सेवा को सम्मानः समाजसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए 03 अगस्त 1985 को बाबा आमटे के नाम से विख्यात समाजसेवी को रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनका मूल नाम डॉ.मुरलीधर देवीदास आमटे था।

बाबा आमटे ने समाज के परित्यक्त लोगों और कुष्ठ रोगियों के लिए आश्रमों की स्थापना की जिनमें महाराष्ट्र के चंद्रपुर स्थित आनंदवन सबसे प्रमुख है। बाबा आमटे ने पत्नी साधना ताई, दो पुत्रों और सहयोगियों के साथ मिलकर कठिन परिश्रम के बाद इस आश्रम की नींव रखी। शुरू में सात कुष्ठ रोगियों की सेवा से शुरू हुआ आश्रम का काम आगे चलकर ऐसे वर्ग के लिए नई उम्मीदों का ठिकाना बन गया। लगभग आधी सदी तक यही उनकी कर्मभूमि बना रहा और यहां सेवा से जुड़े कई क्षेत्रों में बाबा आमटे ने प्रयोग किए। खासकर पर्यावरण से जुड़े आंदोलनों के लिए भी वे मशहूर हुए।

वन्य जीव संरक्षण और नर्मदा बचाओ आंदोलन में उनकी सक्रियता के लिए उन्हें जाना जाता है। बाबा आमटे ने 1985 में ही कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत जोड़ो अभियान भी चलाया था जिसका मकसद लोगों के बीच आपसी सद्भाव पैदा करना और पर्यावरण के प्रति लोगों को सचेत करना था। पद्मभूषण और महाराष्ट्र सरकार के सर्वोच्च सम्मान महाराष्ट्र भूषण सहित कई दूसरे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित बाबा आमटे ने फरवरी 2008 में 94 साल की उम्र में चंद्रपुर जिले के वड़ोरा स्थित आवास पर आखिरी सांसें लीं।

अन्य अहम घटनाएंः

1492ः इटली का नाविक क्रिस्टोफर कोलंबस तीन पोत के साथ स्पेन से भारत की खोज पर रवाना।

1678ः रॉबर्ट लासैले ने अमेरिका में पहले जहाज का निर्माण किया।

1886ः हिंदी के विद्वान और प्रख्यात कवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म।

1914ः पहला समुद्री जहाज पनामा नहर से गुजरा।

1960ः पश्चिमी अफ्रीकी देश नाइजर ने फ्रांस से स्वतंत्रता हासिल की।

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छपरा: कोविड को हराने में टीकाकरण एक महत्वपूर्ण हथियार है। अभी शहरी क्षेत्र को पूरी तरह से टीकाकृत (वैक्सीनेटेड) करने का अभियान भी चलाया जा रहा है। वैशाली जिले में भी शहरी आबादी को टीकाकृत किया जा रहा है। टीका लेने से लोगों में आत्मविश्वास तो आया है, पर अभी भी उन्हें सावधानी बरतने की जरूरत है क्योंकि डब्ल्यूएचओ ने अपने सोशल मीडिया पर एक पोस्टर जारी किया है। जिसमें वह लोगों को आगाह कर रहा है। पोस्टर के माध्यम से डब्ल्यूएचओ कहता है कि हमें टीके के सभी डोज लेने चाहिए क्योंकि उसके बाद हममें उच्च रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होगा। अगर आपने दो डोज वैक्सीन के लिए हैं तो सेकेंड डोज के बाद इम्युनिटी बनने में दो से चार हफ्तों का वक्त लग सकता है। इस लिहाज से भी डब्ल्यूएचओ टीकों के सारे डोज लेने की सलाह देता है।

