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चिरांद के विकास के लिए केंद्रीय मंत्री से मिले सांसद

  1. ASI से राष्ट्रीय स्तर की मान्यता दिलाने के लिए की पहल 
  2. पर्यटन के क्षेत्र में युवाओं को मिलगा रोजगार 
  3. पुरात्तात्विक संग्रहालय की होगी स्थापना 

Chhapra: सारण सासंद रजीव प्रताप रुडी ने सारण को विश्व स्तरीय पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए एक और पहल की है. जिले में पुरातात्विक महत्त्व रखने वाले चिरांद को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिए रूडी कई महीनों से प्रयास कर रहे हैं. इस मामले को लेकर अब सरकार भी गंभीर कदम उठा सकती है.

सारण को पयर्टन के रूप में विकसित होने पर इस क्षेत्र के युवाओं को रोजगार भी मुहैया कराया जा सकेगा. इसी क्रम में चिरांद को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) से राष्ट्रीय स्तर की मान्यता दिलाने के लिए श्री रुडी ने भारत सरकार के संस्कृति मंत्री महेश शर्मा से मुलाकात कर चिरांद को राष्ट्रीय स्तर की मान्यता एवं वित्तीय पोषण दिलाने की बात कही है. साथ ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की महानिदेशक उषा शार्मा से भी सांसद ने संपर्क कर इस संदर्भ में विस्तृत चर्चा की है.

सांसद ने सारण जिलाधिकारी को एक प्रस्ताव बनाकर विभाग को भेजने के लिए कहा है. उन्होंने कहा कि यह स्थल भारत ही नहीं बल्कि विश्व के महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों में से एक हैं. गंगा, सरयू और सोन नदियों का संगम होने के कारण यह धार्मिक दृष्टि से प्रयाग की तरह अद्वितीय तीर्थ स्थल तो है साथ ही बुद्ध धर्म की मान्यताओं के अनुसार भी यह एक पवित्र स्थान है.

इसके साथ ही यहां खुदाई से प्राप्त अवशेष इतिहास के उस युग पर प्रकाश डालते हैं. जिसके बारे में हमें बहुत जानकारी नहीं. ऐसे में इस स्थान को शैक्षिक व धार्मिक पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करना न केवल अपने ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजना होगा. बल्कि इससे राज्य के राजस्व में वृद्धि के साथ-साथ सारण का विकास भी होगा.

उल्लेखनीय है कि चिरांद सारण जिला का सबसे महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थल है जो प्राचीन भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। नदी घाटी सभ्यता के अन्तर्गत विकसित होनी वाली सभ्यताओं में चिरांद की सभ्यता को एक विकसित सभ्यता माना जाता है जो घाघरा नदी (उत्तर प्रदेश में इसी नदी को सरयू के नाम से जाना जाता है) के तट पर विकसित हुआ. पुरानी प्रचलित मान्यता के अनुसार महाभारत काल में यहां राजा मौर्यध्वज का शासन था जो यह प्रदर्शित करता है. द्वापर काल में भी यहां समुन्नत सभ्यता विकसित थी. इसी तरह महर्षि च्यवन और महर्षि सारण्य की भी यह भूमि है.

सरकार ने जब यहां खुदाई की तो यहां प्राचीन भारतीय सभ्यता से संबंधित कई वस्तुएं प्राप्त हुई. बुर्ज़होम (कश्मीर) को छोड़कर भारत में अन्य किसी पुरातात्त्विक स्थल से इतनी अधिक मात्रा में नवपाषाणकालीन उपकरण नहीं मिले, जितने कि चिरांद ग्राम से प्राप्त हुए हैं.

श्री रुडी ने कहा कि नवपाषाणकालिन सभ्यता के अवशेष मिलने से यह प्रदर्शित होता है कि यहां अत्यंत प्राचीन समय में पूरी तरह से सभ्यता विकसित थी. जिसे अब संवर्धन और संरक्षण की आवश्यकता है. पुरातात्विक व धार्मिक दृष्टि से समृद्ध चिरांद में देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करने का अद्भुत सामर्थ्य है.

उन्होंने कहा कि चिरांद के इस ऐतिहासिक महत्व, स्थिति को देखते हुए यहां पुरातत्व विभाग द्वारा इसके संरक्षण का उपाय करना बेहतर है. चिरांद के धरोहरों के संरक्षण व विकास के साथ पुरातत्व के अध्ययन के लिए यहां एक पुरातात्विक संग्रहालय की भी स्थापना किये जाने का प्रयास है.

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