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गणतंत्र दिवस पर विशेष: “अपना कर्त्तव्य करें तभी देश बनेगा”

(प्रशांत सिन्हा)

यही वह 26 जनवरी का गौरवशाली ऐतिहासिक दिन है जब भारत ने आज़ादी के लगभग 2 साल 11 महीने 18 दिनों के बाद इसी दिन हमारी संसद में भारतीय संविधान को पास किया था। ख़ुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करने के साथ ही भारत के लोगों द्वारा 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। लेकिन आज भी हमारा गणतंत्र कितनी कंटीली झाड़ियों में फंसा प्रतीत होता है। अनायास ही हमारा ध्यान गणतंत्र
की स्थापना से लेकर ” क्या पाया , क्या खोया ” के लेखा जोखा की तरफ खींचने लगता है। कर्तव्य पालन के प्रति सतत् जागरूकता से ही हम अपने अधिकारों को निरापद रखने वाले गणतंत्र का पर्व सार्थक रूप मे मना सकेंगे। तभी लोकतन्त्र और संविधान को बचाए रखने का हमारा संकल्प साकार होगा।

प्रायः कुछ लोगों से सुना जाता है कि स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी हमे देश से कुछ नहीं मिला जबकि यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में नागरिकों को बहुत सुविधाएं मिलती हैं। लेकिन क्या लोग यह सोचते हैं कि उन्होने देश को क्या दिया ? यदि सभी लोग याचना छोड़ कर देश के प्रति अपने कर्तव्य निभाएं तो देश की उन्नति को कोई नहीं रोक सकता।

संविधान के रचियता दूरदृष्टी संपन्न थे। संविधान के पाठ में मूल अधिकारों में समावेश तो किया गया किन्तु नागरिकों के मूल कर्तव्य भी होने चाहिए, इसपर या तो किसी का ध्यान नहीं गया था या इसे आवश्यक नहीं समझा गया था। कदाचित उन्होंने सोचा था कि भारत के लोग और उन्हीं में से चुने गए उनके नेता भारतीय तो बने रहेंगे पर यह अवधारणा भ्रांत निकली। लगभग ढाई दशक के उपरांत 42वें संशोधन के माध्यम से सविधान में भाग 4 (क) , अनुच्छेद 51 क का समावेश करना ही पड़ा जिसमें स्वतंत्र भारत के नागरिकों के मूल कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 51क का स्वतंत्र देश के प्रत्येक नागरिक
की आचार संहिता है।

आमतौर हम देश से अपेक्षाएं रखते हैं लेकिन खुद से कोई अपेक्षा नहीं रखते हैं ये जानते हुए भी हमसे ही बनता है देश। हम देश के लिए कुछ नही करते उसकी आर्थिक, सांस्कृतिक, समृद्धि में योगदान नही करते और देश से अपेक्षा करते हैं कि वह हमारे लिए करे। हमसे ही देश बनता है। हमारे कार्यों से देश प्रगति के रास्ते पर जाएगा।

गणतंत्र दिवस के समय जरूर हमलोगों में देश के प्रति देश भक्ति उजागर होने लगती है। रेडियो, टेलीविजन में देश
भक्ति के गाने हमें कुछ समय के लिए अपने कर्तव्यों के लिए प्रोत्साहित करते हैं। परन्तु कुछ समय के बाद हमारा मन भी और चीज़ों में उलझ जाता है। दरअसल व्यक्ति पांच स्तरों पर जीता है। आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा अद्ध्यात्मिक स्तरों पर। हर स्तर मे देश की एक प्रमुख भूमिका होती है। हम सब पर देश का उधार है। देश ने हमारी झोली में इतना कुछ दिया है फिर भी हम देश के सामने अपनी मांग ही रखते हैं। एक कहावत है जैसा आप सोचते हैं वैसा ही आप हो जाते हैं। आपकी सोच ही आपको बनाती हैं। हमें अपनी सोच को व्यापक बनाना होगा। छोटा सोचेंगे तो छोटा ही रह जाएंगे। हमारे मन में देने का भाव होना चाहिए न कि सिर्फ़ लेने का। देश को जब हम देते हैं उसी का प्रतिफल देश हमें देता है। सिर्फ़ कर देना देश सेवा नहीं होता।

आजादी की आधी से अधिक सदी बीतने के बाद भी हमारे कदम लड़खड़ा रहे हैं। सत्यमेव जयते से हमने किनारा कर लिया है। अच्छाई का स्थान बुराई ने ले लिया है और नैतिकता पर अनैतिकता प्रतिस्थापित हो गई है। ईमानदारी केवल कागजों में सिमट गई है और भ्रष्टाचार से पूरा

समाज अच्छादित हो गया है। देश में भ्रष्टाचार, अराजकता, महंगाई, असहिष्णुता , बेरोजगारी और असमानता बढ़ता जा रहा है।
देशवासियों को जागने का समय आ गया है। भ्रष्टाचार और समाज को गलत राह पर ले जाने वाले लोगों को उनके गलत कार्यों की सजा देने के लिए आमजन को जागरूक होना जरूरी है। भावी पीढ़ी को संवारने के लिए पहले खुद को सुधारना होगा। गणतंत्र की साथर्कता तभी होगी जब हरेक व्यक्ति को काम और भरपेट भोजन मिले।

संविधान में जो हमारे कर्तव्य तय किए गए हैं उसका हम सही ढंग से पालन करें तभी हमारा देश महान बनेगा। संविधान का निर्माण इसलिए किया गया जिससे कानून व्यवस्था बनी रहे। सभी स्वतंत्र भारत में अमन और चैन से रह सके। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने संविधान में दिए गए नियमों का पालन करें। सबसे बड़ी बात अपने मौलिक अधिकारों को तो पहचाने ही साथ ही अपने मौलिक कर्तव्यों का भी निर्वहन करें।

देश भक्ति का भाव किसी अवसर का मोहताज नहीं होता। यह हमारे भीतर का स्थाई भाव होना चाहिए। देश भक्ति का मतलब देश से अपेक्षा नहीं , बल्कि देश के लिए कुछ करने की प्रवृति पैदा होना है।

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