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कोई कचड़ा ना फेंके इसके लिए देवी देवताओं की टाइल्स लगा देना बन गया है ट्रेंड !

कोई कचड़ा ना फेंके इसके लिए देवी देवताओं की टाइल्स लगा देना बन गया है ट्रेंड !

Chhapra: आमतौर पर शहर की सड़कों और खासकर गलियों में इधर उधर कचड़े का अंबार आपको जरूर दिख जायेगा. निश्चित तौर पर यह कचड़े का अंबार ठीक किसी के दरवाजे के सामने, किसी के दुकान के आगे, किसी चौराहे के बीचों बीच या फिर किसी गली के किनारे दिखना आम बात है. हालांकि कुछ लोग वैसे भी है जिन्होंने बंद घर देखा नही कि वहा कचड़ा डंप करना शुरू कर दिया. कुल मिलाकर लोग अपने घर को साफ और दूसरे के दरवाजे पर मौका देखकर अपना कचड़ा फेंक चलते बनते है. जिसके कारण मुहल्ले के लोगों और घरवालों को मजबूरन देवी देवताओं के टाइल्स का सहारा लेना पड़ता है. यह उपाय कारगर भी होता है.

नगर निगम द्वारा शहर के किसी भी वार्ड में कही भी कूड़ा कचड़ा फेंकने का स्थान निर्धारित नहीं है लिहाजा कही भी अपने घर से निकाल कर लोग कचड़ा फेंकते है और चलते बनते है. दिक्कत उनको होती है जिनके दरवाजे, घरों के मुहाने, गली मोहल्लों पर यह कचड़े का अंबार लगता है. शहर के लाह बाजार में भी अचानक से बीच सड़क पर लोगों ने कचड़ा फेंकना शुरू कर दिया. जिसको देखते हुए लोगों ने वहां कूड़ा कचड़ा ना फेंकने का बोर्ड लगा दिया जब इतने से भी बात नही बनी तो तो दो देवी देवताओं की टाइल्स लगा दी. भले ही स्थानीय लोगों के लिए यह कारगर और असरदार उपाय साबित हुआ लोगों ने कचड़ा फेंकना बंद कर दिया लेकिन यह टाइल्स जमीन से थोड़ी ऊपर लगी है. धर्म में चित्रों के पूजन की मान्यता है लेकिन यहां इनके चित्रों के आसपास हवा से कचड़ा इक्कठा हो जाता है. ना ही इन चित्रों को कोई साफ करता है और ना ही इनकी यहां पूजा हो पाती है. जिससे कि सनातन में इनका अपमान ही हो रहा है.

दीवार पर लगी इन चित्रों के आगे कभी कोई बाइक खड़ा करता है तो कोई साइकिल, कोई ठेला लगा देता है तो कोई गाड़ी. पूरे दिन इन चित्रों के आगे किसी ना किसी प्रकार का जूठन, कपड़ा अन्य सामान आते जाते है जो इनकी पवित्रता को अशुद्ध करते है.

बहरहाल धर्म में आस्था है तो उनका सम्मान भी ज़रूरी है. सम्मान में भले ही लोग इस चित्र लगी दीवारों के सामने कचड़ा ना फेंके. लेकिन हम इनका सम्मान नही कर रहे है, जहां तहां इन चित्रों को लगाने से इनका सम्मान नही बल्कि इनका अनादर ही हो रहा है.

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