दूसरी डोज के बाद बढ़ जाती हैं टी-कोशिकाएं:
सिविल सर्जन डॉ. जेपी सुकुमार ने कहा कि वैक्सीन की दूसरी डोज के बाद एंटीबॉडीज के उन अंशों का भी विकास हो जाता है जो सामान्य तौर पर पहली खुराक के बाद नहीं बन पाती हैं। वैक्सीन की पहली डोज सामान्य तौर पर शरीर को मजबूत करता है। वहीं रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि करता है पर दूसरे शॉट के बाद एंटीबॉडीज के स्तर में कई गुना तक वृद्धि देखने को मिली है। कई अध्ययनों में भी पाया गया कि पहली डोज के बाद दूसरे डोज में एंटीबॉडी में मौजूद टी- कोशिका का निर्माण तेजी से हुआ जो संक्रमण को फैलने से रोकता है। टी-कोशिकाओं को किलर कोशिकाओं के रूप में भी जाना जाता है जो शरीर में संक्रमित कोशिकाओं को ढूंढकर उन्हें नष्ट कर देती हैं, इससे संक्रमण पूरे शरीर में नहीं फैलने पाता है।

सुरक्षा के लिए दोनों खुराक हैं जरूरी

जिले में कोरोना संक्रमण की दूसरी रफ्तार थमी जरूर है, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। तीसरी लहर की आशंका बनी हुई है। ऐसे में लोगों को सुरक्षित रहने के लिए कोरोना बचाव के दोनों टीके लगवाने जरूरी हैं । यूं तो शहर से लेकर ग्रामीणों में टीकाकरण को लेकर जागरूकता बढ़ी है। यही वजह है कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा दिए जा रहे लक्ष्य से अधिक लोग टीका लगवा रहे हैं।

दोनों डोज लगने के बाद हीं हो पायेंगे सुरक्षित:
सिविल सर्जन डॉ. जेपी सुकुमार ने कहा कि विभाग की प्राथमिक लोगों को दूसरी डोज देकर महामारी से सुरक्षित करना है। लोग दूसरी डोज जरूर लगवाएं, दोनों डोज लगने के बाद ही कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता मिलेगी। दोनों डोज लगने के बाद ही आप पूर्ण तरह सुरक्षित रह पाएंगे।

ऐसे रोकें संक्रमण का प्रसार:
• एक साथ 2 मास्क का प्रयोग करें
• आंतरिक स्थानों पर वायु संचार सुनिश्चित करें
• दूरी बनायें रखने का हरसंभव प्रयास करें
• साबुन से नियमित हाथ साफ़ करते रहें
• कोविड मरीजों को अलग कमरे में रखें
• सतहों को नियमित रूप से कीटाणुनाशकों से नियमित रूप से साफ़ करें

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जिन्होंने की थी तिरंगे की कल्पनाः 02 अगस्त 1876 को मौजूदा आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के निकट भटलापेनुमारु में पिंगली वेंकैया का जन्म हुआ। पिंगली वेंकैया राष्ट्रीय ध्वज के अभिकल्पक हैं। सच्चे देशभक्त और कृषि वैज्ञानिक वेंकैया कई भाषाओं के ज्ञाता थे। भूविज्ञान एवं कृषि क्षेत्र को लेकर उनकी गहरी दिलचस्पी थी, वे हीरे की खदान के विशेषज्ञ थे। ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा के दौरान उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के एंग्लो-बोअर युद्ध में हिस्सा लिया। इसी दौरान वे महात्मा गांधी के संपर्क में आए।

वर्तमान आंध्र प्रदेश के काकीनाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान वेंकैया ने भारत का अपना राष्ट्रीय ध्वज होने की जरूरत पर बल दिया। यह विचार महात्मा गांधी को पसंद आया। उन्होंने वेंकैया को राष्ट्रीय ध्वज की रूपरेखा तैयार करने की सलाह दी। लगभग पांच साल तक तीस विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों के अध्ययन के बाद वेंकैया ने तिरंगे का प्रारूप तैयार किया और 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में महात्मा गांधी से मिलकर उन्हें बताया।

