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स्नातकोत्तर के पाठ्यक्रम को लेकर जेपीयू के कुलसचिव से मिला एसएफआई का प्रतिनिधिमंडल

Chhapra: एसएफआई जेपीयू का एक प्रतिनिधिमंडल राज अध्यक्ष शैलेंद्र कुमार यादव के नेतृत्व में जेपीयु के कुलसचिव डॉ रवि प्रकाश बबलू से मिलकर यह मांग किया कि विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के स्नातकोत्तर के पाठ्यक्रम में पहले जेपी, लोहिया, एमएन रॉय, राम मोहन राय, दयानंद सरस्वती, तिलक आदि को पढ़ाया जाता था। लेकिन वर्तमान में लागू पाठ्यक्रम से उपयुक्त सभी राजनीतिक विचारों के विचार को हटा दिया गया है जो बेहद दुखद एवं दुर्भाग्यपूर्ण है। इसे तुरंत पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि संपूर्ण क्रांति के नायक बाबू जयप्रकाश नारायण की जन्मस्थली और कर्मस्थली सारण रहा है। तथा इन्हीं के नाम पर विश्वविद्यालय का नामकरण हुआ है ।आलम यह है कि अब विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के स्नातकोत्तर के पाठ्यक्रम से उनके ही राजनीतिक सामाजिक विचारों को गायब कर दिया गया है। ज्ञातव्य है कि पूर्व के स्नातकोत्तर के पाठ्यक्रम में पेपर-1 (भारतीय राजनीतिक विचार )के तहत जेपी की (भागीदारी की राजनीति और संपूर्ण क्रांति) लोहिया के( समाजवाद )एमएन रॉय के( साम्यवाद और कट्टरपंथी मानववाद की आलोचना) तिलक का( भारतीय राष्ट्रवाद) राममोहन राय एवं दयानंद सरस्वती के (भारतीय पुनर्जागरण )आदि के राजनीतिक सामाजिक विचारों को पढ़ाया जाता था। लेकिन नए पाठ्यक्रम के अनुसार पेपर 8 के तहत (भारतीय राजनीतिक विचार )के तहत हम सिर्फ विवेकानंद गांधी सुभाष नेहरू और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ही राजनीतिक सामाजिक विचारों से ही अवगत हो पायेंगे । साथ ही इसी पेपर के अंदर मनु स्मृति को भी पढ़ाया जाएगा। प्रतिनिधि मंडल के नेतृत्वकर्ता एसएफआई के राज्य अध्यक्ष शैलेंद्र यादव ने विश्वविद्यालय के कुलसचिव से मिलकर स्मार पत्र सौंपने के बाद पत्रकारों से वार्ता के दौरान कहा कि विश्वविद्यालय में घटित इस घटना से नीतीश सरकार एवं विश्वविद्यालय प्रशासन की दिमागी दिवालियापन का पता चलता है ।यह भी स्पष्ट हो जा रहा है कि इस सरकार में बैठी मनुवादी विचारधारा धीरे धीरे अपना पैर भी पसार रही है। जयप्रकाश नारायण न केवल 1974-77 के सम्पूर्ण क्रांति के नायक थे, बल्कि उनकी विचारधारा मनुवाद से मेल भी नहीं खाती थी।जे पी की विचारधारात्मक पृष्ठभूमि समाजवादी रहा है, यह जग जाहिर है।यही उनके गले की हड्डी बन गयी है।यही नहीं, राममनोहर लोहिया, एम एन राय और महान स्वतन्त्रता सेनानी तथा समाज सुधारक लोकमान्य बालगंगाधर तिलक को भी सिलेबस से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। सिलेबस में इनकी जगह महिमामंडित किया जायेगा, आर एस एस के अपने समय के प्रचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय को।
मेरा मानना है कि विरोध का मुख्य स्वर, जे पी, लोहिया, तिलक और एम एन राय को सिलेबस से बाहर करने पर अवश्य ही होना चाहिये, क्योंकि उपरोक्त इतिहास पुरुष सामाजिक समरसता, कौमी एकजुटता और प्रगतिशीलता के प्रबल पैरोकार थे।क्या आर एस एस उपरोक्त बातों में विश्वास करता है ? फिर पी डी उपाध्याय विकल्प कैसै ? यह जलता हुआ सवाल है आज, न केवल छात्रों के समक्ष , बल्कि समाज के बुद्धिजीवियों और प्रगतिशील राजनैतिक दलों के सामने भी।देवेन्द्र कुमार ने कहा कि क्या सारण प्रमण्डल के छात्र जेपी लोहीया एमएन राय समेत सभी समाजवादी विचारों से मरहुम रहेगे ?अगर ऐसा होगा तो और जल्द ही विश्वविद्यालय प्रशासन पाठ्यक्रम मे शामिल नही करता है तो बहुत जल्द ही जंग जू आंदोलन का अगाज किया जायेगा ।जिसकी सारी जबाबदेही विवि प्रशास की होगी ।वर्ता के दौरान मांग पर अपनी सहमति जताते हुए कुलसचिव ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन देते हुए कहा कि जल्द ही पाठ्यक्रम मे शामिल करने हेतु पहल किया जायेगा।

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