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Blog: पृथ्वी दिवस ( Earth Day) के अवसर पर पर्यावरण को बचाने का लें संकल्प

हर साल 22 April को दुनिया में 193 देशों मे पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है जिसकी शुुुुरुआत 1970 में  अमेरिका में हुई थी। मगर  इस वर्ष खास बात है कि इस वर्ष इसकी पचासवीं वर्षगांठ है। दूसरी खास बात है कि इस वर्ष पूूरी दुनिया में वैश्विक महामारी फैली हुई है ऐसे में पर्यावरण में हमारी गलतियों से हुई बदलाव से सभी अचंभित है।  प्रदूषण के स्तर में गिरावट और वायु की स्वच्छता को देखते हुए हमे समझना चाहिए कि मानव ने किस हद तक प्राकृतिक संतुलन को हानि पहुंचाया है।

महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लागू किए गए लॉक डाउन से प्रकृति को भी फायदा हुआ है।जैसे गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी एवं यमुना के पानी में भी थोड़ा सुधार हुआ है। हवा सांस लेने के लायक हुई। ओजोन परत में सुधार हुआ। पृथ्वी के कम्पन में भी कमी आईं है।

लोग विकास की धुन में लगे हुए थे किन्तु विकास एवं  विनाश समानांतर रूप से होता है फिर ऐसा विकास क्यों और किसके लिए ? अपनी भावी पीढ़ी को विरासत में क्या देंगे जब पर्यावरण बचेगा ही नहीं ।अतः मानव को विवेक एवं बुद्धि से सचेत होकर विनाश रहित विकास करना चाहिए अन्यथा विकास की कीमत विश्व के विनाश से चुकानी पड़ेगी।

सर्वोदय दर्शन का मूलमंत्र है ” सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यं तू मा कश्चित दूखभाग भवेत्”। तात्पर्य है कि सभी जनसमुदाय सुखी रहें, सभी निरोग रहें, सभी पारस्परिक कल्याण का प्रयास करें तथा किसी को किसी प्रकार का दूख न हो। यदि हम सर्वोदय दर्शन के इस प्रमुख अवधारणा को भारतीय परिवेश में क्रियान्वित करने का काम करें तो हमें सबसे पहले पर्यावरणीय प्रदूषण से विमुक्त होने का प्रयास करना पड़ेगा।

प्रकृति ने मानव को अन्य जीवों की अपेक्षा एक विलक्षण वस्तु ” मस्तिष्क” प्रदान किया है जिसका दुरुपयोग किया गया।उसने अपने जैविक और भौतिकवाद के चक्कर में पड़कर एवं स्वार्थ में पड़कर प्रकृति और पर्यावरण संकलन को क्षत विक्षत कर दिया। विज्ञान की निरंतर भाग दौड़ तथा मानव द्वारा भौतिकवाद प्राकृतिक संसाधनों को तीव्रता से नष्ट किया जा रहा है। हमारा भरा पूरा संसार प्रदूषण के मायाजाल में फंसकर विनाश की ओर जा रहा है।हमे उससे मुक्ति पाना असम्भव तो नहीं है यह हमे करोना के कारण लॉक डाउन ने सीखा दिया।प्रदूषण की लपेट में धरती, आकाश,जल एवं वायु आ चुका है।इस चुनौती को सामना करने के लिए हमे तुरंत प्रभावी कदम उठाने होंगे।भविष्य में संसाधन और पर्यावरण संतुलन आदि सब खत्म हो जाएंगे तो हम हम भावी पीढ़ी को क्या देंगे।

लोगों को उपभोक्तावादी जीवन शैली को बदलने और विकास की अवधारणाओं को पुनर्विचार करने की जरूरत है। पर्यावरण के अनुकूल नीति अपना कर ही हमारा भविष्य प्रकृति सम्मत विकास पर निर्भर करेगा। ज़रूरी है कि हम ग्रीन बिल्डिंग, प्रदूषण मुक्त स्वच्छ टेक्नोलॉजी और इलेक्ट्रिक वाहन की ओर अग्रसर हो।

करोना वायरस महामारी के बाद हमे अपने विकास और आर्थिक नीतियों की नए सिरे से दोबारा समीक्षा करना चाहिए।
सभी लोग संकल्प के साथ धरती को बचाने के लिए आगे आएं और मिलजुल कर इसे खूबसूरत बनाएं।

लेखक के विचार उनके ब्लॉग से लिए गए है.

प्रशांत सिन्हा
 पर्यावरणविद् 

आप उन्हें इनके Blog https://prashantpiusha.blogspot.com/ पर भी पढ़ सकते है.

Photo Courtesy: Google

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