थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे हुए सेवानिवृत्त, गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया

– लोकसभा चुनावों के दौरान एक माह के लिए बढ़ाया गया था कार्यकाल

– सेना को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने के लिए याद किये जाएंगे जनरल मनोज पांडे

नई दिल्ली, 30 जून (हि.स.)। थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे चार दशकों से अधिक की राष्ट्र सेवा के बाद रविवार को सेवानिवृत्त हो गए। इस मौके पर उन्हें नई दिल्ली के साउथ ब्लॉक लॉन में औपचारिक गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। राष्ट्र की सेवा में उनका असाधारण और शानदार करियर उनके अटूट समर्पण और प्रेरणादायक नेतृत्व का प्रमाण है, जिसका भारतीय सेना पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उन्हें भारतीय सेना को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने की दिशा में किये गए उनके मजबूत प्रयासों के लिए याद किया जाएगा।

जनरल मनोज पांडे ने बतौर सेना प्रमुख 30 अप्रैल, 2022 को भारतीय सेना की बागडोर संभाली थी। उन्हें 31 मई को सेवानिवृत्त होना था, लेकिन कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने 26 मई को लोकसभा चुनाव के दौरान उनकी सेवा को एक महीने का विस्तार देने मंजूरी दे दी थी। यह विस्तार सेना नियम 1954 के नियम 16 ए (4) के तहत दिया गया था, जो उनकी सामान्य सेवानिवृत्ति से एक महीने आगे यानी 30 जून तक था।

जनरल पांडे आज सेवानिवृत्त होने से पहले राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पहुंचे और भारतीय सशस्त्र बलों के वीर जवानों को पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद उन्होंने साउथ ब्लॉक लॉन में औपचारिक सलामी गारद का निरीक्षण भी किया।

जनरल मनोज पांडे का कार्यकाल युद्ध की उच्च तैयारी, परिवर्तन की प्रक्रिया को गति देने के साथ-साथ आत्मनिर्भर पहलों की दिशा में उनके मजबूत प्रयास के लिए याद किया जाएगा। सीओएएस के रूप में जनरल मनोज पांडे ने उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर परिचालन तैयारियों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उन्होंने जम्मू और कश्मीर, पूर्वी लद्दाख और उत्तर पूर्व में अग्रिम क्षेत्रों का अक्सर दौरा किया और सभी रैंकों की परिचालन तैयारियों और मनोबल का प्रत्यक्ष जायजा लिया।

जनरल मनोज पांडे ने पांच अलग-अलग स्तंभों के तहत तकनीकी अवशोषण पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारतीय सेना के समग्र परिवर्तन की शुरुआत की। इन तकनीकी पहलों के तहत प्रगति हुई, जो भारतीय सेना को एक आधुनिक, चुस्त, अनुकूल और प्रौद्योगिकी-सक्षम भविष्य के लिए तैयार बल में बदलने की दिशा में आगे बढ़ाती रहेगी। ‘आत्मनिर्भरता’ पहल के तहत स्वदेशी हथियारों और उपकरणों के अनुकूलन पर उनके जोर ने भारतीय सेना के दीर्घकालिक अस्तित्व का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने मानव संसाधन विकास पहलों को प्रोत्साहन दिया, जिसका सेवारत कर्मियों, उनके परिवारों और अनुभवी बिरादरी के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।

सीओएएस के रूप में उन्होंने द्विपक्षीय/बहुपक्षीय अभ्यास, सेमिनार और चर्चाओं को प्रोत्साहित किया। उनके मार्गदर्शन में दक्षिण एशिया और इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा चुनौतियों का व्यापक विश्लेषण करने के लिए चाणक्य रक्षा वार्ता की स्थापना की गई। इसके अलावा उन्होंने इंडो-पैसिफिक आर्मी चीफ्स कॉन्फ्रेंस (आईपीएसीसी) के संचालन और साझेदार देशों के साथ वार्षिक अभ्यास के पैमाने और दायरे को बढ़ाने के माध्यम से सैन्य कूटनीति को बढ़ावा दिया।

जनरल ऑफिसर की चार दशक से अधिक की सैन्य यात्रा राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से शुरू हुई। उन्हें दिसंबर, 1982 में कोर ऑफ इंजीनियर्स (बॉम्बे सैपर्स) में कमीशन मिला। उन्होंने विभिन्न परिचालन वातावरण में महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण कमांड और स्टाफ नियुक्तियां कीं। उनकी शानदार सेवा के लिए जनरल ऑफिसर को परम विशिष्ट सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक और विशिष्ट सेवा पदक के पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

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