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छपरा 2016: इस साल कुछ ऐसा रहा मेरा शहर

{कबीर}

साल 2016 कई मायनों में याद रखा जायेगा. इस साल सूबे की राजधानी से लेकर मुल्क की राजधानी तक सारण का मान और सम्मान बढ़ा. जब जिलाधिकारी को मुख्यमंत्री, बच्चों के ‘दादा जी’ और सारण की बेटी को राष्ट्रपति ने सम्मानित किया.

इस साल कोर्ट को दहलते भी देखा, सजा सुन प्रधानाध्यापिका को फफक कर रो पड़ते भी देखा. सीख मिलते ही सदस्यों को संगठन बनाते भी देखा. शहर के पहले ओवरब्रिज पर खुशियों की सेल्फी लेते भी देखा. जब बहन-बेटियों के ससुराल और मायके की दूरियां कम हुई, सूबे की राजधानी से जुड़ा अपना शहर तब उस ख़ुशी को भी देखा.

उम्मीद थी शहर की हालत सुधेरेगी लेकिन नगर निगम का दर्जा मिलने पर भी कूड़ा जहां था वहीँ देखा. जिसने दिन भर लाइन में खड़ा किया, लाइन में खड़ा रहकर उसी की तारीफ करते पहली बार सुना. इतनी बड़ी कतार एटीएम के बाहर पहली बार देखा. जब सारण के लाल ने ‘भिखारी’ को रेत पर उकेरा तो सारे संसार ने देखा.

दो शख्सियतों ने जब साथ छोड़ा तो सदमे में रहा मेरा शहर. सारण में ‘विहिप’ को पहचान दिलाने वाले श्यामलाल चौधरी और समाज सेवा के जरिये लोगों के बीच अपनी लग पहचान बनाने वाले ‘बलाक साहेब’ को सारण ने खो दिया. शायद ही इनकी भरपाई हो पाए. राजद सुप्रीमो ने बलाक साहेब को सच्चा सिपाही बताया.
मुसीबतें आती है, आये… उन्हें किसने रोका है, हम सारणवासी इसका डटकर सामना करते आये है और करते रहेंगे.

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