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पांच भाषाओं की डिक्शनरी लिखने वाले सारण के बद्री नारायण पांडेय झेल रहे हैं आर्थिक तंगी

Chhapra: शब्द ब्रम्ह है इससे बढ़कर कोई और मोहक रचना नही हो सकती. ऐसी सोंच रखने वाले सारण जिला के बद्री नारायण पांडेय अपने ही शब्दों को ख्याति दिलाने के लिये 80 वर्ष की उम्र में भी संघर्षरत हैं. हिंदी, अंग्रेजी, जर्मन, पारसी और संस्कृत जैसी पांच भाषाओं का शब्दकोश एक ही पुस्तक के अंतर्गत तैयार करने वाले बद्री नारायण पांडेय को जर्मन और ईरान के एम्बेसी ने इस कार्य हेतु जहां प्रोत्साहित किया और उन्हें अपने प्रयास में सफल होने की शुभकामना दी वहीं दूसरी ओर साहित्य व संस्कृति से दिनरात संवाद करने वाले अपने प्रदेश बिहार में ही उनकी इस प्रतिभा और बौद्धिकता को कोई मोल नही मिला. सात वर्ष पहले श्री पांडेय ने अपनी यह रिसर्च और इससे संबंधित पुस्तक बिहार सरकार और राजभाषा परिषद को भी भेजी थी लेकिन आज तक न इस उपलब्धि को संचित करने का कोई आश्वासन मिला और नाही उन्हें इस कार्य के लिये कोई साधुवाद दिया गया. हालांकि ऐसी नायाब कोशिश को सफलता के पंख नही मिलने के बावजूद बद्री नारायण पांडेय का आत्मविश्वास नही डगमगाया और अस्सी साल के उम्र में उनका मनोबल आज भी कुछ नया करने के लिये प्रयत्नशील है.

प्रकाशन के लिये भी नही मिला कोई बड़ा बैनर

छपरा शहर के हरदनबासु लेन में रहने वाले श्री पांडेय मिश्रीलाल साह आर्यकन्या मध्य विद्यालय के सेवानिवृत शिक्षक हैं. 1998 में रिटायर होने के बाद उन्होंने भाषाओं और शब्दों को लेकर रिसर्च शुरू कर दी. संस्कृत से लगाव था इसलिए इसके इर्दगिर्द शब्दों की समानता ढूंढने लगे. दस वर्षों की कठिन तपस्या के बाद साल 2010 में फाइव लैंग्वेज कॉनसाइज डिक्शनरी लिख डाली. हालांकि तमाम प्रयासों के बावजूद कोई बड़ा प्रकाशक नही मिला जो इसे प्रकाशित कर सके. छपरा के ही एक लोकल प्रकाशक श्री माधव मुद्रणालय ने इस शब्दकोश की अहमियत को समझते हुए इसे प्रकाशित करने का साहस दिखाया. शब्दकोश में 3781 शब्द हैं. हमसे बातचीत में उन्होंने बताया कि रिसर्च में आर्थिक हालात आड़े आते हैं. परिवार में उतनी सम्पन्नता नही है. जो पैसे बचते हैं बीमारी में खर्च हो जाते हैं. यदि सरकार संसाधन उप्लब्ध कराये तो इस शब्दकोश में 11 भाषाओं के शब्दों को शामिल किया जा सकता है.

अभी भी जारी है रिसर्च

तमाम कठिनाइयों और वृद्धावस्था के संघर्षों के बावजूद इनका रिसर्च जारी है. फिलहाल इन्होंने ‘जेंडर सिमिलरिटी ऑफ संस्कृत एंड जर्मन’ नामक शब्दकोश तैयार किया है जिसमें 5759 शब्दों का जिक्र है. यह रिसर्च मात्र चार माह में पूरा हुआ है. हालांकि अबतक इसे कोई प्रकाशक नही मिला है. कुछ पुराने मित्रों से संम्पर्क कर इसे प्रकाशित कराने की कोशिश में हैं. इनके पुत्र राजू पांडेय भी पिता के उपलब्धि को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की कोशिश में लगे हैं. यदि इनकी बनायी डिक्शनरी बड़े बैनर द्वारा प्रकाशित हो जाये तो छात्रों को एक साथ पांच भाषाओं की जानकारी और उनके शब्दों को पहचानना आसान होगा. शोध छात्रों के लिये भी यह शब्दकोश काफी उपयोगी है.

