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खो गई वो बचपन वाली होली

“बुरा ना मानो होली है”-खुशी के साथ ये वाक्य बोलने और एक-दूसरे पर रंग-गुलाल उड़ेलने का वो दिन,वो होली फिर आ गई। दिलों के खिलने और एक- दूसरे से मिलने वाले इस त्यौहार का अपना ही मज़ा है। ये दिन विभिन्न प्रकार के रिश्तों के बीच एक अनोखा मिठास घोल जाता है।
यूं तो होली को सभी बचपना से भरी मस्ती करते हैं। पर,इस उमंग के बीच अगर कोई कमी खलती है तो वो सिर्फ होली के उस दुर्लभ,हाथों में बड़े-छोटे पिचकारी पकड़े, रूप की। होली के उन दिनों की बात ही अलग थी। बाल उम्र में हमलोग हाथों में रंग-बिरंगी पिचकारियां पकड़े हुए अपने हमउम्र से लेकर बड़ो तक पर रंगों का बौछार करते रहते थे। सुबह-सवेरे सोकर उठते ही माँ-पापा से बस इज़ाज़त के इंतज़ार में रहते। रंग खेलने से मन तृप्त ही नहीं होता था।कुछ भी कहो, वो उमंग कहीं तो खो गई है।
होली खेलने को तो आज भी खेलता हूं, पर स्वयं ही एक सीमारेखा का निर्धारण हो जाता है। सच कहा जाए तो अब मन के अंदर एक ऐसी सोच भी व्याप्त होती है कि अगर कोई मुझे रंग ना लगाता तो सर्वोत्तम होता। हालांकि, अपना विवेक इस विचार का विरोध करता है और यह सोचकर की साल में एक बार ही तो इस विशेष दिवस का आगमन होना है, हम स्वयं को रंग खेलने को विवश पाते हैं। पर,यह तो सच है कि हम अब रंग से ज्यादा गुलाल से ही होली खेलना बेहतर समझते हैं। रंग छुड़ाने के कष्ट से बचना चाहते हैं।
आज भी किसी छोटे बच्चे को पिचकारी लिए उछलते-कूदते देख हृदय में अपना बचपन जग उठता है। कभी-कभी तो अपने बचपन  को यादों में ताज़ा करने के उद्देश्य से बच्चों से पिचकारी ले उनसे ही खेल लिया जाता है। बचपन के दोस्तों से अधिक आज के समय में हमारे मित्र एवं रिश्तेदार होते हैं। आज के वक्त में तब से कहीं अधिक लोगों से मिलना-जुलना होता है। पर,वो बचपन की होली कुछ और ही थी। वो कहीं तो खो गई है।
              खैर,ना बिता हुआ उम्र वापस आता है और ना ही वो होली वापस आएगी।बच्चे के रूप में रंग और गुलाल खेलने के मज़े का बसेरा तो सिर्फ यादों में ही रह सकता है।हां, होली हर्षोल्लास और शोर-गुल के साथ मनाने का पर्व है।इसे मनाने के लिए उम्र का लिहाज़ छोड़ बचपने को अपनाना तो पड़ेगा ही।होली के खोए हुए रूप को अपने- आप में ढूँढना ही पड़ेगा।दिलों पर उमंग का राज रहने वाला दिन आ चला है।हालांकि, रंग -गुलाल लगाने में थोड़ी सावधानी बरतने की भी ज़रूरत रहती है।आप सभी को रंग-बिरंगी होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
ये लेखक के निजी विचार है
सन्नी कुमार सिन्हा
    युवा लेखक
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