों को किसी भी प्रकार की कोई असुविधा होने नहीं दी जाएगी। साफ-सफाई, प्रकाश के साथ शौचालय की उत्तम व्यवस्था घाट पर करवाई जाएगी। कुटी बनाकर रहने वाले कल्पवासियों, साधु-संतों को कोई परेशानी नहीं होगी। घाट की साफ-सफाई और कुटी बनाकर रहने वाले श्रद्धालुओं के लिए स्थाई रूप से मजदूरों को लगाया जाएगा, सुरक्षा और चिकित्सा की भी व्यवस्था रहेगी।

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– देवी मां ने इसी मंदिर में साक्षात प्रकट होकर विकट दानवों को मारने के बाद किया था विश्राम

वाराणसी: शारदीय नवरात्र के चौथे दिन गुरुवार को दुर्गाकुंड स्थित कुष्मांडा दरबार में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा। भोर से ही मातारानी के दरबार में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु पहुंचने लगे। सुबह से दोपहर तक दर्शन पूजन के लिए दर्शनार्थियों की लम्बी कतार मुख्य सड़क पर लगी रही। श्रद्धालुओं के चलते मंदिर परिसर के आसपास मेले जैसा नजारा बना हुआ है। शहरी क्षेत्र के अलावा ग्रामीण अंचल से भी भारी संख्या में श्रद्धालुगण देवी मंदिरों में देखें जा रहे हैं।

मुख्य पुजारी के देखरेख में रात तीन बजे के बाद मां के विग्रह को पंचामृत स्नान कराया गया। नूतन वस्त्र धारण करा कर पुष्प मााला, गहनों से उनका भव्य श्रृंगार किया गया। भोग लगाने के बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मंगला आरती करके भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर का कपाट खोल दिया गया। मंदिर का कपाट खुलते ही कतारबद्ध श्रद्धालु दरबार में अपनी बारी आने पर मत्था टेकते रहे। महिलाओं ने माता रानी को नारियल चुनरी और सिंदूर अर्पित कर संतति वृद्धि, श्री समृद्धि, अखण्ड सौभाग्य की अर्जी लगाई। श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के दौरान मां का गगनभेदी जयकारा लगाते रहे।

माना जाता है कि कुष्माण्डा की उपासना से अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति होती है। माता रानी ने कूष्मांड़ा स्वरूप असुरों के अत्याचार से देव ऋषियों को मुक्ति दिलाने के लिए धारण किया था। देवी कुष्मांडा स्वरूप में अवतरित हुई थी। आदिशक्ति के इस स्वरूप के दर्शन-पूजन से जीवन की सारी भव बाधा, और दुखों से छुटकारा मिलता है। साथ ही भवसागर की दुर्गति को भी नहीं भोगना पड़ता है। मां की आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है। मां कुष्माण्डा विश्व की पालनकर्ता के रूप में भी जानी जाती हैं। मान्यता है कि पुष्प धूप दीप आदि श्री सूक्त का पाठ करते हुए आराधना करने से प्रसन्न होकर सभी पापों से मुक्ति दिलाती हैं। देवी मां ने इसी मंदिर में साक्षात प्रकट होकर विकट दानवों को मारने के बाद विश्राम किया था।

काशी में मान्यता है कि काशी नरेश की पुत्री शशिकला के स्वयंवर में सुदर्शन की रक्षा के लिए मां दुर्गाकुंड से प्रकट हुई थीं। काशी नरेश सुबाहू को देवी का वरदान प्राप्त था। उन्होंने ही प्रार्थना कर मां को यही विराजमान होने का अनुरोध किया। तभी से मां दुर्गा यहां विराजमान हैं। माना जाता है कि देवी ने ही ब्रह्मांड की रचना की थी। सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें आदिशक्ति भी कहा जाता है।

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शारदीय नवरात्रि धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन्हीं नौ दिनों में मां दुर्गा धरती पर आती है। उनके आने की खुशी में इन दिनों को दुर्गा उत्सव के तौर पर देशभर में धूमधाम से मनाया जाता हैं। नवरात्रि पर्व के नौ दिनों के दौरान आदिशक्ति जगदम्बा के नौ विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है। ये नौ दिन वर्ष के सर्वाधिक पवित्र दिवस माने गए हैं। इन नौ दिनों का भारतीय धर्म एवं दर्शन में ऐतिहासिक महत्व है और इन्हीं दिनों में बहुत सी दिव्य घटनाओं के घटने की जानकारी हिन्दू पौराणिक ग्रन्थों में मिलती है। माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है-शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चन्द्रघन्टा, कुष्माण्डा, स्कन्द माता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।

नवरात्रि से हमें अधर्म पर धर्म और बुराई पर अच्छाई के जीत की सीख मिलती हैं। यह हमें बताती है की इंसान अपने अंदर की मूलभूत अच्छाइयों से नकारात्मकता पर विजयी प्राप्ती और स्वयं के अलौकिक स्वरूप से साक्षात्कार कैसे कर सकता है भारतीय जन-जीवन में धर्म की महत्ता अपरम्पार है। यह भारत की गंगा-जमुना तहजीब का ही नतीजा है कि सब धर्मों को मानने वाले लोग अपने-अपने धर्म को मानते हुए इस देश में भाईचारे की भावना के साथ सदियों से एक साथ रहते चले आ रहे हैं। यही कारण है कि पूरे विश्व में भारत की धर्म व संस्कृति सर्वोतम मानी गयी है। विभिन्न धर्मों के साथ जुड़े कई पर्व भी है जिसे भारत के कोने कोने में श्रध्दा भक्ति और धूमधाम से मनाया जाता है। उन्ही में से एक है नवरात्रि।

वसन्त की शुरूआत और शरद ऋतु की शुरूआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है। त्योहार की तिथियां चन्द्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती है। यह पूजा वैदिक युग से पहले प्रागैतिहासिक काल से है। नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किये गए है। यह पूजा उनकी ऊर्जा और शक्ति की की जाती है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है नौ रातें। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान शक्ति देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। चैत्र, आषाढ़, अश्विन, पौष प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों महालक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख को हटानेवाली होता है।त्यौहार के पहले दिन बालिकाओं की पूजा की जाती है। दूसरे दिन युवती की पूजा की जाती है। तीसरे दिन महिला परिपक्वता के चरण में पहुच गयी है उसकी पूजा की जाती है।

नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी-समृद्धि और शांति की देवी की पूजा करने के लिए समर्पित है। आठवे दिन पर एक यज्ञ किया जाता है। नौवा दिन नवरात्रि समारोह का अंतिम दिन है। यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन उन नौ जवान लड़कियों की पूजा होती है जो अभी तक यौवन की अवस्था तक नहीं पहुंची है। इन नौ लड़कियों को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। लड़कियों का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं। पूजा के अंत में लड़कियों को उपहार के रूप में नए कपड़े, वस्तुयें, फल प्रदान किये जाते है। शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। मां दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस पर्व से जुड़ी एक कथा के अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था।

पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया। उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा। महिषासुर ने अपने साम्राज्य का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय की स्थिति में आ गए। महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं की महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा था तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था। महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गई थी। इन नौ दिन देवी महिषासुर संग्राम हुआ और अन्त में महिषासुर का वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलायीं।

नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दशमहाविद्या अनंत सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ है। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।

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