Chhapra: फाइलेरिया उन्मूलन के दिशा में सारण जिला स्वास्थ्य विभाग ने एक बड़ी पहल की है। अब फाइलेरिया मरीजों का डिजिटल डाटा बेस तैयार किया जा रहा है, जिससे मरीजों की वास्तविक स्थिति की निगरानी और बेहतर इलाज की योजना बनाना आसान होगा। इस कार्य के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा तैयार इंटीग्रेटेड हेल्थ इन्फॉर्मेशन प्लेटफॉर्म (IHIP) पोर्टल का उपयोग किया जा रहा है।

जिला स्वास्थ्य समिति के अनुसार अब तक जिले के 12 हजार से अधिक फाइलेरिया मरीजों का डाटा आईएचआईपी पोर्टल पर अपलोड किया जा चुका है। इनमें हाथी-पांव (Lymphedema) और हाइड्रोसील दोनों प्रकार के मरीज शामिल हैं।

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस पोर्टल के माध्यम से प्रत्येक मरीज की रियल टाइम मॉनिटरिंग संभव हो सकेगी। मरीज का नाम, पता, बीमारी का प्रकार, उपचार की स्थिति और दी जा रही दवा जैसी जानकारी डिजिटल रूप में दर्ज की जा रही है। इससे मरीजों की निरंतर ट्रैकिंग, दवा वितरण, और इलाज में आने वाली बाधाओं की पहचान तेजी से की जा सकेगी।

जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने बताया कि सारण में फाइलेरिया उन्मूलन को लेकर विभाग द्वारा जागरूकता कार्यक्रम लगातार चलाए जा रहे हैं। वहीं डिजिटल डेटा बेस बनने से अब योजनाओं की समीक्षा और भविष्य की रणनीति तय करने में पारदर्शिता आएगी। उन्होंने कहा कि जिले के सभी स्वास्थ्य उपकेंद्रों, पीएचसी और सीएचसी स्तर पर प्रशिक्षित कर्मियों द्वारा मरीजों की पहचान और डेटा प्रविष्टि का कार्य किया जा रहा है। आने वाले समय में इस पोर्टल को जिला अस्पताल के साथ जोड़ा जाएगा, जिससे मरीजों को एकीकृत स्वास्थ्य सुविधा मिल सके।

डिजिटल हथियार से फाइलेरिया पर वार:

यह पोर्टल फाइलेरिया मरीजों के लिए डिजिटल डैशबोर्ड तैयार करेगा, जिसमें मरीज की व्यक्तिगत जानकारी, बीमारी की गंभीरता, प्रभावित अंग, ग्रेडिंग, उपचार की स्थिति और दिव्यांगता प्रमाण-पत्र की स्थिति भी शामिल होगी। इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि किस क्षेत्र में फाइलेरिया के कितने मरीज हैं और किसे किस स्तर की मदद की जरूरत है।

क्या है आईएचआईपी पोर्टल?

आईएचआईपी, भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की एक डिजिटल पहल है, जो विभिन्न बीमारियों की निगरानी को तकनीक के माध्यम से केंद्रीकृत और दक्ष बनाता है। यह पोर्टल फाइलेरिया जैसी दीर्घकालिक बीमारियों की ट्रैकिंग, रोगियों की पहचान, समय पर उपचार और रिपोर्टिंग के लिए उपयोगी उपकरण साबित होगा। अब वह समय गया जब फाइलेरिया मरीज नजर से ओझल हो जाते थे। इस पोर्टल से हर मरीज की स्थिति साफ़ तौर पर दिखाई देगी – कौन पीड़ित है, कब से, और क्या इलाज मिल रहा है। इसके आधार पर सरकार नीतिगत निर्णय भी बेहतर ले सकेगी।

पेपरलेस व्यवस्था, पर्यावरण संरक्षण की ओर कदम

इस प्रक्रिया के तहत अब मरीजों का विवरण रजिस्टरों में दर्ज करने की परंपरा खत्म होगी। पूरी प्रणाली पेपरलेस होगी, जिससे न केवल पर्यावरण की रक्षा होगी, बल्कि डाटा की सुरक्षा और उपलब्धता भी बढ़ेगी। मोबाइल, टैबलेट या कंप्यूटर से अधिकारी कहीं से भी डाटा देख और अपडेट कर सकेंगे।

आईएचआईपी पोर्टल की मुख्य विशेषताएं

• रियल टाइम मरीज डैशबोर्ड
• पेपरलेस डेटा मैनेजमेंट
• ग्रेडिंग व अंग की स्थिति का रिकॉर्ड
• प्रमाण-पत्र ट्रैकिंग
• स्मार्ट ट्रैकिंग व रिपोर्टिंग

फाइलेरिया मरीजों की निगरानी में सार्थक कदम:

जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने कहा कि अब हम फाइलेरिया जैसी बीमारी से सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि निगरानी और डेटा के स्तर पर भी लड़ेंगे। आईएचआईपी पोर्टल की मदद से हमें हर मरीज की पूरी प्रोफाइल एक जगह देखने को मिलेगी । उसे कब से तकलीफ है, कौन सा अंग प्रभावित है, क्या उसे दिव्यांगता प्रमाणपत्र मिल गया है या नहीं। इससे न सिर्फ हमारे फील्ड स्तर के कर्मचारियों को सही दिशा मिलेगी, बल्कि हम योजनाओं की प्रभावशीलता का भी मूल्यांकन बेहतर तरीके से कर सकेंगे।

