बचपन में इस मेले को देखने की ललक रहती थी।जब जन्माष्टमी का त्योहार आता मेला सज जाया करता था। छपरा शहर के आरपीएफ बैरक में यह मेला हर साल लगता था। जिसके कारण ही इसका नाम आरपीएफ मेला पड़ा।
छपरा शहर में मनोरंजन के साधन कम थे। सोनपुर के विख्यात मेले के बाद गोदना सेमरिया, बनियापुर मेला के साथ आरपीएफ मेला भी लोगों के मनोरंजन का एक माध्यम हुआ करता था। इस मेले में हम सभी पापा और चाचा के साथ बड़े ही चाव से घूमने जाया करते थे। मेला सात दिनों तक चलता था। मेले में बिकने वाले समान उस दौर में अपनी ओर आकर्षित करते थे। स्कूल से लौटते वक्त मेले का एक चक्कर याद आता है। मेले में फायरिंग भला किसे याद नही होगी। 1 रुपये में 8 राउंड और फिर समय और महंगाई के कारण पैसे बढ़ते गए गोलियां कम। शाम में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम को देखने लोग दूर दूर से आते थे। अब समय बदला है।
आधुनिकता और मनोरंजन के तमाम साधन वाले इस दौर में ऐसे मेले अब खो गए है। यूं कहें कि इतिहास के पन्नों में सिमट गए है।
आज कुछ मित्रों ने बातचीत के क्रम में मेले का जिक्र आया। मेले को देखने की बचपन की ललक के कारण मैं हमारी टीम छपरा टुडे के साथ आज वहां पहुंचा पर इस बार मेला तो नही लगा है पर वहां मंदिर में श्रीकृष्ण की झांकी जो उस समय से प्रत्येक साल लगाई जाती है मंदिर में सजी थी।
आज भी छपरा में रहने वाले हर कोई को यह मेला जरूर याद होगा।
याद है तो कुछ बताइए…..