नगरा (मो.अयूब रजा की रिपोर्ट): शासन-प्रशासन विकास के लाख दावे करें, लेकिन हकीकत कोसों दूर हैं. नगरा में शिक्षा की हालत बदतर है. स्कूली बच्चे खुले आसमान के नीचे एक खंडहर में पढ़ने को मजबूर हैं. कई सालों से स्कूल के भवन की मांग की जा रही है. लेकिन शासन प्रशासन आंख-कान मूंद कर बैठा है. न बेंच है, न भवन है. खुले आसमां के नीचे पढ़ने का आसियां हैं. यही है हमारे शिक्षण संस्थानों की तस्वीर, जो सरकार के सुशासन के नारे को चिढ़ा रही है.
देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चे अपने भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए कई सबक सीख रहे हैं. जीता जगता उदाहरण क्षेत्र के सरकारी संस्थानों का बुरा हाल है. एक ओर जहां स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहा है, वहीं स्कूल भवन नहीं होने से बच्चों को खुले आसमान के नीचे मजबूरन पढ़ाई करनी पड़ रही है. विभागीय अधिकारियों की उदासीनता के चलते अनुभाग क्षेत्र की शिक्षा व्यवस्था बदहाल स्थिति में है. कई स्कूल शिक्षक विहीन हैं तो कई स्कूल ऐसे है जहां शिक्षक तो पदस्थ है लेकिन वे पढ़ाई की बजाय अक्सर गपशप करने में मशगूल रहते है. कहीं छात्रों की उपस्थिति कम रहती है. जिसके चलते जहां बच्चों का भविष्य अंधकार मय है, वहीं अभिभावकों में रोष व्याप्त है.
सरकार की शिक्षा का अधिकार, सर्व शिक्षा अभियान जैसी योजनाओं को पलीता लगाया जा रहा है. वहीँ क्षेत्र के नगरा पंचायत में रसूलपुर गांव में उत्क्रमित मध्य विद्यालय रसूलपुर स्कूल भवन की कमी के कारण खेल मैदान में ही कक्षाएं लगती है. भवन तो उपलब्ध है, लेकिन स्कूल के लिए पर्याप्त रुम नहीं होने के कारण स्कूल के ही दो कमरों में स्कूल का संचालन किया जाता है. ऐसे में स्कूल के पास अब दो ही कक्ष बच गए हैं, जहां बैठकर बच्चे पढ़ते हैं.
उत्क्रमित मध्य विद्यालय रसूलपुर के छात्र आज भी पेड़ के नीचे बैठ पढ़ाई कर रहे हैं. यह इनका शौक नहीं है. बल्कि विद्यालय में संसाधन के अभाव के कारण बच्चे इसके लिए मजबूर हैं. लेकिन आज तक इस विद्यालय को आवश्यकता के अनुरूप संसाधन मुहैया नहीं कराया जा सका. इस कारण छात्रों को पढ़ाई में बाधा समेत अन्य परेशानी से भी दो-चार होना पड़ता है.
लगभग 300 छात्र हैं नामांकित
मिली जानकारी के अनुसार विद्यालय में छात्रों की संख्या 3 सौ से अधिक है. इनको पढ़ाने की जिम्मेदारी शिक्षकों पर है, लेकिन वर्ग कक्ष मात्र दो रहने के कारण कक्षा एक से चार तक के सैकड़ों बच्चे वर्षो से पड़ तले खुले आसमान के नीचे पढ़ने को विवश हैं. जबकि पांचवी से आठवी तक के बच्चों को ठूंसकर वर्ग कक्ष में सभी को नीचे बैठते है. स्कूल में कक्षा 1 से 8 तक लगभग 300 बच्चे अध्ययनरत हैं. दोनों कक्षाओं को सेक्शन में विभाजित किया गया है. इनमें से कुछ कक्षाएं स्कूल भवन में संचालित होती है और कुछ कक्षाएं मैदान में खुले आसमान के नीचे।.
बारिश में हो जाती है छुट्टी
गांव में जिस दिन भी बारिश होती है उस दिन स्कूल की छुट्टी दे दी जाती है. चूंकि बारिश के कारण बाहर मैदान में पानी भर जाता है, ऐसे में उस दिन कक्षाएं नहीं लगती. बारिश अगर तेज हुई और मैदान ज्यादा गीला हुआ तो फिर कई दिनों तक कक्षाएं नहीं लगती. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होता है. स्कूल के शिक्षक भी कहते हैं कि जब तक कक्षाओं में स्कूल संचालित नहीं होती, बच्चों को पढ़ाने में परेशानी होती है.
मीडिल स्कूल का भी बुरा हाल
गांव के स्कूल का भी बुरा हाल है. फिलहाल स्कूल का संचालन स्कूल के भवन से ही किया जा रहा है. दो कमरों के इस स्कूल में बच्चों को ठूंस-ठूंस कर भरा गया है. बच्चों के लिए ठीक से बैठक व्यवस्था भी नहीं है. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा है. अभी भी प्रवेश का दौर जारी है. स्कूल के लिए भवन निर्माण का कार्य जारी हो जाता लेकिन विभाग के तरफ से स्कूल निर्माण के लिए आया पैसा वापस चला गया, समाजसेवी ठेकेदार की लेटलतीफी का खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ रहा है.
नहीं हो रही पढ़ाई
स्कूल में जब पत्रकार पहुचे तो स्कूल में केवल तीन शिक्षक मौजूद थे. इनमें से प्राचार्य सहित दोनों शिक्षक प्रवेश सहित अन्य विभागीय कार्य में व्यस्त थे. दो ही कक्षाओं में केवल बच्चे ही थे। और सभी बच्चे खेल के मैदान खेल रहे थे. अपने अपने किताब कॉपी बोरा बिछा कर रख कर.
ग्रामीण क्षेत्रों में बुरा हाल
क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में शिक्षा सत्र के शुरूआती दिनों में ही बुरा हाल है. शिक्षक न तो टाइम पर स्कूल पहुंचते और न ही रोजाना अपनी उपस्थिति दर्ज कराते. शिक्षकों की मिलीभगत के कारण शिक्षक उपस्थिति पंजी को खाली छोड़ दिया जाता है, ताकी दूसरे दिन शिक्षक के आने पर उपस्थिति हस्ताक्षर हो सके.
क्या कहते है स्कूल के शिक्षक
मीणा कुमारी सिंह, बबिता कुमारी, मनोज प्रसाद, प्रधानाध्यापक गौतम मांझी ने बताया की यहाँ पर बहुत परेशानी है. बच्चों को पढ़ने लिखने में दो ही रूम है. जहाँ आठ क्लास के छात्र छात्राएं है. स्कूल को भवन नही होने से सभी को खेल के मैदान में बैठाकर पढ़ाया जाता है. वही शिक्षक का भी अभाव है.
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