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Chhapra: इंडियन सोसायटी ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन, छपरा शाखा के तत्वावधान में आज जिला स्कूल, छपरा परिसर में कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (CPR) का विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों और शिक्षकों को जीवन रक्षक तकनीक से अवगत कराना तथा आकस्मिक परिस्थितियों में तुरंत मदद करने योग्य बनाना था।

कार्यक्रम में शहर के प्रख्यात चिकित्सक डा. राजीव रंजन एवं डा. सुधांशु शेखर मिश्रा ने प्रतिभागियों को सीपीआर तकनीक का महत्व विस्तारपूर्वक समझाया और व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया। प्रशिक्षण के दौरान डा. राजीव रंजन ने बताया कि “सीपीआर एक ऐसी जीवन रक्षक प्रक्रिया है, जिसे तब लागू किया जाता है जब किसी व्यक्ति का दिल धड़कना बंद हो जाता है या उसकी सांसें थम जाती हैं। यह तकनीक हृदय और मस्तिष्क जैसे महत्वपूर्ण अंगों तक ऑक्सीजन पहुँचाकर जीवन को बचाने में मदद करती है।”

डॉ. सुधांशु शेखर मिश्रा ने विद्यार्थियों को आपातकालीन परिस्थिति में घबराने के बजाय त्वरित और सटीक प्रतिक्रिया देने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि समय पर किया गया सीपीआर किसी भी व्यक्ति की जान बचाने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

इस अवसर पर जिला स्कूल की प्राचार्या श्वेता वर्मा ने आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रम विद्यार्थियों में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ उन्हें सामाजिक दायित्व निभाने के लिए भी प्रेरित करते हैं। कार्यक्रम में विशाल कुमार सौरभ, कुमार राजीव, नीलू कुमारी, नितेश भारद्वाज, मुकेश कुमार सिंह, विभा कुमारी, सरिता कुमारी, संध्या कुमारी एवं मोहम्मद वालीउल्लाह भी उपस्थित थे।

मंच संचालन शिक्षक चंदन कुमार सिंह ने किया। उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रशिक्षण से विद्यालय परिवार को आपातकालीन परिस्थितियों में तुरंत सहयोग देने की क्षमता प्राप्त होती है, जो समाज के लिए अत्यंत उपयोगी है।

कार्यक्रम का समापन विद्यार्थियों और शिक्षकों द्वारा चिकित्सकों को धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। सभी ने यह संकल्प लिया कि वे इस सीखे गए कौशल को न केवल स्वयं के लिए बल्कि समाज की सेवा में भी उपयोग करेंगे।

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Chhapra: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सेवा विभाग की ओर से रविवार को टेकनिवास पंचायत के पचपतरा गाँव में निःशुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर में सैकड़ों ग्रामीणों ने अपनी स्वास्थ्य जांच कराई और आवश्यक परामर्श प्राप्त किया।

छपरा के अनुभवी चिकित्सकों डॉ० राजीव कुमार सिंह (डीएम गैस्ट्रोलॉजिस्ट), डॉ० सुधांशु शेखर मिश्रा (फिजिशियन), स्त्री रोग विषेशज्ञ डॉ० प्रियंका शाही, डॉ० दीपक कुमार, डॉक्टर सत्येंद्र सिंह, डॉ० एके दीपक, एएनएम मीना कुमारी, एएनएम सुकृर्ति कुमारी इत्यादि ने शिविर में नि:शुल्क सेवाएं प्रदान कीं, जिससे ग्रामीणों बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध हो सकी।

कार्यक्रम के दौरान संघ के विभाग सेवा प्रमुख अवध किशोर मिश्र, विभाग संपर्क प्रमुख सरोज सिंह, जिला सेवा प्रमुख बिट्टू कुमार, खंड कार्यवाह धनंजय उदय, शत्रुघ्न प्रसाद, सरपंच अजितेश पांडे, नीरज कुमार, रणजीत तिवारी, पंकज कुमार, शिवम कुमार सहित कई कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

इस अवसर पर विभाग सेवा प्रमुख अवध किशोर मिश्र ने कहा कि संघ के सेवा विभाग द्वारा चलाया जाने वाला प्रकल्प का उद्देश्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक सेवा पहुँचाना है। स्वास्थ्य शिविर के माध्यम से ग्रामीणों में स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने तथा समय रहते बीमारियों की पहचान करने का प्रयास किया जा रहा है।

स्थानीय लोगों ने इस पहल की सराहना करते हुए संघ के इस सेवा कार्य को प्रेरणादायी बताया।

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नई दिल्ली, 26 अगस्त (हि.स.)। सर्वाइकल कैंसर का पता लगाना अब बहुत आसान और सस्ता होने वाला है। अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (एम्स) ने सर्वाकल कैंसर का पता लगाने के लिए एक टेस्ट किट तैयार किया है, जिससे दो घंटे के अंदर ही नतीजे आ जाते हैं। इसके साथ ही इसकी कीमत 100 रुपये से भी कम होगी।

