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जयंती विशेष: युवाओं के प्रेरणास्रोत नेताजी सुभाषचंद्र बोस

(प्रशांत सिन्हा)
राजनीति के अद्भुत खिलाड़ी, क्रांतिकारी और सब कुछ देश की आज़ादी के लिए दांव पर लगाने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आज जयंती है। सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक शहर में हुआ था।

स्वतंत्रता संग्राम में उन्होने बड़ी भूमिका निभाई थी। जलियावाला बाग़ कांड ने उन्हें इस कदर विचलित कर दिया कि वह आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। नेताजी सुभाष चन्द्र को सबसे पहले नेताजी एडोल्फ हिटलर ने पुकारा था। अंतरराष्ट्रीय ख्याति
प्राप्त नेताओं के समक्ष बैठकर कूटनीति तथा चर्चा करने में सुभाष चन्द्र जैसा भारतीय उन दिनों में कोई नहीं था।

महान देश भक्त और कुशल नेता सुभाष चन्द्र बोस अंग्रेज़ों के लिए सबसे ख़तरनाक व्यक्ति थे। उनकी गतिविधियों ने न सिर्फ़ अंग्रेज़ों के दांत खट्टे कर दिए बल्कि उन्होंने देश को सशक्त क्रांति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर 1943 को अपनी एक अलग फौज खड़ी की जो दुनिया में किसी भी सेना को टक्कर देने की हिम्मत रखती थी जिसका नाम दिया गया “आज़ाद हिन्द फौज “। आज़ाद हिन्द फौज में महिलाओं के लिए झांसी की रानी रेजिमेंट भी बनाई गई थी। इस संगठन के प्रतीक चिन्ह एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था।

कॉलेज के दिनों में एक अंग्रेज़ी शिक्षक के भारतीयों को लेकर आपत्तिजनक बयान पर उन्होंने खासा विरोध किया जिस कारण उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था। नेताजी बचपन से विलक्षण छात्र थे। अंग्रेज़ी में उनके इतने अच्छे नंबर आए थे कि परीक्षक को विवश हो कर यह कहना पड़ा था कि “इतनी अच्छी अंग्रेज़ी तो मैं स्वयं भी नहीं लिख सकता।” आज़ादी के संग्राम में शामिल होने के लिए भारतीय सिविल सेवा की नौकरी ठुकरा दी थी।

उन्होने लंदन से आई सी एस (ICS ) की पास की थी। 1921 से 1941 के बीच नेताजी को भारत में अलग अलग जेलों में 11 बार कैद में रखा गया था। 1943 में नेताजी जब बर्लिन में थे तो उन्होने वहीं “आज़ाद हिन्द रेडियो” और “फ्री इंडिया” की स्थापना की। नेताजी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दो बार अध्यक्ष भी चुना गया था।

सुभाष चन्द्र बोस जी ने गांधी जी के विपरीत हिंसक दृष्टिकोण को अपनाया था। सुभाष चन्द्र बोस स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्रांतिकारी और हिंसक तरीके की वकालत की थी। नेताजी ने ही सबसे पहले गांधी जी को राष्ट्रपिता कह कर संबोधित किया था। बोस क्रांतिकारी विचारधारा रखते थे इसलिए वे कांग्रेस के अहिंसा पूर्ण आन्दोलन में विश्वास नहीं रखते थे। इसलिए उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया था।
“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा”, ” दिल्ली चलो” और “जय हिन्द” जैसे नारों से इनकी आक्रामकता झलकती है।

नेताजी ने आत्मविश्वास, कल्पनाशक्ति और नवजागरण के बलपर युवाओं में राष्ट्रभक्ति व इतिहास की रचना का मंगल शंखनाद किया। मनुष्य इस संसार में एक निश्चित, निहित उद्देश्य की प्राप्ति किसी संदेश को प्रचारित करने के लिए जन्म लेता है। जिसकी जितनी शक्ति, आकांक्षा और क्षमता है वह उसी के अनुरूप अपना कर्मक्षेत्र निर्धारित करता है। नेताजी ने पूर्ण स्वाधीनता को राष्ट्र के युवाओं के सामने एक ” मिशन” के रूप में प्रस्तुत किया।

नेताजी ने युवाओं से आह्वान किया था कि जो इस मिशन में आस्था रखता है वह सच्चा भारतवासी है। आज युवा वर्ग में विचारों की कमी नहीं है। लेकिन इस विचार जगत में क्रांति के लिए एक ऐसे आदर्श को सामने रखना ही होगा जो विद्युत की भांति हमारी शक्ति, आदर्श और कार्य योजना को मूर्त रूप दे सकें।

नेताजी ने युवाओं में स्वाधीनता का अर्थ केवल राष्ट्रीय बंधन से मुक्ति नहीं बल्कि आर्थिक समानता, जाति, भेद, समाजिक अविचार का निराकरण और सांप्रदायिक संकीर्णता त्याग ने का विचार मंत्र भी दिया।

नेताजी ने कई ऐसे प्रेरक बातें कही हैं जिसको सुनकर देशभक्ति और क्रांति का जज्बा उमड़ने लगता है।

“अपनी आजादी की कीमत अपने खून से चुकाना हमारा फ़र्ज़ है जो आजादी हम अपने त्याग और बलिदान से हासिल करेंगे उसे हम अपनी ताकत के बल पर सुरक्षित भी रख सकेंगे।”

“आज हमारी सिर्फ़ एक इच्छा होनी चाहिए। अपनी जान देने की इच्छा ताकि भारत ज़िंदा रहे”।

“भारत के भाग्य को लेकर निराश न हों। धरती पर कोई ऐसी ताकत नहीं है जो भारत को बंधक बनाकर रख सके। भारत आज़ाद होगा और वह भी जल्द”।

“याद रखें कि अन्याय और गलत से समझौता करने से कोई बड़ा अपराध नहीं है “।

” आजादी दी नहीं जाती है इसे छीनना पड़ता है”।

अत्यंत निडरता से सशस्त्र उपायों द्वारा सुभाष चन्द्र बोस ने जिस प्रकार अंग्रेज़ों का मुक़ाबला किया उसके जैसा अन्य कोई उदाहरण नहीं मिलता है। तभी इनका पूरा जीवन आज भी युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

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