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बेटियों ने रचा इतिहास, देश की बनीं शान

{सुरभित दत्त} जब इतिहास रचा जा रहा हो तो कोई नहीं जानता कि वह इतिहास रच रहा है. रियो ओलंपिक में देश की आन की रक्षा महिला खिलाड़ियों ने की और इतिहास रच दिया है.

देश के लिए मेडल लेकर लाज बचाने वाली महिलाएं उन लोगों के लिए एक सबक है जो बच्चियों को गर्भ में ही मार देते है. हरियाणा राज्य जहाँ पुरुष और महिला जनसंख्या का आंकड़ा सबसे कम है उस राज्य की बेटी ने ओलंपिक में मेडल जीत कर देश का नाम रौशन किया है. बेटी ने समाज के उन रूढ़िवादी विचारधारा के लोगों के मुंह पर तमाचा लगाया है जो लड़कियों को आगे नहीं बढ़ने देना चाहते और उन्हें कोख में ही मार देते है.

इस बार ओलंपिक में भारत की और से 123 सदस्यीय दल भाग ले रहा था. लगातार मेडल के लिए प्रयास जारी थे पर विफलता ही हाथ लगी पर बेटियों ने जो कर दिया उससे लोगों को नयी ऊर्जा मिली है. ओलंपिक में भारत के लिए मेडल का इंतज़ार ख़त्म हुआ. साक्षी मलिक ने कुश्ती में कांस्य पदक अपने नाम कर लोगों में नयी ऊर्जा का संचार करते हुए और पदकों के लिए उम्मीदें जगा दी है. वहीं दूसरी ओर एक और बेटी ने भी रजत पदक जीत लिया है. बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू भले ही फाइनल में हार गयी हो पर देशवासियों के दिलों को उन्होंने जीत लिया है.

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि रियो ओलंपिक में सवा सौ करोड़ लोगों के इस देश की लाज महिला खिलाडियों ने बचा ली है. इस उपलब्धि के साथ ही समाज के तथाकथित लोगों को यह समझने की जरुरत है कि लडकियां किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं है. उन्हें उचित सम्मान और प्रशिक्षण मिले तो अपना और अपने देश का नाम रौशन करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी.

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