एम्स के एनाटॉमी विभाग के तहत इलेक्ट्रॉन एंड माइक्रोस्कोप फैशिलिटी में प्रोफेसर डॉ. सुभाष चंद्र यादव ने इस किट को पीएचडी छात्रा डॉ. सृष्टि रमण के साथ मिलकर बनाया है। यह किट महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का तुरंत पता लगा सकती है। हाल ही में इस किट को एनबीईसी 2025 ने देशभर में बेस्ट इनोवेशन के रूप में चुना है। इसके लिए डॉ. सुभाष चंद्र एंड टीम को 6 लाख रुपये का इनाम भी दिया गया है। साथ ही इसे स्टार्टअप के रूप में डेवलप करने और बाजार में उतारने के लिए इन्वेस्टर्स द्वारा वेंचर कैपिटलिस्ट फंड के लिए चुना गया है।

डॉ. सुभाष चंद्र यादव ने बताया कि इस किट से अभी तक करीब 400 मरीजों की जांच की गई है, जिसमें 100 फीसदी सही रिजल्ट मिला। आगे भी इसको परखा जा रहा है। डॉ. सुभाष कहते हैं कि सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए यह किट मशीनों के मुकाबले बेहद कम समय में सटीक परिणाम देती है। इसके अधिक निर्माण से इसकी कीमत 100 रुपये से भी कम हो सकती है। यह किट इस्तेमाल करने में भी इतनी आसान है कि इसे कोई भी व्यक्ति जो इसके इस्तेमाल का तरीका जानता है या मेडिकल समझ रखता है, इससे जांच कर सकेगा।

डॉ. सुभाष बताते हैं कि सर्वाइकल कैंसर की जांच जिस मशीन से होती है, उसकी कीमत दो साल पहले तक करीब 30 लाख रुपये थी। प्राइवेट में अगर कोई मरीज इस कैंसर की जांच कराता है तो 6 हजार रुपये में यह जांच होती है, जबकि एम्स जोकि नॉन प्रॉफिट स्वायत्त संस्था है और भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा फंडेड है, यहां भी इस जांच के लिए करीब 2 से 3 हजार रुपये लगते हैं। 3100 में से पहले नंबर पर चुनी गई किट नेशनल बायो इंटरप्रिन्योरशिप कॉम्पिटीशन (एनबीईसी) 2025 द्वारा इसे बेस्ट इनोवेशन के रूप में चुना गया है। कई राउंड में हुई इस प्रतियोगिता में देशभर के 34 राज्यों से 3100 आवेदन आए थे, जिनमें से 25 इनोवेशंस को चुना गया और फिर टॉप इनोवेशन का फैसला किया गया। डॉ. सुभाष ने बताया कि यह किट बेहद छोटी है, वहीं इसके सैंपल कलेक्शन से लेकर इससे परिणाम जानने तक का तरीका भी काफी आसान है। अगर फंड समय से मिलता गया तो अगले दो साल में यह किट बाजार में मिलने लगेगी।

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जिले में 1 से 20 सितम्बर तक चलेगा मिशन परिवार विकास अभियान

• आधुनिक और सुरक्षित परिवार नियोजन सेवाओं के लिए महा अभियान

• दम्पती संपर्क से लेकर नसबंदी शिविर तक, निःशुल्क सेवाएँ होंगी उपलब्ध

• घर-घर पहुँचेगी स्वास्थ्य सेवाएँ

Chhapra: जिले के सभी स्वास्थ्य संस्थानों मेडिकल कॉलेज से लेकर हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (एचडब्ल्यूसी) और शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक मिशन परिवार विकास अभियान का आयोजन 1 से 20 सितम्बर 2025 तक किया जाएगा। इस अभियान का मकसद योग्य दम्पतियों तक आधुनिक और सुरक्षित परिवार नियोजन सेवाएँ पहुँचाना, जागरूकता बढ़ाना और गुणवत्तापूर्ण सेवा सुनिश्चित करना है।

सिविल सर्जन डॉ सागर दुलाल सिन्हा ने बताया कि अभियान का उद्देश्य योग्य दम्पतियों तक परिवार नियोजन की आधुनिक और सुरक्षित सेवाएँ पहुँचाना, उपलब्ध सेवाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाना तथा सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करना है।

अभियान दो चरणों में होगा। 1 से 7 सितम्बर ‘दम्पती संपर्क सप्ताह’ और 8 से 20 सितम्बर ‘परिवार नियोजन सेवा पखवाड़ा’ का आयोजन किया जायेगा। इसके पहले 25 से 30 अगस्त तक पूर्व-योजना एवं तैयारी का विशेष चरण चलेगा। ज़िला पदाधिकारी की अध्यक्षता में स्वास्थ्य विभाग तथा आईसीडीएस, पंचायती राज, जीविका, नगर निकाय, शिक्षा, सामाजिक कल्याण, ग्रामीण विकास आदि विभागों के साथ बैठक होगी।

लॉजिस्टिक्स और दवाएँ:

सभी स्तरों मेडिकल कॉलेज से एचएससी तक परिवार नियोजन सामग्री- कंडोम, ओसीपी, छाया, इसीपी आदि एफपीएलएमआईएस के माध्यम से उपलब्ध कराई जाएगी। आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए “मुफ़्त औषधि वाहन”/डिस्ट्रिब्यूशन चार्ट का उपयोग होगा। सभी एफडीएस, कैंप स्थलों पर ऑपरेशन थिएटर, स्टरलाइजेशन रूम और पोस्ट-ऑपरेटिव वार्ड तैयार; पूर्व-ऑपरेटिव जाँच, परामर्श, और पोस्ट-ऑप केयर की अनिवार्य व्यवस्था होगी। क्लिनिकल आउटरीच टीम/PPP मोड का भी उपयोग किया जायेगा।

