Site icon | छपरा टुडे डॉट कॉम | #ChhapraToday.com

#SpecialStory: संघर्ष को सफलता में बदलने के लिए प्रयासरत ‘चाय’ बेचने वाला भागीरथ

SONY DSC

प्रभात किरण हिमांशु/कबीर अहमद ‘दुनिया में हम आएं हैं तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है एक जहर तो पीना ही पड़ेगा’. मदर इंडिया फ़िल्म का यह गीत कई मायनों में जीवन के कठिन दौर को दर्शाता है. बढ़ते भारत के इस दौर में आज भी ऐसे कई उदहारण हैं जो अपने जीवन में संघर्ष करते हुए आगे बढ़ रहे हैं और समाज के लिए एक प्रेरणा बनते जा रहे हैं.

छपरा टुडे #SpecialStory संघर्ष के रास्ते सफलता के मुकाम को पाने की इच्छा रखने वाले युवक ‘भागीरथ’ को समर्पित है. जिसने छोटी उम्र में ही कठिनाइयों से लड़ना सीख लिया है. भागीरथ बी.ए. पार्ट वन का छात्र है जो छपरा के भागवत विद्या पीठ के पास ठेले पर चाय-नाश्ता बेचता है. उसके पिता मीना साह 68 साल के हो चुके हैं जो बुढ़ापे की थकान और कमजोरी के कारण ठेला दूकान चलाने में असमर्थ हैं. जिस कारण परिवार चलाने का एक मात्र जरिया ‘चाय दूकान’ को संभालने की पूरी जिम्मेदारी भागीरथ पर आ चुकी है. भागीरथ अपने छोटे भाई के साथ मिलकर रोज दुकान चलाता है और उसी से हुए कमाई से उसका परिवार चलता है.

‘बचपन से है पढ़ने का इरादा’

परिवार के तंग हालातों के बीच भागीरथ ने अपनी शिक्षा के साथ कभी समझौता नहीं किया. बचपन से ही दूकान चलाने के साथ-साथ उसका ध्यान पढाई में लगा रहा. दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई शहर के गांधी उच्च विद्यालय में करने के बाद 11वीं और 12वीं की पढाई राजेन्द्र कॉलेजिएट से की. फिलहाल भागीरथ भुवनेश्वर सिंह डिग्री कॉलेज में स्नातक प्रथम वर्ष का छात्र है. अपनी व्यस्त दिनचर्या से बामुश्किल समय निकाल कर भागीरथ दूकान पर ही पढाई कर लेता है. 

काम के साथ साथ पढाई करता भागीरथ 

कंप्यूटर भी सीखता है भागीरथ

ख़राब आर्थिक हालात के बावजूद भागीरथ ने शिक्षा के स्तर को और उन्नत करने के उद्देश्य से कम्प्यूटर क्लास भी ज्वाइन किया है. हालांकि भागीरथ इतना नहीं कमाता की कंप्यूटर सीख सके. पर शिक्षा के प्रति उसका समर्पण और जीवन में कुछ अच्छा करने के इरादे ने उसके हर संघर्ष को राह दी है. भागीरथ कंप्यूटर में डिप्लोमा कर रहा है और टाइपिंग भी सीख रहा है.

सरकारी नौकरी पाने की है तमन्ना

एक आम आदमी की नजर जब एक चाय बेचने वाले पर पड़ती है तो उसे देखकर उसके अंदर के उद्देश्यों की परिकल्पना नहीं की जा सकती, पर भागीरथ आज हर चाय बेचने वालों के लिए एक उद्धाहरण प्रस्तुत कर रहा है. उसका उद्देश्य जीवन भर चाय बेचना नहीं बल्कि पढ़-लिख कर सरकारी नौकरी पाना है. भगीरथ SSC और लेखापाल की भी परीक्षा दे चूका है. एक परीक्षा का रिजल्ट अभी नहीं आया है और एक में उसने असफलता पाई है. पर असफलता शब्द भागीरथ को निराश नहीं करती बल्कि उससे प्रेरणा लेकर उसके उत्साह में और भी प्रबलता आ जाती है.

सबका चहेता है भागीरथ

चाय बेच कर पढ़ाई करना संभव तो है. पर आर्थिक तंगी और पारिवारिक बोझ के कारण कोई भी तनावग्रस्त हो सकता है. लेकिन भागीरथ में ऐसा कुछ भी नहीं है. वो हर काम मजे से करता है. हमेशा खुश रहता है. उसे जानने वाले और उसकी दूकान पर चाय पीने वाले लोग उसके व्यवहार से काफी प्रसन्न रहते हैं. उसका मुस्कुराता चेहरा हर दिल अजीज है.

अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ करना चाहता है भागीरथ

भागीरथ ने अबतक के अपने जीवन में काफी कष्ट झेलें हैं. शहर के मासूमगंज स्थित उसका मकान जर्जर है. उसके ऊपर चाय बेचने वाले के नाम की मुहर लग गई है. भागीरथ इन सब चीजों को बदलना चाहता है. सफलता की सीढ़ी चढ़कर वो अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ करना चाहता है. उसने प्रण लिया है कि उसकी आने वाली पीढ़ी का कोई भी सदस्य चाय नहीं बेचेगा. इतनी कम उम्र में ऐसी सोंच प्रशंसनीय है. भागीरथ चाय बेचकर प्रधानमंत्री तो नहीं बनना चाहता पर एक सफल व्यक्ति के रूप में समाज में अपनी पहचान स्थापित करना उसका मुख्य उद्देश्य है.

छपरा टुडे #SpecialStory के माध्यम से भागीरथ जैसे संघर्षशील युवक को हमने पहचान दिलाने का छोटा सा प्रयास किया है.
आज भागीरथ जैसे कई युवक पैसे के आभाव में उन्नत शिक्षा नहीं ले पा रहे हैं और उनके हौसले उड़ान भरने से पहले ही दम तोड़ देते हैं. सरकार और समाज को भागीरथ के इस प्रयास को प्रोत्साहन देना चाहिए. भागीरथ और उस जैसे कई होनहार सुविधाओं के आभाव में चाह कर भी गरीबी से मुक्त नहीं हो पाते.

आज हमारी सरकारी व्यवस्थाओं को और ज्यादा सुगम होने की आवश्यकता है. अगर भागीरथ को थोड़ी बहुत भी सरकारी मदद मिल जाए तो निश्चित तौर पर उसे अपने संघर्षमय जीवन को नई दिशा देने में काफी आसानी होगी.

आइए हम सब मिलकर एक सार्थक पहल करें और भागीरथ को आगे बढ़ाने में उसका साथ दें.

चाय बेचने वाला जब हमारे देश का प्रधानमंत्री बन सकता तो भागीरथ के सपने क्यों नहीं पुरे हो सकते. सारण के इस संघर्षशील युवक के जज्बे को हमारा सलाम.

Exit mobile version