हालांकि जालंधर के हंसराज ने झंडे में प्रगति के प्रतीक चक्र चिह्न का सुझाव दिया। 1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफेद और हरे, तीन रंगों वाले इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया। बाद में राष्ट्रीय ध्वज में तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली।

अन्य अहम घटनाएंः
1763ः मुर्शिदाबाद पर कब्जे के बाद ब्रिटिश सेना ने गिरिया के युद्ध में मीर कासिम को हराया।
1790ः अमेरिका में पहली बार जनगणना हुई।
1858ः ब्रिटिश सरकार ने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित किया जिससे भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश राजशाही के हाथों चला गया।
1955ः सोवियत संघ ने परमाणु परीक्षण किया।
1987ः विश्वनाथन आनंद ने विश्व जूनियर शतरंग चैम्पियनशिप जीती।
1990ः इराक की सेना ने कुवैत पर हमला कर उसपर कब्जा कर लिया।

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लोकमान्य का निधनः बंबई में 01 अगस्त 1920 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का निधन हो गया। श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता और जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारतीय क्रांति का जनक बताया। देश की स्वतंत्रता को जीवन का ध्येय मानने वाले लोकमान्य तिलक का दिया गया नारा काफी लोकप्रिय हुआ- स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।

साल 1857 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रस्थान बिंदु है, उसी साल 23 जुलाई को महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गांव चिखली में बाल गंगाधर तिलक का जन्म हुआ। वे महान राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, अधिवक्ता और शिक्षक थे। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के वे पहले नेता थे जो लोगों के बीच लोकप्रिय हुए। एक समय लाल-बाल और पाल की त्रिमूर्ति के रूप में मशहूर लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के गरम राष्ट्रवादी विचारों के प्रतीक बने।

तिलक ने सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की मांग उठाई। जनजागृति के लिए उन्होंने महाराष्ट्र में गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया। 1909 में लोकमान्य तिलक ने क्रांतिकारी खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चारी के बम हमले का समर्थन किया, जिसके कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल में भेज दिया।

उन्होंने अंग्रेजी में मराठा दर्पण और मराठी में केसरी नाम से दो समाचार पत्रों की शुरुआत की। केसरी में प्रकाशित हुए लेखों की वजह से तिलक को कई बार जेल जाना पड़ा। ‘देश का दुर्भाग्य’ शीर्षक से लिखे गए लेख में ब्रिटिश सरकार की नीतियों का कड़ा विरोध किया था, जिसके बाद उन्हें राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को गिरफ्तार किया गया और छह वर्ष के कठोर कारावास में बर्मा की जेल में रखा गया।

इसके बावजूद तिलक अपने राष्ट्रवादी विचारों से जरा भी नहीं डिगे। 1916 में उन्होंने एनी बेसेंट के साथ मिलकर होम रूल लीग की स्थापना की और आंदोलन चलाया। इससे तिलक को काफी प्रसिद्धि मिली और लोकमान्य की उपाधि मिली। उन्होंने नागरी प्रचारिणी सभा के वार्षिक सम्मेलन में भारत के लिए समान लिपि के तौर पर देवनागरी की वकालत की और कहा कि देवनागरी को समस्त भारतीय भाषाओं के लिए स्वीकार किया जाना चाहिये। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी जिसे काफी पसंद किया गया। विशेषकर मांडले जेल में लिखी गयी उनकी गीता रहस्य सर्वोत्कृष्ट है जिसका कई भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हुआ।

अन्य अहम घटनाएं:
1883: ब्रिटेन में अंतर्देशीय डाक सेवा की शुरुआत।
1914: प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत।
1820: महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया।
1932: मशहूर फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी का जन्म।
1957: नेशनल बुक ट्रस्ट की स्थापना।
1960: पाकिस्तान की राजधानी कराची से इस्लामाबाद किया गया।
2007: वियतनाम में आयोजित अंतरराष्ट्रीय गणित ओलंपियाड में भारतीय दल के छह सदस्यों ने तीन रजत पदक जीते।

