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विश्वकप के दौरान भी युवाओं में नहीं दिख रही पहले जैसी दीवानगी

एक समय था जब क्रिकेट या फुटबॉल विश्वकप शुरू होते ही खेल प्रेमियों में अलग सा उत्साह भर जाता था. भारत में खास कर क्रिकेट का क्रेज सिर चढ़ कर बोलता है. ऐसे में अपने पसंदीदा खिलाड़ियों के पोस्टर दीवालों पर चिपका कर, वर्ल्ड कप में कौन सा मैच कब खेला जाएगा इसकी सारिणी की कतरन को अखबार से काट कर खेल प्रेमी रखते थे. मुहल्ले में भी चर्चा खेल खिलाड़ी और उसके हो चुके या आज होने वाली मैचों की होती थी. फिर एक जगह इकट्ठा होकर विश्व कप के मैचों को देखा करते थे. स्पोर्ट्स के समान बेचने वाले दुकानों में बैट और अन्य खेल सामग्री की खरीद भी बढ़ जाती थी.

समय के साथ यह सब डिजिटल हो गया है. बहुत कुछ बदल गया है. अब दीवालों पर खिलाड़ियों के पोस्टर भी नही दिखते. मैचों के शेड्यूल भी अब मोबाइल में डिजिटली सेव हो जा रहे है. स्कोर भी वही दिख जा रहा है. मैच भी देखे जा सकते है. वही खुद का टीम चुनने वाले कई गेम भी मौजूद है.   

इन सब से आज के दौर के बच्चे और युवा समाज से दूर होते नजर आ रहे है. शायद वैसा माहौल जैसा कि 90 की दशक में हुआ करता था आज नही मिल रहा. व्यक्ति अपनी मोबाइल में व्यस्त है और उसकी दुनिया भी उतने में ही सिमट गई सी प्रतीत होती है. हालांकि आईपीएल के समय कुछ हद तक वैसा माहौल दिखता है. 

नए दौर में बहुत कुछ बदल गया है. अब यह बदलाव खेलों पर भी हावी है. पहले के दौर में लोग अपने पसंदीदा खिलाड़ी को फॉलो करते थे चाहे वह किसी भी देश का क्यों ना हो, पर अब वह पाकिस्तानी है हम उसे फॉलो क्यों करें ऐसी भी मानसिकता बढ़ी है. खेल व्यक्ति को समाज से जोड़ता है पर मोबाइल के युग में मुहल्ले का प्ले ग्राउंड मोबाइल का स्क्रीन बन गया है और पसंदीदा खिलाडी दीवालों के पोस्टरों से अब कंप्यूटर के डेस्कटॉप पर नजर आने लगे है. जिससे माहौल भी बदला है और खेल और खिलाड़ियों के प्रति रुझान भी कम हुआ है.

 

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