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लॉक डाउन में शिक्षकों के समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न

Chhapra: आपदा की इस घड़ी में जनता जहां कोरोना वायरस की मार झेल रही है, वहीं जिले के 12,000 से अधिक शिक्षक आर्थिक तंगी की मार झेल रहे हैं. बीती रात प्रधानमंत्री द्वारा 21 दिनों के लॉक डाउन की घोषणा के बाद आम जनता अपने परिवार के सदस्यों के भरण पोषण को लेकर खानपान की सामानों की खरीदारी करने में जुटे हैं, वही राष्ट्र निर्माता शिक्षक घर में बैठकर परिवार के सदस्यों का चेहरा देखकर चिंतित है.

विपदा की इस घड़ी में वह अपने परिवार का भरण पोषण कैसे करें यह कोरोना वायरस से भी बड़ी समस्या उनके समक्ष खड़ी हो गयी है. स्थिति यह है कि 2 माह से बिना वेतन जीवन गुजार रहे शिक्षकों एवं उनके परिवार पर अब भुखमरी का संकट मडराने लगा है.

शिक्षकों की इस आर्थिक तंगी पर प्रतिक्रिया देते हुए शिक्षक नेता समरेंद्र बहादुर सिंह ने कहा कि देश में विपदा आई है, जिले के 12000 शिक्षक इस करोना वायरस को भगाने के लिए सरकार के साथ खड़े हैं और आगे भी खड़े रहेंगे. लेकिन पुरानी कहावत है ”भूखे पेट भजन न होत गोपाला”.

जिले सहित बिहार के चार लाख से अधिक शिक्षक 17 फरवरी से समान काम समान वेतन की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं, लेकिन सरकार शिक्षकों से वार्ता तक नहीं कर रही है. देश के प्रधानमंत्री ने 21 दिनों के लॉक डाउन की घोषणा की है, जिसका शिक्षक अक्षरशः पालन कर रहे हैं. प्रधानमंत्री ने राज्यों से यह भी कहा था कि सभी कर्मचारियों को वेतन दिया जाए, जिससे कि विपदा की इस घड़ी में वह लॉक डाउन के दौरान अपने घरों में रह सकें. लेकिन राज्य के मुखिया को यह बात सुनाई नहीं देता. मुख्यमंत्री ने वेतन देने की तो दूर किए गए कार्य अवधि के वेतन भुगतान पर भी रोक लगा दी है. जिससे शिक्षक परिवार भुखमरी के कगार पर है, 3 माह होने जा रहे है.

शिक्षकों के वेतन पर शिक्षक का ही नहीं बल्कि उसका पूरा परिवार आश्रित होता हैं. 21 दिनों के लंबे लॉक डाउन के समय में शिक्षक अपने परिवार का पालन कैसे करेंगे यह सबसे बड़ी चिंता है.

कोरोना वायरस को लेकर राज्य में आई इस आपदा के दौरान अग्रिम पेंशन, अग्रिम खाद्यान्न एवं अन्य सुविधाएं दी जा रही है और शिक्षक अपने कार्य अवधि के वेतन को भी तरस रहे हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार अपनी हठधर्मिता छोड़ें, राज्य के चार लाख शिक्षक और उनके परिवार को ध्यान में रखकर शिक्षकों से वार्ता करें. शिक्षक विपदा के समय सरकार के साथ हैं. जब भी संकट आया है चिकित्सक और शिक्षकों ने ही मोर्चा संभाल कर राज्य को आपदाओं से निजात दिलाई है. अभी समय है मुख्यमंत्री से हमारी मांग है कि वह शिक्षकों से वार्ता करें, शिक्षकों को वेतन देने का आदेश निर्गत करें. जिससे कि उनके परिवार आश्रितों को इस संकट की घड़ी में भोजन मिल सकें.

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