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‘आजाद’ नाम ने दिखाई थी आजादी की राह, पर भटक गए हम हिंदुस्तानी

प्रभात किरण हिमांशु

जिसने आजादी की खुशबू को अपने खून से तरोताजा कर दिया उस महान क्रांति पुरुष का नाम है ‘आजाद’. जिसने आजादी के लिए जीना और आजादी के साथ मरने की प्रेरणा दी उस वीर सपूत का नाम है ‘आजाद’.

चंद्रशेखर ‘आजाद’ ही थे जिसने स्वाधीनता नाम के अर्धसत्य को पूर्णसत्य में बदलने की दिशा में एक अविस्मरणीय क्रांति लायी थी. आज हमारी आजादी के उस महान प्रणेता के जयंती पर आजाद भारत उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है. लेकिन आजाद देश की परिकल्पना को साकार रूप देने वाले वीर शहीद की महान आत्मा को क्या सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित हो पा रही है!

यह एक ऐसा सवाल है जिसने ना सिर्फ चंद्रशेखर ‘आजाद’ बल्कि तमाम स्वाधीनता के सिपाहियों के बलिदान पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. क्या हमने सही मायनों में आजादी की सार्थकता को जीवंत रखा है. आज हमारी सोंच और विचारधारा जिस दिशा में जा रही है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि जिन क्रांतिकारियों ने देश की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत की जड़े खोद दी आज हम उसी आजादी की जड़ें खोदने में लगे हैं.

स्वतंत्र भारत के इतिहास में कोई भी ऐसा दिन नहीं होगा जिस दिन स्वाधीनता और आजादी जैसे शब्दों की गरिमा और उसकी सत्यता का अपमान न हुआ होगा. कभी राजनेता तो कभी अपराधी, कभी चरमपंथी तो कभी निराशावादी शिक्षाविद्, हर वर्ग ने हमें प्राप्त आजादी का उपहास उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

आज आजादी के नाम पर देश में जो खेल चल रहा है उसने हमारे महापुरुषों के बलिदान पर जिस प्रकार कुठाराघात किया है. वो भारत की आजादी का माखौल उड़ाने के लिए पर्याप्त है.

आज हमें यह तय करना होगा कि बलिदानी वीरों के रक्त से सींची गई आजादी की गरिमा को बरकरार रखना है या आजादी के नाम पर विध्वंशक राजनीति का स्वांग रचाकर देश को पुनः उन्ही यातनाओं और असमानताओं के जंजाल में ले जाना है. महज एक निर्णय भारत की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलने के लिए पर्याप्त होगा.

चंद्रशेखर आजाद को सच्ची श्रद्धांजलि तभी अर्पित हो सकेगी जब हम गुलामी के उस कठिन दौर को फिर से वापस नहीं आने देने का संकल्प लेंगे. सबको मिलकर प्रयास करना होगा वही चंद्रशेखर आजाद और उनके बलिदान को हमारी ओर से सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

” जिसने भारत की आजादी के संघर्ष को सींचा अपना लहू देकर, भारत की धरती पर ही पैदा होते हैं ‘आजाद चंद्रशेखर”

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