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वैवाहिक रेप को अपराध करार देने के मामले में गुरुवार को भी होगी सुनवाई

नई दिल्ली (Agency): वैवाहिक रेप का अपवाद किसी शादीशुदा महिला की यौन इच्छा की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। वैवाहिक रेप को अपराध करार देने के मामले पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि इससे जुड़े अपवाद संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन है। जस्टिस राजीव शकधर की अध्यक्षता वाली बेंच इस मामले पर 3 जनवरी को भी सुनवाई करेगी।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वकील करुणा नंदी ने कहा कि वैवाहिक रेप का अपवाद यौन संबंध बनाने की किसी शादीशुदा महिला की आनंदपूर्ण हां की क्षमता को छीन लेता है। उन्होंने कहा कि धारा 375 का अपवाद दो किसी शादीशुदा महिला के ना कहने के अधिकार को मान्यता नहीं देता है। ऐसा होना संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन है। ये अपवाद असंवैधानिक है, क्योंकि ये शादी की निजता को व्यक्तिगत निजता से ऊपर मानता है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 जनवरी को कहा था कि वैवाहिक रेप को अपराध करार देने से एक नए अपराध का जन्म होगा। जस्टिस सी हरिशंकर ने ये बातें कही थी। सुनवाई के दौरान बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस राजीव शकधर ने कहा था कि वे फिलहाल अपनी राय नहीं रखना चाह रहे हैं। ये मामला आगे बढ़ना चाहिए। हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार इस पर अपना पक्ष रखे। सुनवाई के दौरान वकील करुणा नंदी ने कहा था कि वैवाहिक अधिकार संभोग के बाद खत्म हो जाते हैं। बाकी बातें इच्छा की होती हैं, क्योंकि कोई भी पत्नी हमेशा यौन संबंध बनाने की सहमति नहीं देती है।

सुनवाई के दौरान 31 जनवरी को करुणा नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप को जब तक अपराध नहीं करार दिया जाएगा, तब तक इसे बढ़ावा मिलता रहेगा। उन्होंने कहा था कि शादी सहमति को नजरअंदाज करने का लाइसेंस नहीं देता है। उन्होंने कहा था कि जब तक वैवाहिक रेप को अपराध करार नहीं दिया जाता, इसे बढ़ावा मिलता ही रहेगा। उन्होंने कहा था कि ये मामला एक शादीशुदा महिला की ओर से बलपूर्वक यौन संबंध बनाने को नहीं करने के नैतिक अधिकार से जुड़ा हुआ है। वैवाहिक रेप किसी पत्नी को ना कहने के अधिकार को मान्यता देने की है।

हाईकोर्ट को 28 जनवरी को बताया गया कि इस मामले में दलील रखने वाले वकीलों को आलोचना झेलनी पड़ रही है। वकील जे साईं दीपक और करुणा नंदी ने ये बातें कहीं। 27 जनवरी को साईं दीपक ने कहा था कि इस मामले को कोर्ट के क्षेत्राधिकार से बाहर रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि मेरा ये साफ मानना है कि जब विधायिका कोई फैसला नहीं ले रही है तब न्यायपालिका को अपनी राय रखनी चाहिए लेकिन जब मामला नीतिगत हो तो कोर्ट को फैसला नहीं करना चाहिए। अगर न्यायपालिका अपनी सीमा को पार करती है तो ये काफी खतरनाक परंपरा साबित होगा। तब कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट की ओर से इसी मसले पर जारी किए गए नोटिस का जिक्र करते हुए कहा था कि कोर्ट को किसी न किसी तरीके से हल निकालना ही होगा। हमारे लिए हर मसला महत्वपूर्ण है।

सुनवाई के दौरान 25 जनवरी को एनजीओ ह्दे (Hridey) ने कहा था कि पति पत्नी के बीच बने यौन संबंध को रेप नहीं करार दिया जा सकता है। इसे ज्यादा से ज्यादा यौन प्रताड़ना कहा जा सकता है। एनजीओ की ओर से पेश वकील आरके कपूर ने ये बातें कही थीं। उन्होंने कहा था कि संसद बेवकूफ नहीं है कि उसने रेप के अपवाद के प्रावधान के तहत पति को छूट दे दी है लेकिन घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति को कोई छूट नहीं दी है।

इसके पहले सुनवाई के दौरान इस मामले के एमिकस क्युरी रेबेका जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को बरकरार रखा जाना संवैधानिक नहीं होगा। जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 304बी और घरेलू हिंसा अधिनियम और अन्य नागरिक उपचार सहित विभिन्न कानूनी प्रावधान धारा 375 के तहत रेप से निपटने के लिए अपर्याप्त है।

केंद्र सरकार ने 24 जनवरी को कहा था कि वैवाहिक रेप को अपराध बनाने में परिवार के मामले के साथ-साथ महिला के सम्मान से भी जुड़ा हुआ है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उसके लिए इस मसले पर तत्काल अपना रुख बताना संभव नहीं है। अगर केंद्र आधे मन से अपना पक्ष रखेगी तो ये नागरिकों के साथ अन्याय होगा। 17 जनवरी को भी केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट से कहा था कि वो वैवाहिक रेप को अपराध करार देने के मामले पर अभी रुख तय नहीं किया है। मेहता ने कोर्ट से कहा था कि ये 2015 का मामला है और अगर कोर्ट केंद्र को समय दे तो वो कोर्ट को बेहतर मदद कर पाएंगे। तब जस्टिस शकधर ने कहा था कि एक बार सुनवाई शुरू हो जाती है तो हम उसे खत्म करना चाहते हैं।

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