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पानी का व्यवसाय व अत्यधिक दोहन अनुचित

भूजल के दोहन के चलते उसका गिरता स्तर सरकार के लिए चिंता का विषय है । इसलिए गिरते भूजल स्तर को रोकने के लिए जनता को जागरूक करना आवश्यक है। भूगर्भ जल श्रोतों के अत्याधिक दोहन, शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक स्थानों पर चिंताजनक भुजल मे गिरावट, भुजल श्रोतों मे फ्लोराइड, आर्सेनिक, खारा पानी भारी धातुओं आदि का विषक्ता सीधे जन सामान्य को प्रभावित करती है।

भारत मे प्रति वर्ष औसतन 1130 mm वर्षा होती है। फिर भी पानी की कमी का खतरा मंडरा रहा है। कहीं पानी का व्यवसाय उसका कारण तो नही है। जलीय संसाधनों का जीवन के क्षेत्र जैसे आर्थिक विकास घरेलू जरुरत पीने का पानी , औद्योगिक जरूरतों के लिए , में अहम योगदान है। अतः जल का उपयोग, प्रयोग, प्रबंधन के साथ व्यवसाय को रोकना व ध्यान देना अति आवश्यक कदम हैं।

आज शहरी आबादी का आधिकांश वर्ग यहां तक की कस्बे व गांव तक के संपन्न लोग भी शुद्ध जल के नाम पर या तो बोतल बंद पानी का इस्तेमाल करने लगे हैं या शहरों से लेकर गांव तक मे जल शुद्धिकरण के व्यवसाय खुल गए हैं या फिर अनेक कंपनियों की तरह तरह की जल शुद्धिकरण की मशीनें घर घर लग चुकी है। यह बात और रहा है कि अनेक विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि जल शुद्धिकरण के नाम पर किए जाने वाले जल शोधन प्रसंस्करण में पानी मे प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले खनिज समाप्त हो जाते हैं। पूरे विश्व में जल व्यवसाय शायद सबसे बड़े व्यवसाय का रूप ले चुका है। हमे विभिन्न प्रचार माध्यमों के द्वारा यह समझाने की कोशिश की गई कि आमतौर पर प्रचलित कुएं , हैंड पम्प, व पाइप लाइन से मिलने वाला पेयजल प्रदूषित, जहरीला, एवं हड्डियों को कमज़ोर करता है।

इस तरह बड़े पैमाने पर इस प्रकार का दुष्प्रचार का धीरे धीरे जल विक्रेता कंपनियों ने अपने पैर पसारने शूरू कर दिए। देश की एक बड़ी आबादी आज भी उसी सामान्य व पूर्व प्रचलित जल का सेवन कर रही है जो सदियों व दशकों से करती आ रही है। न कही से जल पीने के कारण मौत की खबर आती है और न किसी बीमारी के फैलने की। सामान्य व पूर्व प्रचलित जल के विरुद्ध दुष्प्रचार ने शुद्ध जल के नाम पर जल व्यवयसाय का बड़ा साम्राज्य जरूर स्थापित कर लिया।

‌गोया शोधित जल को बाजार में उतारने से पूर्व नियमित उपयोग में आने वाले जल की विश्वनीयता के विरुद्ध एक योजनाबद्ध प्रचार का अभियान चला कर उपभोक्ताओं के मस्तिष्क में यह बिठाने का सफल प्रयास किया गया कि सामान्य जल जहरीला व प्रदूषित है, इसे पीने से तरह तरह की बीमारियां लग सकती है और जान भी जा सकती है। इसके बाद विशाल शोधित, बंद बोतल व्यवसाय ने अपने पांव पसारे।

‌मेरे विचार से पृथ्वी पर सजीव तो सजीव बल्कि निर्जीवों का भी अस्तित्व जल के बिना अकल्पनीय होगा। बड़े बड़े शहरों में आर्थिक रूप से संपन्न लोगों को पानी जैसे मूलभूत जरूरत को खरीदकर पूरा करना होता है तो ऐसी जगहों पर गरीबों का क्या ? भारत में जल की समस्या जटिल रूप लेती जा रही है। देश में जनसंख्या वृद्धि के कारण जल का उपयोग बढ़ रहा है परन्तु जल में संचय और रख रखाव की सुविधा का अभाव है।

पानी मानव का एक बुनियादी जरुरत है। पानी का अधिकार हर किसी को बराबर रूप से होना चाहिए। उसके लिए जहां पानी बहुतायत में है उसको संरक्षित करके दूसरी जगहों पर भेजा जा सकता है। अगर हर मानव यह मान ले कि सुरक्षित पानी की पहुंच हर प्राणी का अधिकार है तो वास्तव मे जल को बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा और पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए ज़रूरी है और ये केवल उन लोगों के लिए नहीं किया जा सकता जो इनके लिए भुगतान कर रहे हैं।

यह लेखक के निजी विचार है. 

 

 

 

लेखक

प्रशांत सिन्हा

पर्यावरणविद  व स्वतंत्र टिप्पणीकार है. 

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