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हम क्यों नहीं मार देते अपने अंदर के रावण को!

छपरा (प्रभात किरण हिमांशु): कई युग बीत गए जब श्री राम ने रावण को उसी की लंका नगरी में परास्त कर उसके अहंकार रुपी दसों सिरों को को धड़ से अलग कर पुरे विश्व में बुराई पर अच्छाई के जीत का एक अविस्मरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया था। आज भी हम उस विजय गाथा को हर साल रावण-वध के रूप में मनाकर याद करते हैं। पर राम ने जिस उद्देश्य के लिए रावण का वध किया क्या आज हमारा समाज श्री राम के उन उद्देश्य और उससे मिलने वाली प्रेरणा पर प्रश्नचिन्ह नहीं खड़ा कर रहा है? जिस प्रकार हमारे समाज में हर वर्ष हत्या, बलात्कार, भ्रष्टाचार जैसी घटनाएं बढ़ती जा रही है उससे ये प्रतित होता है की आज रावण के पुतले को जलाने से ज्यादा हमें अपने अंदर बैठे रावण को जलाने की आवश्यकता है।

समाज में अशिक्षा,गरीबी,भुखमरी और सामाजिक भेदभाव को खत्म करना रावण दहन से कम नहीं होगा। जिस उत्साह के साथ हम रावण के पुतला दहन को देखने जाते है उसी उत्साह और जोश से हमें अपने अंदर पनप रहे रावण रूपी अहंकार और बुराई को समाप्त करना होगा। राम के प्रयासों की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब हम अपनी नाभी में पल रहे दुराचारी रावण को निकाल बाहर करेंगे। हमसब को मिलकर दुराचारी रावण का एकबार पुनः अंत करना होगा तभी जाकर रावण-दहन करने की परंपरा का सही असर देखने को मिलेगा।

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