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झिझड़ी महोत्सव: नारायण एवं नारायणी के अद्भुत मिलन के गवाह बने हजारों लोग

पानापुर: प्रखण्ड के सारंगपुर घाट पर मंगलवार की संध्या नारायण एवं नारायणी (गंडक नदी) के अद्भुत मिलन के हजारों लोग साक्षी बने. इस विहंगम दृश्य को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी. रामजानकी की मूर्ति को नदी जल से स्पर्श कराने के बाद उसे सजे सजाये नाव पर बिठाकर जल क्रीड़ा कराते हुए रामजानकी की मूर्ति को पुनः मन्दिर में स्थापित कर दिया गया. इस दौरान नाव पर सिर्फ लौंडा का नाच होता है. नदी की बीच धारा में जब नाव हिचकोले ले रही थी तो लोग दांतो तले अंगुली दबाने को मजबूर हो गए थे. 

इससे पहले रामपुररूद्र गांव स्थित रामजानकी मन्दिर में पूजा अर्चना के बाद रामजानकी की मूर्ति को पालकी में सजाकर गाजे बाजे के साथ श्रद्धालु कोंध, भोरहा होते हुए सारंगपुर घाट पहुँचे. इस दौरान ‘जय कन्हैया लाल की, मदन गोपाल की’ जैसे उद्घोषो से पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया था. बाल कलाकारों द्वारा प्रस्तुत विभिन्न देवी देवताओ की झांकी लोगो के आकर्षण का केंद्र बना हुआ था.

क्यों मनाया जाता है महोत्सव
इस महोत्सव की शुरुआत कब हुई यह कहना तो मुश्किल है लेकिन इस महोत्सव के बारे में एक दन्त कथा है. गांव के कुछ बुजुर्ग बताते है कि एक बार नारायणी (गंडक) नदी पूरे उफान पर थी. उसकी भयावहता को देख नदी तट के ग्रामीण त्राहिमाम करने लगे. नदी के कहर से भयभीत ग्रामीण सारंगपुर घाट पर स्थित सिद्ध पुरुष अंगारा साईं के पास पहुँचे एवं इससे बचने का उपाय पूछा. अंगारा साईं ने बताया कि जबतक नारायणी नारायण का चरण स्पर्श नही कर लेगी उसकी विकरालता शांत नही होगी. तब ग्रामीणों ने कहा कि नारायणी तो नारायण से मिल ही लेगी लेकिन हम सब तबाह हो जायेंगे, क्यों न नारायण को ही नारायणी से मिलवा दिया जाय. तभी से हर वर्ष भादो महीने के शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को झिझड़ी महोत्सव का आयोजन किया जाता है.

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