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उपन्यास सम्राट का जन्म: उपन्यास और कहानियों की विशिष्ट परंपरा विकसित कर कई पीढ़ियों को प्रभावित करने वाले मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य में यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनके लेखन ने हिंदी साहित्य को नया अर्थ और आयाम दिया। इन्हीं विशिष्टताओं की वजह से उनका साहित्य ऐसा दस्तावेज है, जिसके बिना हिंदी साहित्य की विकास यात्रा को लेकर किया गया हर अध्ययन अधूरा है। 1918-1936 का कालखंड प्रेमचंद युग के नाम से जाना जाता है।

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गांव में हुआ। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। शुरू में एक लंबे समय तक वे नवाब राय के नाम से उर्दू में लेखन करते थे। 1909 में कहानी संग्रह सोज़े वतन की प्रतियां ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर ली तो उर्दू अखबार ज़माना के संपादक मुंशी दया नारायण निगम ने ब्रिटिश सरकार के कोप से बचने के लिए उन्हें प्रेमचंद नाम सुझाया। यह उन्हें ऐसा पसंद आया कि वे आजीवन इसी नाम से लेखन करते रहे। मशहूर उपन्यासकार शरदचंद्र चटोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट का नाम दिया था। हिंदी और उर्दू में समान रूप से लोकप्रिय रहे उपन्यासकार, कहानीकार और सम्पादक प्रेमचंद ने साहित्य के जरिये अपने समय पर प्रतिरोध के स्वर और सामाजिक चेतना की छाप छोड़ी।

प्रेमचंद के साहित्य का केंद्रीय बिंदु आमजन और उससे जुड़ा पक्ष है। फंतासी की दुनिया से निकलकर प्रेमचंद का साहित्य यथार्थवाद की धरातल पर गरीबी, छूआछूत, जातिभेद, दहेज प्रथा, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार जैसे जरूरी सवालों से जूझता है। नेपथ्य में स्वतंत्रता आंदोलन और समाज सुधार आंदोलनों की अनुगूंज भी है।

उनकी साहित्यिक कृतियों में गोदान, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि, सेवासदन जैसे लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास हैं। कफन, पंच परमेश्वर, पूस की रात, बड़े घर की बेटी आदि तीन सौ से अधिक कहानियां हैं। उन्होंने नाटक और निबंध भी बड़ी संख्या में लिखे। उन्होंने हिंदी साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन व प्रकाशन किया। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबंध, कफन अंतिम कहानी, गोदान अंतिम उपन्यास और मंगलसूत्र अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।

अन्य अहम घटनाएं

1658: औरंगजेब ने स्वयं को मुगल सम्राट घोषित किया।

1865: ऑस्ट्रेलिया में दक्षिण पूर्व क्लीव्सलैंड ग्रेडचेस्टर शहर में विश्व की पहली छोटी रेल लाइन शुरू।

1924: मद्रास प्रेसिडेंसी क्लब ने रेडिया प्रसारण संचालित करने का जिम्मा उठाया।

1933: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम छोड़ा।

1940: स्वतंत्रता सेनानी ऊधम सिंह का निधन।

1948: भारत में कलकत्ता में पहली राज्य परिवहन सेवा की स्थापना।

1980: हिंदी फिल्मों के महान पार्श्व गायक मोहम्मद रफी का निधन।

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• एसएनसीयू की स्टाफ नर्स प्रतिमा बनी बच्चों के लिए रक्षक
• कोरोना काल में भी शिशुओं को मिला बेहतर उपचार
• आधुनिक सुविधाओं से लैस है एसएनसीयू वार्ड

