छपरा (सारण):  सारण की ख्याति भारत में ही नहीं पूरे विश्व में स्थापित है. सभ्यता और संस्कृति की धनी सारण की धरती पर कई महान व्यक्तित्वों का अवतरण हुआ है. पर आपने कभी ये विचार किया है कि इस पवित्र भूमि का नाम सारण कैसे हुआ.

वैसे तो ‘सारण’ शब्द के उद्गम का कोई स्पष्ट विवरण नहीं मिलता है. जनरल कनिंघम के अनुसार इस शब्द का उद्गम संस्कृत के ‘सारण’ शब्द से हुआ है. जिसका अर्थ आश्रय स्थल अथवा आश्रय देने वाला होता है. इन्होंने भगवान बुद्ध की एक दंतकथा से इसका सम्बन्ध स्थापित करते हुए कहा था कि बुद्ध ने एक ऐसे दानव का ह्रदय परिवर्तन किया था जो की मानव मांस का भक्षण करता था और अंततः उस दानव ने बौद्ध धर्म को अंगीकार किया.

एक बौद्धधर्मावलंबी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि बौद्धधर्म अंगीकार करते हुए तीन चीजों (बुद्ध, धर्म तथा संघ) के आश्रय की मांग की गई थी. इस दानव के ह्रदय परिवर्तन के सारणोत्सव के उपलक्ष्य में सम्राट अशोक ने एक स्तम्भ का निर्माण कराया था.

जनरल कनिंघम के अनुसार इस स्तम्भ का नाम आश्रय अथवा पनाह स्तम्भ रहा होगा इसकी कीर्ति को देखते हुए इस जिले का नाम ‘सारण’ कर दिया गया होगा.

इसके अतिरिक्त सर्वाधिक सत्य प्रतीत होने वाला यह विचार बताता है कि सारण शब्द ‘सारंगारण्य’ का अपभ्रंश है. अर्थात इसका सम्बन्ध हिरणों के जंगल से है. स्थानीय किंवदंती के अनुसार पूर्व ऐतिहासिक काल में छपरा के सिंघही गाँव में ऋषि श्रृंगी का आश्रम हुआ करता था. जहाँ के जंगलों में हिरणों की अधिकता पाई जाती थी.

इस सम्बन्ध में एक अन्य विचार यह भी है कि सारण शब्द ‘शक्रारण्य’ शब्द का अपभ्रंश है. शक्र का एक अर्थ अर्जुन नाम के वृक्ष से भी है. संभवतः यहाँ के वनों में अर्जुन नाम के वृक्ष की अधिकता रही हो .