जी हाँ, ऐसे तो सारण की धरती धार्मिक ऐतिहासिक, राजनैतिक सामाजिक दृष्टिकोण से गौरवशाली रही है। जहाँ स्वयं भगवान ने छह बार पधार कर इस धरती को पावन बनाते हुए ब्रह्मा जी की प्रयोग भूमि के रूप में इसे प्रतिष्ठित किया है। वही महर्षि दधीचि और राजा मौर्यध्वज़ ने इस धरती के दान परकाष्ठ को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है। बाबू कुवँर सिंह को सारण की धरती ने पूर्ण सहयोग किया। वही अमनौर की बहुरिया जी से यह धरती गौरवान्वित हुई है। यहां जय प्रकाश नारायण, राजेन्द्र प्रसाद, गोरख नाथ, महेंद्र मिश्र, भिखारी ठाकुर की यह धरती एक बार फिर तब प्रतिष्ठित हुई जब भारत रत्न पूर्व प्रधानमन्त्री अटल विहारी वाजपेयी जी की अस्थि को सरयू ने अपनी आंचल में समेटते हुए अपनी लहरों के माध्यम से वहाँ खड़े हजारों सारणवासियों को यह संदेश दिया की आप अपने आँसू को रोकें और हमारे इस बेटे की उक्ति को ध्यान रखें कि मैं फिर आऊंगा भारत को भूख, भय, भ्रष्टाचार से मुक्त कर अखंड भारत भारत बनाने। जब तक यह होता नहीं तब तक हमारा काम अधूरा है। इसे पूर्ण करना होगा।
सारण की धरती एक बार पुनः हुई गौरवान्वित
सारण की धरती और सारणवासी के लिये यह गौरव का क्षण था कि न्यायशास्त्र के प्रणेता महर्षि गौतम की तपःस्थली और धरणी दास की कर्म स्थली में मांझी के श्री राम घाट एक बार पुनः राजनितिक के मर्यादा पुरुषोत्तम अटल जी की अस्थि से गौरवान्वित हुई और इतिहास में सारण का एक अध्याय जुड़ गया। साथ ही अटल जी का जो प्रेम सारण से था वह अंतिम समय तक (मरणो प्रान्त) कायम रहा। लेकिन यह उपलब्धि सारण की तभी बरकरार रहेगी जब सारण के राजनीतिज्ञ अटल जी के विचारों उनके कर्तितवो एवम् व्यक्तित्वों को आत्मसात करें अन्यथा यह गौरव उपलब्धि केवल इतिहास के पन्नों में ही रह जायगी।
(यह लेखक के निजी विचार है)
रामदयाल शर्मा
लेखक विद्वत परिषद के बिहार झारखंड क्षेत्र के संयोजक है.