दम्पती संपर्क सप्ताह:

इस अभियान के तहत 1 से 7 सिंतबर तक आशा और एएनएम द्वारा प्री-रजिस्ट्रेशन, कम्युनिटी नीड असेसमेंट कर योग्य दम्पतियों की सूचीकरण, परामर्श और सेवा-विकल्पों की जानकारी ली जायेगी। घर–घर पहुँच कर विवाह योग्य आयु, नवविवाहित, दो–बच्चों के बाद अंतराल चाहने वाले दम्पति, प्रसवोत्तर/गर्भपातोत्तर महिलाएँ आदि प्राथमिकता समूहों को काउंसिलिंग की जायेगी। जिन दम्पतियों ने अस्थायी/स्थायी विधि का विकल्प चुना है, उनके लिए नज़दीकी स्वास्थ्य संस्थान पर कैंप की निश्चित तारीख देकर रेफरल की सुविधा मिलेगी।

परिवार नियोजन सेवा पखवाड़ा:

8 से 20 सितंबर तक कैंप प्लान के अनुसार महिला नसबंदी/पुरुष नसबंदी शिविर का आयोजनजिला अस्पताल, सब-डिविजनल अस्पताल, सीएचसी, पीएचसी पर किया जायेगा। कैंप में प्रशिक्षित सर्जन, आवश्यक उपकरण, दवाएँ, रक्त-उपलब्धता व एम्बुलेंस रोगी परिवहन सुनिश्चित की जायेगी।

प्रेरक आशा, जीविका दीदी, विकास मित्र आदि के लिए नियमों के अनुरूप प्रोत्साहन राशि का प्रावधान किया गया है। महिला बंध्याकरण के लिए प्रति केस ₹300 और पुरुष नसबंदी के लिए ₹400 रूपये दिया जायेगा। लाभार्थियों के लिए निःशुल्क आवागमन (ट्रांसपोर्ट) सुविधा का प्रावधान, ताकि सेवाएँ आसानी से प्राप्त हों।

लोगों के लिए क्या उपयोगी

• योग्य दम्पति अपने नज़दीकी सरकारी अस्पताल से संपर्क कर सकते हैं।

• कंडोम, गोलियाँ, इंजेक्शन-अंतरा, आईयूसीडी पीपीआईयूसीडी, पुरूष नसबंदी, महिला बंध्याकरण की सेवाएँ निःशुल्क उपलब्ध रहेंगी।

• घर–घर आने वाली आशा से भी तारीख, स्थान और उपलब्ध विकल्पों की जानकारी ली जा सकती है।

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Chhapra: रोटरी सारण के तत्वावधान में रविवार सुबह राजेंद्र स्टेडियम के नजदीक रोटरी यात्री शेड में निःशुल्क जांच शिविर का आयोजन किया गया।

जिसमें ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर, वजन, एवं ऊंचाई की जांच की गई, जिसमें 103 व्यक्तियों की जांच की गई।

अध्यक्ष महेश कुमार गुप्ता ने बताया कि रोटरी सारण समाज सेवा में शुरू से ही अग्रणी रहा है समय-समय पर सामाजिक कार्यों में हमेशा योगदान देते रहा है। सचिव डॉ आशुतोष कुमार दीपक, कोषाध्यक्ष मनोज कुमार (भोला), पूर्व अध्यक्ष राजेश फैशन, अजय कुमार, अजय कुमार गुप्ता एवं तमाम सदस्य रविंद्र, बासुकी, राजकुमार, अजय प्रसाद, सतीश अग्रवाल समेत सदस्यों का योगदान रहा।

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Chhapra: लायंस क्लब ऑफ छपरा सारण द्वारा लायन गणेश पाठक के आवास पाठक भवन में शुगर एवं ब्लड प्रेशर के जांच शिविर का आयोजन हुआ।

अध्यक्ष लायन संजय कुमार आर्या के नेतृत्व में क्लब डॉ लायन ओ पी गुप्ता द्वारा एवं लायन डॉ उदय कुमार पाठक एवं लायन डॉ मकेश्वर चौधरी की देख रेख में लगभग 50 मरीजों का जिसमें घूमने वाले राहगीरों तथा अन्य लोगों का शुगर लेवल तथा ब्लड प्रेशर का मुफ्त जांच कर उन्हें उचित परामर्श तथा जिन्हें दवा की जरूरत थी उन्हें मुफ्त में दवा भी दिया गया।

इस शिविर का उद्घाटन लायन उदय कुमार पाठक ने फीता काटकर किया।

जांचोपरांत सभी मरीजों को एक एक पौधा अमरूद, अनार, आंवला, शरीफा, सागवान, अंग्रेजी फ्लावर, आदि का पौधा दिया गया। उन्हें अध्यक्ष ने बताया पर्यावरण को शुद्ध एवं संतुलित करने के लिए पेड़ लगाना नितांत आवश्यक हो गया है नहीं तो प्रकृति असंतुलित हो गई है इसलिए पेड़ लगाना बहुत जरूरी हो गया है।

