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जुमा से शुरू हुआ रमजान, मस्जिदों में उमड़ी भीड़

Chhapra: रमजान के पहले दिन ही जुमा होने से रोजेदारों में खास उमंग देखा गया. शहर समेत ग्रामीण इलाकों में रोजेदारों ने नमाज-ए-जुमा अदा किया और देश के अमन और तरक्की की दुआएं की. नमाज से पहले ओलेमा-ए-कराम और मस्जिदों के इमाम ने रमजान की फजीलत और अहमियत को बयान करते हुए मुसलमानों से इस अहम इबादत को अदा करने की अपील की.

हल्की गर्मी और धूप में बहुत गर्मी नहीं होने से रोजेदारों को थोड़ी राहत है. जुमा की आजान होने से पूर्व ही लोगों की भीड़ मस्जिद की ओर जाने लगी. मस्जिद में भी भीड़ के मद्देनजर खास इंतजाम किये गये थे. शहर के मौला मसजिद के इमाम व खतीब हाफिज जाकिर हुसैन ने कहा कि हज़रत सलमान फारसी कहते हैं कि शाबान ( शब-ए-बारात) की आखरी तिथि को पैगंबर मुहम्मद ने संबोधित करते हुए कहा कि तुम पर एक बड़ी शानदार और बरकत वाला महीना सायाफगन होने वाला है. यह एक महीना हजार महीने से बेहतर है. इस महीने में अल्लाह ने रोजा (उपवास) को फर्ज करार दिया है.

उन्होंने कहा कि रोजा का मकसद केवल भूखे प्यासे रहना नहीं है बल्कि इंसान को मुत्तकी, विनम्र और नेक बनाना है. रमजान गरीबों के मजबूरी और उनके भूख-प्यास का एहसास कराता है. ताकि सक्षम लोग उनकी मदद करें. जामा मस्जिद बड़ा तेलपा के इमाम मौलाना रज्जबुल क़ादरी ने संबोधित करते हुए कहा कि रमजान सभी महीनों में बेहतर महीना है. यह नेक लोगों के लिए खुशी है. तरावीह और नवाफिल की ज्यादा से ज़्यादा एहतमाम करें और ज्यादा से ज्यादा दुआएं मांगें.

मार्कजी जामा मस्जिद अहले हदीस मस्जिद के इमाम मौलाना अब्दुल कादिर ने बताया कि साल के ग्यारह महीने में खाने, पीने, सोने आदि से लेकर इबादत और इंद्रियों पर काबू पाने के कार्यों में जो बेतरतीबी आ जाती है. रमजान उन्हें मामूल पर ला देता है. और इंसान पुनः अगले साल के लिए संयमित जीवन जीने के लिए तैयार हो जाता है. उन्होंने बताया कि रोजा के दौरान इबादत का सत्तर गुना ज्यादा सवाब मिलता है. लिहाज ज्यादा से ज्याद कुरआन की तिलावत, नमाज का एहतमाम, गरीबों की मदद आदि की कोशिश करनी चाहिए. शिया मसजिद के इमाम-ए-जुमा मौलाना सैयद मासूम रजा ने बताया कि इसी महीने में अल्लाह ने अपनी मुकद्दस किताब कुरआन मजीद को नाजिल किया इस लिए भी इसका विशेष महत्व है. यह महीना नेकी हासिल करने, गुनाह से निजात पाने, बेहतर इंसान बनने का महीना है. काजी-ए-शहर मौलाना वलीउल्लाह कादरी ने बताया कि जकात और सदका फित्र को सही लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करें. इसके हकदार को अदा करें वरना आप का जकात और सदका ए फितर अदा नही होगा. सदका फितर सभी को अदा करना है. चाहे वह एक दिन का बच्चा ही क्यों न हो. इस रकम से गरीबों की मदद की जाती है. इसके अतिरिक्त चल-अचल सम्पत्ति का ढ़ाई प्रतिशत जकात (टैक्स) अलग से अदा करना है.

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