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छपरा के इन स्थानों पर अपने आप बंद हो जाती है नाक

छपरा: छपरा शहर को अब नगर निगम का दर्जा मिलने जा रहा है. एक वर्ष में सफाई के नाम पर करोडो रूपये खर्च होने के बावजूद भी शहर की सफाई व्यवस्था भगवान के भरोसे ही रहती है. यानि भगवान ने बारिश कर दी तो सड़क पर पैर भी नही रखा जा सकता है. वही अगर धुप हो गयी तो लोगों के वारे न्यारे हो गयें. कुछ काम धाम हो जाता हैं.

इसके बावजूद शहर में ऐसे कई स्थान है जो सदाबहार है या यू कहे कि जाड़ा, गर्मी, बरसात सब दिन एक सामान. जहां से गुजरने के बाद अचानक नाक बंद हो जाती हैं. ऐसे तो शहर में दर्जनों स्थान है जहाँ पहुचने के बाद अपने आप नाक के उपर रुमाल और पैंट को उपर करना पड़ता है.

शहर के पूर्व मौना पकड़ी के समीप गली में वर्ष भर सड़कों पर जल का जमाव रहता है. करीब 50 हजार की आबादी प्रतिदिन नाक पर रुमाल और पैन्ट को उपर चढ़ा कर इस रास्ते से होकर गुजरती हैं.

कमोबेश यही स्थिति सलेमपुर चौक के समीप की है जहाँ बीच सड़क पर कचड़ा फेका जाता हैं. आस पास के दुकानदार की हालत ऐसी है कि ग्राहक दुकान पर आना नही चाहते है. शहर की हृदयस्थली मौना साढा रोड का भी यही हाल है. एक तो खनुआ नाला उपर से सड़क पर कचड़ा साथ साथ पुरे दिन वाहनों की भगा भागी से कचड़ा का सड़क पर आना अमूमन लोगो के लिए नई परेशानी खड़ा कर देता हैं. यहाँ से गुजरने वाले लोग नाक पर रुमाल जरुर रखते है.

सदर अस्पताल के चिराई घर के समीप की हालत तो जगजाहिर है. अस्पताल चौक, काशी बाजार, शिव बाजार की तरफ से आने वाले लोगो की हालत बेहद दर्द भरी है. इस रास्ते से पैदल गुजरना यानि बिमारी को न्योता देने के समान हैं.

कुछ यही हाल राजेंद्र कालेज के पास का है जहाँ नाला का पानी सड़कों पर लगा रहता है. काशी बाजार मंदिर से लेकर शाह बनवारी लाल पोखरा तक किसी तरह गिरते पड़ते लोग पहुँचते है. सबसे ज्यादा परेशानी छात्रो को होती है. पैदल है तो पानी में चलने का आदत या साइकिल और मोटर साइकिल से होने पर पानी में गिरने का डर. दोनों ही स्थितियों में नाले के पानी में चलना ही पड़ता है.

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