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विश्व मधुमक्खी दिवस पर बीएयू में मधुमक्खी पालन चुनौतियां एवं संभावनाएं विषयक कार्यशाला आयोजित

भागलपुर: विश्व मधुमक्खी दिवस पर गुरुवार को सबौर कृषि विश्वविद्यालय में मधुमक्खी पालन चुनौतियां एवं संभावनाएं विषयक एकदिवसीय कार्यशाला का ऑनलाइन आयोजन किया गया।

कार्यशाला को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर आरके सुहाने ने सर्वप्रथम कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ एन श्रवण कुमार सचिव कृषि विभाग, विशिष्ट अतिथि नंदकिशोर निदेशक उद्यान बी एच डी एस के मिशन निदेशक कृषि विभाग एवं डॉक्टर अंजनी कुमार निदेशक अटारी जौनपुर का कृषि विश्वविद्यालय सबौर परिवार के तरफ से स्वागत एवं अभिनंदन किया।

कुलपति ने कहा कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है। किसान एवं कृषि वैज्ञानिक के संयुक्त प्रयास से सभी को आज हमारा देश भोजन मुहैया करा पा रहा है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से विगत वर्ष पूरी दुनिया बुरी तरह से प्रभावित हुई है। लेकिन ऐसी कठिन परिस्थिति में भी मधुमक्खी पालन खुद को सशक्त बनाने के साथ-साथ देश को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने में अहम भूमिका निभा रहा है।

मधुमक्खी पालकों के ही अथक प्रयास से वर्ष दो 2018-19 में देश का कुल शहद उत्पादन 120000 मेट्रिक टन रहा। उत्तर प्रदेश 22,000 मेट्रिक टन शहद उत्पादित कर पहले पायदान पर रहा तथा बिहार 15 हजार मैट्रिक टन उत्पादित कर चौथे स्थान पर रहा। कुलपति ने कहा कि राष्ट्रीय माध्वी परिषद नई दिल्ली के अनुसार वर्ष 2019 तक बिहार के कुल पंजीकृत मधुमक्खी पालकों की संख्या 860 एवं मधुमक्खी कालोनियों की संख्या 160451 थी। जबकि राज्य में 50,000 से अधिक लोग लगभग 500000 मधुमक्खी बक्सों का पालन कर रहे । जिनमें से 500 से ज्यादा मधुमक्खी पालक वर्ष भर शहद की प्राप्ति हेतु अन्य राज्यों में जाते हैं।

राज्य में मधुमक्खी पालन का मुख्य क्षेत्र मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, चंपारण, मधेपुरा, कटिहार, बेगूसराय, खगड़िया, भागलपुर, नालंदा, पटना, गया एवं जहानाबाद जिले हैं। कुलपति ने कहा कि बिहार में व्यापारिक स्तर पर मुख्य रूप से सरसों और लीची शहद का उत्पादन किया जाता है। लेकिन यहां के मधुमक्खी पालक जामुन, नीम, तुलसी, सहजन, खेसारी इत्यादि का शहद उत्पादन करने के लिए पड़ोसी राज्य झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश एवं पश्चिम बंगाल जाते हैं।

वर्तमान में बिहार में मधुमक्खी पालन क्षेत्र को बढ़ावा देने तथा युवाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित कई परियोजनाओं जैसे ट्राईबल सब प्लान प्रोजेक्ट, फार्मर्स फर्स्ट प्रोजेक्ट, किसान बायोटेक प्रोजेक्ट इत्यादि के माध्यम से राज्य के कई जिलों के चयनित गांव के युवाओं एवं किसानों को चयन कर उनको प्रशिक्षित किया गया तथा यथासंभव मधुमक्खी कॉलोनी सहित अन्य आवश्यक सामग्री मुहैया कराया जा रहा है। जिसे अपनाकर वह लोग अपनी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति सशक्त एवं सुदृढ़ करने की ओर अग्रसर हैं। कुलपति ने कहा कि इसके अलावा राज्य के एवं राज्य के बाहर के मधुमक्खी पालकों को पालन के दौरान आने वाली तकनीकी समस्याओं का विभिन्न माध्यमों से निदान करने का प्रयास किया जा रहा है। गुणवत्ता युक्त शहद उत्पादन करने एवं इससे अच्छा मूल्य प्राप्त करने हेतु शहद का प्रसंस्करण करना अति आवश्यक हो जाता है।

ऐसे में बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर अपने मुख्यालय प्रांगण में एवं विश्वविद्यालय अधीनस्थ संचालित नालंदा उद्यान महाविद्यालय में शहद प्रसंस्करण इकाई स्थापित किया है। जहां पर मधुमक्खी पालक रु 1500 प्रति क्विंटल की दर से भुगतान कर कच्चे सहद का प्रसंस्करण कर सकते हैं और अपने उत्पाद से अच्छा मूल्य प्राप्त कर सकते हैं।The request cannot be completed because you have exceeded your quota.

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