इस अवसर पर लायन मनोज वर्मा संकल्प, आनंद अग्रहरि, वासुदेव गुप्ता, रणधीर जायसवाल, अमर कुमार, सचिव नागेंद्र कुमार, गणेश पाठक, शैलेन्द्र कुमार, रजनीश कुमार, मनीष सिन्हा सहित क्लब के सारे पदाधिकारी सहित सदस्य उपस्थित थे ।

जानकारी जनसंपर्क पदाधिकारी लायन गणेश पाठक ने दी।

तनिष्क छपरा- डाकबंगला रोड,
फोन-7644849600 , 8235892335

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नई दिल्ली, 01 अगस्त (हि.स.)। होटल, रेस्तरां में अब ‘फूड सेफ्टी कनेक्ट’ ऐप क्यूआर कोड प्रदर्शित करना भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने अनिवार्य कर दिया। एफएसएसएआई ने सभी खाद्य व्यवसाय संचालकों (एफबीओ एस) को, जिनमें रेस्तरां, ढाबे, कैफे और भोजनालय शामिल हैं, अपने एफएसएसएआई लाइसेंस प्रमाणपत्र को ‘फूड सेफ्टी कनेक्ट’ ऐप के क्यूआर कोड के साथ ग्राहकों को दिखाई देने वाले स्थानों जैसे प्रवेश द्वार, बिलिंग काउंटर या मुख्य डाइनिंग एरिया में प्रदर्शित करने का निर्देश दिया है। इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को शिकायत निवारण के लिए एक सीधा और उपयोगकर्ता के अनुकूल मंच प्रदान करके सशक्त बनाना है।

एफएसएसएआई ने शुक्रवार को विज्ञप्ति जारी कर बताया कि फूड सेफ्टी कनेक्ट ऐप का क्यूआर कोड लाइसेंस और पंजीकरण के पहले पृष्ठ पर उपलब्ध करा दिया गया है। देशव्यापी परामर्श में, सभी एफबीओ को इसे अपने परिसरों में प्रदर्शित करने के लिए कहा गया है। यह एफएसएस (खाद्य व्यवसायों का लाइसेंस और पंजीकरण) विनियम, 2011 की लाइसेंस शर्त संख्या 1 के अनुपालन में है। इसके अतिरिक्त, एफबीओ को अपनी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, जिनमें वेबसाइटें और ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग प्लेटफॉर्म शामिल हैं पर भी ‘फूड सेफ्टी कनेक्ट’ एप के लिए क्यूआर कोड या सीधा डाउनलोड लिंक प्रदर्शित करने के लिए कहा गया है।

एप के माध्यम से दर्ज की गई शिकायतें स्वचालित रूप से संबंधित क्षेत्राधिकार प्राधिकारी को भेज दी जाती हैं, जो त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करती हैं और उपभोक्ता शिकायतों को संबोधित करने में देरी को कम करती हैं।

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Chhapra:  जिले की महिलाओं को अब अनचाही गर्भावस्था से दीर्घकालिक राहत दिलाने के लिए एक नई और अत्याधुनिक सुविधा की शुरुआत की गई है। छपरा मेडिकल कॉलेज में शनिवार को सबडर्मल गर्भनिरोधक इम्पलांट सेवा की औपचारिक शुरुआत की गई। इस अवसर पर दो महिला लाभार्थियों को प्रशिक्षित महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. सुमन द्वारा इम्पलांट लगाया गया। इस पहल के तहत उन महिलाओं को लाभ मिलेगा जो दीर्घकालिक गर्भनिरोधक सुरक्षा चाहती हैं लेकिन प्रतिदिन दवा लेने या अन्य अस्थायी उपायों को अपनाने में असहजता महसूस करती हैं। यह सुविधा महिलाओं को तीन वर्षों तक गर्भधारण से बचाव का भरोसेमंद विकल्प प्रदान करती है।

महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा का नया विकल्प

गर्भनिरोधक इम्पलांट की शुरुआत के मौके पर छपरा मेडिकल कॉलेज की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. सुमन ने कहा, “यह सुविधा खासकर उन महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद है, जो बार-बार गर्भधारण की परेशानी से जूझ रही हैं या जिनके बीच में बच्चों के जन्म का अंतराल बहुत कम है। यह तकनीक सुरक्षित, प्रभावी और सुविधाजनक है। इससे मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य को लाभ मिलेगा।” उन्होंने बताया कि सबडर्मल इम्पलांट न केवल गर्भनिरोधन का प्रभावी साधन है, बल्कि इससे महिलाओं को लंबे समय तक मानसिक और शारीरिक रूप से राहत भी मिलती है। इससे जन्म के बीच का अंतर पर्याप्त होता है, जिससे बच्चों को बेहतर पोषण और देखभाल मिल पाती है। डॉ. सुमन ने महिलाओं से अपील करते हुए कहा कि वे इस तकनीक के प्रति जागरूक हों, प्रशिक्षित चिकित्सकों से परामर्श लें और सुरक्षित व स्वस्थ मातृत्व सुनिश्चित करने के लिए इस सुविधा का भरपूर लाभ उठाएं।

