Chhapra: बिहार विधानसभा का चुनाव भारतीय राजनीति में बहुत खास होने वाला है. कोरोना संक्रमण काल मे हो रहे इस चुनाव में बहुत कुछ बदला बदला सा नज़र आएगा. भारतीय चुनाव में बदलाव की शुरुआत बिहार से होने जा रही है.

वैसे भी भारतीय राजनीति में बड़े बड़े कार्यक्रमों का शंखनाद भी बिहार से ही होता है, चाहें वह किसी राजनीतिक पार्टी की रथयात्रा के प्रारंभ करने को बात हो या पदयात्रा की. बिहार के राजनीतिज्ञों का आशीर्वाद कार्यक्रम को सफ़ल जरूर बनाता है. लेकिन इस बार ऐसा कुछ नही है मतलब इस बार शुरुआत खुद निर्वाचन आयोग कर रहा है.

बिहार चुनाव 2020 को लेकर तिथि की घोषणा हो चुकी है. 3 चरण में राज्य के 243 सीटों पर चुनाव होने है. ऐसे में कोरोना के बीच चुनाव स्वच्छ एवं निष्पक्ष के साथ स्वस्थ रूप से कराना एक चुनौती तो है. लेकिन इसके लिए मुकम्मल तैयारी पूरी है.बिहार चुनाव में इस बार मतदाताओं को रिझाने के लिए राजनीतिक पार्टियों को एड़ी चोटी का जोड़ लगाना होगा. आम तौर पर सभाओं में भीड़ जुटाने को लेकर राजनीतिक पार्टी उड़नखटोला का सहारा लेती है. दूर सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में आकाश में उड़नखटोला के मंडराने के साथ ही भीड़ जुट जाती है. कुछ उड़नखटोला को देखने आते है तो कुछ उसके ज़मीन पर उतारने से आकाश में उड़ने तक की घटना को देखने. भीड़ जुटती है तो नेता गदगद होते है.

लेकिन इस चुनाव शायद ऐसा कुछ नही दिखे. कारण है कोरोना को लेकर जारी गाइडलाइन. बिहार चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों की रैली इस बार वर्चुअल होने वाली है. जिसके कारण आसमान में उड़नखटोला का उड़ना ना के बराबर है.उधर इस बार के विधानसभा चुनाव प्रचार में कोविड महामारी के कारण कई बदलाव किए गए है. साथ ही विशेष सावधानी बरतने के निर्देश दिए गए है.

चुनाव आयोग के निर्देश पर राजनीतिक पार्टी की चुनावी सभा के लिए जिला निवार्चन पदाधिकारी द्वारा स्थल का चयन कर उसमे आने जाने के रास्तों के प्रबंध किया जाना है.इन चुनावी सभा स्थलों में आने वालों के लिए सामाजिक दूरी का पूरा ख्याल रखने के लिए व्यवस्था बनाने के निर्देश दिए गए है. कोविड महामारी के दिशानिर्देशों के पालन के लिए नोडल जिला स्वास्थ्य अधिकारी की पूरी व्यवस्था में सम्मिलित होंगे और उनकी जिम्मेवारी होगी. जिला निर्वाचन पदाधिकारी और पुलिस अधीक्षक यह सुनिश्चित करेंगे कि सभा स्थल पर पहुंचने वालों की संख्या राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के दिशानिर्देशों से अधिक ना हो.

लंदन: एक वेबसाइट पर जारी सूचना के मुताबिक एक जापानी दुभाषिये ने इस बात की पुष्टि की है कि 1945 में एक विमान दुर्घटना के बाद सुभाष चंद्र बोस की ताईपे में एक सैन्य अस्पताल में मौत हुई.

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के आखिरी दिनों को बयां करने के लिए शुरू की गई वेबसाइट http://www.bosefiles.info/ के मुताबिक बोस के साथ 1943 से 1945 के बीच दुभाषिये रहे काजुनोरी कुनीजुका अभी तक जीवित हैं. कुनीजुका ने 18 अगस्त 1945 को ताईपेई में एक विमान दुर्घटना के परिणामस्वरूप उनकी मौत होने के बारे में अपनी डायरी में बोस के आखिरी दिनों का ग्राफिक ब्योरा लिखा है.

सनकेई शिमभुन अखबार के लंदन संवाददाता नोबुरू ओकाबे ने वेबसाइट को इस बात से अवगत कराया. उन्होंने डायरी की प्रति भी वेबसाइट को सौंपी है. बोस के पोते और वेबसाइट बनाने वाले आशीष रे ने बताया, ‘डायरी जापानी भाषा में है. हम इसे अनुवाद कराएंगे और आने वाले समय में इसके प्रासंगिक अंशों को जारी करेंगे.’

ओकाबे के मुताबिक कानीजुका 98 साल के हैं और जापान के कोबे में एक वृद्ध आश्रम में रह रहे हैं. ओकाबे उनसे मिले और यह सत्यापित किया कि विमान हादसे के बाद ताईपेई में जापानी सैन्य अस्पताल में बोस की मौत हुई थी.

इससे पहले जब रे ताईपेई गए थे तब वह कैप्टन केइकीची के बेटे युकीची अरई से मिले थे. वह जापानी सेना के एक अधिकारी थे. वह बचे हुए उन सात लोगों में शामिल थे जो दुर्घटनाग्रस्त होने वाले विमान में सवार थे. हालांकि, उन्होंने अपनी डायरी में यह भी लिखा है कि बोस के दुर्घटना में घायल होने के बाद मौत हुई थी.

इसमें उल्लिखित बातों के मुताबिक ताईपे से विमान के उड़ान भरने के शीघ्र बाद जापानी बमवषर्क विमान ने फौरन ही नियंत्रण खो दिया और यह दुर्घटनाग्रस्त हो गया.