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लोकसभा में सांसद रुडी ने उठाया मुद्दा, सारण के चोरी गये पानी की खोज

Chhapra: बिहार के हक का पानी भी चोरी किया जा रहा है. पिछले 50 वर्षों में हमारा लगभग 48 लाख क्यूसेक पानी चोरी किया गया है. पर्याप्त पानी नहीं मिलने के कारण सिवान, गोपालगंज और सारण के लगभग 2 करोड़ किसानों के लिए संबंधित क्षेत्र में सिंचाई की गंभीर समस्या बनी हुई है. उक्त बातें कहते हुए लोकसभा में आज शून्यकाल के तहत गंडक परियोजना का मुद्दा उठाते हुए सारण सांसद राजीव प्रताप रुडी ने बिहार के हक की बात की.

उन्होंने सदन को बताया कि गंडक परियोजना के समझौते के तहत बिहार को पूरा पानी नहीं दिया जा रहा है. भारत सरकार की नेपाल सरकार से समझौते के अनुसार भारत को 15665 क्यूसेक पानी मिलना तय हुआ था. इसके तहत उत्तर प्रदेश को लगभग 7500 और बिहार को 8530 क्यूसेक पानी मिलना निर्धारित किया गया था. परन्तु पश्चिम नहर का केवल 2500-3000 क्यूसेक पानी ही बिहार में आता है. बाकी का पानी कहाँ जाता है इसकी जांच होनी चाहिए और हमारा पानी हमे वापस मिलना चाहिए.

श्री रुडी ने बताया कि गंडक परियोजना से निकले नहर का अंतिम सीमा सारण में पहुंचता है, सारण प्रमंडल के तहत पड़ने वाले तीन जिले गोपालगंज, सिवान और सारण में गंडक परियोजना की नहरें हैं पर, इसके बावजूद जहां नवम्बर माह में हमें 6000 क्यूसेक और दिसम्बर में 5600 क्यूसेक पानी मिलना चाहिए था वहीं नहर में एक बूंद पानी भी नही है.

सांसद श्री रुडी ने सदन के माध्यम से सरकार का ध्यान आकृष्ट करते हुए बताया कि सारण जिला भारत सरकार के 154 जिलों की सूची में पानी की कमी वाला जिला (Water Deficient District) घोषित किया गया है. उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के लगभग 112 किलोमीटर और बिहार के 65 किलोमीटर की भूमि को सिंचित करने के उदेश्य से मुख्य पश्चिमी नहर का निर्माण किया गया था. पर, बिहार में इसका उदेश्य पूरा ही नहीं हो पाता है क्योंकि हमारे हिस्से का पानी हमें नहीं मिल पाता है.

श्री रुडी ने मुद्दा उठाते हुए सरकार से तीन मांगे की. उन्होंने सरकार से मांग की कि दो माह के भीतर इस विषय पर जांच प्रतिवेदन उपलब्ध कराया जाय, समझौते के अनुसार सारण, सिवान और गोपालगंज जिला को पानी उपलब्ध कराया जाय और साथ ही गंडक नहर के जीर्णोद्धार एवं विस्तार के लिए भारत सरकार AIPB (त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम) योजना के तहत बिहार सरकार द्वारा भेजी गई वित्तीय प्रस्ताव पर स्वीकृति प्रदान करें. 

सदन के बाहर श्री रुडी ने बताया कि गंडक नदी, गंगा नदी की चौथी सबसे बड़ी सहायक नदी है. गंडक नदी को नेपाल की पहाड़ियों में काली या कृष्णा गंडकी और नेपाल तराई में नारायणी के नाम से भी जाना जाता है. भारतीय ग्रंथों में इसका नारायणी नदी के रूप में उल्लेख मिलता है. सारण और चंपारण जिले में कृषि के लिए आजादी के लगभग 50 वर्ष पूर्व सन 1900 ई॰ से पहले सारण तटबंध व चंपारण और तिरहुत तटबंध का निर्माण अंग्रेजों द्वारा किया गया था. सन 1914 ई॰ में चंपारण जिले (गंडक के पूर्व) में सिंचाई के लिए त्रिवेणी नहर प्रणाली को पूरा किया गया जो कि स्वतंत्रता के बाद भी चलता रहा. हालाँकि, सारण जिले में सिंचाई के लिए जल निकासी नहरों का भी निर्माण किया गया था, लेकिन इस उद्देश्य की पूर्ति करने में वे असफल रहे और बाद में योजना को ब्रिटिश सरकार ने छोड़ दिया. आजादी से पहले, बिहार और बिहार राज्य की प्रांतीय सरकार ने अपने-अपने राज्यों में सिंचाई सुविधा प्रदान करने के लिए गंडक नदी के पार दो अलग-अलग डायवर्सन संरचनाओं का प्रस्ताव रखा था. बाद में, भारत सरकार ने पहल की और नेपाल सरकार से नेपाल में गंडक में एक बैराज के निर्माण के लिए पहल की.

श्री रुडी ने बताया कि यह बिहार और उत्तर प्रदेश की संयुक्त परियोजना है. गंडक नदी पर सूरतपुरा (नेपाल) में हाइड्रो  बिजली  का  उत्पादन किया जाता है. ये बांध बिहार में भैसलोतन (वाल्मीकि नगर) में बनाया गया है. वर्ष 1959 ई॰ के समझौते के आधार पर नेपाल को भी गंडक परियोजना से लाभ मिल रहा है. इस परियोजना के अंतर्गत वाल्मीकि नगर (बिहार) में त्रिवेणी घाट नाम स्थान पर बाँध निर्मित किया गया है. यह बाँध बिहार तथा नेपाल में विस्तृत है. इसलिए इसे त्रिवेणी नहर प्रणाली भी कहते हैं. इस परियोजना के अंतर्गत दो मुख्य नहर का निर्माण किया गया है.

सांसद के इस प्रयास से स्थानीय किसानों में हर्ष की लहर है और उन्हें उम्मीद है कि आने वाले कुछ महीने में उनके नहर में पानी होगा और उनके हिस्से का पानी उनके खेतों में पहुंच सकेगा.

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