(प्रशांत सिन्हा)
वर्तमान समय में जनसंख्या की वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर दवाब लगातार बढ़ रहा है। प्राकृतिक संसाधनों के तीव्र दोहन के कारण पर्यावरण में असंतुलन की स्थिति बन गईं है। मानव की अनेक गतिविधियां वातावरण को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है। ओज़ोन परत का क्षरण भी उनमें से एक है। सृष्टि के प्रारंभ में मानव की आवश्यकताएं बहुत कम थी इसलिए वह प्रकृति से स्वतः प्राप्त संसाधनों द्वारा ही अपना गुजारा कर लेता था। समय के साथ हुई प्रगति और विकास के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर निरंतर दवाब बढ़ता जा रहा है। आज 21वीं शताब्दी इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की रफ्तार उनके पुनर्भरण से कई गुणा तेज है। इस प्रकार के दोहन से प्राकृतिक संसाधन समाप्ति की ओर जा रहे हैं और प्रकृति में जो एक समस्थिति कायम थी उसमें असंतुलन उत्पन्न हो गया है। अनेक मानवीय गतिविधियां वातावरण को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं। ओज़ोन परत का क्षरण भी उनमें से एक है जो वातावरण को प्रभावित कर रहा है एवं इससे स्वयं मानव भी प्रभावित हो रहा है ।
ओज़ोन परत तकरीबन 97 से 99 प्रतिशत तक पैरा बैंगनी किरणों को अवशोषित करती है। इसके सरंक्षण को बढ़ावा देने के लिए मांट्रियल प्रोटोकॉल के अनुसार 16 सितंबर को ओज़ोन दिवस के रुप में मनाया जाता है। यह दिवस वास्तव में पृथ्वी पर सूर्य की हानिकारक पैराबैंगनी किरणों के प्रकाश से धरती की रक्षा करने वाली ओज़ोन परत को बचाने हेतु अपनी जिम्मेदारी को दोहराने के प्रयास के रुप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। ओज़ोन परत पृथ्वी के वायु मंडल की एक परत है जिसमें ओज़ोन परत के कारण ही धरती पर जीवन सम्भव है। हमारी पृथ्वी पर जीवन सूर्य द्वारा प्रदान की गई कुल ऊर्जा का लगभग आधा भाग ही वास्तव में प्रभावी रुप से पृथ्वी को प्राप्त होता है। इसमें से तीस प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष सौर्य विकिरण के रुप में तथा शेष बीस प्रतिशत भाग पार्थिव विकिरण के रुप में पृथ्वी से बाहर चला जाता है। पृथ्वी के वायु मंडल के चारों ओर स्थित ओज़ोन परत के दिनों दिन कमजोर होने या उसके बड़े होते जाने से आर्कटिक में गर्मी तीव्र होने, बर्फ के पिघलने की दर, त्वचा कैंसर और इसका घातक असर के मामले में बेतहाशा बढ़ोतरी के रुप में सामने आने का खतरा मंडरा रहा है। इसके कारण मानव ही नही बल्कि जीव जंतु, पेड़ पौधे सभी खतरे में है। ओज़ोन परत का क्षरण मनुष्यों के लिए भोजन की कमी की समस्या पैदा कर रहा है। पैराबैगनी विकिरण विकासात्मक और शारीरिक प्रतिक्रियाओं को बाधित कर रहे हैं जिससे फसलों की उत्पादकता कम हो रही है। चुकी मनुष्य भोजन के लिए फसलों पर बहुत अधिक निर्भर है इसलिए एक बहुत बड़ी संभावना है कि अगर ओज़ोन परत की को रोका नहीं गया तो इससे मनुष्य को भोजन की गम्भीर कमी का सामना करना पड़ सकता है।
चिली के एक अध्य्यन साबित करता है कि ओज़ोन में कमी और यू वी विकिरण में बढ़ोतरी के साथ मेलोनोमा के मामले में 56 फीसदी और गैर मेलोनोमा त्वचा के कैंसर के मामलों में 46 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसके दुष्प्रभाव से चर्म रोग, आंखों का रोग और कैंसर जैसी बीमारियां बढ़ेंगी। यदि हम ओज़ोन परत जो सुरक्षा कवच की तरह काम करता है, को बचाने में नाकाम रहते हैं तब तो जीवन की कल्पना ही नही कर सकते हैं। जलवायु परिर्वतन का सबसे ज्यादा असर ओज़ोन परत पर पड़ा है। प्राकृतिक संसाधनों के अत्याधिक दोहन, शोषण बहुत बड़ा कारण है। बढ़ते प्रदुषण का प्रभाव जलवायु पर पड़ा है। ओज़ोन परत का लगातार क्षरण हो रहा है जो कि एक चिंताजनक स्थिति है। क्लोरोफ्लोरोकार्बन ओज़ोन रिक्तिकरण का प्रमुख कारण है। इन पदार्थों को प्रतिबंधित कर देना चाहिए या हमें इनके विकल्पों का उपयोग करना चाहिए ताकि भविष्य में हम पैराबैंगानी विकिरण से हानिकारक प्रभावों से अपनी रक्षा कर सकें। आज इस बात की आवश्यकता है कि हम ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए एवं जंगलों को बचाएं जिससे सूर्य की घातक पैराबैंगनी किरणें सीधे धरती पर न आ सकें। तभी ओज़ोन परत के छेद में हो रही बढ़ोतरी को रोका जा सकता है और इसके लिए जागरूकता की बहुत आवश्यकता है।
