गोपालगंज: आचार संहिता हटने के बाद जिले में विकास कार्यों ने एक बार फिर रफ्तार पकड़ ली है। इसी क्रम में पंचायती राज विभाग ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए हर पंचायत में आधुनिक मुक्तिधाम (श्मशान घाट) बनाने की दिशा में कार्य शुरू कर दिया है।
विभाग ने संबंधित अधिकारियों को पत्र जारी कर मुक्तिधाम निर्माण के लिए भूमि चिह्नित कर सर्वे कराने का निर्देश दिया है। सरकार का लक्ष्य है कि ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में अब अंतिम संस्कार की सुविधा बेहतर, सुरक्षित और पर्यावरणीय मानकों के अनुरूप उपलब्ध कराई जाए। फिलहाल जिले के अधिकांश पंचायतों में अंतिम संस्कार परंपरागत तरीके से खुले स्थलों पर किया जाता है, जिससे न केवल धुआं और राख से वायु प्रदूषण बढ़ता है, बल्कि नदी-तालाब के किनारे शवदाह होने पर जल प्रदूषण की भी गंभीर समस्या उत्पन्न होती है।
इसी को देखते हुए पंचायती राज विभाग ने आधुनिक मुक्तिधाम निर्माण की योजना को प्राथमिकता पर लिया है।मिली जानकारी के अनुसार 15वें वित्त आयोग के तहत मुक्तिधाम के निर्माण को मंजूरी प्रदान की गई है। प्रत्येक पंचायत में दो संस्कार शेड, एक बाउंड्री वॉल, सोलर लाइट, शौचालय और एक हैंडपंप के साथ पूर्ण रूप से विकसित मुक्तिधाम बनाया जाएगा। विभाग द्वारा जारी लागत विवरण के अनुसार एक संस्कार शेड पर 7,48,200 रुपये, बाउंड्री वॉल पर 3 लाख रुपए से अधिक, शौचालय निर्माण पर 78 हजार रुपये से अधिक, जबकि हैंडपंप पर लगभग 58 हजार रुपए खर्च किए जाएंगे।
कुल मिलाकर एक मुक्तिधाम पर 11 लाख 98 हजार रुपए की स्वीकृत राशि निर्धारित की गई है। विभाग का कहना है कि नई व्यवस्था से न केवल अंतिम संस्कार प्रक्रिया सम्मानजनक और व्यवस्थित होगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी। ग्रामीण क्षेत्रों में दिनों-दिन लकड़ी की कमी और बढ़ती लागत को देखते हुए सरकार विद्युत शवदाह गृहों के निर्माण पर भी जोर दे रही है।
कई पंचायतों में आधुनिक मुक्तिधाम के साथ विद्युत शवदाह गृह की भी स्थापना की जाएगी, ताकि बुजुर्ग, महिलाओं और दूरदराज से आने वाले लोगों को सुविधा मिले। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार आधुनिक मुक्तिधाम में बैठने के लिए पक्की मेज, स्नानागार, पेयजल और साफ-सफाई की स्थायी व्यवस्था भी होगी। साथ ही चारों ओर हरियाली बढ़ाने और वातावरण को शांत रखने के लिए पौधारोपण कराया जाएगा। विभाग का मानना है कि आधुनिक सुविधाओं के साथ मुक्तिधाम बनने से प्रदूषण में काफी कमी आएगी और गांवों में स्वच्छता व सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है।







