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बाढ़ से किसानों की फ़सल तबाह लेकिन सरकार चिर निद्रा में सोई है: अजय राय

इसुआपुर: गंडक नदी में जलस्तर बढ़ने के बाद प्रखंड के कई गांवों में बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है. बारिश और बाढ़ के पानी से चंवर और खेत पानी से भर चुके है वही पानी निचले इलाकों में पांव पसार रहा है. खेतों में पानी लगने से लाखो की फ़सल बर्बाद हो गयी है. किसानों के इस हाल का कारण सरकार की बारिश के पूर्व की तैयारी है.

जिले में बाढ़ की भयावहता और तांडव कोई नई बात नही है लेकिन इसके बाद भी सरकार सचेत नही है. प्रतिवर्ष किसान अपनी बदहाली पर पर आंशू बहाते है लेकिन सरकार चिरनिद्रा में रहती है.

बारिश और बाढ़ के पानी से प्रखण्ड के रामपुर अटौली पंचायत के डोइला, महुली गांव सहित आधे दर्जन गांव की फसल पूरी तरह तबाह है.

किसान एकता मंच के अध्यक्ष सह प्रमुख प्रतिनिधि युवा नेता अजय राय ने प्रखंड के जलमग्न गांवों की स्थिति का जायजा लिया और किसानों की बदहाल स्थिति को दर्शाते हुए कहा कि यहाँ पहले सभ्रांत किसान थे लेकिन अब यहाँ के किसान भुखमरी के कगार पर आ गए है. किसानों की स्थिति को लेकर सैकडों बार बिहार सरकार एवम संबंधित विभाग को ग्रामीणों द्वारा पत्र लिखा गया लेकिन सुशाशन की सरकार को किसानों से क्या मतलब भले ही किसान भूखा ही क्यों न हो, सरकार की किसान उत्थान योजना, किसानों की आय दुगना करने जैसी योजनाएं अखबार के पन्नो तक सिमट कर रह गई है. अब किसान सरकार का दरवाजा खट-खटा कर थक गए है. हज़ारो कोशिशों के बाद भी किसानों के साथ सरकार ने लगातार धोखा दिया है और बांध, स्विलिप गेट, पुल बनवाने के आड़ में करोडो रुपए लूट का खेल खेला गया है.

वही किसानों का कहना है कि जमींदारी बांध का जब निर्माण हुआ तो गांव में ख़ुशी का माहौल था. निर्माण के बाद जल नहर और बारिश के पानी के निकासी के लिए जल संसाधन विभाग द्वारा किसानों का भूमि अधिग्रहण किया गया. जिससे डोइला से गोविन्दापुर डाबरा नही तक नहर का निर्माण सरकार द्वारा करना था. लेकिन 2006 से 2020 आ गया जल निकासी नहर का निर्माण न हो सका. इसी बीच जमीन्दारी बांध में सरकार द्वारा करोडो रुपये की लागत से सुइलिश गेट का निर्माण कर दिया गया और जो नहर कभी बना ही नही उस पर लगभग 5 करोड़ की लागत से 15 छोटे बड़े पुल पुलिया के निर्माण कर दिया गया.

प्रतिवर्ष किसानों अपनी बदहाली से ऊब चुके है और सरकार से इसका निदान चाहते है.जिससे कि बाढ़ और बारिश में उनकी फसल बची रही.

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