भोजपुरी समागम 2024: संवैधानिक मान्यता और शास्त्रिय भाषा के रूप में भोजपुरी को मिले पहचान

भोजपुरी समागम 2024: संवैधानिक मान्यता और शास्त्रिय भाषा के रूप में भोजपुरी को मिले पहचान

Chhapra: संवैधानिक मान्यता और शास्त्रिय भाषा के रूप में भोजपुरी की दावेदारी विषयक परिचर्चा के साथ रविवार को भोजपुरी समागम 2024 का औपचारिक समापन हुआ।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्मस्थली सिताब दियारा के लाला टोला स्थिति जेपी ट्रस्ट में आयोजित समागम के अंतिम सत्र को संबोधित करते हुए छपरा विधायक डा. सीएन गुप्ता ने कहा कि भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव सदन में पारित कर बिहार सरकार ने केन्द्र को भेज दिया है। देश के विभिन्न भोजपुरिया प्रदेश से इस समागम में आये प्रतिनिधियों के भाषाई भावना के साथ वे खड़े हैं। विधान पार्षद डा. वीरेन्द्र नारायण यादव ने कहा कि भोजपुरी की बात मैं सदा करता रहा हूं। भोजपुरी की मान्यता के प्रस्ताव को दूबारा केन्द्र को भेजवाने के प्रयास में लगा हूं।

इसके पूर्व मुजफ्फरपुर विश्वविद्यालय के भोजपुरी विभागाध्यक्ष डा. जयकांत सिंह जय ने कहा कि 1959 के 4 फरवरी से चल रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि बाजारवाद के इस दौर में देश की आर्थिक उन्नति भोजपुरी के बिना नहीं हो सकता। 22-23 करोड़ भोजपुरिया भाषी और संसद के 50 प्रतिशत सांसद की भाषा भोजपुरी के मान्यता में अवरोधक तत्वों का हमें डट कर मुकाबला करने की जरूरत है। भोजपुरी का सबकुछ लय में है लेकिन भोजपुरिया राजनीतिज्ञ बेलय हैं।

विषय प्रवेश कराते हुए अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा. ब्रजभूषण मिश्रा ने भोजपुरी भाषा के मान्यता और विकास में बाधक तत्वों की चर्चा करते हुए कह भाषा अस्मिता बोध पर बल दिया।

समागम के मुख्य संयोजक पृथ्वी राज सिंह ने भोजपुरी भाषा के पुरातन साहित्य की चर्चा करते हुए शोध और अध्ययन की जरूरत पर बल दिया। अध्यक्षता शिवजी पांडेय और संचालन भंवर निगम ने किया।

इसके पूर्व के साहित्यक सत्र का विषय था भोजपुरिया क्षेत्र में खेती-किसानी और अद्यौगिक उन्नति जलवायु परिवर्तन के प्रभाव। इस सत्र को संबोधित करते हुए बलिया विश्वविद्यालय के कुलपति डा. संजीत कुमार गुप्ता ने कहा कि भोजपुरी क्षेत्र के विकास में जलवायु परिवर्तन के बड़े खतरे हैं। खेती-किसानी और पशुपालन पर इसका व्यापक प्रभाव है। स्वतंत्रता आंदोलन का लड़ाकू भोजपुरिया क्षेत्र अगर अबतक अविकसित है तो इसका कारण है यहां के लोगों का अक्खड़पन और कार्यसंस्कृति के प्रति गैर जिम्मेदार होना। आई आई टी कानपुर के डा. शिवशंकर राय ने जलवायु परिवर्तन से जुड़े जैविक विकास पर विस्तार से अपनी बातें रखी। एस म एस कालेज, सहरसा के प्राचार्य डा. अशोक कुमार सिंह ने भी अपनी तर्कपूर्ण बातें रखी। पत्रकार मोहन सिंह ने विषय प्रवेश कराया। अध्यक्षता पूर्व जिला पार्षद कन्हैया सिंह ने किया और संचालन ब्रजेश सिंह ने की।

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