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जलते रहें मिट्टी के दिये, ताकि ‘वो’ भी मना सकें दिवाली

{सुरभित दत्त} दीपावली में दियों से घर को रौशन करने की प्राचीन परंपरा है. आधुनिक समय में इन दियों का स्थान रंगबिरंगी इलेक्ट्रिक लाइटों ने ले लिया है. पीढ़ियों से चली आ रही मिट्टी के दिये में दीपक जलाने की परंपरा को लोग बढ़ती महंगाई के कारण छोड़ने को विवश हो रहे है. जिसके कारण दिये के निर्माण से जुड़े लोगों के सामने रोजी रोजगार की समस्या उत्पन्न हो गयी है.

मिट्टी के बर्तन और दिये के निर्माण में जुटे लोग अब अपने बच्चों को इस रोजगार से जोड़ना नहीं चाहते. जबकि पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तन का निर्माण उनका खानदानी रोजगार रहा है. इसका सबसे बड़ा कारण मिट्टी के बर्तन और दियों के प्रति लोगों का रुझान कम होना है. पूजा-पाठ और अन्य कर्मकांडों में ही अब मिटटी के बर्तनों का इस्तेमाल हो रहा है. जिससे इस व्यवसाय में जुटे लोगों के जीवन पर असर पड़ा है.

इस व्यवसाय से जुड़े छपरा शहर के कई कुम्हार बताते है कि पीढ़ियों से उनका परिवार पानी के चुक्कड़, दिये और मिट्टी के अन्य बर्तनों और मूर्तियों का निर्माण करता आ रहा है. इस दौर में जब महंगाई सभी को सता रही है. बढ़ती महंगाई के साथ मिट्टी महँगी हो गयी पर मिट्टी के बर्तन के दाम कुछ खास नहीं बढे. इसके साथ ही मांग भी कम हो गयी. जिसके कारण अब आने वाली पीढ़ी इस व्यवसाय में जाने से कतरा रही है. रोजगार की तलाश में बच्चे बाहर जा रहे है.

इस व्यवसाय पर महंगाई की बोझ तो थी ही रही सही कसर चाइनीज लाइटों ने पूरी कर दी. दिये जलने के लिए जरुरी तेल की कीमत की अपेक्षा बिजली से चलने वाले लाइट सस्ते साबित होते है. जिसके कारण लोग इन्हें पसंद कर रहे है. दिये अब केवल पूजा पाठ में ही इस्तेमाल होने तक सीमित हो गए है.

महंगाई ने इस परंपरा और पारंपरिक व्यवसाय को बड़ा झटका दिया है. हमारी आपसे अपील है कि इस दिवाली चाइनीज लाइटों की जगह आप मिट्टी के दिये से अपनी दिवाली मनाये. आपके इस छोटे से कदम से किसी परिवार को सबल मिलेगा और वह भी अपनी दिवाली उतने ही उत्साह से मना सकेंगे जितनी की आप.

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