Chhapra: वैश्विक महामारी के उस दौर में जब निजी अस्पतालों में ताला लटका हुआ था, लोग अपने-अपने घरों में कैद थे। तब सदर अस्पताल के एसएनसीयू की स्टाफ नर्स प्रतिमा सिंह नवजात शिशुओं के लिए जीवन रक्षक बनकर अपने कर्तव्यों का बखूबी निवर्हन कर रही थी। कोरोना काल में सदर अस्पताल का नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) नवजात के लिए वरदान साबित हुआ। इस वार्ड में मार्च माह से लेकर जुलाई तक 454 नवजात शिशुओं को नया जीवनदान मिला है। इसमें एसएनसीयू इंचार्ज प्रतिमा सिंह का योगदान काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपनी कार्य क्षमता की बदौलत नवजातों को नया जीवनदान देने में अहम भूमिका निभायी है। इस वार्ड में जन्मजात बीमारियों व जन्म के बाद बच्चों को होने वाली बीमारियों का इलाज होता है। एसएनसीयू में रेडिएंट वार्मर, आक्सीजन कंसंट्रेटर, फोटोथेरेपी, पल्स आक्सीमीटर तथा इंफ्यूजन पंप आदि आधुनिक चिकित्सीय उपकरण मौजूद हैं। इन्हीं उपकरणों के सहारे जन्म लेने के बाद मौत से जूझते बच्चों को नया जीवन प्रदान किया जाता है।

आधुनिक सुविधाओं से लैस है एसएनसीयू वार्ड
जिला स्वास्थ्य समिति के डीपीएम अरविन्द कुमार ने बताया कि नवजात शिशुओं के इलाज के लिए सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं । जरूरी मशीनें सुविधाएं यहाँ के एसएनसीयू में उपलब्ध हैं । इस वजह से आसपास के जिले से भी बच्चों को यहाँ भेजा जाता है। इसके अलावा नवजात शिशुओं को सभी प्रकार की दवाइयां भी यहां उपलब्ध कराई जाती हैं । उसमें से कुछ दवाएँ महंगी भी होती हैं जो निःशुल्क प्रदान करायी जाती है। अस्पताल से छूटते समय नवजात की माताओं को पोषण की जानकारी, साफ सफाई की जरूरतें इत्यादि की भी जानकारी दी जाती है।


नवजातों में होने वाली जटिलताओं की पहचान
सिविल सर्जन डॉ. जेपी सुकुमार ने कहा नवजातों में होने वाली स्वास्थ्य जटिलताओं की पहचान कर उन्हें बचाया जा सकता है। इस दिशा में गृह आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम के तहत आशा घर-घर जाकर परिवार के लोगों को नवजात में होने वाली स्वास्थ्य जटिलताओं की जानकारी दे रही हैं । साथ ही जन्म के समय 1800 ग्राम या उससे कम वजन के नवजात एवं 34 सप्ताह से पूर्व जन्म लिए नवजातों को बेहतर देखभाल प्रदान करने के उद्देश्य से सभी जिला अस्पतालों में सिक न्यू बोर्न यूनिट(एसएनसीयू) की स्थापना की गयी है। इससे नवजातों को नया जीवनदान मिल रहा है।

42 दिनों तक किया जाता है फॉलोअप
एसएनसीयू की के इंचार्ज प्रतिमा सिंह ने बताया कि यहां से डिस्चार्ज बच्चों का 42 दिनों तक फॉलोअप किया जाता है। न्यू बॉर्न केयर यूनिट एसएनसीयू से भी डिस्चार्ज होने वाले बच्चों की डेढ़ माह तक तक निगरानी होती है। क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता की मदद से ऐसे बच्चों को निगरानी की जा रही है। वहीं एचबीएनसी (होम बेस्ड न्यू बोर्न केयर) कार्यक्रम के तहत शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से जन्म के 42 दिनों की अवधि में आशा छह से सात बार गृह भ्रमण कर रही हैं। ताकि खतरे के लक्षण वाले नवजात की पहचान कर समय पर उनका उपचार कराया जा सके। एसएनसीयू से डिस्चार्ज नवजात का 24 घंटे के अंदर पहला भ्रमण कर रही हैं। तीसरे, सातवें, पांचवें, छठे भ्रमण के लिए 14वें, 21वें, 28वें और 42वें दिन फॉलोअप किया जा रहा है। किसी भी तरह की समस्या होने पर स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र और आवश्यकता हुई सदर अस्पताल लाकर इलाज हो सकेगा।

