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अशांत विश्व को भारत ही मार्ग दिखा सकता है: संघ प्रमुख मोहन भागवत

जम्मू, 15 अक्टूबर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रविवार की सुबह प्रथम शारदीय नवरात्र के अवसर पर जम्मू में काली माता मंदिर (बाहु फोर्ट) में जाकर पूजा अर्चना की और समस्त समाज को नवरात्र की शुभकामनाएं दीं। इसके बाद कठुआ में जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए और कठुआ विभाग के स्वयंसेवक एकत्रीकरण में उपस्थित रहे। कठुआ के स्पोर्ट्स स्टेडियम में आयोजित कठुआ एवं सांबा जिलों के स्वयंसेवक एकत्रीकरण में कठुआ, बसोहली, बिलाबर और सांबा के स्वयंसेवकों ने भाग लिया। एकत्रीकरण में संघ प्रमुख के उद्बोधन सुनने के लिए काफी संख्या में महिलाएं भी उपस्थित थीं।

स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि कठुआ में इतना बड़ा एकत्रीकरण लंबे समय के बाद हो रहा है। इसमें नागरिक भी आए हैं। संघ क्या कर रहा है, क्यों कर रहा है, इसको जानना आवश्यक है। लोग अनुमान लगाते हैं कि संघ वाले क्या कर रहे हैं, उन्हें अंदर आकर देखना चाहिए कि संघ क्या कर रहा है। उन्होंने कहा कि विश्व को जिन बातों की आज आवश्यकता है, वह भारत दुनिया को दे सकता है। मनुष्य सुखी हो, दुनिया की कलह बंद हो, अमन चैन रहे, यही भारत के संस्कार और संस्कृति है। पिछले लंबे समय से सब प्रकार के प्रयोग दुनिया ने देखे हैं, जैसे समाजवादी, पूंजीवादी आदि। सब आजमाने के बाद आखिर फल क्या मिला। दुनिया का दुःख समाप्त या कम नहीं हुआ है। झगड़े थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। पहले यूक्रेन का युद्ध और अब इस्राइल का युद्ध और परिवार भी दिन-ब-दिन टूट रहे हैं। इसके मायने यह हैं कि सुख के लिए साधनों से समस्या उत्पन्न हुई है। अब आर्टिफिशल इंटेलीजेंस का जमाना भी आ गया है। दुनिया असमंजस में है, कोई रास्ता नहीं मिल रहा है। यह रास्ता दुनिया को भारत से ही मिलेगा।

डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि भारत सोने की चिडिया था और लंबे समय तक भारत ऐसा ही रहा था। आखिर भारत के पास कोई प्राचीन पूंजी है, जिससे भारत दुनिया को रास्ता दिखा सकता है। भारत में जी20 के आयोजन से आर्थिक विचार पर मानवीय विचार हावी हुआ है। भारत के पास अपना दृष्टिकोण है जो उसके पूर्वजों से मिला है। उन्होंने कहा कि देश में एकता में ही सारी विविधताएं हैं। सुख को ढूंढना है तो उसे अपने अंदर ढूंढो। सबके सुख में उसको देखना सीखो। सत्य, शुचिता, करुणा के साथ चलते हुए अपनों के लिए जीने से ही सुख मिलता है। हम विकारों के पीछे नहीं भागें, शरीर, मन और बुद्धि से पवित्र होकर रहें। यह बातें हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें बताई हैं।

उन्होंने कहा कि सनातन धर्म के मूल मूल्य-संस्कार आदिकाल से चल रहे हैं। सनातन ही भारत की संस्कृति है। पृथ्वी सूक्त की पहली पंक्ति के आधार पर सृष्टि टिकी हुई है, जिसमें संतुलित व्यवहार और सामूहिक व्यवस्था ही संस्कार की पद्धति है। इस धरती पर हम केवल ट्रस्टी हैं। संपत्ति केवल भगवान की है। हमारे पास संस्कार ही हैं, जिससे हम सबको संपन्न कर सकते हैं और आज इसकी आवश्यकता है। सनातन धर्म का उत्थान ही भारत का उत्थान है। धर्म सबको जोड़ता है, धर्म संतुलन बनाता है, सारी भारतीय परंपराएं धर्म के आधार पर टिकी हुई हैं। देश के लिए हमें लायक बनना है। दुनिया उसको मानती है, जिसमें शक्ति है।

उन्होंने कहा कि भारत मां के सब पुत्र हमारे भाई हैं, जाति पंथ से ऊपर उठकर हम सबको भारत मां की गोद में लोट पोट होना है और सभी को मिलकर भारत को बड़ा बनाना है। शाखा से अनुशासन और अनुशासन से मनुष्य शीलवान बनता है। हमें व्यक्तिगत चरित्र और राष्ट्रीय चरित्र को शुद्ध रखना है। प्रतिदिन शाखा में आकर एक घंटे में अपने आप को स्वयंसेवक के तौर पर तैयार कर सकते हैं। संघ में कोई रिमोट कंट्रोल नहीं है, संघ को अपने स्वयंसेवक पर पूरा विश्वास है। उन्होंने कहा कि शीलवानों की शक्ति हमेशा अच्छे कामों में उपयोग होती है। हम इतने शक्ति संपन्न बनें कि दुनिया के जंजाल में हम पर कोई उंगली न उठा सके। देश का अहित करने वाले, देश तोड़ने वालों का उपाय करना भी आवश्यक है। हमें सबके हित में विचार करना है, नियम अनुशासन का पालन जरूरी है। यह सब सीखने के लिए स्वयंसेवक शाखा में आते हैं। दुनिया को जो चाहिए, वे सामर्थ्य देने के लिए समाज की इच्छा शक्ति का निर्माण करने हेतु संघ को ऐसे लोग तैयार करने हैं। समाज आगे होकर चलने को तैयार है। स्वार्थ और भेदों को भूलकर समाज को हम आगे बढ़ना सिखाएं।

इस अवसर पर क्षेत्र संघचालक सीता राम, प्रांत संघचालक डॉ. गौतम मैंगी और कठुआ विभाग संघचालक विद्या रतन उपस्थित रहे। इसके बाद संघ प्रमुख ने शहर के वार्ड छह में स्थित राधा कृष्ण मंदिर में भी माथा टेका। गांव जखबड़ में भारत मां की प्रतिमा का अनावरण किया और ग्रामीणों के साथ वार्तालाप करते हुए ग्राम विकास, आदर्श व संस्कार युक्त ग्राम बनाने का आग्रह किया।

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