क्या है सबडर्मल इम्पलांट? जानें प्रक्रिया और लाभ

छपरा मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सीपी जयसवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि सबडर्मल इम्पलांट एक छोटी छड़ी के आकार की डिवाइस होती है, जिसे महिला की ऊपरी बांह की त्वचा के नीचे बड़ी ही सहज प्रक्रिया के माध्यम से लगाया जाता है। इस प्रक्रिया में न तो किसी प्रकार की सर्जरी की आवश्यकता होती है और न ही अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ती है। यह कुछ ही मिनटों में पूरा हो जाता है और महिला तुरंत अपनी सामान्य दिनचर्या में लौट सकती है। डॉक्टर की सलाह पर यह इम्पलांट कभी भी हटवाया जा सकता है। इसका कोई दीर्घकालिक दुष्प्रभाव नहीं होता और यह महिलाओं के लिए पूरी तरह सुरक्षित माना गया है।

महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए कारगर उपाय

जिला स्वास्थ्य समिति के डीसीएम ब्रजेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि बच्चों के बीच कम अंतराल, बार-बार गर्भधारण, पोषण की कमी और गर्भनिरोधक साधनों की जानकारी या उपलब्धता का अभाव – ये सभी कारण मां और नवजात शिशु दोनों के लिए स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं उत्पन्न करते हैं। ऐसे में सबडर्मल इम्पलांट एक प्रभावशाली समाधान बनकर सामने आया है। यह सुविधा उन ग्रामीण व शहरी महिलाओं के लिए विशेष रूप से लाभदायक होगी जो सरल, टिकाऊ और भरोसेमंद गर्भनिरोधक विकल्प की तलाश में हैं।

स्वास्थ्य विभाग की अभिनव पहल

स्वास्थ्य विभाग की इस पहल को महिला सशक्तिकरण और सुरक्षित मातृत्व की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। विभाग की योजना है कि आने वाले दिनों में इसे सदर अस्पताल और अन्य स्वास्थ्य केंद्रों पर भी लागू किया जाए, ताकि अधिक से अधिक महिलाएं इसका लाभ उठा सकें। इस मौके पर महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. सुमन, जिला स्वास्थ्य समिति के डीसीएम ब्रजेंद्र कुमार सिंह, पीएसआई इंडिया के जिला प्रतिनिधि राजीव कुमार, मुरलीधर, सदर प्रखंड के बीसीएम संजीव कुमार, मेडिकल कॉलेज की स्टाफ नर्स निष्ठा, अर्चना, काजल समेत अन्य मौजूद थे।

सबडर्मल इम्पलांट क्या है?

• पतली छड़ी के आकार की हार्मोनयुक्त डिवाइस
• त्वचा के नीचे, ऊपरी बांह में प्रत्यारोपित
• प्रक्रिया बेहद सरल, सुरक्षित और दर्दरहित
• प्रभावशीलता: तीन साल तक गर्भ से सुरक्षा
• हटवाना भी बेहद आसान और डॉक्टर की निगरानी में

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Chhapra: फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम को और अधिक सुदृढ़ व तकनीकी रूप से उन्नत बनाने के उद्देश्य से सारण जिले में अब मरीजों की जानकारी ऑनलाइन पोर्टल पर दर्ज की जाएगी। इसके लिए भारत सरकार द्वारा विकसित इंटीग्रेटेड हेल्थ इंफॉर्मेशन प्लेटफार्म (आईएचआईपी) का उपयोग किया जाएगा। इस पोर्टल पर जिले के करीब 17 हजार फाइलेरिया पीड़ितों की जानकारी अपलोड की जाएगी, जिससे रोग नियंत्रण एवं उपचार की निगरानी रियल टाइम में संभव हो सकेगी।

इस उद्देश्य को लेकर जिला मलेरिया कार्यालय, छपरा में एक प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने की, जिसमें जिला वेक्टर रोग सलाहकार सुधीर कुमार तथा पिरामल स्वास्थ्य संस्था के सीनियर प्रोग्राम लीड चंदन कुमार द्वारा जिले के सभी वेक्टर बॉर्न डिज़ीज सुपरवाइजर (वीबीडीएस) को आईएचआईपी पोर्टल पर डाटा अपलोड करने की विस्तृत जानकारी दी गई। इस मौके पर जिला वेक्टर रोग सलाहकार सुधीर कुमार, वीडीसीओ सतीश कुमार, वीडीसीओ सुमन कुमारी, वीडीसीओ मीनाक्षी, पिरामल से चंदन कुमार, पंकज कुमार, तेज नारायण, सीफार के डीपीसी गनपत आर्यन, पीए कृष्णा सिंह और सभी वीबीडीएस मौजूद थे।

मिशन मोड में होगा डेटा अपलोड

डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने प्रशिक्षण के दौरान बताया कि, “फाइलेरिया उन्मूलन के लिए केस आधारित निगरानी बेहद जरूरी है। आईएचआईपी पोर्टल के माध्यम से अब प्रत्येक मरीज का रिकॉर्ड ऑनलाइन दर्ज किया जाएगा, जिससे रोग की प्रगति और उपचार दोनों पर बारीकी से नजर रखी जा सकेगी। यह कार्य मिशन मोड में होना चाहिए ताकि शत-प्रतिशत मरीजों का डाटा समय पर अपलोड हो सके।”

आईएचआईपी: स्वास्थ्य निगरानी का नया युग

आईएचआईपी पोर्टल भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी डिजिटल स्वास्थ्य पहल है, जिसका उद्देश्य देशभर में सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली को एकीकृत करना है। यह प्रणाली विभिन्न रोगों के डाटा को एक जगह संग्रह कर उन्हें रियल टाइम में प्रस्तुत करती है, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और नीतिगत निर्णय लेने में मदद मिलती है। आईएचआईपी से जुड़ने के बाद अब फाइलेरिया जैसे जटिल और लंबे इलाज वाले रोग की निगरानी भी डिजिटल रूप से संभव हो पाएगी। इससे विभाग को यह जानने में भी सुविधा होगी कि कौन मरीज किस क्षेत्र से है, उसकी वर्तमान स्थिति क्या है और कौन-कौन सी दवाएं दी गई हैं।