क्या है आंकड़ा: ( किस माह में कितने शिशुओं का हुआ उपचार)

• मार्च- 100
• अप्रैल- 89
• मई- 75
• जून- 94
• जुलाई-96
लक्षण को कैसे पहचाने:
• शिशु को सांस लेने में तकलीफ
• शिशु स्तनपान करने में असमर्थ
• शरीर अधिक गर्म या ठंडा हो जाए
• बच्चा सुस्त दिखे, हलचल में अचानक कमी

नवजात के बेहतर स्वास्थ्य का ऐसे रखें ख्याल
• गृह प्रसव कभी नहीं करायें
• दाई या स्थानीय चिकित्सकों की राय पर प्रसव पूर्व गर्भवती माता को ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन नहीं दिलाएं
• जन्म के बाद शिशु के गर्भ नाल पर तेल या किसी भी तरल पदार्थ का इस्तेमाल नहीं करें
• गर्भनाल को सूखा रखें
• नवजात को गर्मी प्रदान करने के लिए केएमसी विधि द्वारा माँ की छाती से चिपकाकर रखें
• कमरे में शुद्ध हवा आने दें
• 1 घंटे के भीतर स्तनपान शुरू करायें

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देश की पहली महिला विधायकः देश की आजादी के साथ महिला अधिकारों के लिए आजीवन लड़ने वाली डॉ. मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी का जन्म 30 जुलाई 1886 को मद्रास में हुआ। देश की पहली महिला विधायक बनने के साथ-साथ वे देश की पहली महिला डॉक्टर (मेडिकल ग्रेजुएट) भी थी। वे पहली छात्रा थीं, जिसने लड़कों के स्कूल में दाखिला लिया।

दरअसल, मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी ने पढ़ाई के लिए बचपन से ही काफी संघर्ष किया। उनके पिता एस नारायणस्वामी चेन्नई के महाराजा कॉलेज के प्रधानाचार्य थे। माता चंद्रामाई ने सामाजिक तानों के बावजूद बेटी मुत्तुलक्ष्मी को पढ़ने के लिए हमेशा से प्रोत्साहित किया। अपने माता-पिता की उम्मीदों का मान रखते हुए आगे चलकर वे देश की पहली महिला डॉक्टर बनीं।

मेडिकल ट्रेनिंग के दौरान एकबार उन्हें कांग्रेस नेत्री व स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू से मिलने का मौका मिला और यहीं से उनकी जीवन की धारा बदल गयी। उनके सामने इंग्लैंड जाकर आगे की पढ़ाई का मौका था लेकिन उन्होंने इसकी जगह विमेंस इंडियन एसोसिएशन का काम करना ज्यादा मुनासिब समझा।

मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी 1927 में मद्रास लेजिस्लेटिव काउंंसिल से देश की पहली महिला विधायक बनीं। समाज व महिला अधिकारों के लिए उनके योगदान को देखते हुए काउंसिल में जगह दी गयी। 1956 में पद्मभूषण से सम्मानित मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी का 22 जुलाई 1968 को निधन हो गया।

अन्य अहम घटनाएंः

1836ः अमेरिका के हवाई में अंग्रेजी भाषा का पहला अखबार प्रकाशित हुआ।

1882ः स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म।

1909ः राइट बंधुओं ने सेना के लिए पहला विमान बनाया।

1966ः इंग्लैंड ने फुटबॉल विश्वकप पहली बार जीता।

2012ः उत्तरी ग्रिड में खराबी की वजह से दिल्ली सहित सात राज्यों में बिजली गुल। 36 करोड़ लोग प्रभावित हुए।

