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आज भी माँ अपने बच्चों का स्कूल से लौटने का करती है इंतज़ार

(कबीर की रिपोर्ट)
पाँच साल पहले सारण मे ऐसी घटना घटी जिसने प्रदेश ही नही देश और विदेश मे सभी को झकझोर कर रख दिया. घर से माँ ने अपने बच्चों को अपनी हाथों से सजा-संवार के स्कूल के लिए भेजा था वो क्या जानती थी मेरा लाल कभी लौट कर नही आएगा. सारण के लिए ये काला दिन साबित हुआ जिसने 23 मासूमों को खो दिया. ज़हरीली खिचड़ी ने मासूमों के ज़िंदगी ने जहर घोल दिया.

पाँच साल बाद भी जख्म अभी भरे नही है. आज भी माँ अपने बच्चों का स्कूल से लौटने का इंतज़ार करती है. आज भी उन 23 बच्चों कि सदाएं गहरी नींद मे जगा देती है. अभी भी 16 जुलाई 2013 की चितकार आपको गाँव मे पहुँचते ही सुनाई देती है. आईए आपको उस घटना से रु-ब-रु कराते है.

सारण के धर्मासती गंडामन गाँव के सरकार स्कूल मे मिड डे मिल योजना के तहत दोपहर का भोजन खाने के बाद बच्चे बीमार पड़ने लगे. बच्चों की हालत देखते हुये छपरा सदर अस्पताल और पटना पीएमसीएच रेफर किया गया. जैसे जैसे समय बीतता गया एक-एक करके 23 बच्चे काल के गाल मे समाते गए. छपरा से लेकर पटना तक मातम छा गया.

इतनी बड़ी घटना को देश के बड़े अखबारों ने अपने पहले पृष्ट पर तो जगह दी ही, विदेशों के अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया.

तीन साल बाद मिड डे मील मामले में छपरा सिविल कोर्ट ने 2016 मे सज़ा का एलान किया. अदालत ने धर्मासती गंडामन गांव के सरकारी स्कूल की तत्कालीन हेडमास्टर मीना कुमारी को 17 वर्ष की सज़ा सुनाई. उनपर तीन लाख 25 हजार का जुर्माना भी लगाया गया. एक धारा में दस साल की सजा सुनायी गयी. धारा 304 में दस साल की सजा और ढाई लाख रुपया जुर्माना. धारा 308 में सात साल की सजा और सवा लाख रुपया जुर्माने की सजा मिली.

बहरहाल घटना के बाद से सरकार ने गांव को सुविधा मुहैया कराई है. विद्यालय का भी नया भवन बना है और कई अन्य विकास के कार्य भी हुए है. इस सब के बीच जिन्होंने अपने घरों के चिराग को खो दिया उन्हें वे याद कर विकास के बीच अपने बच्चे को आज भी तलाशते है. विकास तो हुआ पर बच्चे लौट के फिर नही आ सकते.

बताते चले कि विश्व की सबसे बड़ी योजना जिसमें बच्चों को दोपहर का भोजन उपलब्ध कराया जाता है, उसे खाकर बच्चों की मौत से सभी स्तब्ध थे. आज भी उस दिन को याद कर लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते है.

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