फाइलेरिया के खिलाफ अभियान को मिलेगी नयी गति

विशेषज्ञों का मानना है कि आईएचआईपी प्लेटफार्म पर डाटा अपलोड होने से फाइलेरिया उन्मूलन अभियान को नयी दिशा मिलेगी। इससे न सिर्फ योजनाओं का सटीक मूल्यांकन संभव होगा, बल्कि क्षेत्रवार रणनीति बनाकर रोग के खात्मे की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकेंगे।
डॉ. दिलीप ने कहा कि अब तक जिले में लगभग 17 हजार फाइलेरिया रोगियों की पहचान की जा चुकी है, जिनकी जानकारी एकत्र कर पोर्टल पर दर्ज की जाएगी। “हमारा लक्ष्य है कि कोई भी मरीज रिकॉर्ड से बाहर न रहे और हर व्यक्ति को समय पर उपचार मिल सके।”

क्या है फाइलेरिया:

फाइलेरिया एक परजीवी जनित रोग है, जो मच्छर के काटने से शरीर में सूजन, दर्द और दिव्यांगता जैसी गंभीर स्थिति पैदा कर सकता है। यह रोग लंबे समय तक इलाज की मांग करता है और जागरूकता, समय पर जांच और समुचित दवा वितरण से ही इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

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Chhapra: जिले की महिलाओं को अब अनचाही गर्भावस्था से सुरक्षित रखने के लिए एक नया, आधुनिक और भरोसेमंद उपाय मिलने जा रहा है। अब महिलाओं को सबडर्मल गर्भनिरोधक इंप्लांट की सुविधा मिल सकेगी, जिससे वे तीन साल तक बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के गर्भावस्था से पूरी तरह सुरक्षित रह पायेंगी। लंबे समय तक सुरक्षा चाहने वाली महिलाओं के लिए वरदान यह सुविधा खासतौर पर उन महिलाओं के लिए उपयोगी है, जो लंबे समय तक गर्भनिरोधक सुरक्षा चाहती हैं लेकिन रोजाना गोलियां या अन्य अस्थायी साधनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहतीं। परिवार कल्याण कार्यक्रम के तहत यह नई तकनीक स्वास्थ्य विभाग की पहल पर शुरू की जा रही है, जिसमें तकनीकी सहयोग पीएसआई इंडिया द्वारा प्रदान किया जा रहा है। यह तकनीक न केवल महिलाओं को शारीरिक और मानसिक सुरक्षा देती है, बल्कि यह समाज में जनसंख्या नियंत्रण, मातृ-शिशु मृत्यु दर में कमी और महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी एक क्रांतिकारी कदम है।

क्या है सबडर्मल इंप्लांट?

यह एक पतली और छोटी छड़ी के आकार की डिवाइस होती है, जिसे महिला की ऊपरी बांह की त्वचा के नीचे बहुत ही आसान और सुरक्षित प्रक्रिया के तहत लगाया जाता है। इसमें कोई सर्जरी नहीं होती, और यह प्रक्रिया कुछ ही मिनटों में पूरी हो जाती है। इंप्लांट लगने के बाद महिला सामान्य दिनचर्या में कोई बदलाव किए बिना सुरक्षित जीवन जी सकती है। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से इसे कभी भी हटाया जा सकता है।

 

छपरा सदर अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में मिलेगी सुविधाएं

जिला स्वास्थ्य समिति के डीसीएम ब्रजेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि सबडर्मल गर्भनिरोधक इंप्लांट की सुविधा फिलहाल छपरा मेडिकल कॉलेज और सदर अस्पताल में उपलब्ध करायी जायेगी। आनेवाले दिनों में इसे जिले के अन्य स्वास्थ्य केंद्रों पर विस्तार किया जायेगा। राज्य स्तर से सबडर्मल गर्भनिरोधक इंप्लांट आपूर्ति की गयी है। मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक का पटना से प्रशिक्षण दिया जा चुका है।

स्वास्थ्य लाभ के साथ जनसंख्या नियंत्रण में सहायक

सिविल सर्जन डॉ. सागर दुलाल सिन्हा ने बताया कि यह सुविधा न केवल अनचाही गर्भावस्था को रोकने में कारगर है, बल्कि मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। इससे बच्चों के जन्म में उचित अंतर रखा जा सकता है, जिससे महिलाओं को पर्याप्त पोषण और स्वास्थ्य लाभ मिल सकेगा। महिलाओं से अपील की है कि वे इस नई तकनीक की जानकारी लें, प्रशिक्षित डॉक्टर से परामर्श करें और इस सुविधा का लाभ उठाकर स्वस्थ और सुरक्षित मातृत्व सुनिश्चित करें।

क्यों जरूरी है यह सुविधा?

