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Lockdown घर के लोगों के साथ मिल बैठकर खाएं सतुआ, उत्तर बिहार में मनाया जा रहा सतुआन

Chhapra: 14 अप्रैल कई मायनों में ख़ास होता है. देश के अलग अलग राज्यों में इस तिथि को अलग अलग त्यौहार और आयोजन के रूप में मनाया जाता है. कही वैशाखी मनाई जाती है तो कही बाबा साहब की जयंती. सभी अपने अनुसार इस तिथि को मानते है. लेकिन हमारे यहां ख़ासकर बिहार के उत्तर बिहार में इसे सतुआन या फिर सतुआनी कहा जाता है. मतलब सतुआ (मक्के और चने का आटा) खाने का दिन.

नहान और सतुआन दोनों का ग़जब तालमेल है लेकिन इस बार कुछ ऐसा नही दिखेगा. कारण है Lockdown. भले नहान यानी स्नान घरों में ही होगा लेकिन सतुआन का लुफ़्त लोग जरूर उठाएंगे. लंबे अर्से बाद इस सतुआन को परिवार संग मनाने का मौका जो लोगों को मिला है.

सतुआन को लेकर सोमवार को लगभग लोगों ने खरीददारी की. विशेष रूप से सतुआ यानी मक्के का आटा, सतुई यानी भुने हुए चने का आटा, मूली, प्याज, आम की टिकोला, हरा धनिया पत्ता, लहसून पत्ता और भी बहुत कुछ.

शुद्ध रूप से देशी और सुपाच्य इस भोजन में वास्तव में 56 भोग वाले स्वाद मिलते है. वैसे तो यह सिर्फ सतुआ और सतुई, नमक तथा पानी के साथ भी खाया जा सकता है, लेकिन कहते है न जबतक दाल में घी का तड़का नही लगे तबतक दाल दाल नही बनती. वैसे ही है हमारा सतुआ.

सतुआ के साथ, चने का सत्तू ( सतुई), जौ का सत्तू, नमक, पानी के साथ साथ, जीरा पाऊडर, हरी मिर्च, मूली, प्याज, चटनी, 5- 6 तरह का आचार तब जाकर इसका स्वाद आता है.गर्मी के दिनों में लोग बड़े ही चाव के साथ इसे खाते है जिसका कारण यह है कि यह प्यास को जगाता है. गर्मी में शरीर को पानी की आवश्यकता ज्यादा होती है.

इस बार आप घर मे है इस सतुआन उत्तर बिहार के इस सबसे सस्ते और शुद्ध भोजन का स्वाद जरूर ले.

अपने अनुभव भी हमें जरूर बताएं.

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