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एड्स दिवस: युवाओं में बढ़ी रही है AIDS की बीमारी

Chhapra(Kabir): डिजिटल युग की हुंकार भरने वाले देश में अगर प्रतिवर्ष जानकारी के अभाव में किसी बीमारी में दस प्रतिशत की वृद्धि हुई है तो वो है एड्स. लगातार इस संख्या में वृद्धि होना चिंता का सबब है. केंद्र सरकार, राज्य सरकार और सामाजिक संगठनो द्वारा चलाये जा रहे जागरूकता अभियान सिर्फ खानापूर्ति मात्र दिख रहे है.

जरा सोंचिये, क्या एक दिसंबर एड्स दिवस के दिन ही जागरूकता चलाने मात्र से लोगों में इसकी जानकारी आएगी? अगर इस बीमारी पर जल्द काबू पाना है तो लोगों को एड्स दिवस के अलावे एड्स के लक्षण, इससे बचाव, उपचार, कारण इत्यादि के बारे में जानकारी देनी होगी. अगर देश के कई सामाजिक संगठनों के द्वारा अभियान सही से चलाया जाए तो इसमें जरूर कमी आएगी.

कुछ वर्षों पूर्व भारत सरकार ने लाईलाज जैसी एड्स बीमारी के लिए एक योजना लागू की थी जिसे ‘गैटिंग टू जीरों’ नाम दिया गया था जिसका उद्देश्य था कि कोई भी एचआइवी एड्स से नया व्यक्ति ना तो पीड़ित हो और न ही एड्स के कारण किसी की मृत्यु हो, यानी एचआईवी संक्रमण की दर को रोकते हुए शून्‍य स्‍तर तक लाना था. लेकिन योजना सफल नही सकी सका जितनी होनी थी.

बात सारण जिले की करें तो संख्या धीरे धीरे बढ़ती जा रही है. सदर अस्पताल स्थित एकीकृत परामर्श एवं जांच केंद्र छपरा की परामर्शी डॉ साधना कुशवाहा के अनुसार वर्ष 2015 में एड्स पीड़ित सामान्य महिला व पुरुषों की संख्या 456 थी तो वही गर्भवती महिलाओं की संख्या 18 थी.

वर्ष 2016 की बात करें तो सामान्य महिला व पुरुषों की संख्या 428 तो वही गर्भवती महिलाओं की संख्या 17 थी इस वर्ष जनवरी 2017 से नवम्बर तक सामान्य महिला व पुरुषों की संख्या 539 तो दूसरी तरफ गर्भवती महिलाओं की संख्या 31 है.

इस वर्ष 5032 गर्भवती महिला और 4604 सामान्य महिला व पुरुष एकीकृत परामर्श एवं जांच केंद्र से एड्स जैसी बीमारी की जांच करा चुके है. एचआइवी से पीड़ित महिलाओं के 45 दिन वाले नवजात शिशुओं की जांच आईसीटी केंद्र में ईआईडी/डीबीएस जांच कराया जाता है जिन बच्चों को एड्स जैसी बीमारी होती है. उन्हें एआरटी केंद्र से जोड़ा जाता है और वही से ईलाज शुरू किया जाता है.

एड्स के फैलने का कोई एक कारण नही है, एड्स के संक्रमण के तीन मुख्य कारण हैं– असुरक्षित यौन संबंध, रक्त, माँ-शिशु संक्रमण द्वारा.

माँ-शिशु संक्रमण से बचाव

यदि एक एच॰आइ॰वी॰ पॉजिटिव स्त्री गर्भवती हो जाती है तो नवजात शिशु के संक्रमित होने की संभावना काफी बढ़ जाती है. यह संक्रमण गर्भ, प्रसव या स्तनपान द्वारा हो सकता है. गर्भ और प्रसव के दौरान माता को एंटीरेट्रोवाइरल दवाइयाँ दी जाएँ, जिससे शिशु के संक्रमित होने का खतरा कम हो जाता है.

यदि अन्य हालात इजाज़त दें तो शिशु का जन्म सी-सेक्शन द्वारा कराया जाए. इस से माता के द्रव्यों से बच्चे का संपर्क कम हो जाता है और संक्रमण का खतरा भी. यदि अन्य स्वीकार्य विकल्प उपलब्ध हों, तो शिशु को स्तनपान न कराया जाए.

यौन संबंधों द्वारा संक्रमण से बचाव

यौन संबंध द्वारा एचआइवी के शिकार न बनें, इसके लिए आप को इन बातों का ध्यान रखना होगा. यदि आप अविवाहित हैं या आप का कोई स्थाई और विश्वसनीय यौन संगी नहीं है तो सेक्स को जितना हो सके, जब तक हो सके, टालना बेहतर है.

सेक्स साथियों में बदलाव न करें तो बेहतर है. एक वफ़ादार साथी से नाता रखें और उस से वफ़ा करें, यानी उसी से सेक्स करें.

रक्त द्वारा संक्रमण से बचाव

रक्तदान के समय एड्स का संक्रमण न हो इसके लिए रक्तदाता के खून की जाँच होना आवश्यक है. यह भी आवश्यक है कि रक्त लेने और देने के लिए जिन सूइयों का प्रयोग हो रहा है वे नई हो और अप्रयुक्त हो. चूँकि रक्त-आधान अस्पतालों या प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा ही किया जाता है. आज के युग में रक्तदान के द्वारा असावधानी होने पर एचआइवी का संक्रमण होने की संभावना कम है.

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