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सांसद रूडी ने जेपीयू को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की लोकसभा में की मांग

Chhapra: विश्व स्तरीय उच्च शिक्षा की व्यवस्था सारण में हो इसका सार्थक प्रयास करते हुए सारण लोकसभा क्षेत्र कें सांसद सह भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव प्रताप रुडी ने लोकसभा में जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की मांग की. समय-समय पर सदन में जनहित के मुद्दे उठाने वाले सारण लोकसभा क्षेत्र के सांसद सह भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव प्रताप रुडी ने इस बार जन समस्याओं से अलग हटकर राज्य के विश्व स्तरीय उच्च शिक्षा कें संबंध में लोकसभा में मुद्दा उठाया.

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शुक्रवार को लोकसभा में केंद्रीय विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक पेश होने पर विधेयक पर चर्चा के दौरान श्री रुडी मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ॰ रमेश पोखरियाल निशंक से इसकी मांग की. उन्होंने बताया कि सारण लोकनायक की धरती के साथ ही देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद की धरती है. बिहार में तीन केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना का प्रस्ताव है जिसमें एक नालंदा विश्वविद्यालय, दूसरा, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता मिल गई है और तीसरा पटना विश्वविद्यालय प्रस्तावित है.

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उन्होंने केंद्रीय मंत्री श्री निशंक के माध्यम से प्रधानमंत्री से छपरा में स्थापित जयप्रकाश विश्वविद्यालय को राज्य के तीसरे या चौथे केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता देने की मांग की. सदन में विधेयक का समर्थन करने के पश्चात सदन से बाहर पत्रकारों से बातचीत के दौरान सांसद रुडी ने बताया कि उच्च शिक्षा का स्वरूप भारतवर्ष में प्राचीन है. उच्च शिक्षा देनेवाले भारतीय गुरुकुलों की बड़ी विशेषता यह थी कि उनमें प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्चतम शिक्षा शिष्याध्यापक प्रणाली से दी जाती थी. हमारे यहां गुरुकुल से लेकर प्राचीन विश्वविद्यालयों तक में प्राथमिक शिक्षा से लेकर विद्यावाचस्पति और उसके आगे तक की पढ़ाई की व्यवस्था थी. विद्यावाचस्पति को आजकल पीएचडी कहते है. उस समय के हमारे प्रत्येक ऋषि मुनि अलग-अलग विषयों के जानकार थे.

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जैसे कि कणाद ऋषि परमाणु विज्ञान के, महर्षि भारद्धाज वैमानिकी विज्ञान, महर्षि चरक और महर्षि वाग्भट मेडिकल साइंस के शिक्षक थे. नालंदा विश्वविद्यालय के शिक्षक आर्यभट खगोल शास्त्र के जानकार थे. हमारे यहां गुरूकुल के अलावा संस्थागत शिक्षा की व्यवस्था रही है और गुरूकुल भी स्वावलंबी शिक्षण संस्थान के रूप में विकसित रहा है. उनको राजस्व का उत्पादन स्वयं करना पड़ता था.

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