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Special Story: बाढ़ पीड़ितों की कहानी, खुला है आसमान तो जमीं पर सिर्फ पानी ही पानी

(संतोष कुमार ‘बंटी’) दोपहर का समय था. उपर आसमान से चिलचिलाती धूप और नीचे पानी. पसीने से लथपथ सभी के चेहरे बस एक टक अपने आशियाने को निहार रहे थे. दूर तक फैली सफेद चादरों के बीच उम्मीद की लौ के बीच इनका आशियाना आत्मबल को बढ़ा रहा था, मानों कह रहा हो, मैं अभी तुम्हारे लिये जीवित हूँ. कभी साफ और कभी गंदगी का अंबार लिये नदी की लहरें आँखमिचौली करते हुए पास आती और चली जाती. बच्चों को तो एक खेलने का खिलौना मिल गया हो जब जी चाहा पानी में हंसी ठिठोली कर खेलने लगे.

अपने मवेशियों के साथ पुल पर शरण लिए बाढ़ पीड़ित

अर्जुन राय का पूरा परिवार सड़क पर लगें पानी के बीच चौकी पर दिन गुजारने की जुगत में है. लेकिन इसी बीच पानी में खेल रहे मोहन ने अचानक पास आकर कहा “माई खाए के दे भूख लागल बा” अपने बेटे की भूख देखकर माँ ने तुरंत रोटिया दे दी. बिना सब्जी और आचार के मोहन ने रोटी खाकर अपनी पेट की आग को ठंडा किया और फ़िर अपने दोस्तों में मग्न हो गया. दोपहर का समय था तो धीरे धीरे फिर सभी लोगों ने रोटिया खाई. 

शहर से महज 100 मीटर की दूरी पर स्थित निचला ईलाका कहने के लिए तो शहर का भाग हो सकता है लेकिन सरकारी दस्तावेजों में यह रिविलगंज प्रखंड क्षेत्र में होने के कारण ग्रामीण क्षेत्र की श्रेणी में है. पंचायत दिलीया रहीमपुर के सैकड़ो परिवार बाढ़ की त्रासदी से जूझ रहे है. घर पानी में जलमग्न हो गया है. जितना हो सका लोगों ने अपने घरों से सामानों को बाहर किया और उसी के सहारें जीवन का निर्वाह हो रहा है. कुछ लोगों के घर पूरी तरह से पानी से तबाह हो चुकें है जिसके कारण वह बेघर हो चुके हैं. वही कुछ के मकान इन पीड़ितों की तरह आपना हौसला बुलंद कर पानी में भी डटे हुए है. 

अर्जुन राय का परिवार भी इन्हीं पीड़ितों में से एक है. घर पानी में और जरुरत के सामानों के साथ परिवार सड़क पर. पुरे दिन खुलें आसमान में दिन तो गुजर रहा है लेकिन रात की विभीषिका आंखों की नींद चुरा लेती है. जिंदगी के आख़िरी कदम पर अर्जुन की माँ घर के नजदीक सड़क के पानी में अपने चौकी पर पोते पोतियों के साथ रहने को विवश है. किसी जुगत से परिवार के पुरे दिन में एक बार ही भोजन बन रहा है. लेकिन आर्थिक तंगी से वह भी अब आस की मोहताज बनने वाली है. पुरे दिन जिन्दगीं के लिए एक दुसरें की जद्दोजहद देखकर दिन तो कट जा रहा है. लेकिन जिन्दगीं की असल जंग तो रात के साथ शुरू होती है. बच्चें अपनी थकान के साथ नींद की आगोश में चले जाते है लेकिन पानी की तेज डरावनी आवाज से बड़ों की नींद उड़ जाती है. ऊपर से सांप और बिच्छू का डर उनकी पलकों को झपकने तक नही देता है. विगत चार दिनों से बाढ़ की इस विभीषिका का दंश झेल रहे हजारों लोगों के जुबान पर बस यही शब्द है….

“दुनिया में आये है तो जीना ही पड़ेगा
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा”

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