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संक्रमित शवों से बढ़ेगा जीवनदायिनी गंगा का प्रदूषण

बक्सर के पास गंगा नदी में बहते शव एवं उन्नाव जिले में गंगा किनारे रेत के अंदर शवों का दफनाना अमानवीय एवम चिंता का विषय है। ये तैरते और दफनाए हुए शवों से मानवीय संवेदनाएं तार तार की जा रही है। यही नही गंगा में प्रदूषण बढ़ने की भी संभावना है।

करोना महामारी से हजारों मौतें हो रही हैं जिससे तमाम घाटों पर अंतिम संस्कार की लाइन लग रही है। गरीबों के पास पैसे की कमी, डर के कारण और लकड़ी की उपलब्धता नहीं होने के कारण गरीब शवों को नदी में बहा रहे हैं. अधजली शवों को छोड़ कर भाग जाते हैं और नही तो शवों को नदी के किनारों पर रेत के नीचे दफना रहे हैं।

करोना संक्रमण से मारे हुए लोगों की तैरते शवों से लोगों मे हड़कंप मचा हुआ है। लेकिन इस बीच आईसीएमआर के अध्यक्ष डाक्टर बलराम भार्गव का कहना है कि वायरस को पनपने के लिए जीवित मानव शरीर ज़रूरी होता है। अगर मानव शरीर मृत है तो फिर उसमें वायरस के आगे पनपने का गुंजाइश कम रहती है। इसलिए घबराने की जरुरत नही है। लेकिन बहुत सतर्क रहने की जरुरत है।

हालाकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने प्रशासनिक अधिकारियों को को इसे रोकने के लिए निर्देश दे दिया है, ये अधिकारी कितना रोक पाते हैं ये तो आने वाला समय बताएगा। करोना वायरस भले ही ही शवों से नही फैले लेकिन गंगा नदी के लिए ये बेहद नुकसानदेह है। इन शवों के कारण पानी पर बेशक असर पड़ेगा। पानी मर्ज वगैरह अपने साथ ही लेकर चलेगा, शवों की संख्या जितनी दिख रही है उस हिसाब से तो इस पानी का ट्रीटमेंट भी असंभव सी बात है।

प्रशासन को चाहिए कि इन जगहों का पानी लेकर जांच करे। वैसे भी अभी नदी में पानी को किसी भी काम के लिए इस्तेमाल नही करना चाहिए। जानवरों को भी नदी के पास जाने से रोकना चाहिए। अगर लोग इस पानी का इस्तेमाल करेगें तो लोगों को बैक्टेरिया से होने वाली बिमारियों का खतरा हो सकता है। शव विषाणु से भरा होता है जिसे कंटेजियस कहते हैं। यह नदी के पास लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है जो सीधा नदी के पानी पर निर्भर हैं।

प्रशासन के साथ मिलकर लोगों को गहन निगरानी रखना चाहिए ताकि भविष्य में गंगा में शवों को फेंकने की घटनाओं पर रोक लगाई जा सके। प्रशासन को चाहिए कि गरीबों को शवों का अंतिम संस्कार के लिए आर्थिक सहयोग करे जिससे भविष्य में ऐसी घटनाएं रुक सके। अन्यथा करोना के बाद दूसरी बीमारी फैलने का खतरा बढ़ सकता है।

यह लेखक के विचार है. 

प्रशांत सिन्हा 

लेखक पर्यावरण विद्द व स्वतंत्र टिप्पणीकार है  

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