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हॉकी का स्वर्णिम अतीतः 29 जुलाई भारतीय हॉकी के स्वर्णिम काल की याद दिलाता है जब एशिया की परंपरागत हॉकी का दुनिया भर में डंका बजता था। भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक खेलों में 1928 से 1956 तक लगातार छह बार स्वर्ण पदक जीता। इसके साथ ही लगातार 24 मैच जीते। इस खेल की लोकप्रियता की वजह से यह भारत का राष्ट्रीय खेल बन गया। भारत ने इस खेल में कई महान खिलाड़ियों को जन्म दिया, जिनमें मेजर ध्यानचंद, बलवीर सिंह, अजीतपाल सिंह, अशोक कुमार, उधम सिंह, धनराज पिल्लै शामिल हैं। भारतीय टीम ने 29 जुलाई 1980 को आखिरी बार मॉस्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता। हालांकि कुछ दशकों बाद भारतीय हॉकी का सितारा अपनी चमक खोने लगा। दरअसल एशिया की कलात्मक शैली वाली हॉकी की जगह एस्ट्रो टर्फ पर खेली जानेवाली हॉकी ने भारतीय हॉकी को ऐसा नुकसान पहुंचाया कि वह पुराना गौरव हासिल नहीं कर पाया।

अन्य अहम घटनाएंः

1891ः महान समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी ईश्वरचंद्र विद्यासागर का निधन।

1904: आधुनिक भारत की बुनियाद रखनेवालों में शामिल भारतीय उद्योगपति जेआरडी टाटा का जन्म।

1921ः एडॉल्फ हिटलर नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी का नेता बना।

1931ः ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित तेलुगु भाषा के प्रख्यात कवि सी. नारायण रेड्डी का जन्म।

1957ः अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी की स्थापना।

1996ः भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने वाली प्रमुख महिलाओं में एक अरुणा आसफ़ अली का निधन।

2003ः सुप्रसिद्ध हास्य अभिनेता जॉनी वाकर का निधन।

2009ः जयपुर की महारानी गायत्री देवी का निधन।

2015ः माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज 10 लॉन्च की।

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फिंगर प्रिंट को पहचानः हर व्यक्ति का चेहरा अलग-अलग होता है लेकिन एक जैसी दिखने वाली हाथों की लकीरें, पुख्ता तौर पर हर किसी की अलग-अलग होती है। हाथों की लकीरें वैसे तो सभी में एक जैसी ही दिखायी देती हैं लेकिन दुनिया के किसी भी व्यक्ति का फिंगर प्रिंट किसी भी दूसरे से हरगिज नहीं मिल सकता। सर विलियम जेम्स हर्शेल ने दुनिया के समक्ष इस बात को प्रमाणित किया कि हस्ताक्षर की बजाय उंगलियों की छाप किसी भी व्यक्ति की पहचान का बेहतर माध्यम है। खगोल वैज्ञानिक के परिवार में 28 जुलाई 1858 को पैदा होने वाले विलियम जेम्स का मानना था कि हाथ से लिखे की नकल कोई भी कर सकता है लेकिन उंगलियों की छाप अलग-अलग होती है जिसकी नकल कोई नहीं कर सकता। इसी का नतीजा है कि उंगलियों की छाप को आज दुनिया भर में मान्यता है।

1586ः सर थामस हेरिओट ने यूरोप को आलू के बारे में बताया।

1741ः कैप्टन बेरिंग ने माउंट सेंट एलियास, अलास्का की खोज की।

1821ः पेरू ने स्पेन से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की।

1866ः अमेरिका में मापने की मीट्रिक प्रणाली को वैधानिक मान्यता मिली।

1914ः प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत।

1914ः एसएस कामागाता मारू को कनाडा के वेंकुवर से निकाला गया और भारत के लिए रवाना किया गया।

