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शहर में छाया कंक्रीट का जंगल, चार दिवारी में खेलने को मजबूर बच्चे

Chhapra (कबीर): समय के साथ शहर में अब बच्चों के खेलने का जगह नही बची है. बच्चे चारदीवारी में बंद रहने को मजबूर हैं. इसका कारण है शहर में खेलने के लिए जगह की कमी. खेल का स्थान नहीं होने से बच्चे गलियों में खेलने को मजबूर हैं. इसके कारण शहर के बच्चों का बचपन मैदान के बजाए घर की चारदीवारी में बीत रहा है.

जिनके घर के आस पास किसी की जमीं खाली है उसमे आपको बच्चे शाम के समय खेलते मिल जायेंगे. जिस ग्राउंड में बच्चे खेला करते थे अब वहां बड़ी बड़ी इमारते खड़ी हो गई है. यूँ कहे को कंक्रीट का जंगल. कहीं न कहीं खेलने की जगह नही होने से बच्चे मोबाइल पर गेम खेलकर काम चलाते है. मन तो जरुर बहल जाता है लेकिन शाररिक विकास और मानसिक विकास उस तरह का नही होता है जितना वगत दशकों के बच्चों का हुआ करता था.

क्रिकेट और फुटबॉल के शौक़ीन बच्चे कहते है जगह नही होने से हमारी प्रतिभा मर रही है. यहीं कारण है कि हमे अपने पसंदीदा खेल से हटाकर दूसरा खेल खेलना पड़ता है. शहर के एक मात्र शिशु पार्क है जिसमे समय के साथ परिवर्तन तो होता है लेकिन खेलने की सुविधा नही बढती.

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