(प्रभात किरण हिमांशु) महिलाओं का सम्मान हर देश के लिए गर्व की बात होती है. भारत वर्ष अपनी महिला शक्ति एवं देश के लिए किये गए उनके योगदान हेतु सदैव ऋणी रहेगा.
देश का मजबूत आधार वहां के नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास पर निर्भर करता है. जन्म के बाद व्यक्तित्व निर्माण की सबसे महत्वपूर्ण पाठशाला मातृशक्ति की पाठशाला है. व्यक्तित्व के विकास में मातृ शक्ति का अहम योगदान होता है.
हमारे देश में महिलाएँ हमेशा ही अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत रही हैं. बड़ी ही विडम्बना है कि जो महिलाएं पुरुषों को उस योग्य बनाती है जिससे पुरुष वर्ग सामाज में अपने वर्चस्व को प्रतिस्थापित करता है, आज उन्ही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए पुरुष वर्ग बड़ी-बड़ी बातें करता है.
हर युग में महिलाएं हमारे देश का केंद बिंदु रही हैं. रामायण काल में सीता का सौम्य व्यवहार हो या महाभारत में द्रौपदी का अपने प्रतिष्ठा के लिए लड़ना, दोनों ही महिलाओं ने अपने भीतर की नारी शक्ति के माध्यम से उस कालखंड को काफी प्रभावित किया.
बात अगर भारत के विकास कि हो तो महिलाओं ने सदैव राष्ट्र के विकास के लिए प्रगतिशील कार्य किये हैं. देश की आजादी में रानी लक्ष्मीबाई, समाजसेवा में मदर टेरेसा, संगीत में लता मंगेशकर और राजनीति में इंदिरा गांधी ने जो अमिट छाप छोड़ी है वो नारी शक्ति का जीवंत उद्धाहरण है.
हालाँकि बदलते भारत में महिलाओं के उत्थान के लिए कई सकारात्मक पहल किये गए पर हम सब को ये बात समझनी होगी कि राष्ट्रशक्ति लोगों के व्यक्तित्व के विकास पर आधारित है और उस व्यक्तित्व के निर्माण की सबसे मजबूत कड़ी हैं राष्ट्र की महिलाएं.
नारी के प्रति सम्मान और सदभाव ही भारत को नई दिशा प्रदान करेगा. देश के विकास के लिए महिलाएं हमेशा आतुर रहती हैं. ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ के अवसर पर देश की समस्त नारियों को, हमारे अंदर भावनाओं को प्रस्फुटित करने वाली मातृशक्ति को छपरा टुडे का प्रणाम.