1925ः हेपेटाइटिस का टीका तलाशने वाले बारुक ब्लामर्ग का जन्म। इसी वजह से 28 जुलाई को हेपेटाइटिस डे मनाया जाता है।

1979ः चरण सिंह देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने।

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भारतीय निशानेबाजी का स्वर्णिम दिनः 27 जुलाई 1994 भारतीय निशानेबाजी की यादगार तारीख है। इसी दिन जसपाल राणा ने इटली के मिलान शहर में 46वें विश्व निशानेबाजी चैंपियनशिप के जूनियर वर्ग में स्वर्ण पदक हासिल किया। उन्होंने रिकॉर्ड स्कोर (569/500) बनाकर इतिहास रच दिया था। इसके बाद जसपाल राणा ने निशानेबाजी के क्षेत्र में कई दूसरे कीर्तिमान भी बनाए।

अन्य अहम घटनाएंः

1897ः बाल गंगाधर तिलक पहली बार गिरफ्तार किये गए।
1935ः चीन की यांगजी और होआंग नदी में बाढ़ से दो लाख लोगों की मौत।
1960ः महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का जन्म।
1969ः दक्षिण अफ्रीका के पूर्व क्रिकेटर और अबतक के सबसे अच्छे फील्डर की पहचान रखने वाले जोंटी रोड्स का जन्म।
1987ः खोजकर्ताओं ने टाइटैनिक का मलबा खोज निकाला।
1992ः फिल्म अभिनेता अमजद खान का निधन।
2003ः प्रसिद्ध हास्य कलाकार बॉब होप का निधन।

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Chhapra: अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संस्था लायंस क्लब छपरा टाउन के द्वारा कारगिल विजय दिवस के अवसर पर थाना चौक स्थित शहीद स्मारक पर कैंडल जलाकर कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर जवानों को याद किया गया श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कर मौन रखा गया. अध्यक्ष धीरज सिंह ने बताया कि देशवासियों के लिए आज का दिन गर्व का दिन है हमारे बीच सैनिकों के द्वारा युद्ध में विजय प्राप्त कर देश का मान सम्मान बढ़ाया था.

इस अवसर पर अध्यक्ष धीरज सिंह, कुंवर जायसवाल, आदित्य सोनी, सतीश पांडे, मो सलमान, सनी पठान, आशुतोष पांडे, राहुल, दिवेदी प्रशांत, मनीष मनी आदि उपस्थित थे.

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Chhapra: लियो क्लब छपरा सारण ने २२वे कारगिल विजय दिवस पर कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर जवानों को कैंडल जलाकर एवं मौन रख कर याद किया । स्थानीय छपरा जंक्शन पर यह श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया था । इस भावुक पल में लियो क्लब के सदस्यों ने भारत माता की जय और वीर जवान अमर रहें के नारे भी लगाए ।


वहीं अध्यक्ष लियो चंदन कुमार ने कहा कि आज का दिन हमसभी भारतीयों के लिए गर्व का दिन है, हम आज भी अपने वीर जवानों को सलाम करते हैं जिनकी शहादत के बदौलत भारत देश में अमन और चैन है । भारतीय सैनिक हर भारतीय के दिल में है और उनके प्रति आज हम सम्मान व्यक्त करते हैं । सारण के मेकर थाना क्षेत्र अंतर्गत विष्णू राय जी भी इस युद्ध में शहीद हुए थे जिनको लियो क्लब सलाम करता है जो कि सारण के लिए गर्व की बात है ।
उक्त मौके पर लियो अध्यक्ष लियो चंदन कुमार, उपाध्यक्ष लियो सुशांत, लियो रवी, लियो छोटू, लियो अमरजीत एवं लायन साकेत श्रीवास्तव, धर्मेंद्र रस्तोगी , आर पी एफ से हेड कांस्टेबल संतोष कुमार, कांस्टेबल जयेंद्र उरांव आदि सदस्य मौजूद थे ।
उक्त जानकारी पी आर ओ लियो सुप्रीम ने दी ।

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