छपरा में मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ सीपी जायसवाल ने कहा कि छोटे-छोटे बच्चों के बीच बहुत कम अंतर, बार-बार गर्भधारण, पोषण की कमी और समय पर गर्भनिरोधक साधनों की अनुपलब्धता – ये सारी समस्याएं महिलाओं और बच्चों दोनों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं। सबडर्मल इंप्लांट इन समस्याओं का सरल, दीर्घकालिक और प्रभावी समाधान है। इससे न केवल गर्भधारण को रोका जा सकता है, बल्कि बच्चों के जन्म में पर्याप्त अंतर भी रखा जा सकता है — जो मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।

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New Delhi, 2 जुलाई (हि.स.)। देश में हाल के दिनों में हार्ट अटैक से अचानक मौत के कई मामले देखने को मिले हैं। इसके बाद ये सवाल उठने लगे कि इसका कहीं कोरोना वैक्सीन से कनेक्शन तो नहीं है। ऐसे में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 वैक्सीन को लेकर चल रही इन तमाम अफवाहों को खारिज करते स्पष्ट किया कि देश में कई एजेंसियों के माध्यम से अचानक अस्पष्टीकृत मौतों के मामले की जांच की गई है। इन अध्ययनों ने निर्णायक रूप से स्थापित किया है कि कोरोना टीकाकरण और देश में अचानक मौतों की रिपोर्ट के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है।

भारत में अचानक 18-45 वर्ष की आयु के वयस्कों में होने लगी है मौतों

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारत में कोरोना टीके सुरक्षित और प्रभावी हैं, जिनमें गंभीर दुष्प्रभावों के बहुत कम मामले सामने आए हैं। मंत्रालय ने कहा कि अचानक हृदय संबंधी मौतें कई तरह के कारकों के कारण हो सकती हैं, जिनमें आनुवंशिकी, जीवनशैली, पहले से मौजूद बीमारियां और कोविड के बाद की जटिलताएं शामिल हैं। आईसीएमआर और एनसीडीसी अचानक अस्पष्टीकृत मौतों के पीछे के कारणों को समझने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। खासकर 18 से 45 वर्ष की आयु के युवाओं में इसका पता लगाने के लिए, अलग-अलग शोध दृष्टिकोणों का उपयोग करके दो पूरक अध्ययन किए गए। एक पिछले डेटा पर आधारित और दूसरा वास्तविक समय की जांच से जुड़ा हुआ है। आईसीएमआर के राष्ट्रीय महामारी विज्ञान संस्थान (एनआईई) द्वारा किए गए पहले अध्ययन का शीर्षक था “भारत में 18-45 वर्ष की आयु के वयस्कों में अचानक होने वाली मौतों से जुड़े कारक – एक बहुकेंद्रित मिलान केस-कंट्रोल अध्ययन।” यह अध्ययन मई से अगस्त 2023 तक 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 47 तृतीयक देखभाल अस्पतालों में किया गया था। इसमें ऐसे व्यक्तियों को शामिल किया गया जो स्वस्थ दिखते थे, लेकिन अक्टूबर 2021 और मार्च 2023 के बीच अचानक उनकी मृत्यु हो गई। निष्कर्षों ने निर्णायक रूप से दिखाया है कि कोविड-19 टीकाकरण से युवा वयस्कों में अचानक होने वाली मौतों का जोखिम नहीं बढ़ता है।

अध्ययन पूरा होने के बाद अंतिम परिणाम साझा किए जाएंगे: स्वास्थ्य मंत्रालय

मंत्रालय ने आगे बताया कि इस संबंध में दूसरा अध्ययन किया गया जिसका शीर्षक “युवाओं में अचानक होने वाली अस्पष्टीकृत मौतों के कारणों का पता लगाना”, वर्तमान में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली द्वारा वित्त पोषण और आईसीएमआर के सहयोग से किया जा रहा है। यह एक संभावित अध्ययन है जिसका उद्देश्य युवा वयस्कों में अचानक होने वाली मौतों के सामान्य कारणों का पता लगाना है। अध्ययन के आंकड़ों के शुरुआती विश्लेषण से संकेत मिलता है कि दिल का दौरा, या मायोकार्डियल इंफार्क्शन (एमआई), इस आयु वर्ग में अचानक मौत का प्रमुख कारण बना हुआ है। महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले वर्षों की तुलना में कारणों के पैटर्न में कोई बड़ा बदलाव नहीं देखा गया है। अधिकांश अस्पष्टीकृत मृत्यु मामलों में, इन मौतों के संभावित कारण के रूप में आनुवंशिक उत्परिवर्तन की पहचान की गई है। अध्ययन पूरा होने के बाद अंतिम परिणाम साझा किए जाएंगे।

 विशेषज्ञों ने दोहराया है कि टीकाकरण को अचानक होने वाली मौतों से जोड़ने वाले बयान झूठे और भ्रामक हैं

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार ये दोनों अध्ययन से पता चलता है कि भारत में युवा वयस्कों में अचानक होने वाली अस्पष्टीकृत मौत का कारण कोविड-19 टीकाकरण से नहीं जुड़ा हुआ है। वैज्ञानिक विशेषज्ञों ने दोहराया है कि कोविड टीकाकरण को अचानक होने वाली मौतों से जोड़ने वाले बयान झूठे और भ्रामक हैं, और वैज्ञानिक आम सहमति से समर्थित नहीं हैं। निर्णायक सबूतों के बिना अटकलें लगाने वाले दावों से टीकों में जनता का भरोसा कम होने का जोखिम है, जिसने महामारी के दौरान लाखों लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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