Chhapra: वैसे तो हमारे हिन्दू धर्म में अनेकों व्रत रखे जाते हैं. वट सावित्री व्रत पति को केंद्र में रखकर किया जाता हैं. हमारे भारतीय नारियों का विश्वास हैं कि यह व्रत करने से पति कि आयु वट वृक्ष की ही भांति दीर्घायु होगी.
इस व्रत में व्रती महिला अपने सोलह-शृंगार करके तथा सारे शृंगार सामाग्री को लेकर वट वृक्ष के नीचे चढ़ाती हैं तथा वृक्ष के तने में लाल या पीले धागे से 108 बार वृक्ष का परिकर्मा करते हुए धागे को वृक्ष में लपेटती हैं. मान्यता हैं कि उस दिन वृक्ष पर स्वयं ब्रह्मा जी विराजमान रहते हैं. उन्ही को धागे के रूप में जनेऊ भेंट किया जाता हैं.
पंडितजी के कथानुसार सावित्री के पति सत्यवान का जीवन काल पूरा हो गया था और यमराज उसे लेकर यमलोक चल भी दिये थे. लेकिन सावित्री ने जेठ की अमावस्या को वट वृक्ष की पूजा अर्चना की थी. उस व्रत के प्रभाव से यमराज सावित्री को अपने साथ यमलोक अपने साथ जाने से रोक नही पाया. बहुत हठ करने के बाद भी सावित्री मृत्यु लोक नही लौटी तब यमराज ने वरदान मांगने को कहा. वरदान में सावित्री ने पुत्ररत्न की प्राप्ति की इच्छा जतायी तो यमराज ने उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति का वरदान दे दिया और अपने ही वचन में फंस गया. उसके बाद भी नही लौटी तो यमराज ने गुस्से में आकर उसे श्राप देने को कहा. इस बात पर सावित्री ने यमराज से कही कि यह तुम्हारा कैसा वरदान और श्राप हैं कि पति का प्राण साथ ले जा रहे हो और मुझे पुत्ररत्न की प्राप्ति का वरदान दे रहे हो यह कैसे संभव हैं.