प्रयास एक नजर में

लगभग 10 वर्षों के कठिन रिसर्च के बाद जब बद्री नारायण पांडेय ने अपने डिक्शनरी को प्रकाशित करने के लिये प्रयास शुरू किया तो कई बड़े प्रकाशकों ने इसमें अपना इंटरेस्ट नही दिखाया. अंत में एक स्थानीय प्रकाशक तैयार हुए और डिक्शनरी की कुछ प्रतियां छापी गयी. आर्थिक तंगी के कारण प्रचार-प्रसार नही हो सका जिस कारण बड़े स्तर पर डिक्शनरी प्रमोट नही हो सकी.

श्री पांडेय ने डिक्शनरी को राष्ट्रीय पटल पर प्रकाशित कराने के किये कई प्रयास किये. पहले उन्होंने इसे जर्मन और ईरान की दूतावास भेजा. वहां से उन्हें इस सार्थक प्रयास के लिये साधुवाद का एक पत्र भी आया और रिचर्स को आगे बढ़ाने की शुभकामना भेजी गयी. इससे उत्साहित होकर उन्होंने बिहार सरकार और राजभाषा परिषद को भी डिक्शनरी की एक कॉपी और रिसर्च से सम्बंधित कुछ मेटेरियल भेजा. हालांकि एक लंबा अंतराल बीत जाने के बाद भी अबतक बिहार सरकार व राजभाषा परिषद से कोई जवाब नही आया है.

डिक्शनरी संस्कृत, जर्मन, पारसी, अंग्रेजी और हिंदी के साढ़े तीन हजार से भी ज्यादा शब्द हैं. ऐसे में छात्रों के लिये यह काफी उपयोगी है. खासकर शोध छात्रों व अलग-अलग भाषाओं पर रिसर्च करने वाले विद्यार्थियों के लिये काफी उपयोगी साबित हो सकता है. बद्री नारायण पांडेय बताते हैं कि अबतक उनकी नजर में एक साथ पांच भाषाओं की डिक्शनरी नही आयी है. छपरा और आसपास के कुछ छात्र-छात्राओं को जब इस डिक्शनरी की जानकारी मिलती है तो वह उनके घर से खरीद कर ले जाते हैं. छात्रों का कहना है कि ऐसा शब्दकोश बाजार में कहीं उपलब्ध नही है. यदि दुकानें पर इसकी प्रतियां उपलब्ध हो और बड़ा प्रकाशक इसे प्रमोट करे तो छात्रों को काफी आसानी होगी.

अस्सी वर्षीय बद्री नारायण पांडेय का रिसर्च इस उम्र में भी जारी है. संसाधनों के अभाव में अकेले ही दिनरात अपने अगले प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. अभी संस्कृत और जर्मन की एक डिक्शनरी तैयार कर रहे हैं जो अंतिम चरण में है. इसके लिये प्रकाशक तलाश रहे हैं. अपने रिसर्च में व्यस्त रहने कारण उन्हें समाजिक गतिविधियों में शामिल होने का ज्यादा अवसर नही मिलता. रोटरी क्लब और लायंस क्लब जैसी संस्थाओं ने एक बार उनका सम्मान किया था. उसके बाद स्थानीय स्तर पर भी इनका हाल लेने कोई नही आया. तत्कालीन डीएम विनय कुमार से मिलकर इन्होंने अपने डिक्शनरी को प्रमोट कराने का आग्रह किया था लेकिन उसी बीच डीएम का तबादला हो गया और उनका प्रयास अधूरा रह गया”.

साभार: पत्रकार, प्रभात किरण हिमांशु के फेसबुक वॉल से

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